गुरुवार, 17 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार विवेक आहूजा की कहानी ---- सेटिंग


आज इलेक्शन का रिजल्ट आने वाला था ,दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं को पूर्ण यकीन था कि जीत हमारी ही होगी । पूरे वातावरण में नारेबाजी हो रही थी ,आखिर वह पल भी आ गया जब रिजल्ट की घोषणा हुई ,रमेश कुमार को निरंजन सिंह ने बहुत कम अंतर से हरा दिया था । निरंजन सिंह के कार्यकर्ताओं में जीत का उत्साह देखते ही बन रहा था ,वही रमेश कुमार के कार्यकर्ता हार से मायूस होकर घर की ओर प्रस्थान कर रहे थे । रमेश कुमार ने अपने कार्यकर्ताओं को ढांढस बधाते हुए कहा मायूस ना हो हम फिर जीतेंगे । सरकार भी बदल चुकी थी अब तो निरंजन सिंह को सरकार के विधायक का दर्जा प्राप्त  था ।
रमेश कुमार ने अपने कार्यकर्ताओं की एक मीटिंग अपने घर पर बुलाई और बोले "अब हमारी सरकार नहीं रही लिहाजा सोच समझ कर चले और कोई भी गड़बड़ की तो मुझसे कोई उम्मीद ना रखें"  निरंजन सिंह का स्वागत पूरे शहर में हो रहा था । आज गांधी मैदान में बहुत बड़ा जलसा होना था , जिसमें व्यापारी वर्ग विधायक निरंजन सिंह का स्वागत करने वाले थे ,समारोह शुरू हुआ विधायक जी को भाषण देने के लिए बुलाया गया , निरंजन सिंह बोले "यह जो रमेश कुमार है जो पहले आपका विधायक रहा था यह चोर है , लुटेरा है और अवैध तरीके से पैसा कमाता था मैं उसे जेल भिजवा कर रहूंगा"  "हमारी सरकार चल रही है" समारोह में बहुत से रमेश कुमार के समर्थक भी बैठे थे ,यह सुन वह सब  घबरा गए , यह तो हमारे नेता को भी नहीं छोड़ेगा जेल डलवाने की बात कर रहा है, हमारी तो औकात ही क्या है ।
 कुछ दिन पश्चात रमेश कुमार के घर एक प्रोग्राम का आयोजन हुआ रमेश कुमार के कार्यकर्ताओं को भी नहीं पता था की आयोजन का मुख्य उद्देश्य क्या है । कुछ ही देर में नीली बत्ती गाड़ी के साथ निरंजन सिंह विधायक जी ने रमेश कुमार के घर प्रवेश किया , कार्यक्रम शुरू हुआ , रमेश कुमार के कार्यकर्ता यह देख भौचक्का  रह गए की रमेश कुमार जी निरंजन सिंह विधायक के गले में माला डाल उनका स्वागत कर रहे थे । एक कार्यकर्ता ने रमेश कुमार के खासम खास ऐलची से पूछा "माजरा क्या है" ऐलची ने जवाब दिया ,अब आपको घबराने की कोई जरूरत नहीं है, हमारी विधायक जी से "सेटिंग" हो गई है। कार्यकर्ता ने ठंडी सांस ली और कार्यक्रम का आनंद लेने लगा ।

✍️ विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
9410416986
Vivekahuja288@gmail.com

मुरादाबाद मंडल के सिरसी (जनपद सम्भल ) निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफा की कहानी ---- कर्बला का नन्हा शहीद


रोजाना की तरह बुधवार की शाम सायमा अपनी नानी से कहानी सुनने की जिद करने लगी. नानी कहने लगी कि -'बेटी आज मेरा दिल कहानी सुनाने का नही है यह गम के दिन है. मोहर्रम का महीना गम का होता है. खासकर मोहर्रम के दस दिन बहुत गम के होते है. इन दिनों में हम लोग मजलिस मातम कर कर्बला के शहीदों का गम मनाते है' नानी की बात सुनकर सायमा और जिज्ञासु हो गई कहने लगी - 'नानी  कर्बला में क्या हुआ था? मुझे भी बताओ न'| नानी ने दुपट्टा सर तक ओढ़ा और कहना शुरू किया- 'सायमा  हम जिस  नबी( स) की उम्मत में है. अब से चौदह सौ साल पहले उन्ही की उम्मत के  लोगो  ने नबी (स) के प्यारे नवासे हजरत इमाम हुसैन  और उनके 72 साथियों को  उस समय के क्रूर तानाशाह , और अत्याचारी बादशाह यजीद  के हुक्म पर बड़ी बेदर्दी से शहीद कर दिया था. उन शहीदों में इमाम हुसैन का छह माह का बेटा नन्हा सा मासूम अली असगर भी था.'  सायमा ने बड़ी हैरत से कहा-' नानी, इतने छोटे बच्चे को क्यों शहीद  किया गया? इतने छोटे बच्चे से तो कोई ख़ता भी नही हो सकती.'  'हाँ सायमा,  नन्हे अली असगर तो मासूम थे.  और तीन दिन के प्यासे थे. दुश्मन फ़ौज ने इमाम और उनके घराने पर  तीन दिन से खाना- पानी बंद कर दिया था. इमाम की तरफ के लोग भूखे प्यासे थे.  दुश्मन उनका पानी बंद करके उन्हें झुकाना चाहता था. लेकिन इमाम के साथी जालिम यजीद के सामने झुकने को तैयार नही थे. वह सच्चाई और हक पर थे. इमाम  नन्हे अली असगर को लेकर मैदाने जंग में गये और कहा के -'तुम लोग मुझसे दुश्मनी रखते हो लेकिन इस मासूम बच्चे ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?  यह तीन दिन का प्यासा है. इसे थोड़ा सा पानी पिला दो अगर तुम यह समझते हो कि इसके बहाने से मैं पानी पी लूंगा. तो लो, तुम खुद इसे पानी पिला दो.' यह कहते हुए इमाम ने नन्हे अली असगर को जमीन पर लिटा दिया. नन्हे अली असगर ने सूखी हुई ज़बान होंठो पर फिराई तो दुश्मन की  फ़ौज में भी एक इंकलाब आ गया.' फौजी कहने लगे कि  'हाँ, इस बच्चे ने तो किसी का कुछ नही बिगाड़ा.'  फ़ौज की हालत देखकर कमांडर ने एक निर्दयी सैनिक को हुक्म दिया के हुरमला  इमाम के कलाम को खत्म करदे इमाम ने नन्हे अली असगर को गोद मे उठा लिया लेकिन तभी जालिम हुरमला ने तीन फल का ऐसा तीर मारा के नन्हा बच्चा इमाम के हाथों में शहीद हो गया और तीर  नन्हे अली असगर की गर्दन में होता हुआ इमाम के बाजू में जा लगा जिससे खून का फव्वारा फूट पड़ा नन्हे अली असगर की शहादत का बयान सुनकर सायमा की आंखों से आंसू बहने लगे वो रोते हुए बोली 'नानी  वह कैसे जालिम थे जिन्होंने एक मासूम पर भी तरस नही खाया  मैं कभी उन्हें माफ नही कर सकती खुदा ऐसे लोगो को सख्त से सख्त सजा देगा '#
   
 ✍️ कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'
      सिरसी , सम्भल
     9456031926

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर की लघुकथा ----गिरगिट


"उफ़! ये दुष्ट मधुमक्खियाँ। अच्छा हुआ इनका छत्ता यहाँ से हट गया...", छत्ते से निकला शहद चटखारे लेकर चाटते हुए सेठ धनपत बोले।

