रविवार, 28 मार्च 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार मनोज मनु की ग़ज़ल -----आइए होली है मिलिए रंज दिल के भूल कर .....


जिंदगी की कशमकश में अब उलझ कर रह गए,
रंग क्या त्योहार क्या ये सब उलझ कर रह गए,,

फूल कलियां पेड़ पौधों पर बहारें खूब हैं,
पर यहां इंसान के करतब उलझ कर रह गए,,

आइए होली है मिलिए रंज दिल के भूल कर,
क्या अभी तक दूर ही साहब उलझ कर रह गए,,


जिंदगी की कशमकश में जब उलझ कर रह गए,
आप जो आसान थे वो सब उलझ कर रह गए,,

ज़ोम में जिस वक्त थे उस वक्त कुछ मसला न था,
अब हमें तौफ़ीक है.. पर अब उलझ कर रह गए,

जान कर ये बात.. किन हालात में वो शख्स था,
जो गिले-शिकवे थे जेरे लब उलझ कर रह गए,,

बस सियासत में पंगी फिरका परस्ती है यहां,
अब कहां इंसानियत मजहब उलझ कर रह गए,,

बस दरारें आ गई दोनों दिलों के दरमियां,
मुस्कुराने के सभी मतलब उलझ कर रह गए,,

जान ही ले ली हमारी आपके अंदाज ने,
 क्या कहें क्या ना कहें ये लब उलझ कर रह गए,,

और फिर कुछ भी न हल निकला मिरी तदबीर का,
हाथ में जितने थे सब करतब उलझ कर रह गए,,

सीखने भेजूं कहां बच्चे को मैं इंसानियत,
हाल ये  इस बात पर मकतब उलझ कर रह गए,
 
✍️ मनोज ' मनु  ' मुरादाबाद                       


 

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