सोमवार, 1 मार्च 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष विद्यावारिधि ज्वाला प्रसाद मिश्र के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर एटा की साहित्यिक संस्था 'प्रगति मंगला' ने किया दो दिवसीय ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन



वाट्सएप पर संचालित  साहित्यिक समूह 'प्रगति मंगला', एटा की ओर से  "साहित्य के आलोक स्तम्भ" कार्यक्रम की 32 वीं कड़ी के तहत फरवरी माह के अंतिम शनिवार 27 फरवरी को मुरादाबाद के प्रख्यात साहित्यकार स्मृतिशेष विद्यावारिधि ज्वाला प्रसाद मिश्र के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर दो दिवसीय ऑनलाइन साहित्यिक परिचर्चा का आयोजन किया गया ।  पटल प्रशासक नीलम कुलश्रेष्ठ द्वारा  मां सरस्वती को नमन और दीप प्रज्ज्वलन के  साथ कार्यक्रम आरम्भ हुआ।

कार्यक्रम के संयोजक मुरादाबाद के वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरा‌र्द्ध में जिस समय भारतेंदु हरिश्चंद्र साहित्य रचकर हिंदी भाषियों का नेतृत्व कर रहे थे। उस समय मुरादाबाद के साहित्यकार भी उनके साथ कदम से कदम मिला रहे थे। इनमें एक उल्लेखनीय नाम है विद्यावारिधि पं. ज्वाला प्रसाद मिश्र का। उनकी  रामायण की भाषा टीका पूरे देश में प्रसिद्ध है। उनको सुप्रसिद्ध नाटककार, कवि, व्याख्याता, अनुवादक, टीकाकार, धर्मोपदेशक, इतिहासकार के रूप में भी जाना जाता है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए जे एल एम कालेज के पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष आचार्य डॉ प्रेमी राम मिश्र ने कहा - आज मुरादाबाद की पहचान पीतल नगरी के रूप में भले ही होती हो, यहां की सुदीर्घ साहित्यकारों की परंपरा भी सदा स्मरणीय रहेगी। यहां के साहित्यकारों ने हिंदी के उद्भव काल से ही हिंदी को पल्लवित और पुष्पित करने में महती भूमिका का निर्वाह किया है। स्मृति शेष पंडित ज्वाला प्रसाद मिश्र उसी गौरवमयी परंपरा के भास्वर नक्षत्र हैं । यह एक सुखद संयोग ही है  कि उन्हीं  के समान उसी युग में किसरौल, मुरादाबाद के पंडित ज्वाला दत्त शर्मा ने भी हिंदी की विविध विधाओं को समृद्धि  प्रदान करने  में  प्रचुर योगदान दिया था! पंडित ज्वाला प्रसाद मिश्र मात्र हिंदी के लेखक ही नहीं थे ,संस्कृत के अधीती पंडित थे। उनका संस्कृत के काव्य, न्याय और व्याकरण पर असाधारण अधिकार था ।संस्कृत शिक्षक के रूप में  अध्यापन करते हुए उन्होंने सामान्य लोगों तक संस्कृत के ग्रंथों का हिंदी अनुवाद कर महान उपकार किया था ।उनकी विद्वत्ता से प्रभावित होकर टिहरी नरेश के साथ-साथ तत्कालीन अनेक राजाओं ने भी उन्हें सम्मानित कर स्वयं को गौरवान्वित अनुभव किया था उनका  अंग्रेजी, फारसी ,उर्दू, बांग्ला ,गुजराती आदि भाषाओं पर भी असाधारण अधिकार था। मुंबई के तत्कालीन प्रतिष्ठित प्रकाशक वेंकटेश्वर प्रेस, निर्णय सागर प्रेस ,ज्ञान सागर प्रेस आदि ने उनकी अनेक पुस्तकों का प्रकाशन किया था। हिंदी में सीता बनवास शीर्षक नाटक लिखकर उन्होंने प्रचुर ख्याति प्राप्त की थी। यह भी एक सुखद संयोग ही है कि उनके समान ही उनके तीन भाई पंडित जुगल किशोर मिश्र बुलबुल ,पंडित बलदेव प्रसाद मिश्र एवं पंडित कन्हैयालाल मिश्र ने भी साहित्य लेखन के क्षेत्र में प्रतिष्ठा प्राप्त की थी ।यदि वे 54 वर्ष की अल्प आयु में दिवंगत न हुए होते तो  अपने लेखन से हिंदी को समृद्ध बनाने में और अधिक योगदान दे जाते ।
प्रख्यात साहित्यकार यशभारती माहेश्वर तिवारी ने कहा - पंडित ज्वाला प्रसाद मिश्र के कृतित्व से वे सभी लोग परिचित हैं जिन्होंने हिंदी साहित्य के इतिहास का बारीकी से अध्ययन किया है ।पंडित जी मौलिक कवि ,नाटककार ,टीकाकार आदि थे ।बहुत बचपन की याद है ,उनके द्वारा लिखी रामायण की टीका का प्रकाशन वेंकटेश्वर प्रेस बंबई से हुआ था और उसके पचास से अधिक संस्करण प्रकाशित हुए ।हमारे घर में उसका नित्य पाठ होता था ।उसके आठ खंड थे ।बाद में तुलसीकृत राम चरित मानस से परिचय हुआ तो पता चला कि रामायण की कथा के बहुत से अंश राम चरित मानस की कथा के अतिरिक्त पिरोये गए थे ।इसके पीछे शायद कारण यह रहा होगा कि तुलसी दास जी ने अपनी कथा को नाना पुराण सम्मत कहा है जबकि मिश्र जी ने संभवतः वाल्मीकि के रामायण को आधार ग्रंथ चुना ।भारतेंदु युग में हिंदी ब्रजभाषा,अवधी आदि से निकल कर नया रूप ग्रहण कर रही थी और मिश्र जी आधुनिक काल के उस काल खंड के एक प्रमुख रचनाकार थे ।

