स्मृति शेष सुरेंद्र मोहन मिश्र जी के बारे में मैंने पहले भी सुन रखा था, जिस से मुझे इतना इल्म हुआ था कि उन के पास बहुत पुरानी पांडुलिपियाँ और किताबें मौजूद थीं। इस के अलावा उन के बारे में जो कुछ भी जाना वो आज इस आयोजन के ज़रिए जाना। मंच पर शोहरत उन्हें एक हास्य-कवि के रूप में मिली, मगर उन में एक गीतकार की तड़प मौजूद थी। इस की वज़ाहत उन की किताब 'कविता नियोजन' में लिखी भूमिका से होती है, साथ ही डॉ. प्रेमवती साहिबा के उन के बारे में लिखे संस्मरण से भी यही बात ज़ाहिर होती है। उन्होंने 'पवित्र पँवासा' खण्डकाव्य रचा जो उन्हें एक अहम कवि के तौर पर स्थापित करता है। राजीव सक्सेना जी के आलेख से पता चलता है कि अपने खण्डकाव्य में उन्हों ने मक़ामी इतिहास को ख़ास जगह दी, ये उन की शख़्सियत का एक और नायाब पहलू है, जो सामने आता है।उन्होंने 'शहीद मोती सिंह' नाम से एक ऐतिहासिक उपन्यास लिखा, जो उन्हें उपन्यासकार के तौर पर पहचान देता है और उन्हें वृन्दावन लाल वर्मा जी जैसे ऐतिहासिक उपन्यासकारों की सफ़ में ले आता है।
इतिहास को जुनून की हद तक जीने की ये उन की ललक ही थी, जिस ने उन्हें एक ख़ास रचनाकार के तौर पर सँवारा और उन से वो सब लिखवाया जो अमूमन नहीं लिखा जाता है।
इंसानी तहज़ीब से मुहब्बत और उसे जानने-खोजने की चाहत ही ने उन्हें एक महान पुरातत्ववेत्ता बनाया।हमें उन से ये सब कुछ सीखने, अपने अंदर उतारने और सहेज कर रखने की ज़रूरत है।
✍️ फ़रहत अली ख़ान,
लाजपत नगर
मुरादाबाद 244001
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