जहाँ हम तुम मिले थे पहली बार
वह घर तो छूट गया
और कोई निशान भी बाकी नहीं है उसका अब
ये रिश्ते-नातों के बन्धन
रीति-रिवाज़
परम्पराएँ
और ये समाज की स्थापित मान्यताएँ
सब कुछ मिलकर कर देते हैं ऐसा कुछ
कि मन को बिना साथ लिए ही
तन चलता रहता है।
चलता रहता है दिनों, महीनों और सालों
किन्तु बिना मन के इस सफ़र का कोई गाम
क्या कभी उसको छू पाता है।
या हमारा भी कभी कोई हमसफ़र बन पाता है।
नहीं न!
तो फिर इस तनहा सफ़र का मतलब क्या है।
मुझे बताओ कि ज़िन्दगी की हक़ीक़त क्या है।
सुबह को जो प्यार करते हैं।
दिन ढलते-ढलते
अलग-अलग रास्तों पर मुड जाते हैं।
और रातों का क्या
रातें महफिलों की रंगीनियों में भी गुजरती हैं।
और जंगलों के अन्धरों में भी
यहाँ ज़िन्दगी हँसती है
नाचती झूमती गाती है
और वहाँ मारे खौफ के
थर-थर काँपती है।
तुमने तो दुःखों के जंगल में
धकेल ही दिया है मुझे
अगर मैं जंगल के सफर से लौटा
तो ढेर सारी ख़ुशियाँ लेकर लौटूँगा
तुम्हारे लिए।
✍️ आमोद कुमार अग्रवाल
सी -520, सरस्वती विहार
पीतमपुरा, दिल्ली -34
मोबाइल फोन नंबर 9868210248
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