बुधवार, 16 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार स्वदेश सिंह की लघुकथा -----चूरन वाले काका


मॉल से निकलने के बाद शालिनी जैसे ही गाड़ी में बैठकर चलने को तैयार हुई। .....तभी एक भिखारी उसकी गाड़ी के दरवाजे पर आकर खटखटाने लगा। उसने दरवाजा खोल कर देखा तो देखते ही खुशी से चीखते हुए बोली...... अरे!.. चूरन वाले काका...... और तुरंत ही मायूस होते हुए बोली..... आप... आप भीख माँग रहे हो ।काका क्या हुआ?... आप इस तरह से भीख क्यों माँग रहे हो?....  चूरन वाले काका यह सुनकर ..... कुछ ना बोल कर कुछ देर शांत रहे ।फिर बोले बेटी तुम मुझे जानती हो ।हाँ...काका... आप मेरे स्कूल के बाहर चूरन बेचते थे ।और आप का बनाया हुआ चूर्ण मुझे आज तक याद है ..... मैने  आपके जैसा बनाया हुआ चूर्ण  आज तक नहीं खाया ,पर काका पहले यह बताइए?... आप इस तरह से भीख  क्यों माँग रहे हो .....और आपका चूरन वाला ठेला कहाँ गया?.... शालिनी ने तो जैसे प्रश्नों की झड़ी  ही लगा दी। .... चूरन  वाले काका ने बड़े दुखी होते हुए  बोले ..... बेटा ..तुम शालिनी हो.... जो मेरे चूर्ण के पीछे दीवानी थी और हर वक्त चूर्ण खाने के लिए उतावली रहती थी.... हाँ.. हाँ.. काका मैं शालिनी हूँ ।और आपसे उधार माँगकर चूरन खाती थी।....  बेटा क्या बताऊँ ?...  कहते हुए  काका की आंखों से आँसू  टप-टप गिरने लगें। और दुखी होते हुए बोले कि बेटा...  मैंने अपने  दोनो लड़कों की शादी कर दी और शादी के बाद उनकी बहूओं ने मुझे घर से निकाल दिया। और मेरा ठेला भी बेच दिया ।अब मैं अपना पेट भीख माँग कर भरता हूँ... और यही किसी दुकान के आगे रात को सो जाता हूँ ।यह सुनकर शालिनी वह बहुत दुखी हुई। गाड़ी से उतरी और बोली काका आप यही रूको... आप कहीं जाना मत जाना, मैं अभी आती हूँ ..और अपने पति के साथ दोबारा मॉल में गई। चूरन वाले काका के लिए  नए कपड़े खरीदे। और उन्हें गाड़ी में बैठा कर अपने घर ले गई .....घर ले जाकर उसने वह कपड़े चूरन वाले काका को दे दिये और बोली काका...... और आज से आप मेरे साथ मेरे घर  में मेरे काका बनकर रहेगें। ....और शालिनी जल्दी से एक पेन और कॉपी लेकर काका के पास आई.....और बोली प्लीज ....काका जल्दी से चूरन के लिए किस-किस सामान की जरूरत पड़ती है, मुझे लिखवा दीजिए .... मुझे फिर वही चूर्ण बना कर दीजिए और सिर्फ मेरे लिए काका ..... शालिनी का इस तरह प्यार देखकर काका की आँखों से आँसू टप टप गिरने लगे । शालिनी आज बहुत खुश थी।.... क्योंकि चूरन वाले काका का जो कर्ज था उसे उतारने का उसे मौका मिला है।

 ✍️स्वदेश सिंह
सिविल लाइन्स
मुरादाबाद

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