बुधवार, 16 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की कहानी ----इंसानियत


घंटों इंतजार के बाद एक प्राइवेट बस आकर रुकी।कंडक्टर ने बस की खिड़की खोलकर आवाज़ लगाई अजमेर शरीफ,अजमेर शरीफ,जुम्मन और उसकी पत्नी आसमा की जान में जान आई और दौड़ पड़े बस में सवार होने के लिए।परंतु पास जाकर देखा कि बस तो खचाखच भारी हुई है।तिल रखने की भी जगह नहीं।उसमें घुसकर जगह पाना तो किसी युद्ध को जीतने से कम नहीं होगा।
      उन्होंने कंडक्टर से कहा भैया इसमें तो सांस लेना भी दुश्वार है।हम तो शारीरिक दुर्बलता के शिकार हैं।मेरी पत्नी के दोनो घुटनों में दर्द रहता है।इसी लिए तो हम अल्लाह की बारगाह में सर झुकाने जाना चाह रहे हैं।यूँ खड़े-खड़े सफर कर पाना हमारे लिए मुनासिब नहीं होगा।मैं खुद भी हार्ट पेशेंट हूँ।भैया कहीं बिठा सको तो बताओ।
       लालची बस कंडक्टर ने कहा बाबू जी थोड़ी दूर की बात है आगे बस रुकेगी वहां कुछ सवारियां उतरेंगी तभी आप बैठ जाना।किसी तरह मरते-गिरते बस में चढ़ तो गए ।कंडक्टर ने उन्हें एक तरफ करके जल्दी से उनके टिकिट भी काट दिए।अब उनके सामने खड़े-खड़े यात्रा करने के अलावा दूसरा कोई विकल्प भी नहीं रह गया।
        आगे कई जगह बस रुकी परंतु सवारी के उतरने से पहले ही दूसरी खड़ी सवारी जल्दी से जगह घेरने की तत्परता दिखाती और जगह पा लेती।बेचारे जुम्मन और आसमा कभी कंडक्टर को कभी खुद को देखकर चुप रह जाते।शायद आगे कोई उतरे यही सोचकर धीरज रख लेते।
      दर्द से बेहाल दंपत्ति बस यात्रियों पर बेबस नज़र दौड़ाते कि कोई दाता का सखी थोड़ी सी जगह उन्हें भी देदे।परंतु बैठे हुए सारे यात्री उनसे ऐसे नज़रें चुरा कर अपनी सीटो को जकड़े हुए थे कि कहीं वह उन्हीं से सीट न मांग बैठें।कभी ज़ोर का झटका लगता तो गिरने से बाल-बाल बच जाते और अल्लाह-अल्लाह करके ऊपर लगे रॉड को और कसकर पकड़कर खुद को सुरक्षित कर लेते
       उनकी परेशानी को देखकर एक बुजुर्ग यात्री अपनी सीट से उठे और जुम्मन की पत्नी आसमा से बोले बहन आप मेरी सीट पर बैठ जाओ मैं भाई साहब के साथ खड़े होकर थोड़ी कमर सीधी कर लूंगा।आसमा ने कहा भाई साहब आप क्यों तकलीफ उठा रहे हैं।कृपया आप बैठे रहिए आपकी मेहरबानी का शुक्रिया।फिर भी बुजुर्ग सज्जन नहीं माने और आसमा को ससम्मान सीट पर बैठा दिया।
        यह देखकर दो नौजवान यात्री उठे और दोनों खड़े हुए बुजुर्गों को अपने स्थान पर आराम से बैठ जाने का आग्रह करने लगे।बोले दादा हम तो शारीरिक तौर पर काफी तंदरुस्त हैं,हम खड़े होकर भी यात्रा कर सकते हैं।और यह कहते हुए उन्हें हाथ पकड़कर सीट पर बैठाया।
          दोनों बुजुर्गों ने सीट पर बैठकर राहत की सांस ली और उन दोनों नौजवानों पर दिल से दुआओं का खजाना लुटाने लगे।जुम्मन ने पूछा बेटे आप दोनों के नाम क्या हैं।दोनों ने विनम्रता पूर्वक अपने नाम बद्री एवं दीनानाथ बताया।
      थोड़ी देर बाद अजमेर बस अड्डा आ गया।नौजवानों ने उन्हें सहारा देकर बस से उतारा और उनका सामान लेकर चाय की दुकान पर ले जाकर चाय-पानी पिलवाया और दरगाह शरीफ तक  जाने के लिए सवारी भी कराई।फिर सादर प्रणाम करके चले गए।
        जुम्मन और आसमा ने उन्हें दिल से दुआएं दीं और उनकी इंसानियत की दुहाई देते हुए दरगाह शरीफ पहुंचकर अल्लाह मियाँ से अपने लिए कुछ भी माँगने से पहले उन दोंनों बच्चों बद्री और दीनानाथ एवं दयालु बुजुर्ग यात्री की सलामती की दुआ की।
         अर्थात निःस्वार्थ सेवा भाव रखने वाला व्यक्ति ही ईश्वर की कृपा का असली भागीदार होता है।
                         
✍️वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
मो0-  9719275453
           

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