सोमवार, 21 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी का गीत -----इंसानियत से गिरती हुई बात न करना प्यारी सी जिंदगी के साथ घात न करना।


इंसानियत   से   गिरती  हुई

बात            न         करना

प्यारी सी  जिंदगी  के  साथ

घात          न          करना।


हम सही  तो  सारा  ज़माना

सही             है           यार

घृणा की राह पर न  बढ़ाओ

कदम          हर          बार

बर्बादियों   की  बातें   कभी

ज्ञात            न        करना।

इंसानियत से---------------

                

हर  बात में  मिठास भरी हो

भरा            हो          प्यार

हो गुल की तरह  रेशमी  हर

शब्द          में         निखार

शापित किसी के सरपे कभी

हाथ            न         धरना।

इंसानियत से--------------


खुशियां सभी की  हैं ज़रा यह

बात           जान            लो

बस  बांटना  है  प्यार  इसको

सही           मान            लो

खुशियों  के  सवेरों  में  सिया

रात           न            भरना।

इंसानियत से----------------


किसके लिए  ईश्वर  का कौन 

रूप                         धरेगा

खुश होके  पीर  सबकी  यहां

कौन                         हरेगा

प्रतिघात कभी  अपनों  से  है

तात           न           करना।

इंसानियत से----------------


जो सबसे  मिलकर धरती पर                             

रह              लेता            हो   

जो सबके  लिए  हर  कष्ट भी 

सह            लेता             हो

शतरंज  की  चालों  सा  कभी

मात             न         करना।

इंसानियत से----------------

      

 ✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी, मुरादाबाद/उ,प्र,

मो0- 9719275453


 

रविवार, 20 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार ज़मीर दरवेश की ग़ज़ल ...... बुज़ुर्ग पेड़ से करके चले सलाम दुआ, हवा को चाहिए पासे अदब निभा के चले!

بہت وہ چل نہیں پاۓ جو بچ بچاکے چلے، 

وہی چلے جو کلیجے پہ تیر کھا کے چلے! 

बहुत वो चल नहीं पाए जो बच बचाके चले, 

वही चले जो कलेजे पे तीर खाके चले! 


بزرگ پیڑ سے کرکے چلے  سلام دعا،

ہوا کوچاہیے پاس ِادب نبھا کے چلے ! 

बुज़ुर्ग पेड़ से करके चले सलाम दुआ, 

हवा को चाहिए पासे अदब निभा के चले! 


یہ میری خو  ہے مخالف ہوا کے چلتا ہوں، 

وہ اور ہوگا کوئی ساتھ جو ہوا کے چلے!

यह मेरी ख़ू* है मुख़ालिफ़ हवा के चलता हूँ, 

वो और होगा कोई साथ जो हवा के चले! 


 ہنسا ہنسا کے چمن زار کردیا گھر کو ،

ہلاکے ہاتھ جو چلنے لگے رلا کے چلے! 

हंसा हंसा के चमनज़ार कर दिया घर को, 

हिलाके हाथ जो चलने लगे रुला के चले! 


دیارِ یار میں جانا ہو چاہے مقتل میں، 

مزہ تو جب ہے کہ دیوانہ سر اٹھا کے

 چلے! 

दायरे यार** में जाना हो चाहे मक़तल में, 

मज़ा तो जब है के दीवाना सर उठा के चले! 


 کسی چراغ کا لینا نہیں پڑا احسان، 

بہت اندھیرا ہُوا جب تو دل جلاکے چلے! 

किसी चराग़ का लेना नहीं पड़ा एहसान, 

बहुत अंधेरा हुआ जब तो दिल जलाके चले! 


چلے جو دشت میں اہلِ جنوں تو نقش ِقدم، 

بنا بنا کے چلے اور مٹا مٹا کے چلے! 

चले जो दश्त में एहले जुनूँ तो नक़्शे क़दम, 

बना बना के चले और मिटा मिटा के चले! 


عجب ہیں ہم بھی کہ ہجرت پہ  جارہے تھے مگر، 

اجاڑ کر نہ چلے گھر کو گھر سجاکے چلے! 

अजब हैं हम भी के हिजरत ***पे जा रहे थे मगर, 

उजाड़ कर न चले घर को घर सजा के चले! 


مٹانے جگنو چلے گھور اندھیرا تو خود کو، 

جلا جلا کے چلے اور بجھا بجھا کے چلے! 

मिटाने जुगनू चले घोर अंधेरा तो ख़ुद को, 

जला जला के चले और बुझा बुझाके चले! 


*आदत  ** मेहबूब का शहर*** मुस्तक़िल तौर पर अपने गाँव/ शहर को छोड़ जाना

  ✍️ज़मीर दरवेश, मुरादाबाद


 

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ मीना नक़वी की ग़ज़ल ---- ये और बात , सुन के वो ख़मोशियों पे टाल दे। सवाल तो है मुन्जमिद जवाब के बग़ैर भी।

वो दर्स-ए-इश्क़ दे गया निसाब के बग़ैर भी। 

पढ़ेंगे उसको हम मगर, किताब के बग़ैर भी। 


ये और बात , सुन के वो ख़मोशियों पे टाल दे।

सवाल तो है मुन्जमिद जवाब के बग़ैर भी। 


हज़ार रंग फ़ूल जब हैं, जा बजा खिले हुये।

महक रहा है गुल्सिताँ, गुलाब के बग़ैर भी। 


वो दश्त दश्त आँख, वो भरी भरी सी इक नदी।

बरस न जाये आसमाँ, हुबाब के बग़ैर भी। 


न जाने कौन भूले बिसरे ,गीत है सुना रहा।

बजा रहा है धुन कोई, रबाब के बग़ैर भी। 


मिला न उनमें बचपना, मिली तो मुफ़लिसी मिली।

कटी है जिनकी ज़िन्दगी शबाब के बग़ैर भी। 


ये और बात रतजगों से ' मीना' रब्त हो गया।

गुज़र रही है शब हमारी, ख़्वाब के बग़ैर भी।


   ✍️ डॉ.मीना नक़वी



 

शनिवार, 19 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की कहानी ----- पुश्तैनी मकान


''माँ तुम समझती काहे न ....इस मकान का कोई फ़ायदा नहीं ...हमारे साथ शहर चलो और वहीं रहो ।" अभिषेक ने अपनी माँ का हाथ अपने हाथों में लेकर समझाते हुए कहा ।

''नहीं बेटा मैं यह घर नहीं छोड सकती ,यह तुम्हारे बाबू जी की आखिरी निशानी है --मैं ठीक हूँ यहाँ --तुम आराम से शहर में रहो ।"

''लेकिन माँ ?"

''बस बेटा --मैं इस मुद्दे पर और बात करना नहीं चाहती " अभिषेक की माँ ने दो टूक जवाब दे दिया !

दिन गुजरते गये  धीरे -धीरे अभिषेक की माँ प्यारी का स्वास्थ्य भी गिरने लगा। साल मैं एक -दो बार अभिषेक माँ से मिलने आ जाता था ।

एक बार प्यारी की तबीयत अचानक बहुत खराब हो गयी । मोहल्ले वालों ने अभिषेक को फ़ोन पर सूचित किया।अभिषेक आया और माँ को शहर ले जाने लगा ,माँ भी इस बार राजी हो गयी। कार में बैठते हुए उन्होंने अभिषेक का हाथ पकड़ा और धीरे से बोलीं 'बेटा वादा करो मेरे जीते -जी इस घर को नहीं बेचोगे ।

''हाँ माँ आप चिंता न करो --ऐसा ही होगा । अभिषेक ने हकलाते हुए कहा ,और माँ को यकीन हो गया। वह इत्मीनान से आँखैं बंद करके लेट गयीं ! और अभिषेक उनके अंगूठे पर लगी स्याही क़ो धोने में लग गया ।

 ✍️ राशि सिंह , मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश 






मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की व्यंग्य कविता ------ मच्छर से बातचीत


