चित्रगुप्त दुविधा में थे कि जिस नेता को अभी यहां लाया गया है, उससे क्या और किस किस्म के सवाल किये जाएं कि वह सच बोलने को मजबूर हो जाये ? बामुश्किल मरने वाले इस नेता को देखकर उन्हें जो सबसे बड़ी दिक्कत पेश आ रही थी, वह यह थी कि इसे अगर हलके-फुल्के सवाल करके स्वर्ग भेज दिया गया तो वहां के लोग ऐतराज़ करेंगे कि यह तो सरासर ज़्यादती है. स्वर्ग भी अब रहने लायक नहीं रहा. नरक में इसे भेज दिया तो नरक के सारे प्राणी कहेंगे कि और कितना नरक बनाओगे इस नरक के लिए ?
चित्रगुप्त के सामने धर्म वाला संकट खड़ा था. यमराज ने तो बस, इस प्राणी का कॉलर पकड़ा और यहां ला कर पटक दिया कि इसे भी देख लें. यह नहीं सोचा कि इसको लेकर हम किस संकट में पड़ जायेंगे ?ज़्यादातर तो यह होता था कि यमराज नेताओं को लाने में ऐतराज करते थे कि जीने दो वहीँ, वरना रास्ते भर भाषण देता हुआ आएगा कि यह अन्याय है और इसे अब ज़्यादा दिन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. आदि-आदि. मगर इस बार पता नहीं, यमराज को क्या हुआ कि एक नेता की साबुत आत्मा को उठा लाये ? चित्रगुप्त का दिमाग घूम रहा था कि अब इससे कैसे निपटा जाये ? चित्रगुप्त ने अपना बीड़ी का बंडल निकालकर उसके अन्दर इस समस्या का समाधान ढूंढने की गरज से झांका तो पता चला कि दो ही बीड़ियां बची हैं और इनमें से एक यमराज को अगर नहीं दी तो पता नहीं कौन सा नया बवाल लाकर यहां पटक दे कि लो महाराज, इसका भी फैसला करो. चित्रगुप्त किसी लोकतांत्रिक देश के प्रधान मंत्री की तरह परेशान होने का मूड बना रहे थे.
” इसको यहां लाने की क्या ज़रुरत थी, महाराज ? अभी कुछ दिन वहीँ पड़ा रहने देते. ” चित्रगुप्त ने दोनों बीड़ियां निकालने के बाद उसका रैपर नेता की आत्मा पर उछालते हुए पूछा.
” ज़रुरत क्या थी ? अरे, यह आदमीनुमा प्राणी वहां लाखों लोगों का खून चूस रहा था और डकार भी नहीं ले रहा था. ” यमराज ने चित्रगुप्त के हाथ में सुलग चुकीं दो बीड़ियों में से एक को अपने हाथ में लेकर जवाब दिया.
” लेकिन इसका हिसाब कैसे किया जाएगा कि इसने कितने पाप किये और कितने पुण्य ? ” अपनी बीड़ी से एक तनावभगाऊ सुट्टा खींचते हुए चित्रगुप्त ने फिर सवाल किया .
” इसमें इतना सोचने की क्या ज़रुरत है ? पुण्य वाला जो कॉलम तुम अक्सर खाली छोड़ देते हो, इस बार भी उसे खाली ही रखो. ” यमराज ने बीड़ी का सारा धुआं नेता की आत्मा की ओ़र फेंकते हुए इस समस्या का सीधा समाधान बताया.
” यह बात भी आप सही कह रहे हैं. ” चित्रगुप्त ने चिथड़े बन चुकी अपनी बही का नेताओं वाला पन्ना खोला और उसमें पुण्य वाले उस कॉलम में एक एंट्री देखकर उसे गोल घेरे में कर दिया और जिसका मतलब उन्होंने यह मान रखा था कि यह पुण्य अभी संदिग्ध है कि किया भी था या नहीं.
इस तरह नेताओं के मिलन-स्थल यानि नरक की तरफ उस नेता को भी ले जाया गया और उसकी आत्मा के मुंह पर भी एक ऐसा टेप चिपका दिया गया कि कहीं से भी वह अन्य लोगों को भाषण देने की पोज़ीशन में ना रहे.
✍️ अतुल मिश्र, श्री धन्वंतरि फार्मेसी, मौ. बड़ा महादेव, चन्दौसी, जनपद सम्भल
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