मंगलवार, 24 नवंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ सरोजिनी अग्रवाल की कृति 'छायावाद का गीतिकाव्य' की दुष्यन्त बाबा द्वारा की गई समीक्षा

डॉ. सरोजिनी अग्रवाल द्वारा अपने आदरणीय बाबूजी श्री कांति मोहन अग्रवाल को समर्पित पुस्तक 'छायावाद का गीति-काव्य' पुस्तक छायावाद काल में  रचित गीति-काव्यों का समीक्षात्मक संग्रह के रूप में उनके शोध प्रबंध का एक संक्षिप्त व संशोधित रूप है आप इसकी भूमिका में लिखती है कि भारतीय काव्य-शास्त्र में गीति-काव्य शब्द का उल्लेख कहीं नहीं मिलता है। वहाँ मुक्तक काव्य के दो भेद किए गए हैं- पाठ्य मुक्तक व गेय मुक्तक।  इसी गेय मुक्तक को गीत की संज्ञा मिली। पाश्चात्य साहित्य में उन गीतात्मक लघु।कविताओं को जिनमें कवि ने अपने व्यक्तिगत जीवन के सुख-दुखात्मक अनुभवों को प्रत्यक्ष रूप 'मैं', 'मेरी' शैली में अभिव्यक्त किया वे लिरिकल पोएट्री कहलाईं। इसी लिरिकल पोइट्री का हिंदी अनुवाद गीति-काव्य है।

        संयोग से जिस समय पश्चिम में शैली, किड्स, वायरन, वर्ड्सवर्थ आदि रोमांटिक काव्य धारा के कवि 'लिरिक' लिख रहे थे उसी समय हमारे यहां भी 'छायावाद' नाम से एक नया युग प्रारंभ हो चुका था और श्री जयशंकर 'प्रसाद' श्री सुमित्रानंदन पंत श्री सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' और श्रीमती महादेवी वर्मा की कविताओं में यही आत्मकपरक स्वर प्रधान था। प्रारंभ में आचार्य रामचंद्र शुक्ल आदि परंपरावादी समालोचकों ने इस बढ़ती हुई व्यक्तिवादी प्रवृत्ति का प्रबल विरोध किया और अपने तीखे व्यंग्य बाणों के प्रहार से इसे धराशाई करने का हर प्रयत्न किया पर इस कवि चतुष्टय की अद्भुत सृजन प्रतिभा का संयोग पाकर यह गीत विधा निरंतर अपने उत्कर्ष की ओर बढ़ती गई और कुछ ही वर्षों में यह प्रबंध और मुक्तक की तरह एक स्वतंत्र काव्य विधा के रूप में सर्वमान्य हो गई। जिस प्रकार महाकवि सूरदास के 'सूरसागर' के पदों के आधार पर 'वात्सल्य रस' को दसवें रस के रूप में प्रतिष्ठा मिली ठीक इसी प्रकार इन चारों कवियों की गीति-सृष्टि ने इस विधा को प्रतिष्ठित किया।

        इस पुस्तक को आपके द्वारा 7 अध्यायों में विभाजित किया गया है। प्रथम अध्याय गीति काव्य परिभाषा एवं तत्व।(पृष्ठ सं.01-29) 

2-गीतिकाव्य का वर्गीकरण (पृष्ठ सं.30-60)

3-छायावाद से पूर्व गीति-काव्य का स्वरूप(पृष्ठ सं.61-90)

 4- छायावादी काव्य में गीति भावना के विकास के           कारण(पृष्ठ सं.91-99)

 5-छायावाद के गीतिकाव्य(पृष्ठ सं.100-159)

 6-उत्तर छायावादी गीतिकाव्य(पृष्ठ सं.160-171)

 7- गीतिकाव्य की भावी संभावनाएं(पृष्ठ सं.172-178 तक)

 उपर्युक्त सात अध्यायों के माध्यम से लेखिका ने छायावाद के सभी गीति-काव्यों की समीक्षा की है। यदि छायावाद को भलीभांति समझना है तो इस पुस्तक का अध्ययन करना उपयोगी होगा। क्योंकि प्रसाद के नाटकों के गीत व महादेवी वर्मा की रहस्य भावना से ओत-प्रोत गीतों के साथ ही पन्त का गीतों के द्वारा किये गए प्रकृति चित्रण की शानदार समीक्षा की गयी है। 



 कृति : छायावाद का गीति-काव्य

लेखिका : डॉ सरोजिनी अग्रवाल

प्रकाशक : देशभारती प्रकाशन, सी-595, गली नं. 7, नियर वजीराबाद रोड़, दिल्ली-110093, भारत

 प्रथम संस्करण : 2017 ई ,मूल्य : 500₹

समीक्षक : दुष्यंत 'बाबा', पुलिस लाइन, मुरादाबाद। मो.-9758000057


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