 माई डियर मच्छर

बहुत दिनों बाद नजर आ रहे हो

अपनी मधुर तान आजकल

किसको सुना रहे हो

आखिरी बार

जब हमारी हुई थी मुलाकात

गोलू मोलू हो रहा था

तुम्हारा स्वास्थ 

लेकिन आज तुम 

दीनहीन से लग रहे हो

पहले सरकारी जैसे थे

आज वित्त विहीन से लग रहे हो

तुम्हारा चेहरा भी पिटा हुआ है

क्या तुम्हारे साथ कोई हादसा हुआ है


जब हमने बहुत उकसाया

उसने करुण स्वरों मेेें बताया

हमारी इस हालत की जिम्मेदार है

तुम्हारे खून की गिरती हुई क्वालिटी

और उस पर आश्रितों की

बढ़ती हुई क्वांटिटी

हमने कहा ,पहेली मत बुझाओ

क्वालिटी और क्वांटिटी वाली बात

जरा डिटेल मेेें समझाओ

मच्छर बोला

पहले क्वालिटी पर

कर लिया जाय विचार

एक जमाना था

तुम हमसे करते थे अत्यधिक प्यार

दिल से रखते थे हमारा ख्याल

पहनने को चाहें चिथड़े मिले

खून का रंग बनाए रखते थे लाल

लेकिन आजकल

आधुनिकता के नाम पर 

तुम अपने स्वास्थ्य से

कर रहे हो खिलवाड़

झूठी शान के चक्कर मेेें

हैसियत से ज्यादा महंगे

कपड़ो की कर रहे हो जुगाड

समाज मेेें अपनी

इज्जत बढ़ाने के लिए

अपने आप को दूसरो से

ऊंचा दिखाने के लिए

तुमको अंधाधुंध 

पैसा फूंकना पड़ता है

और इसका सारा असर

भोजन के खर्च पर पड़ता है

तुम अपने भोजन पर देते हो

कम से कम ध्यान

क्योंकि तुमने

मटर पनीर खाया या सूखी रोटी

किसी को नहीं होता इसका ज्ञान

लेकिन अगर

भड़कीले कपड़े ना पहनें जाएं

तो इज्जत घाट जाती है

नाक पहले से ही छोटी है

वो भी कट जाती है

आधुनिकता का नशा

दिन प्रतिदिन चढ़ रहा है

तुम्हारे खून मेेें लगातार

पानी का अंश बढ़ रहा है

ऐसे मिलावटी खून को पीकर

हम अब तक ज़िन्दा हैं

येे सोचकर शर्मिंदा हैं


इतना कहकर मच्छर ने

हमारे गालों पर टिकाई अपनी लात

फिर बोला ,

अब सुनो क्वांटिटी वाली बात

आजकल कुछ लोगों मेेें ही

खून का भंडार है

लेकिन उनके खून पर

पहले से ही किसी का अधिकार है

ग्राहकों का खून चूस कर

व्यापारी पैसा कमा रहे हैं

डॉक्टर मरीजों के खून का

लुत्फ उठा रहे हैैं

वकील अपने मुवक्किलों का

खून चख रहे हैैं

महाजन ,गरीब कर्जदारों का खून

अपनी तिजोरी मेेें रख रहे हैैं

और इन सब

खून पीने वालो का खून

नेताजी पी रहे हैैं

शाकाहारी मुखौटा

लगाकर जी रहे हैैं

इसके बाद

जो थोड़ा सा खून बचता है

वही झूठा खून,हमको मिलता है


अगर सच मेेें 

करना चाहते हो हमारी भलाई

एक छोटा सा

काम कर दो मेरे भाई

हमको किसी तरह से करा दो

पार्लियामेंट में प्रविष्ट

वहां एक से बढ़कर एक है

खून के स्टॉकिस्ट

गरीब का खून,अमीर का खून

पढ़े लिखों का खून, बेपढ़ो का खून

गोरों का खून, कालों का खून

हिन्दू का खून,मुस्लिम का खून

उनके पास हर तरह का माल मिलेगा

हमारा मुरझा चेहरा 

वहीं पहुंच कर खिलेगा ।


✍️  डाॅ पुनीत कुमार

T -2/505

आकाश रेजिडेंसी

मधुबनी पार्क के पीछे

मुरादाबाद 244001

M 9837189600

मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद सम्भल)निवासी साहित्यकार स्मृतिशेष रामावतार त्यागी का एक गीत और एक ग़ज़ल ... इनका प्रकाशन लगभग 36 साल पहले साप्ताहिक हिन्दुस्तान के 10 जून 1984 के अंक में हुआ था ।


 

मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल के दो मुक्तक


धरती का श्रंगार छीनकर, हमने कितने पाप किये।

जंगल काटे, नदियां बाँधी, ताल तलैया पाट दिये।।

आज प्रदूषण के कारण अब, जीवन भी दुश्वार हुआ।

अपने ही जीवन पर हमने, नित्य कुठाराघात किये।।


हम धरती से भोजन, पानी, प्राणवायु तक लेते हैं।

स्वार्थ सिद्धि की खातिर इसको, घाव निरंतर देते हैं।।

काट काट कर जंगल हमने, इसकी हरियाली छीनी।

आओ अब कुछ वृक्ष लगाकर, इसको जीवन देते हैं।।


✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद ।

मुरादाबाद के साहित्यकार ( वर्तमान में दिल्ली निवासी )आमोद कुमार अग्रवाल का गीत ---- प्रीत नहीं जिनके अन्तर में,व्यर्थ ही ये काया पाई, खुद मंज़िल पे जा पहुँचे और,औरों को न राह दिखाई।

 

प्रीत नहीं जिनके अन्तर में,व्यर्थ ही ये काया पाई,
खुद मंज़िल पे जा पहुँचे और,औरों को न राह दिखाई।

सपन नहीं जिनकी निंदिया में,उन नयनों का सोना भी क्या 
आँसू निकले,दिल न रोया,उन आँखों का रोना भी क्या ।
मरहम नहीं रखा घावों पर,न किसी की जान बचाई,
प्रीत नहीं जिनके अन्तर में,व्यर्थ ही ये काया पाई।

सोने का सूरज ये क्षितिज पर,प्यार का संदेशा देता,
चाँदी का चँदा फिर आकर, नयनोंं में मोती भर देता।
प्रेम के अनमोल ये आँसू, इनकी   क्या  कीमत है लगाई, प्रीत नहीं जिनके अन्तर में, व्यर्थ ही ये काया पाई।

मत रो साथी,मृदु हास से ,अधरों का श्रंगार करो तुम,
बीत जायेगी ये निशा भी, भोर का इंतज़ार करो तुम।
नव प्रभात की पहली किरन ये,देखो सुख संदेशा लाई,
प्रीत नहीं जिनके अन्तर में, व्यर्थ ही ये काया पाई।
     
  ✍️ आमोद कुमार अग्रवाल

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ पूनम बंसल का गीत


 

मुरादाबाद के साहित्यकार योगेंद वर्मा व्योम का गीत ---- पुरखों की यादें


 

शुक्रवार, 18 सितंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार ओंकार सिंह विवेक का गीत ----- दुनिया में भारत के गौरव,मान और सम्मान की, आओ बात करें हम अपनी, हिंदी के यशगान की।

दुनिया में  भारत  के  गौरव,मान और सम्मान की,

आओ बात करें हम अपनी, हिंदी के यशगान की।

जय अपनी हिंदी,जय प्यारी हिंदी------------2


राष्ट्र संघ  से  बड़े  मंच  पर,अपना सीना तानकर,

हिंदी  में भाषण  देना  है ,यह ही मन में ठानकर।

रक्षा  अटल बिहारी  जी  ने, की हिंदी के मान की

आओ बात करें---------------

जय अपनी हिंदी,जय प्यारी हिंदी-----------2


परिचित  होने  को अलबेले, अनुपम हिंदुस्तान से,

आज  विदेशी  भी  हिंदी को,सीख रहे हैं शान से।

सचमुच है यह बात हमारे, लिए बड़े अभिमान की

आओ बात करें-----------------

जय अपनी हिंदी,जय प्यारी हिंदी-----------2


आज  नहीं  हिंदी का उनको , मूलभूत भी ज्ञान है,

अँगरेज़ी की शिक्षा पर ही ,बस बच्चों का ध्यान है।

क्या यह बात नहीं है अपनी,भाषा के अपमान की

आओ बात करें-------------------

जय अपनी हिंदी,जय प्यारी हिंदी------------2


अपने  ही  घर  में  हिंदी यों, कभी  नहीं  लाचार हो,

इसको अँगरेज़ी पर शासन, करने का अधिकार हो।

बच  पाएगी  तभी  विरासत, सूर  और रसखान की

आओ बात करें---------------------

जय अपनी हिंदी,जय प्यारी हिंदी---- ------2

✍️  ओंकार सिंह विवेक, रामपुर

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी का गीत ------ सबकी बड़ी बहन है हिंदी, सच्ची सरल कहन है हिंदी।


सबकी बड़ी  बहन है हिंदी,

सच्ची सरल  कहन है हिंदी।

        

सभी कोअक्षर ज्ञान बांटती,

पाखंडों   की  जडें  छांटती,

हर भाषा को गले लगा कर,

खुशी-खुशी सम्मान बांटती,

प्रेम  पगे  पावन  भावों   से,

महका हुआ सहन  है हिंदी।

सबकी बड़ी बहन---------


जो  भी  इससे  दूर  भागता,

कभीन उसका वक्त जागता,

अपने घर  का द्वार बंद कर,

अंग्रेज़ी  से   शरण   माँगता,

अंतर्मन   से   देती   सबको,

ही  आशीष  गहन  है  हिंदी।

सबकी बड़ी बहन----------


बच्चे को 'माँ 'शब्द सिखाती,

हर भटके को  राह  दिखाती,

जननी सम सब भाषाओंकी,

हिंदी   है,  सबको  बतलाती,

कोटिक  देवों  की  वाणी  से,

होता  हुआ   हवन  है  हिंदी।

सबकी बड़ी बहन----------


हिंदी   से  नफरत  करते  हो,

माँ  से तनिक नहीं  डरते  हो,

अन्य  विदेशी  भाषाओं   की,

गागर क्यों सिर पर  रखते हो?

गीतों, भजनों ,कविताओं का,

सबका  श्रेष्ठ  चयन  है  हिंदी।

सबकी बड़ी बहन-----------


आओ नमन  करें  हिंदी  को,

पूजें  इस  माँ  की  बिंदी  को,

प्रतिदिन हिंदीदिवस मनाकर,

दें  सम्मान  सतत  हिंदी  को,

सबमें    संस्कार   भरने   का,

करती  भार  वहन   है  हिंदी।

        

 ✍️  वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

मुरादाबाद/उ,प्र,

फोन-   9719275453

      

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ मीरा कश्यप का गीत -- विश्व पटल पर परचम लहराती,हृदय का स्वाभिमान है हिन्दी -


सरस सुुकोमल  भावों की,  मधुर रसधार है हिंदी

विश्व पटल पर परचम लहराती,हृदय का स्वाभिमान है हिन्दी 

कबीर की अक्खड़ भावों की,साखी सबद,रमैनी हिंदी

गोकुल के कुंज गलिन की,राधा कृष्ण की रास है हिन्दी

तुलसीदास के रामचरित औ, सीता सी पावन है हिंदी

जायसी के पद्मावती सी,प्रेम और श्रृंगार है हिन्दी

बिहारी और घनानन्द की मृदुल भाव सुजान है हिंदी

हिंदी से हम हिंदुस्तानी ,केशव औ रसखान है हिन्दी

छायावाद के बिम्ब ,प्रतिकों की कोमल भाव है हिंदी

प्रेम और श्रृंगार प्रसाद की,श्रद्धा सी कोमल भाव है हिंदी

पन्त की सुकुमार कल्पना,निराला की महाप्राण है हिंदी

महादेवी की भाव-लहरी सी मर्यादित ,नारी की अभिमान है हिंदी

मां की ममता सी दुलराती, लोरी की मधुर संगीत है हिंदी

बरगद की छाया विशाल ,पीपल पात सरिस है हिंदी

चंदन सी बंदित भारत के ललाट की मान है हिंदी

मिट्टी की खुशबू से लिपटे ,किसानों की पहचान है हिंदी

मजदूरों की पीड़ा संग ,रोटी की मीठी स्वाद है हिंदी

जन ,मन की पूजा है हिंदी, सबका दृढ़ विश्वास है हिंदी

देश और विदेश में,अपनों की पहचान है हिंदी

हिमालय की उत्तुंग शिखर सी,भारत माँ की भाल है हिंदी

हिन्दवासी की धड़कन हिंदी, आंगन की फुलवारी सी 

हिंदी से सारी दुनियां और ,हिंदी है पहचान हमारी

  ✍️ डॉ मीरा कश्यप , मुरादाबाद 244001

मुरादाबाद के साहित्यकार अंकित गुप्ता अंक का हिन्दी को समर्पित गीत

 

मातृभाषा स्नेह-आँचल है,

जो हमें अपने तले महफ़ूज़ रखता है! 