✍️ राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी ----नन्ही परी


टर्र्रर्न....टर्र्रर्न....टर्र्रर्न...........
ट्रर्र्नर्न...... फोन की घंटी बजे चली जा रही थी...... राजेश को काम समेटते हुए ये बहुत बुरा लग रहा था
हमेशा फालतू के फोन आते रहते हैं.... क्लोजिग में व्यवधान उसे कतई पसंद न था.... बार-बार फोन की घंटी बजे जा रही थी चलते-चलते अकाउंट में कुछ गलती हो जाए तो ?..?........ वह लगातार फोन को इग्नोर करता रहा.......!!
     ..... उधर वरुणा ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी "हे प्रभु किसी तरह ये फोन उठा  लें.".... बीसयों बार फोन कर चुकी थी..... परंतु होनी को तो कुछ और ही मंजूर था कहते हैं विपत्ति मैं सब उल्टा पुल्टा हो जाता है........
          ...... राजेश को क्या पता था  उसकी दुनिया ही उजड़ी जा रही है.....!! ... उसकी इकलौती फूल सी बच्ची.!!... परी सी बेटी रानू .!... जिंदगी और मौत के बीच में झूल रही थी... उसे अस्पताल ले जाने के लिए कोई भी नहीं था.....!!
     ...... अंततः राजेश बिना फोन सुने ही अपने ऑफिस से निकल गया उस समय मोबाइल फोन नहीं थे... रास्ते में भयंकर जाम लगा था.............
परंतु राजेश का दिल एक अनहोनी आशंका से..... यूं ही धड़का जा रहा था....... जैसे कुछ बहुत बुरा होने वाला हो....!
         ...... घर पहुंच कर देखा दरवाजे पर ताला लटका था ।पड़ोसियों ने देखा तो फौरन राजेश से कहा .... "फोरन सिविल अस्पताल चले जाओ; रानू ने कुछ खा लिया है.;.... हालत बहुत गंभीर है..."
राजेश को जैसे ...अप्रत्याशित एक जोरदार घूंसा सीने में लगा हो ...मोटरसाइकिल अस्पताल की ओर मोड़ दी ... भैया ,भाभी , दूसरे मकान से सारे केसारे घर वाले अब तक पहुंच चुके थे अस्पताल में बहुत भीड़ थी जान पहचान के तमाम लोग पूरा अस्पताल भरा था...!!
     .... राजेश को देखते ही.. रानू जोर-जोर से चीखने लगी ""पापा मुझे बचा लो ! ..सॉरी पापा!!....""
"पापा बहुत दर्द हो रहा है ! पेट में बहुत जलन हो रही है ..!... मेरे अच्छे पापा  !  अपनी रानू को बचा लो !!"
पापा!! ..... पापा ...!!!
        ..... प्राइवेट अस्पतालों ने किसी ने भी एडमिट नहीं किया..... रानू का हाई स्कूल का मैथ का पेपर था... बड़े उत्साह से चहकते हुए मम्मी से कहा ,"मम्मी ! मेरा पूरा पेपर अच्छा हुआ है पूरे पूरे नंबर आएगें..."!
वरुणा ने साल्व करते हुए चेक किया ...... तीन प्रश्न गलत पाये.... लगी चिल्लाने "तुझे शर्म नहीं आती.!"..."कर दिए गलत!". "हो जाएगी फेल.!... क्या मुंह दिखाएंगे हम किसी को ?? " जेठ की लड़की सोना देख कितनी होशियार है हमेशा टॉप करती है !!.".."और एक तू है हमेशा खेल में लगी रहती है एग्जाम की ठीक से तैयारी की होती तो ऐसा क्यों होता..!". और आव देखा न ताव..चटाक!!... गाल पर एक जो़र का लगा दिया...
     ...... बाल मन सहन न कर सका गेहूं में रखने वाली सल्फास की 3 गोलियां पानी से गटक गई....
परंतु  सोचती थी मेरे पापा दुनिया के सबसे अच्छे पापा हैं मेरे लिए कुछ भी कर सकते हैं मुझे जरूर बचा लेंगे...... उसे क्या पता था ??... क्या होने वाला है..... ?? राजेश के जिगर का टुकड़ा जो थी वह.....!बड़े नाज़ों से पाली जा रही थी.... बेचारी अबोध बालिका!!!
       ..... रानू के जन्म के समय कॉम्प्लिकेशन होने के कारण वरुणा का गर्भाशय भी निकाल दिया गया था.... राजेश ने जमीन आसमान एक कर दिया डॉक्टरों की टीम लाकर खड़ी कर दी नगर के विधायक जी आ गए!.... राजेश हमेशा सबकी मदद के लिए तत्पर रहता था समाज में उसे सब बहुत प्यार करते थे आज उस पर संकटों का पहाड़ टूट पड़ा था.... एक छोटी सी घटना ने इतना बड़ा रूप ले लिया था ...!!! सब हत प्रभ थे ...सब बेबस..
         सारे प्रयास बेकार गए जहर अपना असर दिखा रहा था.. धीरे धीरे रानू की देह से उसके प्राण निकल रहे थे ... शरीर ठंडा पड़ता जा रहा था माहौल बेहद गमगीन और बोझिल हो चला था.... थोड़ी ही देर में अस्पताल में मातम पसर गया और मच गया कोहराम.....!
        .... मैथ में गलत हुए तीन प्रश्न... दांव पर लगी एक अबोध फूल सी बच्ची की जान......!

               
 ✍️ अशोक विद्रोही
 412 प्रकाश नगर मुरादाबाद
82 188 25 541



मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा ---- सीख

आज भरत पुत्र के साथ हुई बहस के बाद थका हुआ बैठा था।जिस पुत्र वैभव के पालन केलिए उसने क्या नहीं किया।उसकी इच्छाओं को पूरा करनै केलिए गलत ढ़ंग सै पैसा कमाया।उसकी हर ख्वाहिश पूरी की आज वही वैभव "तुमने मेरे लिए किया ही क्या है,"?कहकर उसे छोड गया।
आज उसे अपने पिता की बहुत याद आ रही थी ।एक साधारण मास्टर होते हुए भी  उपके पिता ने उपकी शिक्षा का पूरा ध्यान रखा।मगर साथ के अमीर बच्चों की चीजें देखकर उसकी फरमाइश पर समझाया "बेटा, हमे अपनी आमदनी के अनुसार ही खर्च करना है।तुम पढो जब इतना कमाओ तब खरीदना।इन दिखावटी वस्तुओं पर अनावश्यक व्यय कर हम अपना कल नहीं बिगाडेगे।साथ अपने मन को वश मे रखना सीखो।दुनिया मे अपनी इच्छानुसार सब.कुछ नही मिलता"।उस दिन वह बहुत रोया कि वह इस घर मे क्यों पैदा हुआ।शादी के बाद जब वैभव उसके जीवन मे आया उसने प्रण किया कि वह अपने बेटे की हर इच्छा पूरी करेगा । मगर संयम और धन की उपयोगिता न सिखा पाया।इसीकारण आज और अधिक सुख सुविधाओं को पाने के चक्कर मे वह अपने से अधिक धनवान पत्नी के साथ उसके घर रहने चला गया ।
आज  अपने पिता के प्रति नाराजगी उसकी आँखों से आँसू बनकर बह रही थी।


 ✍️  डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार राम किशोर वर्मा की लघुकथा-------शुद्ध दूध



     "दूध में आजकल बहुत अजीब सा स्वाद आ रहा है ।" - दूधवाले से दूध लेते हुए बशीर ने कहा - "कैमिकल का बना हुआ ला रहे हो क्या ?"
    "नहीं साहब " - कहते हुए दूधवाला बोला - "गर्मी बहुत है। भैंस दूध कम दे रही है।"
     बशीर के पड़ौसी समीर यह वार्ता सुन रहे थे । वह बोले - "इसीलिए बशीर भाई मैं तो डेयरी से सामने का दूहा हुआ भैंस का ताजा शुद्ध दूध लाता हूं । पर वह भी भैंस के इंजेक्शन लगाकर दूध दुहता है ।"
   बशीर ने समीर से कहा - " फिर वह भी शुद्ध कहांँ रहा? इंजेक्शन का धीमा ज़हर तो मिल ही गया ।दूधियों की भी मजबूरी है । वह कहाँ से मांँग पूरी करें ? आदमियों की जनसंख्या बढ़ रही है और आदमी ही भैंसों की संख्या कम करने पर तुला है।"
     
राम किशोर वर्मा
रामपुर

बुधवार, 16 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की कहानी ----इंसानियत


घंटों इंतजार के बाद एक प्राइवेट बस आकर रुकी।कंडक्टर ने बस की खिड़की खोलकर आवाज़ लगाई अजमेर शरीफ,अजमेर शरीफ,जुम्मन और उसकी पत्नी आसमा की जान में जान आई और दौड़ पड़े बस में सवार होने के लिए।परंतु पास जाकर देखा कि बस तो खचाखच भारी हुई है।तिल रखने की भी जगह नहीं।उसमें घुसकर जगह पाना तो किसी युद्ध को जीतने से कम नहीं होगा।
      उन्होंने कंडक्टर से कहा भैया इसमें तो सांस लेना भी दुश्वार है।हम तो शारीरिक दुर्बलता के शिकार हैं।मेरी पत्नी के दोनो घुटनों में दर्द रहता है।इसी लिए तो हम अल्लाह की बारगाह में सर झुकाने जाना चाह रहे हैं।यूँ खड़े-खड़े सफर कर पाना हमारे लिए मुनासिब नहीं होगा।मैं खुद भी हार्ट पेशेंट हूँ।भैया कहीं बिठा सको तो बताओ।
       लालची बस कंडक्टर ने कहा बाबू जी थोड़ी दूर की बात है आगे बस रुकेगी वहां कुछ सवारियां उतरेंगी तभी आप बैठ जाना।किसी तरह मरते-गिरते बस में चढ़ तो गए ।कंडक्टर ने उन्हें एक तरफ करके जल्दी से उनके टिकिट भी काट दिए।अब उनके सामने खड़े-खड़े यात्रा करने के अलावा दूसरा कोई विकल्प भी नहीं रह गया।
        आगे कई जगह बस रुकी परंतु सवारी के उतरने से पहले ही दूसरी खड़ी सवारी जल्दी से जगह घेरने की तत्परता दिखाती और जगह पा लेती।बेचारे जुम्मन और आसमा कभी कंडक्टर को कभी खुद को देखकर चुप रह जाते।शायद आगे कोई उतरे यही सोचकर धीरज रख लेते।
      दर्द से बेहाल दंपत्ति बस यात्रियों पर बेबस नज़र दौड़ाते कि कोई दाता का सखी थोड़ी सी जगह उन्हें भी देदे।परंतु बैठे हुए सारे यात्री उनसे ऐसे नज़रें चुरा कर अपनी सीटो को जकड़े हुए थे कि कहीं वह उन्हीं से सीट न मांग बैठें।कभी ज़ोर का झटका लगता तो गिरने से बाल-बाल बच जाते और अल्लाह-अल्लाह करके ऊपर लगे रॉड को और कसकर पकड़कर खुद को सुरक्षित कर लेते
       उनकी परेशानी को देखकर एक बुजुर्ग यात्री अपनी सीट से उठे और जुम्मन की पत्नी आसमा से बोले बहन आप मेरी सीट पर बैठ जाओ मैं भाई साहब के साथ खड़े होकर थोड़ी कमर सीधी कर लूंगा।आसमा ने कहा भाई साहब आप क्यों तकलीफ उठा रहे हैं।कृपया आप बैठे रहिए आपकी मेहरबानी का शुक्रिया।फिर भी बुजुर्ग सज्जन नहीं माने और आसमा को ससम्मान सीट पर बैठा दिया।
        यह देखकर दो नौजवान यात्री उठे और दोनों खड़े हुए बुजुर्गों को अपने स्थान पर आराम से बैठ जाने का आग्रह करने लगे।बोले दादा हम तो शारीरिक तौर पर काफी तंदरुस्त हैं,हम खड़े होकर भी यात्रा कर सकते हैं।और यह कहते हुए उन्हें हाथ पकड़कर सीट पर बैठाया।
          दोनों बुजुर्गों ने सीट पर बैठकर राहत की सांस ली और उन दोनों नौजवानों पर दिल से दुआओं का खजाना लुटाने लगे।जुम्मन ने पूछा बेटे आप दोनों के नाम क्या हैं।दोनों ने विनम्रता पूर्वक अपने नाम बद्री एवं दीनानाथ बताया।
      थोड़ी देर बाद अजमेर बस अड्डा आ गया।नौजवानों ने उन्हें सहारा देकर बस से उतारा और उनका सामान लेकर चाय की दुकान पर ले जाकर चाय-पानी पिलवाया और दरगाह शरीफ तक  जाने के लिए सवारी भी कराई।फिर सादर प्रणाम करके चले गए।
        जुम्मन और आसमा ने उन्हें दिल से दुआएं दीं और उनकी इंसानियत की दुहाई देते हुए दरगाह शरीफ पहुंचकर अल्लाह मियाँ से अपने लिए कुछ भी माँगने से पहले उन दोंनों बच्चों बद्री और दीनानाथ एवं दयालु बुजुर्ग यात्री की सलामती की दुआ की।
         अर्थात निःस्वार्थ सेवा भाव रखने वाला व्यक्ति ही ईश्वर की कृपा का असली भागीदार होता है।
                         
