रविवार, 24 मई 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की कहानी---- जो जहाँ है , वहीं रहे


 सड़क पर मजदूर सिर पर सामान लादे हुए चले जा रहे थे । एक न्यूज चैनल के लिए काम करते समय मुझे जिम्मेदारी सौंपी गई थी कि मैं प्रवासी मजदूरों का इंटरव्यू लूँ और उनसे बातचीत करके उनके हृदय की भावनाओं को श्रोताओं तक पहुँचा दूँ। मेरे साथ एक दूसरे न्यूज चैनल का संवाददाता भी था ।
      एक मजदूर परिवार सहित आ रहा था। कुछ समझदार लगा ।मेरे साथ ही संवाददाता ने उसको रोक लिया और प्रश्न पूछना शुरू किया "आप क्यों आ रहे हैं? सड़क से पैदल चलते हुए ऐसी क्या मजबूरी थी?"
     वह मजदूर बोला "आखिर क्या करते ? न मकान का किराया देने के लिए पैसे थे, न कोई वेतन मिल रहा था और न खाने-पीने का इंतजाम सही था ?"
     मेरे साथी संवाददाता ने इतना सुनते ही उस मजदूर को मेरी तरफ बढ़ा दिया । बोला "यह तुम्हारे लिए है ।"
      मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ । लेकिन मैंने मजदूर से प्रश्न किया " तुम्हें खाने पीने की कमी भला कैसे हो सकती है ? सरकारों ने स्थान स्थान पर भोजन की व्यवस्था की है। आटा दाल चावल बाँटने का कार्य घर-घर में चल रहा है ।"
    सुनकर मजदूर ने सहमति में सिर हिलाया "यह बात सही है । लेकिन यह सब काफी नहीं होता । खर्चे और भी दस तरह के होते हैं। घर में पड़े - पड़े क्या जी लगे ? और फिर हमें महीने की तनखा भी तो नहीं मिल रही है?"
     " क्या काम करते हो ?"
              "फैक्ट्री में काम करते थे । अब फैक्ट्री बंद हो गई है। लिहाजा जब मालिक को कोई काम नहीं रहा तो हम भी वहाँ क्या करते । उसने हमसे भी मना कर दिया ।"
       "क्या कहा ? इस प्रश्न पर वह बोला "जब फैक्ट्री चलेगी ,तब आ जाना ।"
       "फिर अब जाने के बाद फिर लौट केआओगे ?"
       मेरे इस प्रश्न पर मजदूर ने कुछ परेशानी अपने चेहरे पर ओढ़ ली । बोला " यह तो कुछ कह नहीं सकते !"
  इतना कहकर मजदूर आगे बढ़ गया । मेरा साथी संवाददाता जो दूसरे न्यूज चैनल का था , वह किसी अन्य मजदूर से इंटरव्यू के लिए उलझा हुआ था । मजदूर बार-बार यह कह रहा था कि उसे घर की याद बहुत आ रही थी । साथ ही खाने-पीने और रहने की भी परेशानी होने लगी थी । लेकिन मेरा साथी संवाददाता बार-बार उससे यही पूछ रहा था "इसका मतलब है तुम्हें घर की याद आ रही थी ?"
          वह मजदूर सहमति के भाव से सिर हिलाता था और तब वह संवाददाता उससे कुरेद कुरेद कर प्रश्न पूछता था "जब घर की याद आती है तो तुम्हें ऐसा नहीं लगा कि तुम्हें घर तक पहुँचने के लिए कुछ इंतजाम होना चाहिए था ?"
     "हाँ ! यह तो हम चाहते ही थे कि कोई इंतजाम हो । जब इंतजाम नहीं था ,तभी तो हम पैदल चले ।"
      "तो इसका मतलब है कि जो इंतजाम होना चाहिए था, वह सरकार ने नहीं किया?"
     " भाई ! हम तो इतनी ज्यादा चीजें नहीं जानते । हम तो बस  यही चाहते थे कि किसी तरह घर पहुँच जाएँ। रहने की भी दिक्कत थी और घर की भी बहुत याद आ रही थी ।"
