*1.
बाज़ दिल याद से उन की न ज़रा-भर आया
वो न आए तो ख़्याल उन का बराबर आया
साक़ी-ए-दर्द भरा ही किया पैमाना-ए-चश्म
सो तिरी बात पे छलका जो ज़रा भर आया
आह! वो शिद्दत-ए-ग़म है कि मिरी आँखों से
बूँद दो बूँद नहीं, एक समुंदर आया
जिस से बचने के लिए बंद कीं आँखें हम ने
बंद आँखों पे भी आगे वही मंज़र आया
ये जो सहरा में फिरा करता है दीवाना सा
ख़ुद को दुनिया के झमेलों से छुड़ा कर आया
दिल को शिद्दत से तमन्ना थी तिरे कूचे की
सो बड़े शौक़ से उस को मैं वहाँ धर आया
*2.
ज़िन्दगी दौड़ती है सड़कों पर
और फिर मौत भी है सड़कों पर
दिनदहाड़े पड़ा है इक ज़ख़्मी
क्या अजब तीरगी है सड़कों पर
लोग बस बे-दिली से चलते हैं
यानी बे-चारगी है सड़कों पर
उम्र घर में तो उस की कम गुज़री
और ज़ियादा कटी है सड़कों पर
मुफ़्लिसी कैसी-कैसी शक्लों में
तू भी अक्सर मिली है सड़कों पर
घर तो गोया किसी का है ही नहीं
सब का सब शहर ही है सड़कों पर
चलते हम-तुम भी है मगर 'फ़रहत'
होड़ रफ़्तार की है सड़कों पर
*3.
आप को उजला दिखे, काला दिखे
सच तो सच है चाहे वो जैसा दिखे
ज़ुल्फ़-ए-जानाँ, दीदा-ए-नम, दर्द-ए-दिल
इन से बाहर आएँ तो दुनिया दिखे
आँख के अंधे को फिर भी अक़्ल है
अक़्ल के अंधे को सब उल्टा दिखे
मुझ को अपने आप सा लगता है वो
राह चलते जब कोई रोता दिखे
हूँ पशेमाँ मैं गुनहगार अपना मुँह
फेर लेता हूँ जो आईना दिखे
खूब है दुनिया की ये जादूगरी
वो नहीं होता है जो होता दिखे
*4.
छेड़ दें गर क़िस्सा-ए-ग़म शाम से
कह रहेंगे सुबह तक आराम से
चाहिए हम को कि बेदारी रहे
आशना हों हश्र से अंजाम से
जो बुलाता था वो शख्स़ अब जा चुका
काम अपना देखिए आराम से
पा गए हम बे-गुनाही की सज़ा
बच गए सौ बार के इल्ज़ाम से
कट रही है ज़िन्दगी अब दश्त में
हम को क्या मतलब रहा हुक्काम से
क्या ख़बर तुझको कि कितना रोए हम
छूट कर सय्याद तेरे दाम से
बज़्म में ‘फ़रहत’ बड़े नाशाद थे
मुँह पे रौनक़ आ गयी इक नाम से
*5.
तू जहाँ में चार दिन मेहमान है
इसके आगे और ही सामान है
आदमी इक ख़ाक का पुतला है बस
जिस्म में रंगत है जब तक जान है
काला-गोरा, ऊँचा-नीचा, जो भी हो
आदमी वो है कि जो इंसान है
गर जहन्नुम की हक़ीक़त जान लो
राह जन्नत की बहुत आसान है
कुछ तिरे आमाल ही अच्छे न थे
अपनी बर्बादी पे क्यूँ हैरान है
कुछ नहीं सारे जहाँ की दौलतें
आदमी के दिल में गर ईमान है
*6.
न सारे ऐब हैं ऐब और हुनर हुनर भी नहीं
कुछ एहतियात तो कीजे पर इस क़दर भी नहीं
तुम्हारे हिज्र में बाँधा है वो समाँ हमने
कि आँख हमसे मिलाता है नौहागर भी नहीं
नहीं, ज़रा भी तो उस ने नहीं मिलाया रुख़
मैं उसको देख रहा था, ये जानकर भी नहीं
ये हमने भूल की आ पहुँचे उन की महफ़िल में
पर उन से अर्ज़-ए-तमन्ना तो भूल कर भी नहीं
कोई तो रंग बिखेरेगी ज़िन्दगी की ये धूप
अगर तवील नहीं है तो मुख़्तसर भी नहीं
मैं किस तरह से उसे दोस्त मान लूँ 'फ़रहत'
नहीं जो अहल-ए-सितम और चारागर भी नहीं
*7.
वो इक मोड़ क़िस्से में ऐसा भी आया
वही शख़्स रोया भी, जो मुस्कुराया
हमें याद करने में क्या लुत्फ़ पाया
कलेजा तुम्हारे जो मुँह को न आया
उसूलों की ख़ातिर जिसे हम ने छोड़ा
उसूलों ने फिर मुँह न उस का दिखाया
वफ़ा के तक़ाज़े अजब हमने देखे
जिसे आज़माया, बहुत आज़माया
सताने की हद हम ने देखी है 'फ़रहत'
वही रो पड़ा जिस ने हम को सताया
*8.
चारों जानिब सब्ज़ा-सब्ज़ा लगता है
साथ है वो तो सब कुछ अच्छा लगता है
उसके शहर में आया हूँ मैं पहली बार
फिर भी सब कुछ देखा-देखा लगता है
इश्क़ में इस दर्जा रहती है ख़ुश-फ़हमी
पैहम धोका खाना अच्छा लगता है
आँख से जारी होता है पानी कैसे
तू तो ऐ दिल सूखा सूखा लगता है
अहद-ए-वफ़ा ही कर बैठे थे हम वरना
रुस्वा होना किसको अच्छा लगता है
अब तक 'फ़रहत' हम तो इस धोके में रहे
हर कोई वैसा है जैसा लगता है
*9.
पत्ता पत्ता ख़ार हुआ है
गुलशन आँखों में चुभता है
सर फोड़े जैसा दुखता है
याद का पत्थर आके लगा है
गोया दिल पर बोझ हो कोई
हर लम्हा भारी लगता है
मेरा दोस्त नहीं है कोई
हर कोई तेरे जैसा है
उसकी झूठी वफ़ा का क़िस्सा
अक्सर याद आता रहता है
दिल का ज़ख़्म जो भर नहीं पाया
अक्सर आँखों से रिसता है
मुझ पे जो बीत रही है नासेह
तुझ पे न बीते मेरी दुआ है
अब शायद आराम मिले कुछ
हमने जी को मार लिया है
*10.
वो मुस्कुरा दिए तो ज़रा मुस्कुराएँ हम
फिर ख़ुद से चाहे कोई बहाना बनाएँ हम
फिर से है पैरहन को रफ़ूगर की जुस्तजू
दिल चाहता नहीं कि उसे भूल जाएँ हम
रंग उस के पैरहन के जहाँ में बिखर गए
ख़ुशबू फ़ज़ा में ऐसी घुली क्या बताएँ हम
इश्क़ अस्ल में है नाम अना की शिकस्त का
जब भी वो रूठ जाए तो उस को मनाएँ हम
फिरता है इक ख़्याल हमारी तलाश में
हम भी तलाश में हैं कहाँ उस को पाएँ हम
रंग इंतज़ार करते हुए खो गए कहीं
फ़ुर्सत न मिल सकी कि वहाँ हो भी आएँ हम
✍️फ़रहत अली ख़ान
लाजपत नगर
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश ,भारत
मोबाइल फोन नंबर 9412244221
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