बोल ये पहला हमारा है,

डूबते का ये सहारा है,

शेष सब हैं तुच्छ जुगनू-से

ये चमकता ध्रुव सितारा है;

मातृभाषा वो धरातल है-

बिन न जिसके सोच का हर वृक्ष टिकता है ।


मातृभाषा है न पिछड़ापन,

संस्कारों का यही दरपन,

ये हवा-सा शुद्ध कर देती-

देश का हर एक मन-आँगन;

मातृभाषा धार अविरल है-

देश का इतिहास जिसके साथ बहता है ।


दूसरों से जब जुड़ें संबंध,

क्या सगी माँ से मिटें संबंध?

कीजिए ये प्रण हमेशा ही-

मातृभाषा से रहें संबंध;

मातृभाषा सघन पीपल है-

छाँव में जिसकी हमारा कल ठहरता है ।

  

 ✍️ अंकित गुप्ता 'अंक'

मुरादाबाद 244001

मुरादाबाद के साहित्यकार अनवर कैफी की ग़ज़ल ----- फूलों से उसकी राहों को मैंने सजा दिया .....


 

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ रीता सिंह का वर्णमाला गीत


 अ से अनार आ से आम , आओ सीखें अच्छे काम ।

इ इमली ई से ईख , माँगो कभी न बच्चों भीख ।

उ उल्लू ऊ से ऊन , कितना सुंदर  देहरादून ।

ऋ से ऋषि बडे तपस्वी , देखो वे हैं बड़े मनस्वी ।

ए से एड़ी ऐ से ऐनक , मेले में है कितनी रौनक ।

ओ से ओम औ से औजार , आओ सीखें अक्षर चार ।

अं से अंगूर अः खाली , आओ बजाएँ मिलकर ताली ।

आओ बजाएँ मिलकर ताली । आओ बजाएँ मिलकर ताली ।

क से कमल ख से खत , किसी को गाली देना मत ।

ग से गमला घ से घर , अपना काम आप ही कर ।

ड़ खाली ड़ खाली , झूल पड़ी है डाली डाली ।

आओ बजाएँ मिलकर ताली , आओ बजाएँ मिलकर ताली ।

च से चम्मच छ से छतरी , लोहे की होती रेल पटरी ।

ज से जग झ से झरना , दुख देश के सदा हैं हरना ।

ञ खाली ञ खाली , गुड़िया ने पहनी सुंदर बाली ।

आओ बजाएँ मिलकर ताली, आओ बजाएँ मिलकर ताली ।

ट से टमाटर ठ से ठेला , सुंदर होती प्रातः बेला ।

ड से डलिया ढ से ढक्कन , दही बिलोकर निकले मक्खन ।

ण खाली ण खाली , रखो न गंदी कोई नाली ।

आओ बजाएँ मिलकर ताली , आओ बजाएँ मिलकर ताली  ।

त से तकली थ से थपकी , मिट्टी से बनती है मटकी ।

द से दूध ध से धूप , राजा को कहते हैं भूप ।

न से नल न से नाली , गोल हमारी खाने की थाली ।

आओ बजाएँ मिलकर ताली , आओ बजाएँ मिलकर ताली ।

प से पतंग फ से फल , बड़ा पवित्र है गंगाजल ।

ब से बाघ भ से भालू , मोटा करता सबको आलू ।

म से मछली म से मोर , चलो सड़क पर बाँयी ओर ।

य से यज्ञ र से रस्सी , पियो लूओं में ठंडी लस्सी ।

ल से लड्डू व से वन , स्वच्छ रखो सब तन और मन ।

श से शेर ष से षट्कोण , अंको का मिलना होता जोड़ ।

स से सड़क ह से हल , अच्छा खाना देता बल ।

क्ष से क्षमा त्र से त्रिशूल , कड़वी बातें देती शूल ।

ज्ञ से ज्ञान देता ज्ञानी , हमें देश की शान बढ़ानी ।

आओ बजाएँ मिलकर ताली , आओ बजाएँ मिलकर ताली ।

✍️  डॉ रीता सिंह

चन्दौसी (सम्भल)

गुरुवार, 17 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ मीना कौल की रचना


 हमारी है हिन्दी तुम्हारी है हिन्दी

जगत में सबकी दुलारी है हिन्दी

गुरुदेव माता पिता सबसे पहले

उससे भी पहले हमारी है हिन्दी।


हिन्दी से उत्तर का हिमाद्रि अपना

हिन्दी से दक्षिण का सागर है अपना

हिन्दी से निखरी है पूरब की लाली

हिन्दी से पश्चिम की आभा निराली

दशों दिशाओ में बिखरी है हिन्दी

फूलों की खुशबू हमारी है हिन्दी।।


तुलसी के मानस सी पावन है हिन्दी

कान्हा की मुरली का वादन है हिन्दी

हिन्दी में है मीरा प्रेम दिवानी

नीरज के गीतों का गायन है हिन्दी

हिन्दी में पन्त प्रसाद निराला

महावीर और हजारी है हिन्दी।।


दिवाली के दीप जलाती है हिन्दी

होली में रंग खिलाती है हिन्दी

हिन्दी में दशाननों का दहन है

रक्षा का बंधन निभाती है हिन्दी

हिन्दी में ईद की मीठी सिवईंयें

लोहड़ी की मस्ती बैसाखी है हिन्दी।।


जन जन की रोटी की आशा है हिन्दी

जीवन के कर्मों की भाषा है हिन्दी

हिन्दी अमीरी गरीबी न देखे

गण मन की अभिलाषा है हिन्दी

हिन्दी से रिश्ते हिन्दी से नाते

अपनों की मुस्कान हमारी है हिन्दी। ।


वोटों की दलदल में फिसली है हिन्दी

कमजोर हाथों ने पकड़ी है हिन्दी

हिन्दी को लेकर मची एक हलचल

सियासी जालों में उलझी है हिन्दी

हिन्दी से हम हैं हम से वतन है

वतन से वफादारी है हिन्दी।।

 ✍️ डाॅ मीना कौल, मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक 'विद्रोही' को राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति द्वारा किया गया सम्मानित

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति, की ओर से हिंदी दिवस 14 सितंबर 2020 को आयोजित एक संक्षिप्त समारोह में  साहित्यकार अशोक 'विद्रोही' को सम्मानित किया गया। सम्मान स्वरूप श्री विद्रोही को मान-पत्र, अंग वस्त्र, सम्मान राशि एवं श्रीफल भेंट किए गए। 

अध्यक्षता  के पी सरल ने की तथा मुख्य अतिथि डॉ प्रेमवती उपाध्याय  रहीं। माँ शारदे की वंदना डॉ प्रेमवती उपाध्याय द्वारा प्रस्तुत की गई । संचालन राम सिंह निशंक ने किया।

    इस अवसर पर हिंदी दिवस को समर्पित एक संक्षिप्त काव्य गोष्ठी का भी आयोजन किया गया । गोष्ठी में सम्मानित साहित्यकार अशोक विद्रोही ने हिंदी की महिमा का गुणगान करते हुए कहा-

अपने ही घर में कोई ,पाए ना सम्मान

यो हिंदी का हो रहा ,राज्यों में अपमान।

राज्यों में अपमान ,सुनो नेता गण प्यारे

हिंदी को अनिवार्य करो ,राज्यों में सारे।।

,विद्रोही, फिर पूरे कैसे होंगे सपने

परदेसी सी हिंदी घर में होगी अपने।।


हिंदी देती रोज ही, नए-नए उपहार

कविता में अभिव्यक्त हों ,नित्य हृदय उदगार।

नित्य ह्रदय उदगार ,कवि दुनिया में जाते,

व्यंग, छंद और गीत ,सभी हिंदी में गाते।।

"विद्रोही ,,मां का गौरव ,ज्यों होती बिंदी

भारत की पहचान और गौरव है हिंदी।।


हिंदी के हों दोहरे ,छद, बंध, श्रृंगार,

चौपाई और गीत में ,रस की पड़े फुहार।

रस की पड़े फुहार ,भाव के घन उमड़े हों,

हिंदी अपनाओ !बंद सारे झगड़े हों ।।

,विद्रोही ,मां के माथे ज्यों सजती बिन्दी,

भारत माता के  माथे, यूं सजती हिंदी।।


डॉ प्रेमवती उपाध्याय  ने कहा-

जन्म से प्राणों में रमती 

हिंदी उसका नाम है

 सृष्टा का उद्घोष करती 

हिंदी उसका नाम है

देश का अभिमान है

यह और गौरव गान है

यमक रूपक में बिहंसती

हिंदी उसका नाम है!


