मां शुभे स्नेह की आदि स्रोत,
अविरल अस्वार्थ, निर्मल अजस्त्र
आदर्श भावना भाव भूति
कल्याण मूर्ति, वरदान हर्ष।
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जीवन पयस्विनी जगज्जननी,
मुद मोद मंगले मनननीय!
महिमावलीय प्रति चरण-चरण
लुंठित गुण गण ,ओ वंदनीय।
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उज्ज्वल उदार उर से तेरे
वात्सल्य धवल सुरसरि फूटी
छूटी सन्तति से जग डाली
तेरी न कभी डाली छूटी।
रे जगत जननी जग अर्चनीय हे!
बार बार नित वर्णनीय हे !
संसृति शून्य असार स्नेह में
अतुल सर्व शुभ गणननीय है।
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रचयिता: स्व.दयानन्द गुप्त
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