शुक्रवार, 4 दिसंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी वर्मा की लघुकथा ---- "कन्या पूजन"

 


"नहीं नहीं, बस अब और नहीं, एक ही लड़की बहुत है। मेरा बेटा कहां से इनका बोझ उठाएगा, कहां से देने के लिए इनको दहेज लाएगा। कल ही डॉक्टर से कहना अबॉर्शन कर दो अगली बार देखेंगे। एक पोती हो गई बहुत है बस, अब मुझे पोता ही चाहिए कहते हुए सरला देवी राशि के कमरे से निकल गई। राशि बड़े भारी मन से सोच रही थी कि इस खानदान का अंश है यह बच्चा। अगर यह लड़की है तो फिर इसमें इसका क्या दोष है? क्यों इसे पैदा होने से पहले खत्म किया जा रहा है? राशि का पति संजय सोने के लिए कमरे में आता है राशि कहती है  "सुनिए! मां अबॉर्शन के लिए कह रही है  पर मैं कह रही थी़़़़़़़़़़़़़ राशि की बात को काटते हुए संजय बोला हां तो क्या गलत कह रही हैं मां आखिर उन्हें भी पोता खिलाने का अधिकार है और मैं इतनी लड़कियों का बोझ नहीं उठा सकता। सो जाओ तुम अब ज्यादा मत सोचो इस बारे में। आखिर घर का चिराग भी तो आना जरूरी है। राशि की आंखों में अब नींद कहां थी एक नन्हे भ्रूण की हत्या के ख्याल से ही उसकी आत्मा कौन्ध रही थी ।

 अगले दिन सुबह सरला देवी की आवाज आती है, बहु जल्दी करो  कन्या जिमानी है। आज दुर्गा अष्टमी और कन्या पूजन का काम खत्म करके फिर तुम्हें डॉक्टर के यहां भी जाना है ।

राशि पूजा का सभी सामान इकट्ठा करती है और पूजन इत्यादि की तैयारी करके कहती है "माँ जी, आप कन्याओं को बुला लाइए पूजन की सभी तैयारी हो चुकी है।"  सरलादेवी आधा घंटा  घूम कर आ जाती हैं लेकिन उन्हें मात्र दो कन्याए ही मिल पाती हैं। वह कहती हैं राशि बहू इन दो कन्याओं का ही पूजन कर दो कॉलोनी में तो कन्याएं ही नहीं है अब मैं और कहां से कन्याएं लाऊं़़़़़़़

✍️ मीनाक्षी वर्मा, मुरादाबाद


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