विवाह के सात वर्ष व्यतीत हो चुके थे ,और उन सात वर्षों में मोनिका का हर सम्भव यही प्रयास रहा ,कि वह अपने कर्तव्यों पर खरी उतरे ।ससुराल में पति के साथ-साथ सब लोगों को खुश रखने के चक्कर में मोनिका स्वयं अपना अस्तित्व ही भूल चुकी थी ।दिन - रात एक कर सबकी सेवा में लगी रहती लेकिन अनुज और उसके घर वालोंं की नजर में उसकी कोई कीमत न थी ।इतना सब करने के बाद कभी -कभी मोनिका का मन ग्लानि से भर जाता ।सोचती ,क्या इसे ही विवाह कहते हैं।क्या यही है ,पति -पत्नी का संबंध।
अनुज की नजरों में मोनिका की कोई अहमियत नही थी ।उसका व्यवहार मोनिका के प्रति आत्मीयता का नही ,बल्कि सिर्फ एक नौकरानी का था ।आखिर कब तक मोनिका यह सब कुछ सहती, एक दिन वह अपने बच्चों को साथ ले अपने पिता के घर आ गयी ।जैसे भी हो ,अब वह वहाँ लौट कर नही जायेगी।आखिर कब तक वह अपना और अपने बच्चों का शोषण करवायेगी ,अनुज को वैसे भी उसकी जरूरत समाज को देखते हुए ही थी ।समय बीतता रहा, शुरू में तो अनुज ने उसे बुलाने के प्रयास भी किये,लेकिन धीरे -धीरे वह भी बंद हो गये।
मोनिका अपने माता -पिता के साथ अपने बच्चों की परवरिश में लग गयी लेकिन उसने अपने कर्तव्यों की डोर को नही छोड़ा ।यहाँ एक तरफ पति के साथ ससुराल में रह अपने कर्तव्यों का पालन किया ,वहीं दूसरी तरफ अपने अस्तित्व को बचा कर बच्चों के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह करती रही ।यहाँ तक कि, प्रतिवर्ष करवा चौथ आती और वह व्रत रखती।यहाँ भी वह अपने कर्तव्य से नही फिरना चाहती थी ।इसलिए नही ,कि लोग क्या सोचेंगे ,बल्कि इसलिए कि ईश्वर उसके आगे का मार्ग प्रशस्त कर उसे एक नई शक्ति दें ।
डॉ शोभना कौशिक, मुरादाबाद
वास्तविक जीवन की कहानी
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