प्रगति मंगला के संस्थापक बलराम सरस ने कहा कि प्रगति मंगला मंच के चर्चित साहित्यिक अनुष्ठान *साहित्य के आलोक स्तम्भ* के क्रम में वरिष्ठ पत्रकार श्रेष्ठ कवि डॉ.मनोज रस्तोगी जी के संयोजन व सम्पादन में मुरादाबाद के अद्भूत कवि कीर्तिशेष विद्यावारिधि पं. ज्वाला प्रसाद मिश्र के कृतित्व व व्यक्तित्व पर चर्चा हुई। निसन्देह डॉ. मनोज रस्तोगी जी का प्रयास सराहनीय व शोधार्थियों के लिए लाभप्रद है।भारतेन्दु युग के कवि व विराट कृतित्व के स्वामी पं. ज्वाला प्रसाद मिश्र जीवनीकार, नाटककार, टीकाकार  समीक्षक व काव्यशास्त्री के रूप में पहचाने जाते हैं। उनके काव्यशास्त्र का ज्ञान स्तुत्य है।रस अलंकार समास आदि का ज्ञान उन्होंने अपने काव्य सृजन से दिया है जिसमें दोहे चौपाई भी हैं।तत्कालीन सामाजिक अभिरुचि के अनुसार गीतिशैली में लिखा उनका नाटक सीता का बनवास काफी लोकप्रिय हुआ। हिन्दी संस्कृत उर्दू बंगाली अंग्रेजी भाषा के जानकार कवि पं. ज्वाला प्रसाद ने संस्कृत के नाटकों का हिन्दी अनुवाद किया।जिनमें उन्होंने दोहा कवित्त सोरठा कुन्डलियां आदि विभिन्न छन्द विधानों का प्रयोग किया है। जीवनीकार के रूप में स्वयं उनके कुल की जीवनी पढ़ने को मिली। कवि की कलम रामायण की टीका लिखती है तब वह बाल्मीकि रामायण को प्राथमिकता देता है। महर्षि दयानंद के आर्य समाज से उनका विरोध रहा जिसके चलते उन्होंने दयानंद तिमिर भास्कर नामक 425 पृष्ठों का ग्रंथ लिखकर ख्याति प्राप्त की। विद्यावारिधि पं. ज्वाला प्रसाद मिश्र का लेखन काफी समृध्द है। उनके वारे में जानने समझने का अवसर मिला इसके लिए पुनश्च डॉ. मनोज रस्तोगी जी का साधुवाद।

