आओ कोई गीत लिखें ,
अपनी-अपनी प्रीत लिखें ।
करें कल्पना
हम स्वप्न बुनें ,
कली खिलायें
शूल चुनें ,
एक नई हम रीत लिखें ।
दर्द सहें
कुछ रंग रचें ,
खुशियां बाटें
सजे -धजे ,
आज कही मनमीत लिखें ।
सांझ ढल रही
दीप जले ,
शलभ उड़ रहे
पंख जले ,
हार कहीँ , तो जीत लिखें ।
शब्द जुटायें
गीत गढ़े ,
आराध्यों पर
पुष्प चढ़ें ,
ग्रीष्म नहीं, हम शीत लिखें ।
आओ कोई गीत लिखें ।।
✍️ अशोक विश्नोई, डी०12, अवन्तिका कॉलोनी, मुरादाबाद 244001
मो० 9411809222
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सबके लिए बनी यह धरती
सबको ही जीने का हक है
शुद्ध हवा, पानी, पेड़ों में
जीवन है इसमें क्या शक है।
हमने अपनी स्वार्थ सिद्धि में
इसकी महिमा को झुठलाया
शाक-भाजियां, फल मेवा में
बढ़ चढ़कर ही ज़हर मिलाया
इसीलिए हर रोज़ धरा पर
क्रूर व्याधियों की आवक है
सबके लिए बनी--------------
बच्चों का जीवन सिकुड़ा है
कौर-कौर बेस्वाद हो गया
सिर्फ दवाएं खाते - खाते
जीवन ही बर्बाद हो गया
कृत्रिम दूध, दही, मट्ठे की
बनी शुद्धता ही भ्रामक है।
सबके लिए बनी--------------
धरती का श्रृंगार खो गया
उजड़ा-उजड़ा चमन लग रहा
सूरज की गर्मी से जलकर
झुलसा-झुलसा बदनलग रहा
दुर्गन्धों के साम्राज्य से
लगती कोसों दूर महक है।
सबके लिए बनी--------------
कंक्रीट के जंगल उपजे
रोज़ वनों का हुआ सफाया
भौतिक जीवन की चाहत ने
सबको अपना दास बनाया
शुध्द हवा का झोंका मानो
लगता आज बना बंधक है।
सबके लिए बनी-------------
सारा आलस दूर भगाकर
आओ मिलकर पेड़ लगाएं
पोखर, ताल, बावड़ी सब में
जीवन का संचार कराएं
पर्यावरण सुरक्षित कर लें
वरना तो हर पल घातक है।
सबके लिए बनी ---------------
जीवों का अस्तित्व बचाने
ऐसा वातावरण बनाएँ
खुशी-खुशी हर जीव धरापर
उछलें कूदें मौज मनाएँ
नहीं सोचने से कुछ होगा
सिर्फ सोचना तो नाहक है।
सबके लिए बनी-------------
✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी, मुरादाबाद/उ,प्र,
मोबाइल फोन नम्बर 9719275453
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भोपाल गैस त्रासदी पर -----
सुन रहे यह गैस आदमखोर है । हर तरफ बस चीख दहशत शोर है ।।
बढ़ रहे हैं जिस सदी की ओर हम ।
यह उसी की चमचमाती भोर है ।।
मौत से क्यों इस तरह घबरा रहे ।
जिंदगी तो एक रेशम डोर है।।
इस तरह मातम मनाते क्यों भला।
देश तो अपना प्रगति की ओर है।।
मत कहो यह गैस जहरीली बहुत ।
आदमी ही आजकल कमजोर है।।
✍️ डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश,भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822
Sahityikmoradabad.blogspot.com
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तनिक नहीं संवेदना, का जिनमें उल्लेख
राजनीति लिखती रही, स्वार्थ पगे आलेख
लेकर फिर अभिव्यक्ति की, आज़ादी की ओट
राजनीति करने लगी, राष्ट्र हितों पर चोट
बस सत्ता के वास्ते, नैतिकता को छोड़
राजनीति करती रही, तोड़-फोड़-गठजोड़
जीवन का अस्तित्व भी, हो जब संकटग्रस्त
उचित कहाँ तक तब भला, राजनीति हो मस्त
क्या जनहित क्या राष्ट्रहित, ख़त्म हुए एहसास
नैतिकता को दे चुकी, राजनीति वनवास
इधर भूख से चल रहा, बाहर-भीतर द्वंद
राजनीति भी रच रही, उधर नये छल-छंद
✍️ योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’, मुरादाबाद 244001
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तंज तुम बेवजह कसा न करो
दरमियां और फ़ासला न करो।
इम्तहां तो वफ़ा के ले लो पर
छोड़ दूँ तुम को ये कहा न करो।
फिर बखेड़ा खड़ा न हो जाए
बात का ऐसा तरज़ुमा न करो।
हमको फिर होश तक नहीं रहता
अपनी नज़रों से यूँ छुआ न करो।
देखो अशआर घुट न जाएँ कहीं
इतना चौड़ा भी हाशिया न करो।
वो है पत्थर पिघल नहीं सकता
उससे अब और इल्तज़ा न करो।
बात ' अखिलेश ' ने बताई जो
काम की बात है हवा न करो ।
✍️ अखिलेश वर्मा, मुरादाबाद
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अपनी खुशियों पे मत इतना इतराइये
दर्द औरों का भी थोड़ा अपनाइये !