केपी सरल जी ने कोरोना पर कहा-

अश्वमेध का अश्व विश्व में,  निर्भय होकर घूम रहा है

सीमाओं का बंधन तोड़े ,

चरागाह को ढूंढ रहा है

 

युवा रचनाकार राजीव प्रखर ने दोहे प्रस्तुत करते हुए कहा ---

माँ हिन्दी के नेह की, एक बड़ी पहचान।

इसके आँचल में मिला, हर भाषा को मान।।

मानो मुझको मिल गये, सारे तीरथ-धाम।

जब हिन्दी में लिख दिया, मैंने अपना नाम।।


प्रशांत मिश्र ने कहा-

सूरज ने बदली से कहा

इतना क्यों बरसती हो।।


जे .पी. विश्नोई ने कहा-

यह साल कुछ ऐसा भी

न अचारों की सुगंध 

न बर्फ की चुस्की 

न गन्ने का रस 

न मटके की कुल्फी

  

काव्य गोष्ठी में  संजय विश्नोई ,शुभम कश्यप,  प्रवीण राही, अनिता विश्नोई, नेपाल सिंह पाल, मनोज मनु, विवेक निर्मल, रघुराज सिंह निश्चल, रामसिंह निशंक, जेपी विश्नोई, रामेश्वर वशिष्ठ, योगेन्द्र पाल सिंह विश्नोई आदि ने  भी रचना पाठ किया।श्री राम सिंह निशंक द्वारा आभार अभिव्यक्त किया गया।











मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा ------नासमझी


       आज रश्मि को अपनी ससुराल छोड़े एक साल हो गया है, लेकिन जो गलती उसने जीवन में कई, वह हरपल उसे शूल जैसी चुभती है ।अपनी बहन, कभी जेठानी तो कभी माँ की दी गई गलत सीख अपने जीवन में न उतारती है तो आज उसने पूरे परिवार में रानी बन के बने रहने पर पर .... उसके व्यर्थ के अहंकार ने, उसके अकड़ ने उसके पति को भी हमेशा के लिए अलग कर दिया। कभी उसके मुख से जेठानी के लिए अपशब्द निकलते हैं तो कभी बहन और बहनोई को, जिसने उसकी ढेरों खुशियों को पल भर में आग लगा दी ।अब सिर्फ पछतावा है सिर्फ पछतावा .....। क्योंकि उसके पति ने व्यर्थ की शर्तों को कहा। मानने से स्वच्छ इंकार कर दिया ।अकड़ और घमंड के कारण वह गलती से भी माफी नहीं मांग सकी।यदि वह अपनी सास ससुर के पैर पड़ने अपनी स्थितियों के सुधरने की याचना करती है तो उसके घरौंदा दूसरों की नजर न लगती है ...। ..अब तो बहुत देर हो चुकी है .....वह सोचता है- सोंचते उसे वे सभी खुशी के पल एक एक करके याद आने लगे जो उसने कभी अपने बड़े परिवार के साथ रेफरी थे। उसकी नासमझी ने, अहम की भावना ने उसे विल्कुल अकेले कर दिया।भाई अपनी पत्नियों के साथ बच्चों के साथ, माता पिता भी एक दूसरे के साथ, जिन्होने उसके घर तोड़ा वे भी सुखी। 
डॉ। प्रीति हुँकार मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की लघुकथा----- रिश्वत


      सरकार ने सामुदायिक विकास केन्द्र के लिए
कुछ लोगों की जमीन अधिग्रहीत की थी ।सोहन के दो खेत भी उसमे शामिल थे।सबको  उसका मुआवजा मिल चुका था, लेकिन सोहन की मुआवजा की रकम अभी  अटकी हुईं थी
  एक दिन सोहन सम्बन्धित कर्मचारी से मिला और जल्दी भुगतान की उम्मीद में ,जेब से एक पांच सौ का नोट निकालकर उसके हाथ पर रख दिया। नोट देखते ही,कर्मचारी बिखर गया "तुम मुझे रिश्वत दे रहे हो, मैं तुम्हे रिश्वत देने के आरोप में बंद करवा सकता हूं"। सोहन ने एक और पांच सौ का नोट निकालकरउसके हाथ पर रखा**ठीक है,ठीक है, पांच छे दिन में आपको चेक मिल जायेगा***
कर्मचारी ने सोहन को आश्वस्त किया और
अपने काम मेेें जुट गया।

  ✍️डाॅ पुनीत कुमार
T - 2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद - 244001
M - 9837189600

मुरादाबाद मंडल के साहित्यकार नृपेंद्र शर्मा सागर की कहानी ---डर


आधी रात बीत चुकी थी, देवेंद्र अपनी रेंजर से बहुत तेजी से पैडल मरते हुए घर लौट रहा था उसे आज अपनी प्रेमिका की बातों में समय का ध्यान ही नहीं रहा।
उसने पहले अपनी प्रेमिका को उसके घर छोड़ा और फिर अपने घर की ओर चल दिया।
आज की रात और दिनों की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही अँधेरी थी ऊपर से  हवा की तेरी सूखे पत्तों को सहलाकर हँसा रही थी जिनकी हँसी की
खर्र..! खर्र.. चकककक चरर्त्तत...!!
की कर्कश ध्वनि वातावरण में अलग ही भय उतपन्न कर रही थी।
माहौल इतना डरावना था कि गर्मी में भी देवेंद्र के जिस्म का हर रोंया खड़ा था जैसे किसी डर को देखकर शेर की गर्दन के बाल खड़े ही जाते हैं साही के कांटे खड़े हो जाते हैं।
अभी देवेंद्र काली नदी के पुल के बीच में ही पहुँचा था कि उसे सामने किसी के होने का अहसास हुआ उसे डर तो पहले से ही लग रहा था लेकिन अब तो उसकी साँसे राजधानी  की रफ्तार से चलने लगीं।
देवेंद्र ने अपनी रेंजर की गति को बढ़ाने में अपने फेफड़ों की पूरी ताकत लगा दी तभी वह साया उसे ठीक सामने खड़ा नज़र आया, उसके हाथ ब्रेक लीवर पर केस गए, रेंजर चिर्रर.... र्रर!! की आवाज करती हुई उस साये से एक फुट की दूरी पर रुक गयी।
देवेंद्र समने खड़े अजनबी को देखने लगा उसकी बड़ी बड़ी आंखे थी सर पर टोपी पहने हुए था।
लेकिन उसके चेहरे का कोई भी हिस्सा नज़र नहीं आ रहा था वहां बिल्कुल स्याह अँधेरा था।
देवेंद्र उसे देखकर बहुत डर गया उसके मुंह से अचानक तेज चीख निकली,
भ...उ...त...!
तभी उस साये ने कहा, कहाँ घूम रहे हो इतनी रात को? तुम्हे पता नही देश मे कोरोना के चलते इमरजेंसी के हालात हैं , पूरे देश में कर्फ्यू लगा हुआ है और तुम सायकल पर आधी रात को हवा खोरी कर रहे हो इस बार तो चेतावनी देकर छोड़ रहा हूँ।अगली बार दिखे तो 144 में अंदर कर दूंगा।
तब देवेंद्र ने ठीक से देखा वह साया एक काला मास्क पहने हुए पुलिस वाला था।
देवेंद्र भाई चुपचाप लौट आये क्योंकि वह जानते हैं कि भूतों को तो फिर भी समझाया जा सकता है किंतु पुलिस......

✍️ नृपेंद्र शर्मा "सागर"

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल (वर्तमान में नोयडा )निवासी साहित्यकार अटल मुरादाबादी की लघुकथा ----महक


राजू बहुत खुश था आज।खुश हो भी क्यों न,आज उसे अपने बड़े भाई की ससुराल जो जाना था। उसने बाल बगैरह कटवाए, बालों को अच्छी तरह शैंपू किया,और बन संवर कर निकल लिया घर से।रास्ते में,बहुत सारी मीठी यादें, चलचित्र की भांति उसकी आंखों के सामने से गुजरने लगीं।
बात उन दिनों की है जब वह अपने पिता के साथ अपने बड़े भाई की शादी के बाद पहली तीजों पर भाभी के लिए  श्रृंगार का सिंधारा लेकर बड़े भाई की ससुराल गया था। वहां उसकी मुलाकात उसकी भाभी की छोटी बहन महक से हुई थी।पहली ही मुलाकात में वह उसे दिल दे बैठा था। देता भी क्यों न,वह खुद भी सुंदर और गठीले बदन का था,कोई भी नवयौवना उसे देखकर आकर्षित हो जाती।
 महक तो अपने नाम के अनुरूप ही थी।गदराया बदन,यौवन तो उसके अंग अंग से फूट रहा था। बदन किसी गुलाब के फूल की भांति महक रहा था।कोई भी नवयुवक उसके सम्पर्क में आने पर आकर्षित हुए बगैर नहीं रह सकता था।
 पहली ही नजर में दोनों इतना नजदीक आ गये मानों वर्षों से एक दूसरे को जानते हों।राजू दो दिन वहां रुका और उन दो दिनों में ही दोनों की नजदीकियां  कब प्यार में बदल गयीं पता ही न चला।
अगले दिन जब राजू अपने पिता के साथ घर वापिस जाने लगा तो महक की आंखों में प्यार, किसी गगरी में ऊपर तक भरे पानी की तरह छलक रहा था। लेकिन राजू महक को उसी स्थिति में छोड़ कर अपने घर वापिस चला गया।
 राजू घर पहुंचा ही  था कि महक का फोन आ गया था। फिर क्या था दोनों  ने खूब बातें की और धीरे धीरे उनका प्यार प्रगाढ होता चला गया। दोनों एक दूसरे के साथ जीने मरने की बातें करने लगे। इस बीच उन्होंने प्यार का इजहार करने के लिए ,एक दूसरे को , न जाने  कितने ही भावना भरे पत्र भी लिख डाले।यह सब चल ही रहा था कि महक का प्रशासनिक सेवा में चुने जाने का परिणाम आ गया। अब क्या था वह आसमान में उड़ने लगी और इसके सामने उसे राजू का प्यार बौना नजर आने लगा।
 भविष्य की चमक में,  उसने अपने प्यार को छोड़ने का निश्चय कर लिया और "कुछ सूचना" देनी है कहकर , उसने राजू को फ़ोन करके बुला लिया।यह सूचना पाकर राजू का मुंह खुला का खुला रह गया और एक शव्द ही निकल पाया--महक
तुमने क्या किया!!

