" तुम्हें तो चौबीस घंटे लेखन का नशा चढ़ा रहता है । आज कविता लिखनी है तो कल लघुकथा ।" -- पत्नी ने कुणाल से कहा-- "घर के कई काम पड़े हैं । आज नहीं, कल करूंगा । रटा-रटाया वाक्य दोहराते रहते हो । कब आयेगा वह कल? इससे नहीं कटेगी जिंदगी। दिनभर कमरे में पड़े रहते हो । न कहीं आना न जाना । समाज से कट गये हो । भरते रहो मोबाइल पर लिख-लिखकर । कुछ मिल रहा है इससे? कान पर जूंँ नहीं रेंगती कहने पर ।"
एक जोर के झटके से कमरे का किबाड़ बन्द कर के पत्नी आंँगन में तेज कदमों से चली गई ।
✍️राम किशोर वर्मा, रामपुर
बहुत खूब।
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