रविवार, 6 दिसंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ जगदीश शरण के खण्डकाव्य "जय मुक्ति-दूत" से कुछ अंश -----। डॉ भीमराव आंबेडकर के दर्शन पर केंद्रित उनकी यह कृति वर्ष 2012 में नवभारत प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित हुई है ।


वह दुष्काल सन् छप्पन का था
      तीव्र  शमन  की     सन्धि- बेला,
विश्व समोद  रश्मियों  से जब
       शिशु-सा  खेलता था   अकेला ।

क्रूर  काल  की  तम आँधी में
       वह  दीपक - ज्योति क्षीण हुई,
नवयुग की नवसृष्टि   ललाम
         हा ! पंचभूत  में विलीन   हुई ।

रोये  खेत,  खलिहान,  किसान
         रोये पशु -पक्षी  सकल  विस्मित,
रोये  वृक्ष  नव  किसलय  त्याग
          रोये   भारत   के  नेत्र   थकित !

वह  तापस धुनी त्राणक प्रवर
      पार्श्व  असंख्य  पग भू  के  बल,
प्रेरित  स्वर्गिक   मुहुर्त  अक्षर
       धँसता  वर्ण  भू   तमस  दलदल !

मुक्त  शब्दों  की करो घोषणा
       मुक्त  गति, लय, कविता और छंद,
मुक्त   देश के  मुक्त सभी  जन
         विचरण   करें  नित  हो स्वच्छंद  !
      
धन्य, समता तापस धुनी वर
        जटाजूट  शुचि  गंग  बहाकर,
प्रक्षालित पंक दलित पंगु चरण
         अज्ञ शठ हठि मुनि मान ढहाकर !

विजय नरता की कहिए,अथवा
      खल  मानव  की  अंध   पराजय,
जड़ -चेतन-मुक्ति-समर कहिए,
       युग  आग्रह या धर्म  का निश्चय  !

शीतल  हुई  रे त्रसित धरती
    भीष्म  ग्रीष्म  आतप  से  तपकर,
युग नभ रवि तन भस्म रमाये
      तापस  मुक्ति  नव  भासित प्रवर !

 ✍️ डॉ जगदीश शरण,  217, प्रेमनगर, लाइनप, माता मंदिर गली, मुरादाबाद-- 244001, उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल :  983730 8657 

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