       "मतलब तुम्हें घर की याद आ रही थी और तुम्हारे पास घर पहुँचने के लिए कोई साधन नहीं था ? तुम कितनी परेशानी के साथ कितने दिनों से चल रहे हो ? कुछ विस्तार से बताओ ?"और तब संवाददाता उसके दुख और परेशानी को जो उसने रास्ते में झेली ,उसका विवरण पूछने में लग गया ।
               मैं इंटरव्यू लेकर दूसरी जगह चला गया था क्योंकि मुझे और भी काम था । फिर उसके बाद रास्ते में कुछ लोग बातचीत करते हुए नजर आए । यह राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता थे । सड़क पर धरने पर बैठे हुए थे । यद्यपि मेरा घर जाने का समय हो गया था लेकिन जब मैंने इस दृश्य को देखा तो मुझे यह एक अच्छी न्यूज़ नजर आई । मैं उन लोगों के पास पहुँचा और पूछने लगा "आपकी माँग क्या है ?"
      "हम मजदूरों के साथ हैं और हम चाहते हैं कि वह मजदूर देश में जहां भी फँसा हुआ है ,उसको उसके घर तक पहुँचाने के लिए सरकार इंतजाम करे। "
       "लेकिन सरकार का कहना है कि जो जहाँ है ,वही रहे। इसके बारे में आपकी क्या राय है ?"
            "हम इससे सहमत नहीं हैं । मजदूर को बंधक बनाकर नहीं रखा जा सकता। उसे उसके घर जाने का अधिकार मिलना ही चाहिए ।"
        "लेकिन क्या ऐसा करने से अव्यवस्था नहीं फैल जाएगी ? जो बीमारी इतने दिनों से रोक कर रखी गई है ,वह देश के हर हिस्से में चली जाएगी ।"
       "देखिए साहब ! हमने भी दुनिया देखी है । जब विदेशों से लोग ला रहे थे ,तब वह बीमारी नहीं फैल रही थी । अमीर लोगों से बीमारी नहीं फैली ।अब गरीब लोगों से फैल जाएगी ? देश में गरीब और अमीर के साथ भेदभाव किया जा रहा है । यह गलत है।"
             " आपने डब्ल्यूएचओ का नाम सुना होगा ? उसने गाइडलाइन देने में बहुत देर लगा दी ,जिसके कारण बाहर से आने वाले यात्रियों पर नियंत्रण करने में काफी देर रही ?"
       "यह सब बेकार की बातें हैं ।"-मेरे प्रश्न को अनसुना करते हुए धरने पर बैठे नेता ने कहा -"हम किसी भी हालत में मजदूरों को मानसिक , शारीरिक तथा आर्थिक प्रताड़ना नहीं देने देंगे । उन्हें अपने घर जाने का अधिकार है। सरकार के पास अगर सुविधा नहीं है ,तो हमसे कहे । हम मदद करने के लिए तैयार हैं।"
        मैं समझ गया कि इनके ऊपर किसी तर्क वितर्क अथवा किसी प्रश्न का कोई असर होने वाला नहीं है। इन्होंने नीति बना ली है कि मजदूरों को उनके कार्यस्थल से उनके गाँव तक पहुँचाने का काम होना चाहिए । वह यह सुनने के लिए तैयार नहीं थे कि  ऐसा करने से लॉकडाउन का उद्देश्य ही विफल हो जाएगा ।
        लेकिन फिर जब तक मैंने न्यूज बनाई और अपने न्यूज़ चैनल को भेजी तो उन्होंने इस पर मुझसे इतनी ही टिप्पणी  की कि अब इस को प्रसारित करने की आवश्यकता नहीं रही ,क्योंकि सबकी समझ में आ गया है कि पूरे देश की भलाई इसी में है कि जो जहाँ है, वह वहीं रहे ।  रोग इस प्रकार जड़ से समाप्त हो जाए तथा उसे फैलने का अवसर न मिले। मुझे थोड़ा दुख तो हुआ कि मेरी मेहनत बेकार गई लेकिन फिर मैंने सोचा कि मेरी मेहनत सफल रही क्योंकि रोग फैलने से रुक गया है ।

 ✍️ रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

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