मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था अक्षरा के तत्वावधान में साहित्यकार ज़िया ज़मीर के गजल-संग्रह "ये सब फूल तुम्हारे नाम" का लोकार्पण हिमगिरि कालोनी मुरादाबाद स्थित मशहूर शायर ज़मीर दरवेश साहब के निवास पर किया गया।
कार्यक्रम का आरंभ ज़िया ज़मीर द्वारा प्रस्तुत नाते पाक व मयंक शर्मा द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वन्दना से हुआ। इस अवसर पर लोकार्पित कृति "ये सब फूल तुम्हारे नाम" से रचनापाठ करते हुए ज़िया ज़मीर ने ग़ज़लें सुनायीं-
"दर्द की शाख़ पे इक ताज़ा समर आ गया है
किसकी आमद है भला कौन नज़र आ गया है
ज़िंदगी रोक के अक्सर यही कहती है मुझे
तुझको जाना था किधर और किधर आ गया है
लहर ख़ुद पर है पशेमान कि उसकी ज़द में
नन्हें हाथों से बना रेत का घर आ गया है"।
उनकी एक और ग़ज़ल की सबने तारीफ की-
"दरिया में जाते वक़्त इशारा करें तुझे
जब डूबने लगें तो पुकारा करें तुझे
महफ़िल से तू ने उठते हुए देखा ही नहीं
हम सोचते रहे कि इशारा करें तुझे"।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए सुप्रसिद्ध नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने कहा- "जिया जमीर के पास गहरे पानियों जैसा बहाव है। वे आम फ़हम भी हैं, जिसके लिए लुगत की ज़रूरत नहीं है। उर्दू कविता के सहृदय पाठकों को जिया ज़मीर की शायरी में एक गहरी कलात्मकता और पारदर्शी सोच मिलेगी।"
मुख्य अतिथि के रूप में विख्यात शायर मंसूर उस्मानी ने कहा- "ज़िया ज़मीर मौजूदा वक्त में नई गजल की नई फिक्र और नई नजर के मजबूत हस्ताक्षर हैं, जो सिर्फ आज में ही नहीं जीते, उनके साथ उनका माजी भी है और आने वाले वक्त के रंगीन सपने भी।"
विशिष्ट अतिथि मशहूर शायर ज़मीर दरवेश ने कहा- "ज़िया ज़मीर की शायरी में हकीकत और तख़य्युल का खूबसूरत इस्तेमाल मिलता है। हकीक़त शायरी की जान है और तख़य्युल उसकी खूबसूरती। उनकी शायरी में यादों के बादल हैं, उदासी का परिंदा है, दर्द की शाख़ है, दर्द का सहरा है, तहज़ीब की नाव है।"
विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ शायर अनवर कैफ़ी ने कहा- "नौजवान नस्ल में जिन शायरों ने उर्दू हिन्दी ज़बान और साहित्य में नुमाया कामयाबी हासिल की है और गेसू-ए-सुखन को संवारा है उनमें जिया ज़मीर ऐसा नाम है जिन्हें महफिलों में याद रखा जाता है।"
विशिष्ट अतिथि विख्यात व्यंग्य कवि डॉ. मक्खन मुरादाबादी ने कहा- "ज़िया ज़मीर मुरादाबाद की मिट्टी में उपजे ऐसे युवा शायर हैं जिनकी शायरी की खुशबू देश भर में दूर-दूर तक फैल कर अपना मुकाम हासिल कर रही है।अदबी दुनिया को उनसे बहुत उम्मीदें हैं।"
कार्यक्रम के संचालक नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम ने पुस्तक की समीक्षा प्रस्तुत करते हुए कहा- "ज़िया ज़मीर की शायरी में बसने वाली हिन्दुस्तानियत और तहजीब की खुशबू उनकी ग़ज़लों को इतिहास की ज़रूरत बनाती है। इसका सबसे बड़ा कारण उनके अशआर में अरबी-फारसी की इज़ाफत वाले अल्फ़ाज़ और संस्कृतनिष्ठ हिन्दी के शब्द दोनों का ही घुसपैठ नहीं कर पाना है। उनकी शायरी को पढ़ने और समझने के लिए किसी शब्दकोष की ज़रूरत नहीं पड़ती।"
वरिष्ठ शायर डॉ. मुजाहिद फ़राज़ ने कहा- "ज़िया ने अपनी ग़ज़ल के लिए दिल का रास्ता चुना है। वही दिल जिसने मीर से मीरा तक बे शुमार शायरों को अदब के सफ़हात पर सजाया है, इसीलिए तो ज़िया की शायरी में दिल और इश्क़ की कार फ़र्माइयाँ जा-बजा नज़र आती हैं।"
वरिष्ठ ग़ज़लकार डॉ. कृष्णकुमार नाज़ ने कहा- "जिया जमीर की ग़ज़लें उदाहरण हैं इस बात का कि वहाँ प्रेम भी मिलता है, वहाँ समाज भी मिलता है, वहाँ संस्कृति भी मिलती है, वहाँ अध्यात्म भी मिलता है और वहाँ राजनीतिक चेतना भी दिखाई देती है।"
समीक्षक डॉ. मौ. आसिफ हुसैन ने कहा- "ज़िया ज़मीर की शायरी में इस बात के रोशन इमकानात मौजूद हैं कि आने वाले वक़्त में मुरादाबाद को शायरी के हवाले से एक बड़ा नाम मिलने वाला है।"
कार्यक्रम में डॉ. मनोज रस्तोगी, सय्यद मौ हाशिम, मनोज मनु, राजीव प्रखर, अहमद मुरादाबादी, फरहत अली खान, ग़ुलाम मुहम्मद ग़ाज़ी, मयंक शर्मा, अभिनव चौहान, ज़ाहिद परवेज़, सैयद सलीम रजा नकवी, शाहबाज अनवर, मुशाहिद हुसैन, शकील अहमद, श्रीकांत शर्मा, नूरुज्जमा नूर, शांति भूषण पांडेय, तहसीन मुरादाबादी, दानिश कादरी सहित अनेक गणमान्य लोग उपस्थित रहे। आभार अभिव्यक्ति तसर्रुफ ज़िया ने प्रस्तुत की।
::::::::प्रस्तुति::::::::
योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'
संयोजक- अक्षरा, मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल-9412805981
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें