भारत वंश सुभाग था, मुगलकाल दुर्भाग।
पाँव पड़े गोरे यहाँ , गया राग अनुराग।। 1
मनमाफिक निर्णय मिले,तभी कहेंगे न्याय।
मिले न मन का फैसला,तो बोलें अन्याय।। 2
सब झूठे मिलकर यहाँ,ढूँढें सच की काट।
ताकि पुराने झूठ की, बिछी रहे हर खाट।। 3
एक बार फिर क्या खुली,अन्य झूठ की पोल।
अपनी सी पर आ गए,सारे लिबरल ढोल।। 4
शब्द ज्ञानवापी नहीं, खाता जिनसे मेल।
उसको अपना कह वही,हैं मकसद में फेल।। 5
झूठ तनिक तू सोचकर,मेरी पीड़ा तोल।
डरा-डरा सा सहमकर,सत्य रहा है बोल।। 6
बन्धक बनकर सच रहा,अबतक उम्र तमाम।
उसने लीं जब करवटें, हुईं साजिशें आम।। 7
घर तो सबका है यही,यही राग अनुराग।
घर में फिर वह कौन है,लगा रहा जो आग।। 8
छंदमुक्त को जब मिले, छंदों में भी दोष।
शीश पटककर हो गया, मुक्तछंद बेहोश।। 9
नवता पाती नव्य से,भले नए आयाम।
गीत अनन्तिम रूप से,सब गीतों का धाम।। 10
✍️ डॉ.मक्खन मुरादाबादी
झ-28, नवीन नगर
काँठ रोड, मुरादाबाद-244001
संपर्क:9319086769
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