अवशेषों और पुरातत्वों की खोज में ,यायावरों की भांति, अपनी संस्कृति और सभ्यताओं को सहेजने, सवांरने के लिए कोई यथार्थ का दामन थामे इतिहासकार तो हो सकता है, परन्तु कल्पना के पंख लगा प्रकृति के हास - उल्लास के गीत गाते,नवयौवन के मधुर कल्पना लोक में विचरते कवि होना उसके बहुआयामी व्यक्तित्व का परिचायक बन जाता है ,जहाँ इतिहासकार होना ,व्यक्तित्व के रूखेपन को दर्शाता है वहीं इतिहासकार होकर कवि के कवित्व को बनाये रखना सुरेन्द्र मोहन मिश्र जी की कल्पनाशीलता जैसे सारी बातों का खण्डन कर रही हो । लेखक का हास्य रुप सबको दिखता है, परन्तु उस कठोर यथार्थ के भीतर बहते मीठे स्रोत को पहचानना हर किसी के वश में नहीं, लेकिन सुरेन्द्र मोहन जीवन की इन सारी कटुताओं के बीच कवि हृदय को जीवित रखने में सफल हुए हैं । वे इतिहासकार हैं तो पुरातत्ववेत्ता भी ,उपन्यासकार हैं तो कविता की मधुरता से ओतप्रोत भी ।उनके गीत मात्र हास भर नहीं है, उनके यहाँ प्रकृति इठलाती है, नर्तन करती है, हृदय में माधुर्य भी घोलती है--
दृग सम्मुख ये विशाल भूधर /ओढ़े है चांदी की चादर /**** झर-झर झरते शुचि निर्झर से / सरिता की लहरों के स्वर से /****** खग रव से मुझको गान मिला /मुझको मेरा उपहार मिला
अल्पावस्था से ही उनको कविता का उपहार मिला समय के साथ वह प्रौढ़ होता चला गया। प्रेम और श्रृंगार के गीत रचते -रचते कवि कब सांसारिक दुखों से बोझिल हो नैराश्य से भर उठा --
बनकर कितने स्वप्न मिटे हैं मेरे
जल -जलकर कितने दीप बुझे हैं मेरे
जग का ठुकराया प्यार तुम्हें मैं क्या दूँ
संसार के मिथ्या प्रेम और आडम्बर से ऊबकर कवि कब लौकिक से पारलौकिक हो गया कि वह ईश्वर को प्रिय मान उन्हीं में अपने जीवन के सौंदर्य को तलाशने लगा --
मेरे दुर्दिन में जब प्रियतम आते हैं
नयनों में आ आंसू बन बह जाते हैं
मेरे उर के कोमल छाले भी
नभ के तारे बनकर मुस्काते हैं
इस प्रकार जीवन के विविध रूपों को तलाशते हुए उदारमना कवि सुरेन्द्र मोहन जी किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं ,उनमें इतिहासकार की भांति खरा यथार्थ है तो कल्पनाशीलता भी । इतिहास की वीथिका में विचरते हुए उनका कवि मन कभी भी थकता नहीं है ,ऐसा एक विराटमना व्यक्ति अपने जीवन में निरंतर कालजयी रचनाओं के साथ हमारे बीच अपनी उपस्थिति बनाने में सफल हो सका है तो वे हैं सुरेंद्र मोहन मिश्र ,यहीं उनकी रचनाओं की प्रासंगिकता भी है ---
तेरे रंगीन विश्व में मुझे बहुत छला गया
मिलन उम्मीद का विहग उड़ा कहीं चला गया
सभी तो स्वार्थ में पले न बन सका कोई मेरा
न जाने कौन विषमयी सुरा मुझे पिला गया
अपने विविध आयामों में आभा बिखेरता वह महान व्यक्तित्व अपनी रचनाओं के साथ चिरकाल तक अविस्मरणीय रहेगा ।
✍️ डॉ मीरा कश्यपअध्यक्ष हिंदी विभाग
के.जी.के. महाविद्यालय मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश, भारत
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