ओ री मन-मोहिनी !
क्यों सताने लगी ।
देर से आ,क्यूं जल्दी
तू जाने लगी ।।
धूप सी, रूपसी !
ये तेरे रुप की ।
गुनगुनी धूप अब
मन को भाने लगी ।।
काहे जाने लगी ?
काहे जाने लगी ??
बाहर शीतल मेरे ।
भीतर दहकन मेरे ।
शीत रुत भी तो अंग-
अंग जलाये मेरे ।।
जो भी होता है, हो ।
जग कहे तो, कहो ।
मै तेरा हो रहूँ,
तू मेरी हो रहो ।।
बात जाने की कर,
कर न ये दिल्लगी ।
गुननगुनी धूप अब
मन को भाने लगी ।।
काहे जाने लगी ?
काहे जाने लगी ??
हाला से तू बनी ।
तुझ से हाला बनी ।
सर से पाँ तक तुही
मधुशाला.......बनी ।।
मुझको पीने तो दे ।
रूह बहकने तो दे ।
रूप के कुंड में,
गिर संभलने तो दे ।।
अभी पी भी नहीं,
और तू जाने लगी ।
गुनगुनी धूप अब
मन को भाने लगी ।।
काहे जाने लगी ?
काहे जाने लगी ??
तुझको मै पा तो लूँ ।
होश में आ तो लूँ ।
दिल संभल जाएगा,
तुझको मैं गा तो लूँ ।।
रात जाने भी दे ।
सुबह आने भी दे ।
लिक्खा तुझपे है जो,
गीत गाने वो दे ।।
ये पिपासा अजब,
ग़ज़ब की जगी ।
गुनगुनी धूप अब
मन को भाने लगी ।।
काहे जाने लगी ?
काहे जाने लगी ?
✍️ इन्द्रदेव भारती
ए / 3 - आदर्श नगर, नजीबाबाद - 246 763
( बिजनौर ) उत्तर प्रदेश
मोबाइल फोन नम्बर 99 27 40 11 11
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