जितना माँ पन्नों में पूजी जाती है घर में उतना मान कहाँ वो पाती है
होता उसका गान बड़ा कविताओं में
शब्दों से व्याख्यान बड़ा कविताओं में
जितनी उसकी महिमा गाई जाती है
घर में उतना मान कहाँ वो पाती है
माँ से महके घर का कोना कोना है
होता उसका प्यार खरा ज्यूँ सोना है
जितनी वो अपनी ममता बरसाती है
घर में उतना मान कहाँ वो पाती है
बचपन में जो माँ से अलग न होते थे
उसके आँचल में ही छुपकर सोते थे
आज उन्हें वो माँ ही नहीं सुहाती है
घर में उतना मान कहाँ वो पाती है
कहने को तो उत्सव खूब मनाते हैं
मातृदिवस पर आसन पर बैठाते हैं
दुनिया इस दिन जितना प्यार लुटाती है
घर में उतना मान कहाँ वो पाती है
✍️ डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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