गुना की साहित्यकार नीलम कुलश्रेष्ठ ने कहा कि जैसे 'विद्वान् सर्वत्र पूज्यते' सूक्ति कही जाती है वैसे ही 'विद्वान् सर्वदा पूज्यते' यह सूक्ति भी कही जा सकती है। इसी का प्रमाण यह हुआ कि 27 फरवरी पूर्वाह्ण 11 बजे से प्रगति मंगला मंच के पटल पर *साहित्य के आलोक स्तंभ* की बत्तीसवीं शृंखला में सन् 1862 ईस्वी में जन्मे मुरादाबाद की साहित्यिक व  सांस्कृतिक नगरी के प्रख्यात साहित्यकार और टीकाकार *विद्यावारिधि पंडित ज्वाला प्रसाद मिश्र जी* को इतने वर्षों बाद भी पुण्य-स्मरण किया गया। यह परिचर्चा न होती तो हम जैसे पाठक न जान पाते कि भारतेंदु युग में संस्कृत, हिंदी, अंग्रेज़ी, फारसी, गुजराती, बांग्ला जैसी भाषाओं के ज्ञाता इतना भी सशक्त कोई साहित्य का प्रेमी व पुरोधा  उत्पन्न हुआ और साहित्य साधना एवं सेवा के लिए समस्त जीवन सनातन धर्म की संवृद्धि में लगा दिया। उन्होंने अनेकानेक वैदिक, पौराणिक ग्रंथों की भाषा टीकाएँ लिखीं। सीता वनवास, अभिज्ञान शाकुंतलम्, वेणीसंहार,बिहारी सतसई इत्यादि नाटकों का अनुवाद करके हिंदी को और भी समृद्ध किया। इसी कारण आचार्य रामचंद्र शुक्ल, प्रताप नारायण मिश्र, क्षेमचदं सुमन, डॉ सोमनाथ गुप्ता जैसे मूर्धन्य साहित्यकारों ने अपने अपने आलोचनात्मक ग्रंथों में उल्लेख किया।
युवा साहित्यकार फ़रहत अली ख़ान ने कहा - साहित्य की महान विभूति पंडित ज्वाला प्रसाद मिश्र जी द्वारा रचित टीका ग्रन्थ जहाँ ख़ासे महत्वपूर्ण हैं, वहीं भारतेंदु के ज़माने में यानी हिंदी साहित्य के आरंभिक दौर में इन का लिखा नाटक और इन के द्वारा अनूदित दो नाटक इन को साहित्य की मुख्यधारा में महत्वपूर्ण स्थान दिलाने के लिए काफ़ी हैं, साहित्य के किसी भी विद्यार्थी के लिए ये बात सब से अहम है। फिर प्रताप नारायण मिश्र जी का लेख इन के लेखन की गुणवत्ता की सनद है।चूँकि इन्हें संस्कृत, हिंदी, उर्दू, फ़ारसी का भी अच्छा ज्ञान था, इस का प्रभाव इनके नाटकों की भाषा पर साफ़ नज़र आता है। भाषा प्रवाहमय और ज़्यादातर सरल है। मसलन- ‘लाचारी’, ‘पल’, ‘कल(आराम)’, ‘वास्ते’, ‘ज़हर’ जैसे आम-फ़हम अल्फ़ाज़ नज़र आते है।
कवयित्री मीनाक्षी ठाकुर ने कहा कि भारतेंदु जी के समकालीन और श्रेष्ठ अनुवादक, सनातन धर्म की कीर्ति ध्वजा फहराने वाले,संस्कृत के प्रकांड विद्वान तथा राग रागिनियों के ज्ञाता,सभी कुछ तो थे पंडित ज्वाला प्रसाद जी।उनके द्वारा रचित सीता वनवास नाटक के संवाद अत्यंत रोचक व दृश्यों में जान डालने वाले हैं। आम जनमानस को सदैव ही हर काल में धर्म,संस्कृति  तथा अतीत के गौरव की व्याख्या करते नाटक,कहानियां ,लोकगीत लुभाते आये हैं । पंडित जी के बारे में पढ़कर यह स्पष्ट है कि वह मुरादाबाद का गौरव हैं तथा जनमानस के प्रिय भी ।स्व. पंडित जी की साहित्य साधना को कोटि-कोटि नमन।
नयी दिल्ली की साहित्यकार आशा दिनकर आस ने कहा कि आज बहुत खुशी हुई जानकर कि पंडित ज्वाला प्रसाद जी एक बहुआयामी साहित्यकार और बहुभाषा के सिद्धहस्त रहे | आपका लेखन और कृतित्व अतुलनीय साहित्यिक विरासत है ।
रामनगर एटा के कृष्ण मुरारी लाल मानव ने कहा कि ऐसे आयोजन करके बहुत ही सराहनीय कार्य प्रगति मंगला मंच कर रहा है। आज की कड़ी में ज्वाला प्रसाद मिश्र जी के जीवन तथा व्यक्तित्व व कृतित्व की उपयोगी जानकारी दी गई।इसके लिए प्रगति मंगला मंच तथा मंच के सभी पदाधिकारीयों का हार्दिक अभिनंदन।
डिब्रूगढ़,असम की कल्पना सेन गुप्ता ने कहा कि स्मृति शेष ज्वाला प्रसाद मिश्र जी के बारे में जानकर अच्छा लगा।दिवंगत साहित्यकारों को उचित सम्मान और उनके विषय में सम्पूर्ण जानकारी देने के लिए प्रगति मंगला मंच का यह कार्य वास्तव में सराहनीय है ।
आगरा के साहित्यकार विजय चतुर्वेदी विजय ने कहा कि स्मृति शेष आदरणीय ज्वाला प्रसाद जी मिश्र के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से अवगत हो कर अत्यंत हर्ष का अनुभव हुआ।विशेषतः उनकी अलंकारिक परिभाषाओं को पढ़ कर बहुत अच्छा लगा। नई पीढ़ी के रचनाकारों को इससे बहुत ज्ञान प्राप्त होगा।प्रगति मंगला मंच का आभार।
कुशीनगर की साहित्यकार रूबी गुप्ता ने कहा कि सर्वप्रथम आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद और वंदन अभिनन्दन जो इतनी अच्छी  जानकारी से सभी को अवगत कराया। सत्य कहा जाये तो  साहित्य और साहित्यकार का जीवन ही सबसे अमूल्य विरासत है। और खासकर जब   स्मृतिशेष ज्वाला प्रसाद जी जैसे  महानायक की बात हो तो यह बात कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि आज के युवाओं के लिए इतनी  सार्थक रचना को पढ़कर बहुत कुछ  सीखने का मौका मिलता है।

