क्या लिखूं.... कैसे लिखूं.... शब्द मौन हो जाते हैं... कलम रुक जाती है और स्मृति पटल पर लगभग तीस साल पहले के दृश्य एक-एक कर सजीव हो उठते हैं और मैं खो बैठता हूं अपनी सुध बुध । छात्र जीवन में देश के प्रख्यात साहित्यकारों का सान्निध्य मुझे मिलता रहा। धीरे-धीरे मेरे भीतर मुरादाबाद के साहित्य को पढ़ने की ललक पैदा हो गई और मैं मुरादाबाद के साहित्यकारों की कृतियों की खोज में लग गया। इस कार्य में महानगर के पुरातत्ववेत्ता साहित्यकार स्मृति शेष पुष्पेंद्र वर्णवाल जी ने मुझे प्रोत्साहित किया। उन्हीं दिनों स्मृतिशेष सुरेंद्र मोहन मिश्र जी के आलेख साप्ताहिक हिंदुस्तान, कादम्बिनी और अमर उजाला में प्रकाशित होते थे। एक दिन अमर उजाला के रविवासरीय परिशिष्ट में स्मृति शेष सुरेंद्र मोहन मिश्र जी का आलेख मुरादाबाद के एक साहित्यकार की कृति के संदर्भ में प्रकाशित हुआ। इस आलेख में उनसे एक तथ्यात्मक भूल हो गई। वह कृति मेरे पास थी। मैंने भूल सुधार करते हुए एक पत्र अमर उजाला के संपादक राजुल माहेश्वरी जी को लिख दिया। प्रत्युत्तर में मेरे पास राजुल जी का पत्र आया जिसमें उन्होंने लिखा कि आपका पत्र सुरेंद्र मोहन मिश्र जी को भेज दिया है उन्होंने अपनी भूल स्वीकार करते हुए आपका आभार व्यक्त किया है। बात आई -गई हो गई । वर्ष 1991 में मैंने मुरादाबाद के साहित्य पर प्रख्यात साहित्यकार डॉ उर्मिलेश शंखधार जी के निर्देशन में शोध कार्य करने का निर्णय लिया । शोधकार्य की रूपरेखा तैयार करते समय उन्होंने मुझसे कहा कि मुरादाबाद में मेरे गुरु सुरेंद्र मोहन मिश्र जी रहते हैं । उनके पास जाना और उनके चरण पकड़ कर बैठ जाना ।उनका आशीष अगर तुम्हें मिल गया तो समझो तुम्हारा शोध कार्य पूर्ण हो गया। इसे सुनकर मैं असमंजस में पड़ गया और बार-बार राजुल जी को लिखा पत्र याद आने लगा। सुरेंद्र मोहन मिश्र जी से कैसे मिलूं.... वह मुझे अपना आशीष देंगे या नहीं । यह सोच विचार करते-करते कई माह गुजर गए । उन दिनों मैं दैनिक जागरण में कार्य कर रहा था । एक दिन गुरहट्टी चौराहा स्थित कार्यालय के नीचे खड़ा हुआ था कि मुझे श्री सुरेंद्र मोहन मिश्र जी आते दिखाई दिए । मैं दौड़ कर उनके पास पहुंचा और उनके चरण स्पर्श कर अपना परिचय दिया। सुनते ही बोले- क्या तुम वही मनोज हो जिसने राजुल जी को पत्र लिखा था । सकुचाते हुए जैसे ही मैंने हां कहा... उन्होंने तुरंत मुझे सीने से लगा लिया और कहने लगे मेरी विरासत संभालने के तुम ही हकदार हो। यह मेरा उनका प्रथम साक्षात परिचय था जो धीरे-धीरे प्रगाढ़ता में परिवर्तित हो गया और मैंने उनके घर जाकर अपना शोध कार्य पूर्ण किया। वह बड़े उत्साह से अपनी अलमारियों में से मुरादाबाद के अज्ञात साहित्यकारों की कृतियों की दुर्लभ पांडुलिपियों निकालते और उनके बारे में इमला बोलकर लिखवाते। यह क्रम कई दिन तक निरंतर चलता रहा । यही नहीं उन्होंने मेरे पूरे शोध प्रबंध को पढ़कर उसमें आवश्यक सुधार भी किए ( अपना शोध प्रबंध मैंने स्वर्गीय आचार्य क्षेम चन्द्र सुमन एवं श्री सुरेंद्र मोहन मिश्र जी को ही समर्पित किया है)
संस्मरण बहुत हैं ... उनके व्यक्तित्व के विषय में जितना लिखा जाए कम है। आज मुरादाबाद के साहित्य के संरक्षण और देश विदेश में प्रसार करने की दिशा में जो कुछ भी मैं कर रहा हूं उस के प्रेरणा स्रोत स्मृति शेष सुरेंद्र मोहन मिश्र जी ही हैं। उन्हीं के कार्य को आगे और आगे बढ़ाने का प्रयास मैं कर रहा हूं इन्हीं शब्दों के साथ उन्हें शत-शत नमन.....
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822
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