रविवार, 28 मार्च 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की कविता --आधुनिक होली


 1.

इक्कीसवीं सदी के प्रेमी ने

घर बैठे बैठे

रिमोट का बटन दबाया

सात तालों में बंद 

प्रेमिका के चेहरे पर

जम कर रंग लगाया

लेकिन प्रेमिका के

प्राकृतिक पक्के रंग पर

मिलावटी रंग

बिलकुल नहीं चढ़ पाया

इतना अवश्य हुआ

जब प्रेमिका ने

अपने गालों को छुआ

प्रेमी महोदय

पलंग पर लेटे लेटे

गुदगुदाने लगे

उनको पता नहीं क्या क्या

नीले पीले ख्वाब आने लगे


उधर प्रेमिका परेशान थी

यह किसकी शरारत है

सोच सोच हैरान थी

हालांकि उसके पास भी था

प्रेमी खोजक यंत्र

लेकिन उसे नही आता था

उसको चलाने का मंत्र

प्रेम के क्षेत्र में

अभी नई थी

यह यंत्र भी

उसकी सहेली देकर गई थी

उसने सहेली को फोन लगाया

फिर वो सब करा, जो उसने बताया

लेकिन उसकी सारी कोशिश

बेकार हो गई

प्रेमी के चेहरे पर

ऐसा रंग लगा था

कंप्यूटर उसको पहचान नहीं पाया

उसकी सारी प्रोग्रामिंग

तार तार हो गई।


2.

होली पर्व पर

कोरोना का ऐसा पड़ा साया

जो भी मिलने आया

हमने उसे अपने से

दो गज दूर बैठाया

गले लगाने के बजाए

जूते से जूता टकराया

रंग लगाने की इच्छा

इस तरह से पूरी करी

उनकी एक फ़ोटो ली

और तबियत से रंगी

उनको भी अपना

एक ब्लैक एंड व्हाइट

फोटो थमा दिया

उन्होंने बड़े प्यार से

उसको रंगीन बना दिया


डॉ पुनीत कुमार

आकाश रेसीडेंसी

मुरादाबाद 244001

M 9837189600

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