सोमवार, 23 नवंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल (वर्तमान में मेरठ )निवासी साहित्यकार सूर्यकांत द्विवेदी का गीत ----रथ स्वर्णिम रुक गया खींच ली किसने डोर


 रथ स्वर्णिम रुक गया

खींच ली किसने डोर

आह! हस्ताक्षर भूला

वो, थी अरुणिम भोर


हुई मुद्दत, देखा नहीं 

मन का हमने क्षितिज

यूँ लिखे गीत अनगिन

भावना के कटु रचित


कोई तो सागर गिना दो

ला दो खो गया जो सीप

अगस्त्य जल पी गये हैं

बुझ गये आशा के दीप


अपनी सब कह रहे हैं

सुनने वाला कोई नहीं

व्यर्थ संजय कह रहे हो

महाभारत तो है ही नहीं।


छोड़ दें जब आंखें हया

और न हो मन में व्यथा

द्रोपदी की लाज ख़ातिर

सुने कौन कौरव कथा।।


निष्प्राण प्राण रण में पड़े

और कायर निज वीर कहें

क्या कहूँ मैं गीता अर्जुन ! 

कहे कलयुग सब वेद पढ़े।। 


सभी यहाँ पर संत ज्ञानी

कहना सुनना सब बेमानी

निर्लिप्त निर्जल ओ ! धरा

सोख ले,आंखों का पानी।।


✍️ सूर्यकान्त द्विवेदी

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