उड़ने लगे जब सतरंगी रंग
मन भी पहने प्रीत का रंग
खुशियों की बाजे मृदंग
"समझो जग की होली है"
सांझे हो जब सुख सबके
और पीड़ा सबकी सांझी हो
"मैं"-"तुम" जब "हम" बन जाएंँ
हर इक जब हमजोली हो
"समझो जग की होली है"
जीवन के रंग बदरंग ना हों
मन में द्वेष की भंग ना हो
कपट कलेश का संग ना हो
बस प्रेम की मिश्री घोली हो"
"समझो जग की होली है"
"मैं" हँसूंँ तो सारे मुस्कुराएँ
"सब" हँसें तो मैं भी इतराऊँ
जब सबने एक दूसरे में
इक-दूजे की सारी खुशियों में
अपनी ही जन्नत पा ली हो
"समझो जग की होली है"
कुछ भूलो भी , कुछ माफ़ करो
ये जीवन है , आगे तो बढ़ो
कोई पल इसका बरबाद ना हो
हर क्षण को बस रंगों से भरो
ग़र इंद्रधनुष बन जाओ सब
"समझो जग की होली है"
"इस बार अबीर ना बरसाओ"
"ना गुलाल की मुझको चाहत है"
"इस बार दिलों में रंग घुले"
"और हर दिल पर कुछ ऐसा चढ़े"
"ये जीवन होली सा हो जाए"
"बस हँसी , खुशी और ठिठोली हो"
"तो समझो जग की होली है
तो समझो जग की होली है"
✍️ सीमा वर्मा, मुरादाबाद
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