शनिवार, 1 मई 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा---बीता हुआ कल

     


पंकज ऑफिस से जैसे ही घर आता वैसे ही बहू के खिलाफ दिन भर का बंधा शिकायतों का पुलन्दा माँ पंकज के सामने रख देती।बहू ने यह नहीं किया, खाने में नमक ज्यादा डाल देती है, देर से सोकर उठती है, पता नहीं माँ-बाप ने कुछ सिखाया भी है या नहीं आदि आदि ,,,," मैं तो परेशान हो गई हूँ तू कुछ बोलता क्यों नहीं "। यह छोटी - छोटी बातें रोज़ के कार्यक्रमों में शामिल हो गई थीं।पंकज भी क्या करता ? इस कान से सुनता ,उस कान से निकाल देता । यह क्रम कई हफ्तों तक चलता रहा।आखिर  पंकज से रहा नहीं गया ,सो पास ही बैठी दादी व बाबू जी की ओर इशारा करते हुए पूछा क्यों दादी , माँ की इन रोज़ -रोज़ की बातों के बारे में तुम्हारा क्या विचार है ? बस इतना कहना था कि दादी ने बाबू जी की ओर देखा , दोनों ने आँखों में कुछ बात कही और मुस्कुरा दिये,,,,,,,,,,!!

✍️ अशोक विश्नोई, मुरादाबाद

                  

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