डियर जिन्दगी,
पता है मैं तुम्हें हमेशा प्यार करती आयी हूँ।लेकिन कभी-कभी बहुत झल्लाया है तुमने और बहुत बहुत रूलाया भी,इतना कि ……
मौत से दोस्ती करने को जी चाहा......हाँ-हाँ उसी मौत से जो तुम्हारी दुश्मन है|
पर कुछ तो है तुम में कि तुम्हारे दिए इतने जख्मों के बावजूद मौत मुझे तुम्हारे खिलाफ बरगला न सकी,
अच्छा ही हुआ.....वरना मैं उन खूबसूरत पलों के तोहफे कैसे खोल पाती जो तुमने छुपाकर रखे थे अपने पहलू में मेरे लिए|कैसे जान पाती कि तुम जो मुझे इतनी बुरी लगती हो कभी कभी......अनिर्वचनीय सुन्दर,रोमांचक और अद्भुत भी हो|
वक्त की भट्टी में तपते तपते तुमसे मेरी दोस्ती अब गहराती जा रही है और तुम्हारे प्रति मेरा प्रेम भी बढ़ता जा रहा है|मैं अब तुम्हें समझने लगी हूँ,समझने लगी हूँ कि ये जो तुम कभी-कभी रूखी और कठोर हो जाती हो न,वो तरीका है तुम्हारा मुझे सँवारने का,मुझे निखारने का|वाकई तुम मेरी बेस्ट फ्रेण्ड हो,डियर जिन्दगी|पर एक बात कहूँ.....जब कुछ लोग तुम्हें समझ नहीं पाते और तुम्हारे दिए हुए चंद जख्मों के कारण तुम्हें खलनायक समझकर छलावी मौत से दोस्ती कर लेते हैं न,तो मुझे बड़ा अफसोस होता है|उस वक्त मेरा मन करता है काश मैं या मुझ जैसे वे लोग जिन्होंने जिन्दगी से दोस्ती कर ली है और जो मौत के छलावे से बच निकल आये हैं,उन्हें तुमसे रूठकर मौत से दोस्ती करने जा रहे लोगों को समय पर पहचानने और समझाने का एक मौका मिल जाता तो असमय होने वाली मृत्यु-मित्रता को रोका जा सकता|
मैं तुम्हारी दोस्ती की अहमियत समझती हूँ डियर जिन्दगी और इसीलिए मैं तुम्हें प्यार करने वाले,तुम्हें चाहने वाले,तुम्हें शिद्दत से जीने वाले दोस्तों की संख्या बढ़ाना चाहती हूँ|
आशा करती हूँ मेरी इस कोशिश में तुम भी मेरा साथ दोगी।दोगी न....
✍हेमा तिवारी भट्ट, मुरादाबाद
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