गुरुवार, 3 दिसंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार दुष्यंत बाबा की कहानी----- मन का भूत

     


बसंतपुर गांव में राजन नाम का एक बहुत ही होनहार बच्चा रहता था। दिमाग से बहुत तेज परंतु पढ़ाई में उसकी निरंतरता न थी। उसे प्रायः गांव में होने बाले कार्यक्रमों जैसे-आल्हा, ढोला, निधना, रसिया, नौटंकी इत्यादि देखने का बहुत शौक  था। परिवार शांतिकुंज से जुड़ा होने के नाते अनुशासित और संस्कारी था इसलिए कभी भी रात्रि में घर से बाहर जाने की छूट न थी। 

        इसी घुटन से मुक्ति पाने के लिए उसने ट्यूबवेल का भार स्वयं के कन्धों पर ले लिया। अब खाना खाने के बाद घर से निकलना उसके लिए सहज हो गया था। रात्रि में बिजली आने के बाद ट्यूबवेल चला देना और खेत की बहुत सी क्यारियों में एक साथ पानी कर रात भर गांव में दोस्तों के साथ मस्ती करना उसके का कार्यक्रम में सम्मिलित हो गया था। 

         अक्टूबर की रात्रि गुरुवार का दिन था। गांव में एक बारात आयी थी। दोस्तों से दिन में ही इसकी सूचना मिलने पर बारात देखने का कार्यक्रम तय हो गया था। 9 बजते ही मोटर स्टार्ट कर गांव की तरफ प्रस्थान कर दिया, मोटर की कोई चिंता न थी क्योंकि फ़्यूजवार बांधकर स्टार्टर का हत्था बांध दिया था सो मोटर बिजली आने-जाने पर स्वचलित की भाँति कार्य करता था। गांव पहुँचने पर बारात में पूरी मस्ती की। कार्यक्रम समाप्त होते-होते रात्रि एक बजे का समय हो गया। 

        राजन जब गांव से ट्यूबवेल की ओर जा रहा था तब बहुत तेज हवा चल रही थी सिर पर लोही बंधी थी और हाथ में लगभग तीन फुट का डंडा था ट्यूबवेल से कुछ पहले ही उसे बहुत तेज सांय-सांय की आवाज सुनाई के साथ कोई आकृति हिलती नज़र पड़ी। वैसे तो राजन बहुत बहादुर था जंगल में रहकर हिम्मत कुछ और बढ़ गयी थी, किन्तु उस आवाज को सुनकर उसे कुछ पुरानी बातें याद आने लगी, क्योंकि तीन वर्ष पूर्व उसी स्थान के पास बुद्धा की चाची की मृत्यु हो जाने पर अंतिम क्रिया हुई थी जिसकी चिता की आग के सहारे राजन ने हाथ सेंककर ठंड से खुद को बचाया था। वैसे भी गुरुवार को भूतों के बारात निकलने की कहानियाँ बाबा से खूब सुनी थी अब उसके मन में बुद्धा की चाची का भूत दिखाई देने लगा।

         उसने पीछे मुड़ना उचित समझा, वह जैसे ही पीछे मुड़ा तो आवाज और भी ऐसे लगने लगी कि कोई पीछे-पीछे ही आ रहा हो। जैसे-तैसे हिम्मत जुटाकर पीछे मुड़ा, उसे कुछ भी दिखाई नही दिया। राजन का पसीना सिर से पैरो तक पहुँच चुका था। उसने अपनी मृत्यु को तय समझ, उससे मुकाबला करने की ठान ली और पुनः कदम-दर-कदम उस हिलती हुई आकृति और आवाज की ओर चलने लगा। जैसे-जैसे वह आगे बढ़ता आवाज तेज हो रही थी उसने आकृति के पास पहुंच हिम्मत जुटाकर आंखे बंद करके आवाज के स्थान पर दोंनो हाथों से डंडे का प्रहार किया। प्रहार के बाद उसे स्वयं पर हँसी आ रही थी और मन में खेद भी। क्योंकि वह भूत नही, चिता के स्थान पर उगा हुआ पतेल का झूंड था अब उसके मन का भूत निकल चुका था।

✍️ दुष्यंत 'बाबा' , पुलिस लाइन, मुरादाबाद

मो0-9758000057

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर अद्भुत अकल्पनीय 👌👌👌👍👍👍✨

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