 ✍️अटल मुरादाबादी
नोएडा,मो ०-९६५०२९११०८

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा -------..'छलिया'



रात्रि का तीसरा पहर शुरू हो चुका था. उपवन में रातरानी और हर श्रंगार के पुष्प अपनी खुश्बू बिखेरकर हवा को और और ज्यादा मदहोश कर रहे थे. चंद्रमा की शीतल चांदनी जमीन की सूरज द्वारा बिखेरी तपन को शीतलता में बदलकर उसकी प्यास को कुछ हद तक कम करने का प्रयास कर रही थी.
नीले स्वच्छ आसमान में दूर तक टिमटिमाते तारे दुपट्टे में झिलमिलाते सितारों से प्रतीत हो रहे थे.
कई तारों का समूह कई कहानियां सुना रहे थे. उत्तर दिशा में चट्टानी सा खड़ा ध्रुव तारा उसको सबसे अधिक प्रिय था.
क्योंकि वह अपने वक्तव्य पर डटा रहने वाला और बहुत ही पाक साफ था.
उसकी कहानी कई बार उसने अपनी दादी के मूँह और किताब में भी पढ़ी थी जो उसको बहुत अच्छी लगती थी.
पास ही बहता झरना और नदी के किनारे बैठी वह मोहिनी अपने अक्स को पानी में निहार रही थी. वह मंद मंद खिलती कली सी मुस्करा रही थी.
शीतल हवा और पेड़ों की हिलती डालियाँ पानी में साफ दिखाई दे रहीं थीं.
उसने नजाकत से अपना पल्लू कंधे से उतार कर जमीन पर रखा और फिर दोनों हथेलियों को अपने घुटने पर रखा और उस पर अपना चेहरा रखकर पानी में पैर डालकर हिलाने लगी शांत वातावरण में पानी की आवाज संगीतमय लग रही थी उस पर पायल के घुँघरूओं की छम छम संगीत को सम्पूर्ण बना रही थी.
तभी उसको पानी में एक और अक्स दिखाई दिया शायद किसी पुरुष का था. उसके प्रियतम उसके पास खड़े मुस्करा रहे थे.
उसने पैर का हिलाना रोक दिया अब वह अक्स साफ दिखाई देने लगा.
मोहिनी ने खनकती आवाज में कहा....
"कौन हो तुम?"
"प्रेम l"उसने धीरे से मुस्कराते हुए कहा.
मोहिनी के मुख पर हया की लालिमा छा गई.
"तो फिर इतने दूर क्यों हो?" मोहिनी ने अदा से आँखें मटकाते हुए पूछा l
"मैं तो तुम्हारे पास ही हूँ l" प्रेम ने फिर मुस्कराते हुए कहा l
"लेकिन......?"
"लेकिन क्या?"
मोहिनी ने उत्सुकता से पूछा l
"तुम में जब तक अहम रहेगा तुम्हारा और मेरा प्रेम असंभव है l"
"फिर तुम में और मेरे अहम में कोई अंतर तो नहीं रह जाता.... जहां बदले की भावना हो वह कैसा प्रेम?" मोहिनी ने प्रश्न किया.
"तुम समझ नहीं रहीं?" प्रेम ने फिर दोहराया.
"अगर तुम मुझे मैं जैसी हूँ स्वीकार नहीं कर सकते तो फिर मैं क्यों....?"
"यही तो अहं है तुम्हारा l"प्रेम ने बात को बीच में ही काटते हुए कहा.
"यह स्वाभिमान भी तो हो सकता है?" मोहिनी ने थोड़े सख्त लहजे मे कहा l
"सिर्फ स्त्री से ही समर्पण की उपेक्षा क्यों?" कहते हुए मोहिनी ने अपने पैर को जोर से पानी में हिलाया अब वह अक्स कहीं नहीं था.
"छलिया l"
कहते हुए मोहिनी उठकर अपने महल की ओर चल दी.

✍️राशि सिंह
मुरादाबाद उत्तर प्रदेश

मुरादाबाद के साहित्यकार विवेक आहूजा की कहानी ---- सेटिंग


आज इलेक्शन का रिजल्ट आने वाला था ,दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं को पूर्ण यकीन था कि जीत हमारी ही होगी । पूरे वातावरण में नारेबाजी हो रही थी ,आखिर वह पल भी आ गया जब रिजल्ट की घोषणा हुई ,रमेश कुमार को निरंजन सिंह ने बहुत कम अंतर से हरा दिया था । निरंजन सिंह के कार्यकर्ताओं में जीत का उत्साह देखते ही बन रहा था ,वही रमेश कुमार के कार्यकर्ता हार से मायूस होकर घर की ओर प्रस्थान कर रहे थे । रमेश कुमार ने अपने कार्यकर्ताओं को ढांढस बधाते हुए कहा मायूस ना हो हम फिर जीतेंगे । सरकार भी बदल चुकी थी अब तो निरंजन सिंह को सरकार के विधायक का दर्जा प्राप्त  था ।
रमेश कुमार ने अपने कार्यकर्ताओं की एक मीटिंग अपने घर पर बुलाई और बोले "अब हमारी सरकार नहीं रही लिहाजा सोच समझ कर चले और कोई भी गड़बड़ की तो मुझसे कोई उम्मीद ना रखें"  निरंजन सिंह का स्वागत पूरे शहर में हो रहा था । आज गांधी मैदान में बहुत बड़ा जलसा होना था , जिसमें व्यापारी वर्ग विधायक निरंजन सिंह का स्वागत करने वाले थे ,समारोह शुरू हुआ विधायक जी को भाषण देने के लिए बुलाया गया , निरंजन सिंह बोले "यह जो रमेश कुमार है जो पहले आपका विधायक रहा था यह चोर है , लुटेरा है और अवैध तरीके से पैसा कमाता था मैं उसे जेल भिजवा कर रहूंगा"  "हमारी सरकार चल रही है" समारोह में बहुत से रमेश कुमार के समर्थक भी बैठे थे ,यह सुन वह सब  घबरा गए , यह तो हमारे नेता को भी नहीं छोड़ेगा जेल डलवाने की बात कर रहा है, हमारी तो औकात ही क्या है ।
 कुछ दिन पश्चात रमेश कुमार के घर एक प्रोग्राम का आयोजन हुआ रमेश कुमार के कार्यकर्ताओं को भी नहीं पता था की आयोजन का मुख्य उद्देश्य क्या है । कुछ ही देर में नीली बत्ती गाड़ी के साथ निरंजन सिंह विधायक जी ने रमेश कुमार के घर प्रवेश किया , कार्यक्रम शुरू हुआ , रमेश कुमार के कार्यकर्ता यह देख भौचक्का  रह गए की रमेश कुमार जी निरंजन सिंह विधायक के गले में माला डाल उनका स्वागत कर रहे थे । एक कार्यकर्ता ने रमेश कुमार के खासम खास ऐलची से पूछा "माजरा क्या है" ऐलची ने जवाब दिया ,अब आपको घबराने की कोई जरूरत नहीं है, हमारी विधायक जी से "सेटिंग" हो गई है। कार्यकर्ता ने ठंडी सांस ली और कार्यक्रम का आनंद लेने लगा ।

✍️ विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
9410416986
Vivekahuja288@gmail.com

मुरादाबाद मंडल के सिरसी (जनपद सम्भल ) निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफा की कहानी ---- कर्बला का नन्हा शहीद


रोजाना की तरह बुधवार की शाम सायमा अपनी नानी से कहानी सुनने की जिद करने लगी. नानी कहने लगी कि -'बेटी आज मेरा दिल कहानी सुनाने का नही है यह गम के दिन है. मोहर्रम का महीना गम का होता है. खासकर मोहर्रम के दस दिन बहुत गम के होते है. इन दिनों में हम लोग मजलिस मातम कर कर्बला के शहीदों का गम मनाते है' नानी की बात सुनकर सायमा और जिज्ञासु हो गई कहने लगी - 'नानी  कर्बला में क्या हुआ था? मुझे भी बताओ न'| नानी ने दुपट्टा सर तक ओढ़ा और कहना शुरू किया- 'सायमा  हम जिस  नबी( स) की उम्मत में है. अब से चौदह सौ साल पहले उन्ही की उम्मत के  लोगो  ने नबी (स) के प्यारे नवासे हजरत इमाम हुसैन  और उनके 72 साथियों को  उस समय के क्रूर तानाशाह , और अत्याचारी बादशाह यजीद  के हुक्म पर बड़ी बेदर्दी से शहीद कर दिया था. उन शहीदों में इमाम हुसैन का छह माह का बेटा नन्हा सा मासूम अली असगर भी था.'  सायमा ने बड़ी हैरत से कहा-' नानी, इतने छोटे बच्चे को क्यों शहीद  किया गया? इतने छोटे बच्चे से तो कोई ख़ता भी नही हो सकती.'  'हाँ सायमा,  नन्हे अली असगर तो मासूम थे.  और तीन दिन के प्यासे थे. दुश्मन फ़ौज ने इमाम और उनके घराने पर  तीन दिन से खाना- पानी बंद कर दिया था. इमाम की तरफ के लोग भूखे प्यासे थे.  दुश्मन उनका पानी बंद करके उन्हें झुकाना चाहता था. लेकिन इमाम के साथी जालिम यजीद के सामने झुकने को तैयार नही थे. वह सच्चाई और हक पर थे. इमाम  नन्हे अली असगर को लेकर मैदाने जंग में गये और कहा के -'तुम लोग मुझसे दुश्मनी रखते हो लेकिन इस मासूम बच्चे ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?  यह तीन दिन का प्यासा है. इसे थोड़ा सा पानी पिला दो अगर तुम यह समझते हो कि इसके बहाने से मैं पानी पी लूंगा. तो लो, तुम खुद इसे पानी पिला दो.' यह कहते हुए इमाम ने नन्हे अली असगर को जमीन पर लिटा दिया. नन्हे अली असगर ने सूखी हुई ज़बान होंठो पर फिराई तो दुश्मन की  फ़ौज में भी एक इंकलाब आ गया.' फौजी कहने लगे कि  'हाँ, इस बच्चे ने तो किसी का कुछ नही बिगाड़ा.'  फ़ौज की हालत देखकर कमांडर ने एक निर्दयी सैनिक को हुक्म दिया के हुरमला  इमाम के कलाम को खत्म करदे इमाम ने नन्हे अली असगर को गोद मे उठा लिया लेकिन तभी जालिम हुरमला ने तीन फल का ऐसा तीर मारा के नन्हा बच्चा इमाम के हाथों में शहीद हो गया और तीर  नन्हे अली असगर की गर्दन में होता हुआ इमाम के बाजू में जा लगा जिससे खून का फव्वारा फूट पड़ा नन्हे अली असगर की शहादत का बयान सुनकर सायमा की आंखों से आंसू बहने लगे वो रोते हुए बोली 'नानी  वह कैसे जालिम थे जिन्होंने एक मासूम पर भी तरस नही खाया  मैं कभी उन्हें माफ नही कर सकती खुदा ऐसे लोगो को सख्त से सख्त सजा देगा '#
   
