शनिवार, 28 मई 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ मक्खन मुरादाबादी के दस दोहे ----


भारत वंश सुभाग था, मुगलकाल दुर्भाग।

पाँव पड़े गोरे यहाँ , गया राग अनुराग।। 1


मनमाफिक निर्णय मिले,तभी कहेंगे न्याय।

मिले न मन का फैसला,तो बोलें अन्याय।। 2


सब झूठे मिलकर यहाँ,ढूँढें सच की काट।

ताकि पुराने झूठ की, बिछी रहे हर खाट।। 3


एक बार फिर क्या खुली,अन्य झूठ की पोल।

अपनी सी पर आ गए,सारे लिबरल ढोल।। 4


शब्द ज्ञानवापी नहीं, खाता जिनसे मेल।

उसको अपना कह वही,हैं मकसद में फेल।। 5


झूठ तनिक तू सोचकर,मेरी पीड़ा तोल।

डरा-डरा सा सहमकर,सत्य रहा है बोल।। 6


बन्धक बनकर सच रहा,अबतक उम्र तमाम।

उसने लीं जब करवटें, हुईं साजिशें आम।। 7


घर तो सबका है यही,यही राग अनुराग।

घर में फिर वह कौन है,लगा रहा जो आग।। 8


छंदमुक्त को जब मिले, छंदों में भी दोष।

शीश पटककर हो गया, मुक्तछंद बेहोश।। 9


नवता पाती नव्य से,भले नए आयाम।

गीत अनन्तिम रूप से,सब गीतों का धाम।। 10


✍️  डॉ.मक्खन मुरादाबादी

      झ-28, नवीन नगर

      काँठ रोड, मुरादाबाद-244001

      संपर्क:9319086769


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