जब कोई अक्स निगाहों में ठहर जाता है
दिल तमन्नाओं को कपड़े नये पहनाता है
ज़िंदगी होती है जब मौत की आग़ोश में गुम
पंछी उड़कर कहीं आकाश में खो जाता है
खाइयाँ लेती हैं बरसात के पानी का मज़ा
ये हुनर ख़ुश्क पहाड़ों को कहाँ आता है
बंद कमरे में जो जलता था बड़ी शान के साथ
वो दिया सहन में जलते हुए घबराता है
आसमाँ आ गया क़दमों में ज़मीं के, वो देख
तेरी औक़ात ही क्या, किसलिए इतराता है
कौन दे पाया उसे उसके सवालों के जवाब
इस क़दर बातों ही बातों में वो उलझाता है
✍️ डा. कृष्णकुमार 'नाज़', मुरादाबाद
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