✍️वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
मो0-  9719275453
           

मुरादाबाद की साहित्यकार स्वदेश सिंह की लघुकथा -----चूरन वाले काका


मॉल से निकलने के बाद शालिनी जैसे ही गाड़ी में बैठकर चलने को तैयार हुई। .....तभी एक भिखारी उसकी गाड़ी के दरवाजे पर आकर खटखटाने लगा। उसने दरवाजा खोल कर देखा तो देखते ही खुशी से चीखते हुए बोली...... अरे!.. चूरन वाले काका...... और तुरंत ही मायूस होते हुए बोली..... आप... आप भीख माँग रहे हो ।काका क्या हुआ?... आप इस तरह से भीख क्यों माँग रहे हो?....  चूरन वाले काका यह सुनकर ..... कुछ ना बोल कर कुछ देर शांत रहे ।फिर बोले बेटी तुम मुझे जानती हो ।हाँ...काका... आप मेरे स्कूल के बाहर चूरन बेचते थे ।और आप का बनाया हुआ चूर्ण मुझे आज तक याद है ..... मैने  आपके जैसा बनाया हुआ चूर्ण  आज तक नहीं खाया ,पर काका पहले यह बताइए?... आप इस तरह से भीख  क्यों माँग रहे हो .....और आपका चूरन वाला ठेला कहाँ गया?.... शालिनी ने तो जैसे प्रश्नों की झड़ी  ही लगा दी। .... चूरन  वाले काका ने बड़े दुखी होते हुए  बोले ..... बेटा ..तुम शालिनी हो.... जो मेरे चूर्ण के पीछे दीवानी थी और हर वक्त चूर्ण खाने के लिए उतावली रहती थी.... हाँ.. हाँ.. काका मैं शालिनी हूँ ।और आपसे उधार माँगकर चूरन खाती थी।....  बेटा क्या बताऊँ ?...  कहते हुए  काका की आंखों से आँसू  टप-टप गिरने लगें। और दुखी होते हुए बोले कि बेटा...  मैंने अपने  दोनो लड़कों की शादी कर दी और शादी के बाद उनकी बहूओं ने मुझे घर से निकाल दिया। और मेरा ठेला भी बेच दिया ।अब मैं अपना पेट भीख माँग कर भरता हूँ... और यही किसी दुकान के आगे रात को सो जाता हूँ ।यह सुनकर शालिनी वह बहुत दुखी हुई। गाड़ी से उतरी और बोली काका आप यही रूको... आप कहीं जाना मत जाना, मैं अभी आती हूँ ..और अपने पति के साथ दोबारा मॉल में गई। चूरन वाले काका के लिए  नए कपड़े खरीदे। और उन्हें गाड़ी में बैठा कर अपने घर ले गई .....घर ले जाकर उसने वह कपड़े चूरन वाले काका को दे दिये और बोली काका...... और आज से आप मेरे साथ मेरे घर  में मेरे काका बनकर रहेगें। ....और शालिनी जल्दी से एक पेन और कॉपी लेकर काका के पास आई.....और बोली प्लीज ....काका जल्दी से चूरन के लिए किस-किस सामान की जरूरत पड़ती है, मुझे लिखवा दीजिए .... मुझे फिर वही चूर्ण बना कर दीजिए और सिर्फ मेरे लिए काका ..... शालिनी का इस तरह प्यार देखकर काका की आँखों से आँसू टप टप गिरने लगे । शालिनी आज बहुत खुश थी।.... क्योंकि चूरन वाले काका का जो कर्ज था उसे उतारने का उसे मौका मिला है।

 ✍️स्वदेश सिंह
सिविल लाइन्स
मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल की कहानी ---नई दिशा


अरे ये रामवती कौन है, चंदू जरा रामवती को अंदर भेजो, रामबाबू ने घंटी बजाते हुए कहा।
आज पेंशन भुगतान का दिन था। बैंक में पेंशनरों की भीड़ थी। रामबाबू बारी बारी से दस्तखत देखकर भुगतान पास करते जा रहे थे। तभी अगला भुगतान अँगूठे की निशानी वाला आया, और उन्होंने रामवती को बुलवाया।
थोड़ी ही देर में एक बीस इक्कीस साल की लड़की उनके सामने आकर खड़ी हो गई ।
क्या नाम है आपका।
जी रामवती। लड़की का जबाब सुनकर रामबाबू अचकचा गये। खाते को ध्यान से देखा तो पता चला कि वह विधवा है।
अँगूठा लगवाकर रामबाबू ने उसके पति के बारे में पूछ ही लिया ।
पता चला कि शादी के साल भर के अंदर ही उसका पति कारगिल की लड़ाई में मारा गया था, और वह वापस माता-पिता के साथ आकर रहने लगी थी।
लो काउंटर पर जाकर पैसे ले लो, विदड्राॅल पास करते हुए रामबाबू बोले। और सुनो अपने पिता जी ने कहना कि मैनेजर साहब बुला रहे हैं। कुछ बात करनी है।
जी अच्छा, कहकर वह चली गई ।
उसी दिन शाम को रामवती के पिता सुमेर सिंह उनसे मिलने आ गये।
रामबाबू ने कुछ देर इधर उधर की बातें कीं फिर बोले: आज आपकी बेटी को देखकर बहुत दुख हुआ । इतनी छोटी सी उम्र में पहाड़ सा दुख आ पड़ा है उसपर।
क्या करें साहब, ऊपरवाले की मर्जी के आगे किसी की नहीं चलती।
आप उसकी दूसरी शादी क्यों नहीं कर देते, रामबाबू बोले।
क्या करें साहब, हमारी बिरादरी में लड़कियों की दोबारा शादी नहीं होती, सुमेर ने कहा।
अरे सुमेर सिंह जी आप कैसी बात कर रहे हो। जरा सोचिए, आपकी बेटी के सामने पूरी जिंदगी पड़ी है। कैसे अपना जीवन काटेगी, अभी तो आप हैं, लेकिन आपके बाद वह कैसे रहेगी। उस समय यही बिरादरी उसे तरह तरह से परेशान करेगे । आप व्यावहारिक होकर विचार करें और फिर निर्णय लें, रामबाबू ने उन्हे समझाया। थोड़ी देर बाद सुमेर सिंह चले गये।
बात आयी गयी हो गयी।
रामबाबू भी पुनः अपने काम में लग गये और धीरे-धीरे दिन बीतते चले गये।
एक दिन काम करते हुए उनके कानों में आवाज आई : सर जी अंदर आ जायें।
रामबाबू ने सर उठाकर देखा तो चौंक गये। दरवाजे पर दुल्हन के रूप में सजी हुई रामवती खड़ी थी। साथ में सुमेर सिंह भी खड़े थे।
हाँ हाँ आओ अंदर आ जाओ।
अंदर आकर सुमेर सिंह ने मिठाई का डिब्बा देते हुए उनके पैर छू लिये और बोला, साहब उस दिन आपने मेरी आँखें खोल दीं। मैंने घर जाकर बहुत सोचा फिर निश्चय कर लिया। एक दो महीने की भागदौड़ के बाद ही लड़का मिल गया। लड़का फौज में ही है। उन्हे शादी की जल्दी थी, बाहर जाकर शादी करनी थी इसलिए आपको नहीं बुला सके।
आज ही वापस आये हैं। आप हमारी लड़की को आशीर्वाद दीजिए ।
अरे वाह, यह तुमने बहुत अच्छा किया, कहते हुए रामबाबू ने खुद भी मिठाई खायी और उन दोनों के साथ साथ सारे स्टाफ को मिठाई भिजवायी।
आज उन्हें अंदर ही अंदर बहुत खुशी और संतोष का अहसास हो रहा था, और होता भी क्यों नहीं। आज उनकी पहल से किसी के जीवन को नई दिशा जो मिल गयी थी।