 ✍️ कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'
      सिरसी , सम्भल
     9456031926

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर की लघुकथा ----गिरगिट


"उफ़! ये दुष्ट मधुमक्खियाँ। अच्छा हुआ इनका छत्ता यहाँ से हट गया...", छत्ते से निकला शहद चटखारे लेकर चाटते हुए सेठ धनपत बोले।

✍️ राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी ----नन्ही परी


टर्र्रर्न....टर्र्रर्न....टर्र्रर्न...........
ट्रर्र्नर्न...... फोन की घंटी बजे चली जा रही थी...... राजेश को काम समेटते हुए ये बहुत बुरा लग रहा था
हमेशा फालतू के फोन आते रहते हैं.... क्लोजिग में व्यवधान उसे कतई पसंद न था.... बार-बार फोन की घंटी बजे जा रही थी चलते-चलते अकाउंट में कुछ गलती हो जाए तो ?..?........ वह लगातार फोन को इग्नोर करता रहा.......!!
     ..... उधर वरुणा ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी "हे प्रभु किसी तरह ये फोन उठा  लें.".... बीसयों बार फोन कर चुकी थी..... परंतु होनी को तो कुछ और ही मंजूर था कहते हैं विपत्ति मैं सब उल्टा पुल्टा हो जाता है........
          ...... राजेश को क्या पता था  उसकी दुनिया ही उजड़ी जा रही है.....!! ... उसकी इकलौती फूल सी बच्ची.!!... परी सी बेटी रानू .!... जिंदगी और मौत के बीच में झूल रही थी... उसे अस्पताल ले जाने के लिए कोई भी नहीं था.....!!
     ...... अंततः राजेश बिना फोन सुने ही अपने ऑफिस से निकल गया उस समय मोबाइल फोन नहीं थे... रास्ते में भयंकर जाम लगा था.............
परंतु राजेश का दिल एक अनहोनी आशंका से..... यूं ही धड़का जा रहा था....... जैसे कुछ बहुत बुरा होने वाला हो....!
         ...... घर पहुंच कर देखा दरवाजे पर ताला लटका था ।पड़ोसियों ने देखा तो फौरन राजेश से कहा .... "फोरन सिविल अस्पताल चले जाओ; रानू ने कुछ खा लिया है.;.... हालत बहुत गंभीर है..."
राजेश को जैसे ...अप्रत्याशित एक जोरदार घूंसा सीने में लगा हो ...मोटरसाइकिल अस्पताल की ओर मोड़ दी ... भैया ,भाभी , दूसरे मकान से सारे केसारे घर वाले अब तक पहुंच चुके थे अस्पताल में बहुत भीड़ थी जान पहचान के तमाम लोग पूरा अस्पताल भरा था...!!
     .... राजेश को देखते ही.. रानू जोर-जोर से चीखने लगी ""पापा मुझे बचा लो ! ..सॉरी पापा!!....""
"पापा बहुत दर्द हो रहा है ! पेट में बहुत जलन हो रही है ..!... मेरे अच्छे पापा  !  अपनी रानू को बचा लो !!"
पापा!! ..... पापा ...!!!
        ..... प्राइवेट अस्पतालों ने किसी ने भी एडमिट नहीं किया..... रानू का हाई स्कूल का मैथ का पेपर था... बड़े उत्साह से चहकते हुए मम्मी से कहा ,"मम्मी ! मेरा पूरा पेपर अच्छा हुआ है पूरे पूरे नंबर आएगें..."!
वरुणा ने साल्व करते हुए चेक किया ...... तीन प्रश्न गलत पाये.... लगी चिल्लाने "तुझे शर्म नहीं आती.!"..."कर दिए गलत!". "हो जाएगी फेल.!... क्या मुंह दिखाएंगे हम किसी को ?? " जेठ की लड़की सोना देख कितनी होशियार है हमेशा टॉप करती है !!.".."और एक तू है हमेशा खेल में लगी रहती है एग्जाम की ठीक से तैयारी की होती तो ऐसा क्यों होता..!". और आव देखा न ताव..चटाक!!... गाल पर एक जो़र का लगा दिया...
     ...... बाल मन सहन न कर सका गेहूं में रखने वाली सल्फास की 3 गोलियां पानी से गटक गई....
परंतु  सोचती थी मेरे पापा दुनिया के सबसे अच्छे पापा हैं मेरे लिए कुछ भी कर सकते हैं मुझे जरूर बचा लेंगे...... उसे क्या पता था ??... क्या होने वाला है..... ?? राजेश के जिगर का टुकड़ा जो थी वह.....!बड़े नाज़ों से पाली जा रही थी.... बेचारी अबोध बालिका!!!
       ..... रानू के जन्म के समय कॉम्प्लिकेशन होने के कारण वरुणा का गर्भाशय भी निकाल दिया गया था.... राजेश ने जमीन आसमान एक कर दिया डॉक्टरों की टीम लाकर खड़ी कर दी नगर के विधायक जी आ गए!.... राजेश हमेशा सबकी मदद के लिए तत्पर रहता था समाज में उसे सब बहुत प्यार करते थे आज उस पर संकटों का पहाड़ टूट पड़ा था.... एक छोटी सी घटना ने इतना बड़ा रूप ले लिया था ...!!! सब हत प्रभ थे ...सब बेबस..
         सारे प्रयास बेकार गए जहर अपना असर दिखा रहा था.. धीरे धीरे रानू की देह से उसके प्राण निकल रहे थे ... शरीर ठंडा पड़ता जा रहा था माहौल बेहद गमगीन और बोझिल हो चला था.... थोड़ी ही देर में अस्पताल में मातम पसर गया और मच गया कोहराम.....!
        .... मैथ में गलत हुए तीन प्रश्न... दांव पर लगी एक अबोध फूल सी बच्ची की जान......!

               
 ✍️ अशोक विद्रोही
 412 प्रकाश नगर मुरादाबाद
82 188 25 541



मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा ---- सीख

आज भरत पुत्र के साथ हुई बहस के बाद थका हुआ बैठा था।जिस पुत्र वैभव के पालन केलिए उसने क्या नहीं किया।उसकी इच्छाओं को पूरा करनै केलिए गलत ढ़ंग सै पैसा कमाया।उसकी हर ख्वाहिश पूरी की आज वही वैभव "तुमने मेरे लिए किया ही क्या है,"?कहकर उसे छोड गया।
आज उसे अपने पिता की बहुत याद आ रही थी ।एक साधारण मास्टर होते हुए भी  उपके पिता ने उपकी शिक्षा का पूरा ध्यान रखा।मगर साथ के अमीर बच्चों की चीजें देखकर उसकी फरमाइश पर समझाया "बेटा, हमे अपनी आमदनी के अनुसार ही खर्च करना है।तुम पढो जब इतना कमाओ तब खरीदना।इन दिखावटी वस्तुओं पर अनावश्यक व्यय कर हम अपना कल नहीं बिगाडेगे।साथ अपने मन को वश मे रखना सीखो।दुनिया मे अपनी इच्छानुसार सब.कुछ नही मिलता"।उस दिन वह बहुत रोया कि वह इस घर मे क्यों पैदा हुआ।शादी के बाद जब वैभव उसके जीवन मे आया उसने प्रण किया कि वह अपने बेटे की हर इच्छा पूरी करेगा । मगर संयम और धन की उपयोगिता न सिखा पाया।इसीकारण आज और अधिक सुख सुविधाओं को पाने के चक्कर मे वह अपने से अधिक धनवान पत्नी के साथ उसके घर रहने चला गया ।
आज  अपने पिता के प्रति नाराजगी उसकी आँखों से आँसू बनकर बह रही थी।


 ✍️  डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार राम किशोर वर्मा की लघुकथा-------शुद्ध दूध



     "दूध में आजकल बहुत अजीब सा स्वाद आ रहा है ।" - दूधवाले से दूध लेते हुए बशीर ने कहा - "कैमिकल का बना हुआ ला रहे हो क्या ?"
    "नहीं साहब " - कहते हुए दूधवाला बोला - "गर्मी बहुत है। भैंस दूध कम दे रही है।"
     बशीर के पड़ौसी समीर यह वार्ता सुन रहे थे । वह बोले - "इसीलिए बशीर भाई मैं तो डेयरी से सामने का दूहा हुआ भैंस का ताजा शुद्ध दूध लाता हूं । पर वह भी भैंस के इंजेक्शन लगाकर दूध दुहता है ।"
   बशीर ने समीर से कहा - " फिर वह भी शुद्ध कहांँ रहा? इंजेक्शन का धीमा ज़हर तो मिल ही गया ।दूधियों की भी मजबूरी है । वह कहाँ से मांँग पूरी करें ? आदमियों की जनसंख्या बढ़ रही है और आदमी ही भैंसों की संख्या कम करने पर तुला है।"
     
राम किशोर वर्मा
रामपुर

बुधवार, 16 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की कहानी ----इंसानियत