जौनपुर की विभा तिवारी ने कहा कि आज के इस साहित्य के आलोक स्तंभ की 32वीं कड़ी में मुरादाबाद के प्रख्यात साहित्यकार पंडित ज्वाला प्रसाद मिश्रा जी को स्मरण किया गया। ज्वाला प्रसाद मिश्र जी के लेखन,कृतित्व और व्यक्तित्व से सभी परिचित हैं ,उनके द्वारा रचित तमाम विधाओं को पढने जानने का अवसर मिला,मिश्र जी के साहित्यिक कृतियों को जानने के बावजूद इतनी बारीकी से जानने का अवसर आदरणीय गुरुश्रेष्ठ प्रेमीराम मिश्र जी, भाई बलराम सरस जी और डॉ मनोज रस्तोगी जी की वजह से प्राप्त हुआ. आपसभी को हृदय से आभार।

युवा साहित्यकार राजीव 'प्रखर' ने कहा कि कीर्तिशेष पंडित ज्वाला प्रसाद मिश्र जी एक साहित्यकार होने के साथ-साथ एक युग दृष्टा भी कहे जा सकते हैं। यही कारण है कि उनकी कृतियाँ नयी पीढ़ी के लिये भी श्रेष्ठ हैं।  निश्चित ही उनकी गणना कालजयी रचनाकारों में की जा सकती है।







 

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