✍️श्रीकृष्ण शुक्ल,
MMIG - 69,
रामगंगा विहार, मुरादाबाद
मोबाइल 9456641400

मुरादाबाद मंडल के सिरसी (जनपद सम्भल)निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की लघुकथा ----- पानी का घोटाला

         
       ऑफिस में चर्चा थी कि पांच वर्ष पूर्व महकमें में जिन बड़े साहब को पानी के घोटाले में निलंबित किया गया था उनकी हालत आजकल सीरियस चल रही है डॉक्टरों ने कहा है कि उनका डायरिया बिगड़ गया है शरीर मे पानी की कमी हो गई है ।

✍️  कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'
प्रधानाचार्य, अम्बेडकर हाई स्कूल बरखेड़ा (मुरादाबाद)
सिरसी (सम्भल)9456031926

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार प्रीति चौधरी की लघुकथा --- अंतिम ख़त

     
प्रिय रवि,
            आज नन्हें स्पर्श से एक अद्भुत अनुभूति हुई तब सहसा स्वयं में ममता का समावेश होते देखा।उन नन्ही उँगलियो की पकड़ तुम्हारे प्रेम बंधन से भी अधिक मज़बूत थी ।दीदी का केन्सर अंतिम स्थिति पर है .....
वह चाहती है कि उनके सामने ही.......
तुम्हारी प्रेयसी यहाँ जब आयी थी ,तुमसंग जीवन साथ बिताने के स्वप्न इन आँखो में थे परंतु मेरे अंदर की नारी कब माँ बन गयी है मुझे पता ही नही चला ।मैंने उसे अपनी ममता की छांव देने का निर्णय कर लिया है ।मुझे माफ़ कर देना।तुम्हारे लिए सदा सुंदर जीवन की कामना करती हूँ।
अंत में बस यही कहूँगी कि  यह किरण हमेशा अपने रवि की रहेगी।                     
                                    सिर्फ़ तुम्हारी
                                    किरण

✍️ प्रीति चौधरी
गजरौला,अमरोहा

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की लघुकथा - जायज प्रश्न


     बारह साल की रंजना बचपन से जिज्ञासु बच्ची रही है, उसके मां - पापा उसके सभी प्रश्नों  की झड़ी का जवाब प्यार से देते और  समझाते ,साथ ही उसकी  सराहना करते। यही वजह है कि वह अपने कक्षा कि सबसे होशियार बच्ची थी।सभी शिक्षक की लाडली...
रविवार का दिन था, रंजना नियमानुसार सुबह का अख़बार पढ़ रही थी,उसके मां और पापा  बगल में साथ बैठकर चाय पी रहे थे।
तभी रंजना ने  पूछा - '  पापा आप कहते हैं ,माता-  पिता से बड़ा कोई नहीं ...भगवान भी नहीं। पापा यहां अख़बार में लिखा है एक मां अपनी 8 साल की बच्ची को घर में बंद करके अपनी प्रेमी युवक के साथ भाग गई ।फिर हरेक मम्मी पापा अच्छे तो नहीं  ,है ना पापा ।'   कल मैंने पेपर में पढ़ा था की एक पिता ने अपनी बेटी को पैसे की कमी की वजह से किसी को बेच दिया ,पुलिस ने आखिरकार उसके पिता को पकड़ लिया  और जेल भेज दिया, आप कल ऑफिस गए थे इस वजह से  मैं आपसे पूछ नहीं पाई.....
थोड़े देर तक मैं रंजना के इस प्रश्न से डर गया और बुत सा बना रहा.... फिर बोला हां बेटी रंजना, सभी मां -बाप अच्छे नहीं होते, पर ज्यादातर अच्छे हैं बेटी। सामान्यता मां-बाप अच्छे ही होते हैं इसीलिए ये धारणा है मां बाप सबसे उच्च स्थान पर होते है,और मां-बाप अच्छे होने के लिए पहले अच्छा इंसान होना जरूरी है

✍️ प्रवीण राही
मुरादाबाद

मंगलवार, 15 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की ग़ज़ल


मुरादाबाद मंडल के बहजोई (जनपद सम्भल )निवासी साहित्यकार दीपक गोस्वामी चिराग की रचना


मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की रचना


मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार मुजाहिद चौधरी की ग़ज़ल


मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर निवासी साहित्यकार रचना शास्त्री का मुक्तक


मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल की हिन्दी दिवस पर रचनाएँ


मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ ममता सिंह की हिन्दी दिवस पर गजल ---हिन्दी भारत का गौरव और श्रृंगार है ....


ग़ज़ल -----

हिन्दी भारत का गौरव और श्रृंगार है।
पा रही जग में अब तो ये विस्तार है।।

रस अलंकार छन्दों से है ये सजी,
ये तो रसखान की मीठी रसधार है।।

पीर मीरा की इसमें समाई हुयी,
ये सुभद्रा औ' दिनकर की हुंकार है।।

जोड़ती है सभी के दिलों को तो ये,
हिन्दी भाषा नहीं प्राण आधार है।।

गर्व *ममता* हैं करते बहुत इस पे हम,
छू गई हिन्दी मन के सभी तार है।।

🎤✍️  डाॅ ममता सिंह
मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की ग़ज़ल ---दोनों की है जुदा डगर


मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार प्रीति चौधरी की रचना


मुरादाबाद की साहित्यकार इंदु रानी की रचना


मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ कृष्ण कुमार नाज की ग़ज़ल ---राख ने मेरी ही ढक रक्खा है मुझको आजकल वरना तो ख़ुद में सुलगता एक अंगारा हूँ मैं।


मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ रीता सिंह की हिन्दी दिवस पर रचना


मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल (वर्तमान में मेरठ) निवासी साहित्यकार सूर्यकांत द्विवेदी की हिन्दी दिवस पर रचना


मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रामकिशोर वर्मा का हिन्दी दिवस पर गीत ---अक्षर जिसके वैज्ञानिक हैं, शब्द उच्चारण भी शुद्ध ‌। जो लिखते हैं,वही पढ़ें हैं; पढ़े़ं वही, लिखा जो शुद्ध

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार मरगूब अमरोही की रचना --


मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की हिन्दी दिवस पर रचना


सोमवार, 14 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की व्यंग्य कविता ---वो कौन है



✍️🎤
डा पुनीत कुमार
टी -2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद 244001
एम 9837189600

मुरादाबाद के साहित्यकार अनुराग रोहिला की ग़ज़ल


मुरादाबाद की साहित्यकार पूनम गुप्ता की हिन्दी दिवस पर कविता


मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष लाला शालिग्राम वैश्य के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर केंद्रित डॉ मनोज रस्तोगी का आलेख । यह आलेख14 सितंबर2014 को दैनिक जागरण मुरादाबाद के सभी संस्करणों में प्रकाशित हुआ था ।

✍️ डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष पंडित बलदेव प्रसाद मिश्र के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर केंद्रित डॉ मनोज रस्तोगी का आलेख ।यह आलेख 13 सितंबर 2016 को दैनिक जागरण मुरादाबाद के सभी संस्करणों में प्रकाशित हुआ था ।


✍️डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष दयानन्द गुप्त के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर केंद्रित डॉ मनोज रस्तोगी का आलेख । यह आलेख दैनिक जागरण मुरादाबाद के सभी संस्करणों में 14 सितंबर 2016 को प्रकाशित हुआ था ।


✍️ डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव सक्सेना का मास्टर रामकुमार अग्रवाल की पुस्तिका "हिंदी सचित्र प्राइमर" पर केंद्रित आलेख । यह आलेख प्रकाशित हुआ है सोमवार 14 सितंबर 2020 को दैनिक जागरण समाचार पत्र के सभी संस्करणों के राष्ट्रीय पेज सप्तरंग साहित्यिक पुनर्नवा में ----


मुरादाबाद लिटरेरी क्लब ने किया प्रख्यात साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र की जयंती पर ऑन लाइन साहित्यिक परिचर्चा का आयोजन।