घंटों इंतजार के बाद एक प्राइवेट बस आकर रुकी।कंडक्टर ने बस की खिड़की खोलकर आवाज़ लगाई अजमेर शरीफ,अजमेर शरीफ,जुम्मन और उसकी पत्नी आसमा की जान में जान आई और दौड़ पड़े बस में सवार होने के लिए।परंतु पास जाकर देखा कि बस तो खचाखच भारी हुई है।तिल रखने की भी जगह नहीं।उसमें घुसकर जगह पाना तो किसी युद्ध को जीतने से कम नहीं होगा।
      उन्होंने कंडक्टर से कहा भैया इसमें तो सांस लेना भी दुश्वार है।हम तो शारीरिक दुर्बलता के शिकार हैं।मेरी पत्नी के दोनो घुटनों में दर्द रहता है।इसी लिए तो हम अल्लाह की बारगाह में सर झुकाने जाना चाह रहे हैं।यूँ खड़े-खड़े सफर कर पाना हमारे लिए मुनासिब नहीं होगा।मैं खुद भी हार्ट पेशेंट हूँ।भैया कहीं बिठा सको तो बताओ।
       लालची बस कंडक्टर ने कहा बाबू जी थोड़ी दूर की बात है आगे बस रुकेगी वहां कुछ सवारियां उतरेंगी तभी आप बैठ जाना।किसी तरह मरते-गिरते बस में चढ़ तो गए ।कंडक्टर ने उन्हें एक तरफ करके जल्दी से उनके टिकिट भी काट दिए।अब उनके सामने खड़े-खड़े यात्रा करने के अलावा दूसरा कोई विकल्प भी नहीं रह गया।
        आगे कई जगह बस रुकी परंतु सवारी के उतरने से पहले ही दूसरी खड़ी सवारी जल्दी से जगह घेरने की तत्परता दिखाती और जगह पा लेती।बेचारे जुम्मन और आसमा कभी कंडक्टर को कभी खुद को देखकर चुप रह जाते।शायद आगे कोई उतरे यही सोचकर धीरज रख लेते।
      दर्द से बेहाल दंपत्ति बस यात्रियों पर बेबस नज़र दौड़ाते कि कोई दाता का सखी थोड़ी सी जगह उन्हें भी देदे।परंतु बैठे हुए सारे यात्री उनसे ऐसे नज़रें चुरा कर अपनी सीटो को जकड़े हुए थे कि कहीं वह उन्हीं से सीट न मांग बैठें।कभी ज़ोर का झटका लगता तो गिरने से बाल-बाल बच जाते और अल्लाह-अल्लाह करके ऊपर लगे रॉड को और कसकर पकड़कर खुद को सुरक्षित कर लेते
       उनकी परेशानी को देखकर एक बुजुर्ग यात्री अपनी सीट से उठे और जुम्मन की पत्नी आसमा से बोले बहन आप मेरी सीट पर बैठ जाओ मैं भाई साहब के साथ खड़े होकर थोड़ी कमर सीधी कर लूंगा।आसमा ने कहा भाई साहब आप क्यों तकलीफ उठा रहे हैं।कृपया आप बैठे रहिए आपकी मेहरबानी का शुक्रिया।फिर भी बुजुर्ग सज्जन नहीं माने और आसमा को ससम्मान सीट पर बैठा दिया।
        यह देखकर दो नौजवान यात्री उठे और दोनों खड़े हुए बुजुर्गों को अपने स्थान पर आराम से बैठ जाने का आग्रह करने लगे।बोले दादा हम तो शारीरिक तौर पर काफी तंदरुस्त हैं,हम खड़े होकर भी यात्रा कर सकते हैं।और यह कहते हुए उन्हें हाथ पकड़कर सीट पर बैठाया।
          दोनों बुजुर्गों ने सीट पर बैठकर राहत की सांस ली और उन दोनों नौजवानों पर दिल से दुआओं का खजाना लुटाने लगे।जुम्मन ने पूछा बेटे आप दोनों के नाम क्या हैं।दोनों ने विनम्रता पूर्वक अपने नाम बद्री एवं दीनानाथ बताया।
      थोड़ी देर बाद अजमेर बस अड्डा आ गया।नौजवानों ने उन्हें सहारा देकर बस से उतारा और उनका सामान लेकर चाय की दुकान पर ले जाकर चाय-पानी पिलवाया और दरगाह शरीफ तक  जाने के लिए सवारी भी कराई।फिर सादर प्रणाम करके चले गए।
        जुम्मन और आसमा ने उन्हें दिल से दुआएं दीं और उनकी इंसानियत की दुहाई देते हुए दरगाह शरीफ पहुंचकर अल्लाह मियाँ से अपने लिए कुछ भी माँगने से पहले उन दोंनों बच्चों बद्री और दीनानाथ एवं दयालु बुजुर्ग यात्री की सलामती की दुआ की।
         अर्थात निःस्वार्थ सेवा भाव रखने वाला व्यक्ति ही ईश्वर की कृपा का असली भागीदार होता है।
                         
✍️वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
मो0-  9719275453
           

मुरादाबाद की साहित्यकार स्वदेश सिंह की लघुकथा -----चूरन वाले काका


मॉल से निकलने के बाद शालिनी जैसे ही गाड़ी में बैठकर चलने को तैयार हुई। .....तभी एक भिखारी उसकी गाड़ी के दरवाजे पर आकर खटखटाने लगा। उसने दरवाजा खोल कर देखा तो देखते ही खुशी से चीखते हुए बोली...... अरे!.. चूरन वाले काका...... और तुरंत ही मायूस होते हुए बोली..... आप... आप भीख माँग रहे हो ।काका क्या हुआ?... आप इस तरह से भीख क्यों माँग रहे हो?....  चूरन वाले काका यह सुनकर ..... कुछ ना बोल कर कुछ देर शांत रहे ।फिर बोले बेटी तुम मुझे जानती हो ।हाँ...काका... आप मेरे स्कूल के बाहर चूरन बेचते थे ।और आप का बनाया हुआ चूर्ण मुझे आज तक याद है ..... मैने  आपके जैसा बनाया हुआ चूर्ण  आज तक नहीं खाया ,पर काका पहले यह बताइए?... आप इस तरह से भीख  क्यों माँग रहे हो .....और आपका चूरन वाला ठेला कहाँ गया?.... शालिनी ने तो जैसे प्रश्नों की झड़ी  ही लगा दी। .... चूरन  वाले काका ने बड़े दुखी होते हुए  बोले ..... बेटा ..तुम शालिनी हो.... जो मेरे चूर्ण के पीछे दीवानी थी और हर वक्त चूर्ण खाने के लिए उतावली रहती थी.... हाँ.. हाँ.. काका मैं शालिनी हूँ ।और आपसे उधार माँगकर चूरन खाती थी।....  बेटा क्या बताऊँ ?...  कहते हुए  काका की आंखों से आँसू  टप-टप गिरने लगें। और दुखी होते हुए बोले कि बेटा...  मैंने अपने  दोनो लड़कों की शादी कर दी और शादी के बाद उनकी बहूओं ने मुझे घर से निकाल दिया। और मेरा ठेला भी बेच दिया ।अब मैं अपना पेट भीख माँग कर भरता हूँ... और यही किसी दुकान के आगे रात को सो जाता हूँ ।यह सुनकर शालिनी वह बहुत दुखी हुई। गाड़ी से उतरी और बोली काका आप यही रूको... आप कहीं जाना मत जाना, मैं अभी आती हूँ ..और अपने पति के साथ दोबारा मॉल में गई। चूरन वाले काका के लिए  नए कपड़े खरीदे। और उन्हें गाड़ी में बैठा कर अपने घर ले गई .....घर ले जाकर उसने वह कपड़े चूरन वाले काका को दे दिये और बोली काका...... और आज से आप मेरे साथ मेरे घर  में मेरे काका बनकर रहेगें। ....और शालिनी जल्दी से एक पेन और कॉपी लेकर काका के पास आई.....और बोली प्लीज ....काका जल्दी से चूरन के लिए किस-किस सामान की जरूरत पड़ती है, मुझे लिखवा दीजिए .... मुझे फिर वही चूर्ण बना कर दीजिए और सिर्फ मेरे लिए काका ..... शालिनी का इस तरह प्यार देखकर काका की आँखों से आँसू टप टप गिरने लगे । शालिनी आज बहुत खुश थी।.... क्योंकि चूरन वाले काका का जो कर्ज था उसे उतारने का उसे मौका मिला है।

 ✍️स्वदेश सिंह
सिविल लाइन्स
मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल की कहानी ---नई दिशा


