शनिवार, 1 मई 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार मोनिका मासूम की ग़ज़ल ----भूखों मरने के पुराने हुए किस्से साहिब खाते पीते हुए अब जान ये जाने लगती है


ज़िंदगी जब ज़रा खाने कमाने लगती है

मौत का खौफ महामारी दिखाने लगती है


मन में विश्वास कि उम्मीद भरी आंखो से

ये ज़ुबां टेर तेरे दर की सुनाने लगती है


दिल को जब भी जरा सी देर सुकूं मिलता है

जी जलाने को तेरी याद ही आने लगती है


भूखों मरने के पुराने हुए किस्से साहिब

खाते पीते हुए अब जान ये जाने लगती है


अपने अपराध तिजोरी में छिपाकर दुनिया

आंसू घड़ियाली सरेआम बहाने लगती है


✍️ मोनिका मासूम, मुरादाबाद

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