वाट्स एप पर संचालित साहित्यिक समूह 'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' द्वारा "विरासत जगमगाती है" शीर्षक के तहत 9 सितंबर 2020 को  साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र की जयंती पर ऑनलाइन साहित्यिक चर्चा की गई । सभी सदस्यों ने उनके व्यक्तित्व  एवं कृतित्व  पर विचार व्यक्त किये ।
चर्चा शुरू करते हुए वरिष्ठ व्यंग्य कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि भारतेन्दु ने ऐसा प्रतिभा संपन्न लेखक मंडल तैयार किया जिसने सभी गद्य विधाओं में रचनाएं करके साहित्य को समृद्ध किया। भारतेन्दु ने भाषा के रूप को तो व्यवस्थित किया ही, साथ ही अपने प्रयासों से जनता में साहित्य के प्रति अभिरुचि भी जाग्रत की। भारतेन्दु मंडल के लेखकों में बालकृष्ण भट्ट,प्रताप नारायण मिश्र, ठाकुर जगमोहन सिंह, बालमुकुंद गुप्त, बद्रीनारायण चौधरी, अंबिका दत्त व्यास और लाला श्रीनिवास दास के नाम उल्लेखनीय हैं। हिन्दी गद्य के विकास का श्रेय भारतेन्दु और उनके साहित्यिक मंडल को ही जाता है। उनके इस लेखक मंडल ने अपने लेखन में रोचक तत्व को महत्व देकर उसे जन-जन का प्रिय बना देने का ऐतिहासिक कार्य किया। यूं तो भारतेन्दु हिन्दी नाटक परंपरा के मूल स्रोत होकर उसके प्रवर्तक रूप में सामने आए।उनका 'अंधेर नगरी ' नाटक अन्य नाटकों के साथ समाज में धूम मचाए रहा।
वरिष्ठ कवि डॉ अजय अनुपम ने कहा कि विलक्षण प्रतिभा, अद्भुत कार्यक्षमता और अपार ज्ञान के भंडार,कुल पैंतीस वर्ष का जीवन मिला,उसी छोटे से काल खंड में भारत की दशा का आकलन किया, भविष्य के लिए दिशानिर्देश भी तत्कालीन शासन-व्यवस्था के अत्याचार के विरुद्ध लड़ने के लिये , भाषाई विकास को सही मार्ग पर लाने के लिए, समाज के समक्ष प्रस्तुत किये। आप सोच सकते हैं कि जो काम राजा राम मोहन राय ने किया था उसी को आगे बढ़ा कर उन्होंने राजनीतिक, सामाजिक एवं वैचारिक रूप से थके-हारे भारत को अपनी स्वतंत्रता पाने का बल प्रदान किया। वर्तमान समय के कथित बड़े लेखक उतना सोच भी नहीं सकते जितना विस्तृत और विविध लेखन परम सम्माननीय भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र कर गये।
वरिष्ठ कवि डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि भारतेंदु हरिश्चंद्र हिंदी साहित्य के अद्वितीय निर्माता और प्रेरक व्यक्तित्व थे। उनके नाम पर ही उनके युग का साहित्यिक नामकरण हुआ। उन्होंने गद्य और पद्य दोनों क्षेत्रों में हिंदी भाषियों का नेतृत्व किया। उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व का प्रतिबिंब उनके समकालीन अन्य लेखकों एवं कवियों की रचनाओं में स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। भारतेंदु युगीन मुरादाबाद के साहित्यकारों में लाला शालिग्राम वैश्य का नाम सर्वोपरि है । उनका जन्म भारतेंदु जी से काफी समय पहले सन 1831 ईसवीं में हो चुका था । उनकी मृत्यु भी भारतेंदु जी के बाद सन 1901 ईसवी में हुई । मुरादाबाद के पंडित झब्बीलाल मिश्र (1833-1860) ,पंडित ज्वाला प्रसाद मिश्र (1862- 1916), पंडित बलदेव प्रसाद मिश्र (1869-1904) भी भारतेंदु जी के समकालीन साहित्यकार थे । इसके अतिरिक्त कन्हैयालाल मिश्र, सुभद्रा देवी, रामदेवी, पंडित जुगल किशोर बुलबुल, पंडित श्याम सुंदर त्रिपाठी, रामस्वरूप शर्मा, स्वरूप चंद्र जैन, पंडित भवानी दत्त जोशी, पन्नालाल जैन बाकलीवाल, वैद्य शंकरलाल, तथा सूफी अंबा प्रसाद भी उल्लेखनीय साहित्यकार रहे।
प्रसिध्द समीक्षक डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन ने कहा कि किसी साहित्यकार की मृत्यु के पश्चात उसके कार्यों और गुणों की चर्चा और उसकी महिमा का वर्णन करना एक आम बात है। लेकिन यदि उस साहित्यकार के जीवन काल में ही उसके कार्यों को सराहा जाने लगे और उसकी महिमा को स्वीकार कर लिया जाए तो उस साहित्यकार के लिए बड़ी उपलब्धि मानी जाती है। यह सौभाग्य हरिश्चंद्र जी को प्राप्त हुआ। जिस समय शिवप्रसाद जी को ब्रिटिश गवर्नमेंट की तरफ से 'सितारा-ए-हिंद' की उपाधि प्रदान की गई तो उसी समय हरिश्चंद्र जी के प्रशंसकों ने उन्हें 'महताब-ए-हिंद' अर्थात भारतेंदु की उपाधि से सम्मानित किया। लोकप्रियता का इससे बड़ा कोई प्रमाण नहीं हो सकता। इस से यह भी सिद्ध होता है कि भारतेंदु जी जनमानस के हृदय में घर कर चुके थे। भारतेंदु जी भी जनमानस की भावनाओं का सम्मान करते हुए स्वयं को भारतेंदु कहलाना ज़्यादा पसंद करते थे। साथ ही साथ वह अपने मूल नाम हरिश्चंद्र पर भी गर्व करते थे और सत्यवादी हरिश्चंद्र का अनुसरण करने की हमेशा कोशिश करते थे।
कादम्बिनी वर्मा  ने कहा कि प्राचीन संस्कृतनिष्ठ और तत्कालीन नवीन अरबी फ़ारसी मिश्रित हिन्दवी के मध्य हिंदी खड़ी बोली गद्य सरीखा सुंदर सामंजस्य भारतेन्दु जी की कला का विशेष माधुर्य है। 15 वर्ष की अवस्था मे ही इनका साहित्य प्रेम जाग उठा और 18 वर्ष की अवस्था मे 'कविवचनसुधा" पत्रिका का सम्पादन किया जिसमें बड़े-बड़े विद्वानों की रचनाएं छपती थीं। कविवचन सुधा, हरिश्चंद्र मैग्ज़ीन, बालबोधिनी जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं के सम्पादक रहे भारतेन्दु जी के द्वारा अंग्रेजी की शिक्षा के लिए राजा शिवप्रसाद सितारेहिंद जी की शरण लेना इनके सरल व्यक्तित्व का ही उदाहरण है। जो इन्हें इनके पिता से मिला।
युवा शायर फरहत अली ख़ान ने कहा कि जिस हिंदी को हम हिंदी जानते हैं, जिस ने हमें हमारे पसंदीदा लेखक दिए, ज़िन्दगी का हिस्सा बन चुकी रचनाएँ दीं। उस हिंदी से हमें वाक़िफ़ कराने वाले सब से पहले लोगों में से एक थे भारतेंदु। उन्होंने हिंदी को सींचा और साथ ही उसे कवि, निबंधकार और नाटककार के रूप में अपने साहित्य कर्म से एक दिशा भी दी, जिस से आगे चल कर न जाने कितनों की राह रौशन हुई। वो हिंदी गद्य में विषयों की विविधता लाए। एक साहित्यिक मैगज़ीन भी चलाई।
युवा कवि राजीव 'प्रखर' ने कहा कि 'भारतेन्दु' उपाधि से विभूषित श्री हरिश्चन्द्र हिंदी साहित्य की ऐसी विभूति हुए हैं जिन्होंने रीतिकालीन सामन्ती परम्परा का स्पष्ट विरोध करते हुए एक भिन्न विचारधारा का सूत्रपात किया। अगर यह कहा जाय कि हिंदी साहित्य में आधुनिक काल का प्रारम्भ भारतेन्दु जी से ही हुआ तो गलत न होगा। उनके रचनाकर्म का अवलोकन करने पर यह तथ्य उभर कर सामने आता है कि वह साहित्यकार होने के साथ-साथ एक युगदृष्टा भी थे। भविष्य में होने वाले सामाजिक परिवर्तनों को संभवतः उन्होंने अनुभव कर लिया था। यही कारण है कि आज भी उनकी रचनाएं प्रासंगिकता की कसौटी पर खरी उतरती प्रतीत होती हैं। 'अँधेर नगरी', 'भारत दुर्दशा', 'नील देवी', 'गीत गोविंदानंद', 'बंदर सभा', 'बकरी विलाप', 'भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है?',।
युवा कवि मयंक शर्मा ने कहा कि भारतेंदु हरिश्चंद्र को हिंदी साहित्य का आधार स्तंभ माना जाता है। वह हिंदी नवयुग के निर्माणकर्ता थे। उन्होंने अपने अल्प जीवन काल के प्रत्येक क्षण को हिंदी के लिए जिया। हिंदी साहित्य को राज दरबारों से निकालकर जनसामान्य के सम्मुख लाने का श्रेय भारतेंदु जी को ही है। काशी के संपन्न वैश्य परिवार में जन्म लेने वाले भारतेंदु जी के माता पिता उनकी अल्पायु में ही स्वर्ग सिधार गए। इसी कारण भारतेंदु जी की शिक्षा व्यवस्थित नहीं हुई किंतु अपने स्वाध्याय से ही मात्र 18 वर्ष की आयु में इन्होंने हिंदी, उर्दू, मराठी, गुजराती, बंगला, अंग्रेजी और संस्कृत का अध्ययन कर लिया। जिस आयु में सामान्य व्यक्ति साहित्य क्षेत्र में आँख खोलता है उस आयु में भारतेंदु हरिश्चंद्र साहित्य का बड़ा खजाना छोड़कर इस दुनिया से प्रयाण कर गए। अट्ठारह सौ सत्तर से उन्नीस सौ तक का समय भारतेंदु युग माना गया है।
युवा कवयित्री हेमा तिवारी भट्ट ने कहा कि अल्पायु में ही विविध विधाओं में, विविध विषयों पर न केवल प्रचुरता से बल्कि प्रभावोत्पादक और गुणवत्तापूर्ण उनके द्वारा लिखा गया।भाषा,कला,साहित्य,समाज और देश को अपने छोटे से जीवन काल में जो सौगात वह दे गये हैं,उसका सही-सही मूल्यांकन करने में हमें कई जीवन लग जायेंगे।भारतेंदु हरिश्चंद्र जी और जिग़र मुरादाबादी जैसे व्यक्तित्व युगों में इस धरती पर अवतरित होते हैं।हम गौरवान्वित हैं,धन्य हैं कि हमने उस धरती पर जन्म लिया है जहाँ ऐसी विलक्षण सार्वभौमिक प्रतिष्ठा वाले पुरूषों ने जन्म लिया और हम उन्हें अपने श्रद्धा सुमन अर्पित कर पा रहे हैं।
युवा कवि दुष्यंत कुमार ने कहा कि देश की गरीबी, पराधीनता तथा अंग्रेजी शासन अमानवीय चित्रण को अपने साहित्य का लक्ष्य बना कर प्रत्येक भारतीय की आत्मा को जगाने वाले भारतीय नवजागरण के अग्रदूत प्रसिद्ध लेखक, सम्पादक, रंगकर्मी, नाटककार, निबंधकार, कवि भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (9 सितंबर 1850-6 जनवरी 1885) आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाते हैं। वे हिन्दी में आधुनिकता के पहले रचनाकार थे।  भारतेंदु हरिश्चंद्र जी का जन्म वाराणसी में हुआ था इनके पिता हिंदी के प्रथम नाटक 'नहुष' के रचियता गोपाल चंद्र थे। उनको काव्य-प्रतिभा अपने पिता से विरासत के रूप में मिली थी। उन्होंने पांच वर्ष की अवस्था में ही निम्नलिखित दोहा बनाकर अपने पिता को सुनाया और सुकवि होने का आशीर्वाद प्राप्त किया।
ग्रुप एडमिन और संचालक शायर ज़िया ज़मीर ने कहा कि हिंदी ज़बान का जो आज का रूप है। उसे ऐसा बनाने में जिन लोगों का योगदान है, यानी जो लोग हमारी हिंदी के यहां तक लगातार बहने का सबब हैं, उनमें भारतेंदु बाबू का नाम सबसे ज़्यादा एहम है। भारतेंदु बाबू अपने युग से आगे के साहित्यकार थे। अपने समय से आगे सोचने वाले भाषा प्रवर्तक थे। वह न केवल बड़े साहित्यकार और भाषाकार थे बल्कि उनका प्रभाव ऐसा था कि उन के प्रभाव के में आकर उस समय के कई साहित्यकारों ने हिंदी के नए और ज़्यादा खुले रूप को अपनाकर न सिर्फ़ साहित्य का सर्जन किया बल्कि हिंदी साहित्य में अपना अलग स्थान भी बनाया।  भारतेंदु बाबू का हम हिंदी से प्यार करने वालों और उर्दू से मुहब्बत करने वालों पर बड़ा एहसान है। उन्होंने हिंदी को आसान बनाया जिसके सबब उस आसान हिंदी को उर्दू ने अपनाया और उर्दू भी उसी असान हिंदी के सबब ज़्यादा हिंदुस्तानी ज़बान बन गई। क्योंकि भारतेंदु बाबू को उर्दू का भी बहुत अच्छा ज्ञान था और उर्दू में उन्होंने शायरी भी की तो यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि भारतेंदु बाबू उन बड़े नामों में से एक थे जिन्होंने हिंदी और उर्दू को क़रीब लाने में का बड़ा काम किया। भारतेंदु बाबू हम सभी का गौरव हैं।
      युवा लेखक अभिनव चौहान ने कहा कि भारतेंदु हरिश्चंद्र को महज़ 34 वर्ष का जीवन मिला। इतने कम जीवनकाल में उन्होंने हिंदी, उर्दू, थियेटर, पत्रकारिता हर क्षेत्र के लिए अपना कुछ न कुछ योगदान किया। इसलिए हिंदी में शुरू होने वाला नवजागरण काल भारतेंदु युग के नाम से जाना जाता है। पूर्व भारतेंदु काल और उत्तर भारतेंदु काल की अवधारणा भी अब नए अध्ययनों में मिलने लगी है। अपने से पूर्व और समकालीन हिंदी साहित्य में जिन दो भाषाई परंपराओं को भारतेंदु देख रहे थे, उसे पूरी तरह पलट कर रख दिया था इस व्यक्ति ने। यही वजह है कि हिंदी साहित्य की चर्चा करते ही पहला नाम किसी का आता है तो वो हैं भारतेंदु हरिश्चंद्र।

