स्नेह और ममता से देती सबको खुशहाली।।
मां वन्दन तेरा करता तू धन्य जगत की माली।।
चेहरे पर देख व्यथा को सब काम छोड़ आ जाना।
ममता से गले लगाकर आंचल से फिर दुलराना।।
प्रत्यक्ष स्वर्ग दिखता था तेरे सम्मुख होने पर।
आंखों को पढ़ लेती थी मेरे भूखा होने पर।।
है याद मुझे अब भी तो मेरे बचपन की ओ मां।
तेरी ममता सी मूरत अब भी आंखों में है मां।।
भटका जब भी जीवन में तो ऊंच नीच समझाया।
मेरे उन्नति के पथ पर तू अब भी है हम साया।।
जिसको देखो कहता है मां आज दिवस है तेरा।
हर दिन ही मातृ दिवस मां मुख तेरा नित्य सवेरा।।
मां तो बस केवल मां है मां की हर बात निराली।
है निहित एक अक्षर में जीवन की हर खुशहाली।।
मैं और लिखूं क्या तुझपर तूने तो मुझे लिखा है।
तेरे चरणों में अपना मुझको तो स्वर्ग दिखा है।।
घर के मंदिर में मित्रों तुम मां का चित्र लगाना।
कोई पूछे यदि तुम से मां क्या है यह समझाना।।
मां के ममत्व की बातें मैं कितनी और बताऊं।।
मां के चरणों में अपने भावों के सुमन चढा़ऊं।।
✍️ सन्तोष कुमार शुक्ल (सन्त)
ग्राम-झुनैया, तहसील - मिलक,
जनपद - रामपुर (उ. प्र.)
मोबाइल : 9560697045
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