जग से जाओ तो हर नैन में नीर हो,
काम जीवन में कुछ ऐसे कर जाइये!!
जिंदगी अनकही एक पहेली सी है,
हर छटा इसकी नूतन नवेली सी है!
संग खुशियों में अपनों के हैं काफिले,
पर विपत्ति में बेहद अकेली सी है!!
छोड़कर गांव तेरा चले जाएंगे,
लौटकर फिर न वापस कभी आएंगे!
कल को ढूंढोगे हमको तुम्हीं हर जगह,
आसमां में धुंआं बनके खो जायेंगे!!
दिल पे एहसान है आपका दोस्तों
प्यार जी भर मिला आपका दोस्तों!
जग से रुख़सत हुए तो ज़माना हुआ,
जी उठे साथ पा आपका दोस्तों !!
✍️ अशोक विद्रोही , 412 प्रकाश नगर मुरादाबाद
मोबाइल 82188 25541
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पथिक वही जो बढ़ता जाता
अवरोधों से कब घबराता ,
ऊँची-नीची सब राहों पर
बिना रुके ही चलता जाता ।
पाषाणों से जब टकराता
असंभव को संभव बनाता ,
बड़े बड़े तूफां से लड़कर
विजयी रथ पर चढ़ता जाता ।
गरमी सहता स्वेद बहाता
शीत ताप भी नहीं डराता
मंज़िल मिले न जब तक उसको
साहस गाथा गढ़ता जाता ।
✍️ डॉ रीता सिंह, मुरादाबाद
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दोस्ती करके किसी नादान से
हमने झेले हैं बड़े तूफ़ान से।
दिल में रहते थे कभी जो हमनवां
आज क्यूँ लगते भला मेहमान से ।
साथ मेरे तू नहीं तो कुछ नहीं,
फ़िर गुलिस्तां भी लगे वीरान से।
याद ही बाकी रही अब दरम्यां
दिल के टूटे हैं कहीं अरमान से ।
खुदक़ुशी करना नहीं यूँ हारकर,
मौत भी आये मगर सम्मान से।
वो गये दिल तोड़कर तो क्या हुआ,
ज़िंदगी फिर भी चलेगी शान से ।
तंगदिल देंगे तुम्हें बस घाव ही,
आरज़ू करना सदा भगवान से ।
✍️ मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार, मुरादाबाद
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सोचता हूँ अब लिखूँ ऐसी सुहानी गीतिका।
साधना की राह पर अपनी कहानी गीतिका।
भावनाओं के भँवर को पार कर पहुँची पुलिन,
काव्य में ढलती हुई मुझ सी दिवानी गीतिका।
बाद मेरे भी रहे सबके दिलों को जीतती,
प्रेम से छोड़ी गयी मेरी निशानी गीतिका।
जो सुने उसके हृदय से दूर सब अवसाद हों,
है इसी उल्लास से मुझको सुनानी गीतिका।
हाथ में है लेखनी तो क्या भला रुकना 'प्रखर',
चल चला चल साथ है तेरी रवानी गीतिका।
कुछ दोहे
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आहत बरसों से पड़ा, रंगों में अनुराग।
आओ टेसू लौट कर, बुला रहा है फाग।।
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देख शरारत से भरी, बच्चों की मुस्कान।
बूढ़े दद्दू भी हुए, थोड़े से शैतान।।
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अभी मिटाना शेष है, अन्तस से अँधियार।
जाते-जाते कह गया, दीपों का त्योहार।।
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दिनकर पर पहरा लगा, चौकस हुए अलाव।
उष्ण वसन देने लगे, फिर मूँछों पर ताव
✍️ - राजीव 'प्रखर' , मुरादाबाद
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जिंदगी रंग हर पल बदलती रही।
साथ गम के ख़ुशी रोज़ चलती रही।।
शम्अ जो राह में तुम जला के गये।
आस में आपकी बुझती जलती रही।।
रिफ़अतें जो जहाँ में अता थी मुझे।
रेत सी हाथ से वो फिसलती रही।
क्या कहूँ दोस्तों दास्ताँ बस मिरी।
शायरी बनके दिल से निकलती रही।।
जो खिली रौशनी हर सुबह जाने क्यों।
शाम की आस में वो मचलती रही।।
क्या बचा अब है 'आनंद' इस दौर में।
लुट गया सब कलम फिर भी चलती रही।।
✍️ अरविंद कुमार शर्मा "आनंद", मुरादाबाद (यू०पी०)
मोबाइल 8979216691
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इस हिन्द का फौजी जो तू बन कर नही देखा
जानो कभी भी सच को उठा कर नही देखा
कुरबान है ये हिन्द तो मजबूरी से बंधकर
इस देश की बिगड़ी दशा को गर नही देखा
पुरजोर राजनीतियां चीखों को भी सुन कर
बनते हुए बद हाल को बदत्तर नही देखा
बस नाम का ही रह गया ,लोकतंत्र शब्द भर
बिकते हुए वीभाग औ दफ्तर नही देखा
भीखों मे कहे दे दया, हर कौम जातियां
आँखों मे बह रहा वो समुन्दर नही देखा
✍️ इन्दु,अमरोहा,उत्तर प्रदेश
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आइए!
