सोमवार, 17 जनवरी 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का स्मृतिशेष सुरेंद्र मोहन मिश्र पर केंद्रित संस्मरणात्मक आलेख ....

 


रामपुर प्रदर्शनी कवि सम्मेलन 1985 में मैंने श्री सुरेंद्र मोहन मिश्र का काव्य पाठ सुना था ।  हास्य कविता की रचना तथा उसके द्वारा जनता को हंसा पाना अपने आप में आसान नहीं होता । इस क्षेत्र में जहां एक ओर काव्य- कौशल में निपुणता जरूरी होती है ,उससे भी बढ़कर कविता की प्रस्तुति मायने रखती है । सुरेंद्र मोहन मिश्र जी के काव्य पाठ का अंदाज इस प्रकार का रहता था कि श्रोता बरबस उनकी कविता का आनंद उठाते थे और वाह-वाह किए बगैर नहीं रह पाते थे। लंबे समय तक एक हास्य कवि के रूप में सुरेंद्र मोहन मिश्र जी हिंदी के श्रोता-संसार में जाने जाते रहे। वास्तव में देखा जाए तो व्यक्ति की आंतरिक आनंदमय स्थितियां उसे किसी अन्य दिशा की ओर प्रेरित करती हैं, लेकिन संसार में रहते हुए उसे कोई दूसरा रास्ता ही पकड़ना पड़ जाता है । बाहर से केवल एक हास्य कवि दिखने वाला यह व्यक्ति भीतर से एक गंभीर शोधकर्ता तथा गीतकार था। शोधकर्ता भी कोई साधारण कोटि का नहीं। मन का मौजी । कई-कई दिन तक पुरानी वस्तुओं की खोज में जुटा रहने वाला और यह कहने का साहस रखने वाला कि पिताजी मैं तो सरस्वती का आराधक हूं ,मुझे धन से क्या लोभ ? उनकी पुस्तक "कविता नियोजन" की कविताएं पाठकों को हंसाने और गुदगुदाने में समर्थ तो है किंतु कवि द्वारा लिखित भूमिका ने भीतर तक हिला कर रख दिया । अपनी भूमिका में कवि ने लिखा है :- "मंच की सफलता पाने के लिए मैंने बहुत हल्की हास्य कविताएं भी लिखीं और एक दिन मैंने देखा कि मेरे अंदर का गीतकार धीरे-धीरे मर रहा है । आप विश्वास करें ,मैंने अपने उस गीतकार को यूं ही मरने दिया। जनता के ठहाके और देर तक गूंजने वाली हास्य ध्वनियों को आखिर कब तक मेरा कोमल गीतकार बर्दाश्त करता ! उसे मरना ही पड़ा ।" श्री सुरेंद्र मोहन मिश्र मंच के सफल हास्य कवि थे लेकिन उनका उदाहरण हमें बताता है कि वह भीतर से कितने गंभीर सृजन के लिए समर्पित थे। श्रोताओं के मध्य एक हास्य कवि के रूप में उनकी सीमित छवि जो बन गई थी ,वह उससे कोसों दूर थे। मंच पर जिसे जिस रूप में बाजार स्वीकार कर लेता है ,वह उसी सांचे में ढल कर आगे बढ़ता रहता है किंतु इससे उसके मूल व्यक्तित्व का परिचय प्रायः पीछे छूट जाता है। सुरेंद्र मोहन मिश्र जी के साथ भी यही हुआ । वह मूलतः हास्य कवि नहीं थे। अपनी अभिव्यक्ति क्षमता के कारण उन्हें इस रूप में मंच पर उतरना पड़ा । लेकिन इतिहास में उनकी भूमिका गंभीर गीतकार और समर्पित शोधकर्ता के रूप में ही सदैव स्मरण की जाएगी । रामपुर रजा लाइब्रेरी के दरबार हॉल में दिनांक 15 जनवरी 2022 शनिवार को स्मृति शेष श्री सुरेंद्र मोहन मिश्र के पुरातात्विक संग्रह का अवलोकन करने का शुभ अवसर प्राप्त हुआ । रजा लाइब्रेरी का दरबार हॉल स्वयं में एक ऐतिहासिक धरोहर है । विशाल हॉल राजसी वैभव को प्रदर्शित करता है । और क्यों न करे ? यहीं पर रियासत के विलीनीकरण से पहले तक शाही दरबार लगा करता था । संभवतः जिस स्थान पर शासक का सिंहासन स्थित रहता होगा ,ठीक उसी स्थान पर सुरेंद्र मोहन मिश्र पुरातात्विक संग्रह काँच की एक प्रदर्शन-पेटिका में दर्शकों के अवलोकनार्थ रखा हुआ था। अधिकांश वस्तुएं ईसा पूर्व की हैं। यह आमतौर पर मिट्टी की बनी हुई है । सुरेंद्र मोहन मिश्र जी धुन के पक्के थे । कई -कई दिन तक पुरातात्विक महत्व की वस्तुओं को खोजने में खपा देते थे और फिर उपेक्षित मिट्टी के टीलों, नदियों आदि से एक प्रकार से कहें तो अनमोल मोती ढूँढ कर लाते थे।  


✍️ रवि प्रकाश

बाजार सराफा

रामपुर,उत्तर प्रदेश, भारत

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