::::::  प्रस्तुति:::::
ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
मुरादाबाद लिटरेरी क्लब
मो०8755681225

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ मक्खन 'मुरादाबादी' को साहित्यिक संस्था हिंदी साहित्य संगम ने "हिन्दी साहित्य गौरव सम्मान" से किया सम्मानित


 हिन्दी दिवस की पूर्वसंध्या  13 सितंबर 2020 को  साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम  की ओर से सुप्रसिद्ध व्यंग्यकवि डॉ.मक्खन मुरादाबादी को "हिन्दी साहित्य गौरव सम्मान" से सम्मानित किया गया।‌
  कोरोना काल में सभी आवश्यक दिशा-निर्देशों का पूर्णतः पालन करते हुए नवीन नगर स्थित  डॉ मक्खन 'मुरादाबादी' जी के आवास पर आयोजित  'सम्मान-अर्पण' कार्यक्रम में उन्हें यह सम्मान अर्पित किया गया। संस्था द्वारा सम्मान स्वरूप उन्हें अंगवस्त्र, मानपत्र, श्रीफल एवं प्रतीक चिह्न अर्पित किए गए। कवि राजीव 'प्रखर' द्वारा प्रस्तुत  माँ शारदे की वंदना  से आरम्भ हुए कार्यक्रम में सुप्रसिद्ध नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने सम्मानित डॉ.मक्खन 'मुरादाबादी' जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए उन्हें व्यंग्य विधा का एक सशक्त हस्ताक्षर बताया। कार्यक्रम का संचालन राजीव 'प्रखर' द्वारा किया गया।
कार्यक्रम में बतौर अतिथिगण  सुप्रसिद्ध शायर डॉ.कृष्ण कुमार 'नाज़' एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.मनोज रस्तोगी ने हिन्दी दिवस  पर अपने विचार व्यक्त किए।
सम्मान अर्पण कार्यक्रम के पश्चात् एक संक्षिप्त काव्य-गोष्ठी का भी आयोजन हुआ । गोष्ठी में
राजीव 'प्रखर' ने दोहा प्रस्तुत करते हुए कहा -
मानो मुझको मिल गये, सारे तीरथ-धाम।
जब हिन्दी में लिख दिया, मैंने अपना नाम।।

जितेन्द्र 'जौली' का कहना था --
हिन्दी दिन-प्रतिदिन प्रगति कर रही है। वर्तमान में हिंदी सोशल मीडिया की भाषा बनती जा रही है।

 योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने कहा ---
हिन्दी का यह दिवस तो, आता है हर वर्ष।
फिर भी हिन्दी कर रही, अपनों से संघर्ष।।

 डॉ मनोज रस्तोगी ने सुनाया --
उड़ रही रेत गंगा किनारे
महकी आकाश में चांदनी की गंध
अंधेरों की देहरी लांघ आये छंद
गंगा जल से छलके नेह के पिटारे।

डॉ कृष्ण कुमार 'नाज़' ने ताजा ग़ज़ल पढ़ते हुए कहा ----
राख ने मेरी ही ढक रक्खा है मुझको आजकल
वरना तो ख़ुद में सुलगता एक अंगारा हूँ मैं।

सम्मानित साहित्यकार डॉ मक्खन 'मुरादाबादी' का कहना था ---
ऐसा चमत्कार दुनिया में हिन्दी का ही।
है सम्मान सुरक्षित जिसमें, बिन्दी का भी।।

कार्यक्रम में प्रत्यक्ष त्यागी, अक्षिमा त्यागी, मणिका त्यागी भी उपस्थित रहे। संस्था के महासचिव कवि जितेन्द्र 'जौली' द्वारा आभार अभिव्यक्त किया गया।










:::::प्रस्तुति :::::
जितेन्द्र कुमार जौली
महासचिव
हिन्दी साहित्य संगम मुरादाबाद
सम्पर्क सूत्र: 9358854322


