शुक्रवार, 18 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार अंकित गुप्ता अंक का हिन्दी को समर्पित गीत

 

मातृभाषा स्नेह-आँचल है,

जो हमें अपने तले महफ़ूज़ रखता है! 


बोल ये पहला हमारा है,

डूबते का ये सहारा है,

शेष सब हैं तुच्छ जुगनू-से

ये चमकता ध्रुव सितारा है;

मातृभाषा वो धरातल है-

बिन न जिसके सोच का हर वृक्ष टिकता है ।


मातृभाषा है न पिछड़ापन,

संस्कारों का यही दरपन,

ये हवा-सा शुद्ध कर देती-

देश का हर एक मन-आँगन;

मातृभाषा धार अविरल है-

देश का इतिहास जिसके साथ बहता है ।


दूसरों से जब जुड़ें संबंध,

क्या सगी माँ से मिटें संबंध?

कीजिए ये प्रण हमेशा ही-

मातृभाषा से रहें संबंध;

मातृभाषा सघन पीपल है-

छाँव में जिसकी हमारा कल ठहरता है ।

  

 ✍️ अंकित गुप्ता 'अंक'

मुरादाबाद 244001

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