अरे ये रामवती कौन है, चंदू जरा रामवती को अंदर भेजो, रामबाबू ने घंटी बजाते हुए कहा।
आज पेंशन भुगतान का दिन था। बैंक में पेंशनरों की भीड़ थी। रामबाबू बारी बारी से दस्तखत देखकर भुगतान पास करते जा रहे थे। तभी अगला भुगतान अँगूठे की निशानी वाला आया, और उन्होंने रामवती को बुलवाया।
थोड़ी ही देर में एक बीस इक्कीस साल की लड़की उनके सामने आकर खड़ी हो गई ।
क्या नाम है आपका।
जी रामवती। लड़की का जबाब सुनकर रामबाबू अचकचा गये। खाते को ध्यान से देखा तो पता चला कि वह विधवा है।
अँगूठा लगवाकर रामबाबू ने उसके पति के बारे में पूछ ही लिया ।
पता चला कि शादी के साल भर के अंदर ही उसका पति कारगिल की लड़ाई में मारा गया था, और वह वापस माता-पिता के साथ आकर रहने लगी थी।
लो काउंटर पर जाकर पैसे ले लो, विदड्राॅल पास करते हुए रामबाबू बोले। और सुनो अपने पिता जी ने कहना कि मैनेजर साहब बुला रहे हैं। कुछ बात करनी है।
जी अच्छा, कहकर वह चली गई ।
उसी दिन शाम को रामवती के पिता सुमेर सिंह उनसे मिलने आ गये।
रामबाबू ने कुछ देर इधर उधर की बातें कीं फिर बोले: आज आपकी बेटी को देखकर बहुत दुख हुआ । इतनी छोटी सी उम्र में पहाड़ सा दुख आ पड़ा है उसपर।
क्या करें साहब, ऊपरवाले की मर्जी के आगे किसी की नहीं चलती।
आप उसकी दूसरी शादी क्यों नहीं कर देते, रामबाबू बोले।
क्या करें साहब, हमारी बिरादरी में लड़कियों की दोबारा शादी नहीं होती, सुमेर ने कहा।
अरे सुमेर सिंह जी आप कैसी बात कर रहे हो। जरा सोचिए, आपकी बेटी के सामने पूरी जिंदगी पड़ी है। कैसे अपना जीवन काटेगी, अभी तो आप हैं, लेकिन आपके बाद वह कैसे रहेगी। उस समय यही बिरादरी उसे तरह तरह से परेशान करेगे । आप व्यावहारिक होकर विचार करें और फिर निर्णय लें, रामबाबू ने उन्हे समझाया। थोड़ी देर बाद सुमेर सिंह चले गये।
बात आयी गयी हो गयी।
रामबाबू भी पुनः अपने काम में लग गये और धीरे-धीरे दिन बीतते चले गये।
एक दिन काम करते हुए उनके कानों में आवाज आई : सर जी अंदर आ जायें।
रामबाबू ने सर उठाकर देखा तो चौंक गये। दरवाजे पर दुल्हन के रूप में सजी हुई रामवती खड़ी थी। साथ में सुमेर सिंह भी खड़े थे।
हाँ हाँ आओ अंदर आ जाओ।
अंदर आकर सुमेर सिंह ने मिठाई का डिब्बा देते हुए उनके पैर छू लिये और बोला, साहब उस दिन आपने मेरी आँखें खोल दीं। मैंने घर जाकर बहुत सोचा फिर निश्चय कर लिया। एक दो महीने की भागदौड़ के बाद ही लड़का मिल गया। लड़का फौज में ही है। उन्हे शादी की जल्दी थी, बाहर जाकर शादी करनी थी इसलिए आपको नहीं बुला सके।
आज ही वापस आये हैं। आप हमारी लड़की को आशीर्वाद दीजिए ।
अरे वाह, यह तुमने बहुत अच्छा किया, कहते हुए रामबाबू ने खुद भी मिठाई खायी और उन दोनों के साथ साथ सारे स्टाफ को मिठाई भिजवायी।
आज उन्हें अंदर ही अंदर बहुत खुशी और संतोष का अहसास हो रहा था, और होता भी क्यों नहीं। आज उनकी पहल से किसी के जीवन को नई दिशा जो मिल गयी थी।
✍️श्रीकृष्ण शुक्ल,
MMIG - 69,
रामगंगा विहार, मुरादाबाद
मोबाइल 9456641400
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