शनिवार, 12 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार ( वर्तमान में दिल्ली निवासी ) आमोद कुमार अग्रवाल की ग़ज़ल ----वीरान हो गए कितने,घर एक बीमारी से, ऐ मेरे मौला हमको, सज़ा ये मिली क्यों है


ज़िन्दगी बहती नदी है तो तिशनगी  क्यों  है,
गमों को साथ में लाए,ऐसी खुशी  क्यों  है।

राज़े हस्ती से दिल,   क्यों  ये दहल जाता है,
जो कली खिली भी नहीं,वह भी बिखरी  क्यों  है।

हमसफर का साथ अगर,साथ ये होता है,
सफर के हर गाम पर फिर,दरमियाँ दूरी  क्यों है।

ख्वाहिशें ज़िन्दगी में, जहाँ दम तोड़ती हैं,
राह मंज़िल की वहीं, खत्म होती क्यों  है।

वीरान हो गए कितने,घर एक बीमारी से,
ऐ मेरे मौला हमको, सज़ा ये मिली  क्यों  है।

अब तो मौतों पर भी, यहाँ ज़शन होते हैं,
शवों की भी स्वजनोंं के, ऐसी दुर्गति   क्यों  है।

"आमोद "चाँद तारे तो, सदियों से ऐसे ही हैं,
रोज़ रोज़ फिर दुनिया, ये बदलती क्यों है।
       
✍️आमोद कुमार अग्रवाल
सी -520, सरस्वती विहार
पीतमपुरा, दिल्ली -34
मोबाइल फोन नंबर  9868210248

मुरादाबाद मंडल के चांदपुर (जनपद बिजनौर ) निवासी साहित्यकार ऋतुबाला रस्तोगी की कविता ------शिक्षक की पूँजी


शिक्षक की  पूंजी
दिखाई नहीं देती
सुनाई देती है
जब वह कर देता है
स्थानांतरण
छात्र छात्राओं के
कानों में
निर्विकार भाव से।

जब वे छात्र  छात्राएँ
सफलताओं की
ऊँचाइयों पर
पहुंच जाते हैं
तब दिखाई देता है
उस पूंजी से
प्राप्त होने वाला
निस्वार्थ लाभ।

शिक्षक रहता है
वहीं पेड़ की जड़ -सा
और छात्र छात्राएं
फैलते जाते हैं
शाखाएं ,फूल,फल
और पुनः बीज बनकर
कहीं और उगने
सँवरने के लिए ।

किन्तु शाखाएं
फूल और फल
वही बढ़ते हैं
चढ़ते हैं जो
जुड़े रहते हैं
अपनी जड़ों से
और परिपक्वता
को प्राप्त कर
करते हैं पुनः
सृजन।

जी  हाँ ! यही
सृजनात्मकता
ही तो वास्तव
में होती है उस
शिक्षक की
 वास्तविक पूंजी।

✍️ ऋतुबाला रस्तोगी
प्रवक्ता हिन्दी
 वैदिक कन्या इण्टर कालेज
 चाँदपुर, बिजनौर, उ ०प्र०

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी का गीत --- तुम मेरे साथ चलो


तुम  मेरे साथ  चलो
दुनियां दिखलाता हूँ
जीवन का जीवन से
परिचय करवाता  हूँ!
तुम मेरे साथ,,,,,,,,,,,,

              मुश्किल से मिलता है
              कुछ  प्यार ज़माने  से
              सबकुछ  खोजाता  है
              इक  नज़र  चुराने   से
              मत खुदपर बोझ बनो
              तुमको   समझाता  हूँ!

चढ़ते  को  मत रोको
गिरते  को थामो  तुम
झूठी धन  दौलत  को
अपना मत मानो तुम
सच्चाई  जीवन   की
तुमको  बतलाता  हूँ!

 
              मानो  तो  देव  सभी
              वरना  सब  पत्थर है
              अभिमानी धरती पर
               काँटों का गठठर  है
               मैं  नर-नारायण  से
               तुमको मिलवाता हूँ!

मन  की गागरिया  में
जीभर के प्यार  भरो
कोयल सी  वाणी  से
सबका सत्कार  करो
अमृत  के  झरनो  में
तुमको  नहलाता  हूँ!

             दुनियां  क्या  करती  है?
             इस पर मत् जाओ  तुम
             अपनी मन  बगिया  का
              हर पुष्प खिलाओ  तुम
              खुशियों  की  माला  मैं
               तुमको   पहनाता   हूँ !

       
 ✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद 244001
 9719275453

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की कविता --- कड़वी यादें

कुछ कड़वी यादें
कुछ कड़वी यादें
जो हिला देतीं हैं वर्तमान को
और भिगो देतीं हैं
आँखों के कोरों को
आंसुओं से बरसात की तरह
दिखाई देता है
फिर सब कुछ धुंधला सा
अंधेरे में भटकती
फिरती रूह तरसती हैं
एक किरण रोशनी के लिए
मग़र ए - दिल
न हो निराश यूं
जिसने बनाकर स्याही लिख दिए
पन्ने जिन्दगी के
कुछ खुशी की यादें
और बेइन्तहाँ पन्ने ग़मों के
उसने दी है शौगात एक और भी
अपने इरादे रूपी
'रबड़ 'से मिटाकर
उन दुख भरी कहानियों को
एक पन्ना फिर से
खुशियों और उमंग से भरा लिख
जो हो तेरे बिल्कुल तेरे मन का.


✍️राशि सिंह
मुरादाबाद उत्तर प्रदेश

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की कविता ----मन की बात


भाइयों, बहनों, मित्रों
यहां "मन की बात "का तात्पर्य है
केवल स्वयं के मन की बात
क्या मतलब पड़ी है जनाब को
हम जनता के हैं क्या है हालात?
केवल बात बड़ी करने से
कोई कुशल न्यायाधीश नहीं होता
गीता का उपदेश देने से
कोई द्वारिकाधीश नहीं होता
काश ,कुछ वादे जमीनी स्तर के होते
चाहे , उनमें कुछ पूरे होते
कुछ अधूरे भी अंतस को छूते
पर मान गए जनाब
आप हर मुद्दे में हाथ लगाते हैं
फिर लुढ़कते पत्थर सा
खुद ही साबित हो जाते हैं
कुंभकरण की नींद नहीं सो रहे हैं हम
हम लोग बहुत जल्द मिलकर जागेंगे
फिर देखते हैं आप सब किधर भागेंगे
आप जिस थाली में खाते हैं
बंद करें उसमें छेद पे छेद करना
यह देश की  पावन मिट्टी है
 सबको अपने कर्मों को यही है भरना
अब थोड़ा हमारे मन की बात भी कर ले
कई कदम  आप आगे चल रहे हैं
थोड़ा  थम कर हमारे साथ भी चल ले

✍️ प्रवीण राही
मुरादाबाद 244001

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की व्यंग्य कविता -----हिन्दी प्रचार


एक दिन
अंग्रेजी सभ्यता मेेें पले
हिंदुस्तानी मित्र ने हमको बताया
मेरे माइंड मेेें
एक धांसू आइडिया है आया
हम तुम मिलकर
इंडिया का उद्धार करेंगे
एक समिति बनायेंगे
और हिन्दी का प्रचार करेंगे

मित्र की बात सुन
हमको भारी हुआ अचंभा
हमें लगा
उनको किसी पागल कुत्ते ने काटा है
या फिर किसी हिन्दी के कवि ने
उनके दिमाग को चाटा है
हमने पूछा
तुम तो गाली भी अंग्रेजी में देते हो
ब्रेकफास्ट से लेकर डिनर तक
सब अंग्रेजी स्टाइल में लेते हो
तुम्हारा सब काम
अंग्रेजी में होता है
तुम्हारा कुत्ता तक
अंग्रेजी में रोता है
तुम अंग्रेजी को
अपनी प्रिय भाषा मानते हो
हिन्दी बहुत कम जानते हो
ऐसे माहौल मेेें
तुम हिन्दी का प्रचार
कैसे कर पाओगे
जिस भाषा का
तुमको ही पूरा ज्ञान नहीं है
उसे औरों को क्या सिखाओगे

मित्र बोले
मॉडर्न हिन्दी संस्थाओं
और उनके ऑर्गनाइजर्स को देख
यह बात सैंट पर्सेंट सही है
हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिए
हिन्दी की नॉलेज जरूरी नहीं है

मैंने पूछा
तुम ऐसा क्यों करना चाहते हो,भाया
मित्र ने हँस कर समझाया
चमनलाल जी को जानते हो
दस साल पहले उनके पास
ना अपना मकान था,ना दुकान
टूटी हुई साइकिल पर
घूमा करते थे
आज उनके पास
शानदार कोठी है, कार है
और यह सब
हिन्दी प्रचार समिति का चमत्कार है
हमारी गवर्मेंट,हिन्दी के नाम पर
वाटर की तरह मनी बहा रही है
हिन्दी समितियों की संख्या
इंक्रीज हुए जा रही है
इसीलिए तुमसे कहता हूं
बहती गंगा में
हाथ धोने मेेें कोई बुराई नहीं है
हिन्दी जाए भाड़ में
तुम्हारे पास
कोई अच्छा मकान भी तो नहीं है