संकल्प सिद्ध करें
देश के गलियारों में,
छुआ-छूत से भरी
जातिवाद की ऊंची दीवारों मन,
जब अपना ही घर लूट लिया
देश के ग़द्दारों ने...
जनता खड़ी देखती रही
सिमटी अपने किरदारों में ।
आइए !
संकल्प सिद्ध करें
देश के गलियारों में...
✍️-प्रशान्त मिश्र
राम गंगा विहार, मुरादाबाद
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दास्तान-ए-इश्क़ जब भी दोहराई गई,
हर किसी की आँख में नमी ही पाई गई,
हमने तो देखा है ज़माने का यही दस्तूर,
हुए जुदा मुहब्बत किसी से ना निभाई गई,
हुआ है ज़माने का निज़ाम आज ऐसा,
सच बोलने वाले को ही सज़ा सुनाई गई,
मिलती है यहाँ इज़्ज़त दौलत को ही,
ग़ुरबत की हमेशा यूँ ही की रुसवाई गई,
यूँ तो नज़र आता है ज़माना बहुत ख़राब,
ग़ौर से देखा तो ख़ुद में ही कमी पाई गई,
मिले हैं ज़ख़्म बहुत दिल हुआ है घायल,
तक़लीफ़ ए ज़िन्दगी हमसे ना उठाई गई,
गर्द ए ज़हन धुल ही गई बेगुनाहों के ख़ून से,
सियासत में इस क़दर नफ़रत फैलाई गई,
,✍️ राशिद मुरादाबादी
कांठ रोड हिमगिरि कालोनी मुरादाबाद
Ph :- 8958430830
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ऊपरवाले मुझ पर इतना, कर देना उपकार।
अबकी बार चुनावों में मैं, बना सकूँ सरकार॥
मैं ना चाहूँ सोना चाँदी, मै ना चाहूँ नोट।
मुझको तो बस दिला दीजिए, जनता के सब वोट॥
वर्षों से जो सपना देखा, हो जाये साकार।
अबकी बार चुनावों में मैं, बना सकूँ सरकार॥
हार चुनावों में अक्सर मैं, गया कर्ज में डूब।
दौलत की खातिर कर लूँगा, घोटाले मैं खूब॥
फिर खुद हो जायेगी मुझ पर, नोटों की भरमार।
अबकी बार चुनावों में मैं, बना सकूँ सरकार॥
जनता की दौलत पर मेरी, गढ़ी हुई है आँख।
नौकरियाँ लगवाने को भी, लूँगा मैं दो लाख॥
रोजगार सब पायेंगे अब, मेरे रिश्तेदार।
अबकी बार चुनावों में मैं, बना सकूँ सरकार॥
✍️-जितेन्द्र कुमार जौली
अम्बेडकर नगर, मुरादाबाद
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हमको न भाता है ऐसा जमाना !
जहां पर मोहब्बत न हो तानाबाना !!
जहां लोग करते हों कटुता की बातें ;
हो मतलब परस्ती का ही तानाबाना !
हमको न भाता है ऐसा जमाना !!
जहां जाति मजहब की दोहरी दीवारें ;
नहीं एक दूजे घर आना जाना !
हमको न भाता है ऐसा जमाना !!
जहां सिर्फ नफरत के तम्बू सजे हों ;
कुटिल भाषणो से जहां वोट पाना !
हमको न भाता है ऐसा जमाना !!
जहां आदमी के कई हों मुखौटे ;
सम्भव न हो जिनको पहचान पाना !
हमको न भाता है ऐसा जमाना !!
✍️ विकास मुरादाबादी , मुरादाबाद
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कहीं पर मूल चलता है,
कहीं अनुवाद चलता है ।
कहीं अपवाद चलता है ,
कहीं प्रतिवाद चलता है ।
परंतु सब ने यहां देखा ,
इलेक्शन में,सलेक्शन में,
हमेशा भाई भतीजावाद
चलता है।
✍️ नकुल त्यागी, मुरादाबाद
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