अरे ये रामवती कौन है, चंदू जरा रामवती को अंदर भेजो, रामबाबू ने घंटी बजाते हुए कहा।
आज पेंशन भुगतान का दिन था। बैंक में पेंशनरों की भीड़ थी। रामबाबू बारी बारी से दस्तखत देखकर भुगतान पास करते जा रहे थे। तभी अगला भुगतान अँगूठे की निशानी वाला आया, और उन्होंने रामवती को बुलवाया।
थोड़ी ही देर में एक बीस इक्कीस साल की लड़की उनके सामने आकर खड़ी हो गई ।
क्या नाम है आपका।
जी रामवती। लड़की का जबाब सुनकर रामबाबू अचकचा गये। खाते को ध्यान से देखा तो पता चला कि वह विधवा है।
अँगूठा लगवाकर रामबाबू ने उसके पति के बारे में पूछ ही लिया ।
पता चला कि शादी के साल भर के अंदर ही उसका पति कारगिल की लड़ाई में मारा गया था, और वह वापस माता-पिता के साथ आकर रहने लगी थी।
लो काउंटर पर जाकर पैसे ले लो, विदड्राॅल पास करते हुए रामबाबू बोले। और सुनो अपने पिता जी ने कहना कि मैनेजर साहब बुला रहे हैं। कुछ बात करनी है।
जी अच्छा, कहकर वह चली गई ।
उसी दिन शाम को रामवती के पिता सुमेर सिंह उनसे मिलने आ गये।
रामबाबू ने कुछ देर इधर उधर की बातें कीं फिर बोले: आज आपकी बेटी को देखकर बहुत दुख हुआ । इतनी छोटी सी उम्र में पहाड़ सा दुख आ पड़ा है उसपर।
क्या करें साहब, ऊपरवाले की मर्जी के आगे किसी की नहीं चलती।
आप उसकी दूसरी शादी क्यों नहीं कर देते, रामबाबू बोले।
क्या करें साहब, हमारी बिरादरी में लड़कियों की दोबारा शादी नहीं होती, सुमेर ने कहा।
अरे सुमेर सिंह जी आप कैसी बात कर रहे हो। जरा सोचिए, आपकी बेटी के सामने पूरी जिंदगी पड़ी है। कैसे अपना जीवन काटेगी, अभी तो आप हैं, लेकिन आपके बाद वह कैसे रहेगी। उस समय यही बिरादरी उसे तरह तरह से परेशान करेगे । आप व्यावहारिक होकर विचार करें और फिर निर्णय लें, रामबाबू ने उन्हे समझाया। थोड़ी देर बाद सुमेर सिंह चले गये।
बात आयी गयी हो गयी।
रामबाबू भी पुनः अपने काम में लग गये और धीरे-धीरे दिन बीतते चले गये।
एक दिन काम करते हुए उनके कानों में आवाज आई : सर जी अंदर आ जायें।
रामबाबू ने सर उठाकर देखा तो चौंक गये। दरवाजे पर दुल्हन के रूप में सजी हुई रामवती खड़ी थी। साथ में सुमेर सिंह भी खड़े थे।
हाँ हाँ आओ अंदर आ जाओ।
अंदर आकर सुमेर सिंह ने मिठाई का डिब्बा देते हुए उनके पैर छू लिये और बोला, साहब उस दिन आपने मेरी आँखें खोल दीं। मैंने घर जाकर बहुत सोचा फिर निश्चय कर लिया। एक दो महीने की भागदौड़ के बाद ही लड़का मिल गया। लड़का फौज में ही है। उन्हे शादी की जल्दी थी, बाहर जाकर शादी करनी थी इसलिए आपको नहीं बुला सके।
आज ही वापस आये हैं। आप हमारी लड़की को आशीर्वाद दीजिए ।
अरे वाह, यह तुमने बहुत अच्छा किया, कहते हुए रामबाबू ने खुद भी मिठाई खायी और उन दोनों के साथ साथ सारे स्टाफ को मिठाई भिजवायी।
आज उन्हें अंदर ही अंदर बहुत खुशी और संतोष का अहसास हो रहा था, और होता भी क्यों नहीं। आज उनकी पहल से किसी के जीवन को नई दिशा जो मिल गयी थी।

✍️श्रीकृष्ण शुक्ल,
MMIG - 69,
रामगंगा विहार, मुरादाबाद
मोबाइल 9456641400

मुरादाबाद मंडल के सिरसी (जनपद सम्भल)निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की लघुकथा ----- पानी का घोटाला

         
       ऑफिस में चर्चा थी कि पांच वर्ष पूर्व महकमें में जिन बड़े साहब को पानी के घोटाले में निलंबित किया गया था उनकी हालत आजकल सीरियस चल रही है डॉक्टरों ने कहा है कि उनका डायरिया बिगड़ गया है शरीर मे पानी की कमी हो गई है ।

✍️  कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'
प्रधानाचार्य, अम्बेडकर हाई स्कूल बरखेड़ा (मुरादाबाद)
सिरसी (सम्भल)9456031926

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार प्रीति चौधरी की लघुकथा --- अंतिम ख़त

     
प्रिय रवि,
            आज नन्हें स्पर्श से एक अद्भुत अनुभूति हुई तब सहसा स्वयं में ममता का समावेश होते देखा।उन नन्ही उँगलियो की पकड़ तुम्हारे प्रेम बंधन से भी अधिक मज़बूत थी ।दीदी का केन्सर अंतिम स्थिति पर है .....
वह चाहती है कि उनके सामने ही.......
तुम्हारी प्रेयसी यहाँ जब आयी थी ,तुमसंग जीवन साथ बिताने के स्वप्न इन आँखो में थे परंतु मेरे अंदर की नारी कब माँ बन गयी है मुझे पता ही नही चला ।मैंने उसे अपनी ममता की छांव देने का निर्णय कर लिया है ।मुझे माफ़ कर देना।तुम्हारे लिए सदा सुंदर जीवन की कामना करती हूँ।
अंत में बस यही कहूँगी कि  यह किरण हमेशा अपने रवि की रहेगी।                     
                                    सिर्फ़ तुम्हारी
                                    किरण

✍️ प्रीति चौधरी
गजरौला,अमरोहा

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की लघुकथा - जायज प्रश्न


     बारह साल की रंजना बचपन से जिज्ञासु बच्ची रही है, उसके मां - पापा उसके सभी प्रश्नों  की झड़ी का जवाब प्यार से देते और  समझाते ,साथ ही उसकी  सराहना करते। यही वजह है कि वह अपने कक्षा कि सबसे होशियार बच्ची थी।सभी शिक्षक की लाडली...
रविवार का दिन था, रंजना नियमानुसार सुबह का अख़बार पढ़ रही थी,उसके मां और पापा  बगल में साथ बैठकर चाय पी रहे थे।
तभी रंजना ने  पूछा - '  पापा आप कहते हैं ,माता-  पिता से बड़ा कोई नहीं ...भगवान भी नहीं। पापा यहां अख़बार में लिखा है एक मां अपनी 8 साल की बच्ची को घर में बंद करके अपनी प्रेमी युवक के साथ भाग गई ।फिर हरेक मम्मी पापा अच्छे तो नहीं  ,है ना पापा ।'   कल मैंने पेपर में पढ़ा था की एक पिता ने अपनी बेटी को पैसे की कमी की वजह से किसी को बेच दिया ,पुलिस ने आखिरकार उसके पिता को पकड़ लिया  और जेल भेज दिया, आप कल ऑफिस गए थे इस वजह से  मैं आपसे पूछ नहीं पाई.....
थोड़े देर तक मैं रंजना के इस प्रश्न से डर गया और बुत सा बना रहा.... फिर बोला हां बेटी रंजना, सभी मां -बाप अच्छे नहीं होते, पर ज्यादातर अच्छे हैं बेटी। सामान्यता मां-बाप अच्छे ही होते हैं इसीलिए ये धारणा है मां बाप सबसे उच्च स्थान पर होते है,और मां-बाप अच्छे होने के लिए पहले अच्छा इंसान होना जरूरी है

✍️ प्रवीण राही
मुरादाबाद

मंगलवार, 15 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की ग़ज़ल


मुरादाबाद मंडल के बहजोई (जनपद सम्भल )निवासी साहित्यकार दीपक गोस्वामी चिराग की रचना


मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की रचना


मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार मुजाहिद चौधरी की ग़ज़ल


मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर निवासी साहित्यकार रचना शास्त्री का मुक्तक


मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल की हिन्दी दिवस पर रचनाएँ


मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ ममता सिंह की हिन्दी दिवस पर गजल ---हिन्दी भारत का गौरव और श्रृंगार है ....


ग़ज़ल -----

हिन्दी भारत का गौरव और श्रृंगार है।
पा रही जग में अब तो ये विस्तार है।।

रस अलंकार छन्दों से है ये सजी,
ये तो रसखान की मीठी रसधार है।।

पीर मीरा की इसमें समाई हुयी,
ये सुभद्रा औ' दिनकर की हुंकार है।।

जोड़ती है सभी के दिलों को तो ये,
हिन्दी भाषा नहीं प्राण आधार है।।

गर्व *ममता* हैं करते बहुत इस पे हम,
छू गई हिन्दी मन के सभी तार है।।

🎤✍️  डाॅ ममता सिंह
मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की ग़ज़ल ---दोनों की है जुदा डगर


मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार प्रीति चौधरी की रचना


मुरादाबाद की साहित्यकार इंदु रानी की रचना


मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ कृष्ण कुमार नाज की ग़ज़ल ---राख ने मेरी ही ढक रक्खा है मुझको आजकल वरना तो ख़ुद में सुलगता एक अंगारा हूँ मैं।


मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ रीता सिंह की हिन्दी दिवस पर रचना


मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल (वर्तमान में मेरठ) निवासी साहित्यकार सूर्यकांत द्विवेदी की हिन्दी दिवस पर रचना


मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रामकिशोर वर्मा का हिन्दी दिवस पर गीत ---अक्षर जिसके वैज्ञानिक हैं, शब्द उच्चारण भी शुद्ध ‌। जो लिखते हैं,वही पढ़ें हैं; पढ़े़ं वही, लिखा जो शुद्ध

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार मरगूब अमरोही की रचना --


मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की हिन्दी दिवस पर रचना


सोमवार, 14 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की व्यंग्य कविता ---वो कौन है



✍️🎤
डा पुनीत कुमार
टी -2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद 244001
एम 9837189600

मुरादाबाद के साहित्यकार अनुराग रोहिला की ग़ज़ल


मुरादाबाद की साहित्यकार पूनम गुप्ता की हिन्दी दिवस पर कविता


मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष लाला शालिग्राम वैश्य के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर केंद्रित डॉ मनोज रस्तोगी का आलेख । यह आलेख14 सितंबर2014 को दैनिक जागरण मुरादाबाद के सभी संस्करणों में प्रकाशित हुआ था ।

✍️ डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष पंडित बलदेव प्रसाद मिश्र के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर केंद्रित डॉ मनोज रस्तोगी का आलेख ।यह आलेख 13 सितंबर 2016 को दैनिक जागरण मुरादाबाद के सभी संस्करणों में प्रकाशित हुआ था ।


✍️डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष दयानन्द गुप्त के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर केंद्रित डॉ मनोज रस्तोगी का आलेख । यह आलेख दैनिक जागरण मुरादाबाद के सभी संस्करणों में 14 सितंबर 2016 को प्रकाशित हुआ था ।


✍️ डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव सक्सेना का मास्टर रामकुमार अग्रवाल की पुस्तिका "हिंदी सचित्र प्राइमर" पर केंद्रित आलेख । यह आलेख प्रकाशित हुआ है सोमवार 14 सितंबर 2020 को दैनिक जागरण समाचार पत्र के सभी संस्करणों के राष्ट्रीय पेज सप्तरंग साहित्यिक पुनर्नवा में ----