मैंने कहा
पता नहीं हिन्दी ने
तुम्हारा क्या बिगाड़ा है
तुमने उसको बना दिया
व्यापार का अखाड़ा है
स्वार्थ की मानसिकता से
बाहर निकाल कर देखो
हिन्दी वो भाषा है
जो पढ़ाती प्यार का पहाड़ा है
अगर तुम वास्तव मेेें चाहते हो
हिन्दी की प्रगति
करना छोड़ दो
हिन्दी की दुर्गति
कोई हिन्दी समिति मत बनाओ
ना चीखों,ना चिल्लाओ
हिन्दी को बस गले से लगाओ
मेरा दावा है
हिन्दी तुमको मानसिक रूप से
बहुत ऊंचा उठा देगी
तुम काले धन की नींव पर टिके
मकान की बात करते हो
येे तुम्हारे लिए
प्यार भरा घर बना देगी।

✍️डाॅ पुनीत कुमार
T -2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद 244001
M 9837189600

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल (वर्तमान में नोएडा) निवासी साहित्यकार अटल मुरादाबादी की रचना ---ऋषियों मुनियों की यह वाणी, देवनागरी कहलायी है


वर्ण-वर्ण इसका अद्भुत है
सबके मन को भायी है।
ऋषियों, मुनियों की यह वाणी
देवनागरी कहलायी है।

वावन स्वर व्यंजन की माला,
देश काल की अनुपम शाला।
ज्ञान पुष्प की गंध छिपी है।
सबसे ही प्राचीन लिपि है।
नित ही अमृत बरसायी है।
ऋषियों मुनियों की यह वाणी,
देवनागरी कहलायी है।।

व्यवहारिक भी वैज्ञानिक भी,
स्वर संकेतों की पालक भी।
पग पग चलकर संवर्द्धन से,
अब मंजिल अपनी पायी है।
ऋषियों मुनियों की यह वाणी,
देवनागरी कहलायी है।।

ब्राह्मी से इसका उद्गम है।
सुगढ सौम्यता आकर्षण है।।
सजी मधुरतम स्वर लहरी से,
महिमा सबने ही गायी है।
ऋषियों मुनियों की यह वाणी,
देवनागरी कहलायी है।

सुरभित साहित्य, गणित, विज्ञान।
अनुपम, अद्भुत इसका विधान।।
लिखने में सहज सरल इतनी,
ध्वनि लहरों की अनुयायी है।
ऋषियों मुनियों की वाणी,
देवनागरी कहलायी है।

राष्ट्र धर्म का पाठ  पढाती,
मन के भावों को दर्शाती।
ज्ञ से सबको ज्ञान सिखाती।
नित दिव्य ज्ञान बरसायी है।
ऋषियों मुनियों की यह वाणी
 देवनागरी कहलायी है।

आओ सीखें और सिखाएं,
दुनिया को भी पाठ पढ़ाएं।
सकल विश्व में श्रेष्ठ लिपी है,
शंख नाद कर यह बतलाएं।।
नाना -नानी, काका -काकी,
सबने  यह बात बतायी है।
ऋषियों मुनियों की यह वाणी
देवनागरी कहलायी है।

✍️अटल मुरादाबादी
बी -142 सेक्टर-52
नोएडा उ ०प्र०
मोबाइल 9650291108,
8368370723
Email: atalmoradabadi@gmail.com
& atalmbdi@gmail.com

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ ममता सिंह की ग़ज़ल ----फिर हक़ीमों की उसको ज़रूरत कहाँ , हाल जो पूछ लें आप बीमार से ।


जूझ जाएंगे हम आज संसार से ।
प्यार के बोल दो ,बोल दो प्यार से॥

ज़िन्दगी आपकी जान भी आपकी ,
माँग लें आप चाहे जो अधिकार से॥

फिर हक़ीमों की उसको ज़रूरत कहाँ ,
हाल जो पूछ लें आप बीमार से ॥

फिर हमारे लिए ये भँवर कुछ नहीं ,
एक आवाज दें आप उस पार  से ॥

साथ "ममता " तो कैसी खुशी और ग़म ,
फ़र्क पड़ता है क्या जीत औ हार से॥

✍️ डाॅ ममता सिंह
मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल (वर्तमान में मेरठ) निवासी साहित्यकार सूर्यकांत द्विवेदी की कविता ---पिता....क्या उत्तर दे


उत्तरदायित्व/ ज़िम्मेदारी
फ़र्ज़ और बोझ के बीच
एक इंसान रहता है...
उत्तर दे नहीं पाता..
जो जिम्मे है उसके,
उसे उतार नहीं सकता
फ़र्ज़ से डिगता नहीं...
बोझ समझता नहीं...
उसे ही भगवान, यानी
पिता कहते हैं...!!

पिता की सामर्थ्य
उसकी सम्पूर्णता
सूरज में नहीं है
चाँद में भी नहीं
सितारों में...नहीं
न धरती/ न आसमान
बस, सपनों का मचान।।

पुत्र को गगन पर देखना
पुत्री को दिल में रखना..
एक छत/एक रट/ रत
ज्यूँ उंगली में कोई नग।।

लड़ता है खुद से/ जग से
अपेक्षा/ उपेक्षा/ तिरस्कार
दुत्कार/ अपमान/ ग्रहों से
और हँसते हुये/ निगाहें नभ
से मिलाते / दम्भ से/ खम से
कहता है... मैं हूँ न अभी..!!

उसकी पूर्णता पूछते हो..
सोलह कलाओं से/ गर्वित
पूर्णिमा जब उसके आँगन
इठलाती/ झूमती उतरती
वह शशि मुख को नहीं...
अपनी बेटी को देखता है।
यही है पिता/
हाँ.. संपूर्णता ।।

तुम ही बताओ, कैसे
वह उत्तरदायित्व को
उत्तर दे दे.......?
जिम्मेदारियों का जिम्मा
दार से उतार दे...
फ़र्ज़ का कर्ज़ अदा कर दे
बोझ को अपने कंधों से
उल्कापिंड की मानिंद
हल्का कर दे...!!

बाप रे!!
यह शब्द ही उस पर गढ़ा है
हज़ार रहस्यों पर पिता बड़ा है।।

✍️ सूर्यकान्त द्विवेदी
मेरठ

शुक्रवार, 11 सितंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रामकिशोर वर्मा की रचना


अक्षर जिसके वैज्ञानिक हैं, शब्द उच्चारण भी शुद्ध ‌।
जो लिखते हैं,वही पढ़ें हैं; पढ़े़ं वही, लिखा जो शुद्ध ।।
ऐसी हिन्दी सबकी प्यारी, हर घर की  यह फुलवारी ‌।
सब जाने हैं; सब समझे हैं; इसीलिए सबसे न्यारी ।।
हिन्दी गीत सभी को भाते, पिक्चर-टी वी से नाते ।
मोबाइल या लैपटॉप हो, नैट तलक  हिन्दी पाते ।।
शब्दकोष है इतना विस्तृत, यहां सब शब्द मिल जाते ।
यांत्रिकी कानून कोई हो, हिन्दी में सब पढ़ पाते ।।
मुल्क दूसरों को भी देखो, निज भाषा  बढ़ते जाते ।
अपनी भाषा के प्रयोग से,समझ लेत अरु समझाते ।।
राज्य की भाषा बहु दिनों से, निज भाषा राष्ट्र बताते ।
इच्छाशक्ति की है जरूरत, हिन्दी ध्वज जग लहराते ।।

✍️ राम किशोर वर्मा
     रामपुर



मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की कविता

दाग़दार चाँद जोर से हंँसा,
लुढ़कते ज़र्द सूरज पर।
"किया होगा रोशन,
तूने जिन्दगी को।
पाया क्या आखिर,
वही क्षितिज की कब्र।
देख मैं चमकता हूँ
स्याह रात में शहंशाह बन
कर लेता हूँ कैद पूरी दुनिया को
नींद के कारावास में।
मेरे साथ मेरी आरामगाह में,
झिंगुर गुनगुनाते हैं,
जुगनू जश्न मनाते हैं,
उल्लू के भी भाग खुल जाते हैं।
कभी अग्नि पथ पर चलना नहीं पड़ता
मुझे तेरी तरह जलना नहीं पड़ता।"
गोद में क्षितिज की,
समाधिस्थ सूरज मुस्कुराया।
जब पत्तों ने ये दोहराया।
जो असल है फिर जलवा दिखायेगा
सुबह होते ही ओ चांँद तू धुंधला जायेगा
भीख की चमक आखिर कब तक चलायेगा?

✍️हेमा तिवारी भट्ट
मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ मीना नकवी की ग़ज़ल ----


रोक सकता था मुझे, उसने मगर ... जाने दिया

मुझे कोई मरना नहीं था, वह ... मर रहा था

शाम मेरे दिल से हो कर जा रही थी आफताब

उन्होंने इक नज़र और देख कर जाने को दिया

ज़िन्दगी को ख़र्च करके साँस जब रुकने लगी

क़फ़ला रुक दिया और रहबर जाने दिया

उसकी ज़िम्मेदारियों का यह क़दर एहसास था

हमने उस को लौटते हुए ख़ुद को अपने घर जाने दिया

घर बनाओ किस तरह "मीना" किसी बस्ती में हम

ज़ेह न के बंजारे ने दिल का नगर जाना दिया


✍️ डॉ मीना नकवी