तुमको पाने की तमन्ना उम्र भर करते रहे
कुछ ज़ियादह ही यकीं तक़दीर पर करते रहे
चांद की "मासूम" नज़रें थीं दरो-दीवार पर
और तारे रक़्स शब भर बाम पर करते रहे
तुम उधर मशगूल अपनी बज़्म की रानाई में
गुफ्तगू तन्हाइयों से हम इधर करते रहे
हँस दिए खुद पर कभी, क़िस्मत पे अपनी रो दिए
ग़म ग़लत करने को अपना कुछ मगर करते रहे
वो समझ पाए नहीं इन धड़कनों की बंदिशें
दिल की दुनिया हम यूं ही ज़ेरो ज़बर करते रहे
✍️ मोनिका मासूम, मुरादाबाद
Nice
जवाब देंहटाएंआभार आपका
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