गुरुवार, 15 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में बरेली निवासी) सुभाष राहत बरेलवी की लघुकथा ----बदलते रिश्ते

   


 जुम्मन की पूरी ज़िंदगी कोठे पर कट गयी थी, वहीँ पैदा हुआ। कौन बाप मालूम नहीं, न कोई साथी रहा, न कोई  बना पाया, बस कोठे पर सारंगी बजाते बजाते उम्र के  59 वर्ष के पड़ाव पर पहुँच गया।  रंजना को अभी आये कुछ माह ही हुए थे, वह सूंदर तो थी ही, मगर उसके स्वर में जैसे माँ सरस्वती का वास था । संगीत की विधिवत शिक्षा न होने पर भी  वह अभूतपूर्व आवाज़ की धनी थी। ऊपर से जुम्मन की सारंगी के स्वर के साथ मिलकर ऐसा लगता था पूरा कोठा संगीत में झूम रहा हो। रंजना हमेशा ग़मज़दा गज़ले ही सुनाती थी और लोग वाह्ह वाह्ह करते हुए रुपए पैसे की बौछार करते जाते। एक गुरुवार को कोठे पर कोहराम मचा था कि 59 साल का बुड्ढा लड़की को भगा ले गया। चारों  तरफ खोज़ जारी रही लेकिन उन्हें ज़मीन निगल गयी या पाताल, पता न लगा । कुछ माह बाद रेडियो से 'आपकी आवाज' नामक  कार्यक्रम में कोई अपने मधुर स्वर में गा रहा था ~~~~अगर दिलवर की रुस्वाई हमें मंजूर हो जाये............. तभी कोठे पर सभी ने कहा ..........अरे ये तो.. ......रंजना की आवाज लग रही है ..........................और ..........दूसरी तरफ़

शायद............बदनाम हुआ रिश्ता................ पवित्र रिश्ता बन चुका था.................

✍️ सुभाष रावत , बरेली

बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की लघुकथा-----आँखें

   


 बहुत दिनों से प्रसाद सर गार्ड ऑफ ऑनर देने के लिए कैडेट्स को प्रैक्टिस करा रहे थे।संध्या बेस्ट कैडेट्स में से थी।उसकी ड्रिल काबिले तारीफ थी, लेकिन पता नहीं क्यों,प्रसाद सर खुश नहीं थे।सुबह से कई बार प्रैक्टिस करा चुके थे।हर बार अगेन कहकर फिर से मार्च कराते।पता नहीं अचानक क्या हुआ वह गुस्से में आगे बढ़े और उन्होंने संध्या के कन्धों को दोनों हाथों से पकड़ कर झिंझोड़ा,"सी इन माई आइज।देखो मेरी आँखों में।सीधे, सामने आँखों में।आखिर क्या परेशानी है तुम्हें?"

    संध्या की आँखे और भी झुक गयी,वह कोशिश करके भी उन्हें नहीं उठा पायी।प्रसाद सर थोड़ा संयत हुए और गहरी साँस भर कर बोले, "बेटा.... तुम्हारा ड्रिल इतना अच्छा है।पर कॉन्फिडेंस क्यों लेक है?तुम सामने आँख उठाकर मार्च क्यों नहीं करती हो?"

 लेकिन संध्या के कानों में तो उसके दादा जी की आवाज गूंँज रही थी,"आँखें नीची रखा कर छोरी।किसी दिन चिमटे से निकाल दूँगा"

✍️हेमा तिवारी भट्ट,मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के सिरसी(जनपद सम्भल) निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की लघुकथा ---------- गर्मी

 


"बेगम, फाजला अब बड़ी हो गई है. उससे कहो कि घर मे भी दुपटटा ओढे रहा करे। क्योंकि घर मे कोई न कोई आता रहता है।"

"ठीक है जी" कहते हुए शाकिर मियां की बेगम ने सर पर पड़ा दुपट्टा ठीक करते हुए स्वीकृति में सर हिलाया।

बराबर के कमरे में खड़ी 13 साल की फाजला माँ बाप की बातें सुन रही थी लाइट  चले जाने पर वह कमरे से बाहर आई तो " उफ बड़ी गर्मी है।" कहते हुए शाकिर मियां अपना कुर्ता  उतारकर  खूंटी पर टांग रहे थे थोड़ी ही देर में गर्मी बढ़ी तो उन्होंने अपना तहमद भी उतारकर अलग रख दिया अब वह अंडर वियर और बनियान में लेटे हाथ से पंखा झल रहे थे जबकि भीषण गर्मी में फाजला की  अम्मी सर से दुपटटा ओढे हुए घर के काम काज निपटाने में लगी हुई थी फाजला कभी बाप की ओर देखती तो कभी अम्मी की ओर देखकर अपने आप से सवाल कर रही थी  "क्या मर्दो को ही गर्मी लगती है ?"


कमाल ज़ैदी "वफ़ा", सिरसी( सम्भल)

 मोबाइल फोन नम्बर --- 9456031926

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा ---पत्थर


एक व्यक्ति पत्थर से टकरा कर गिर पड़ा बहुत चोट आई, तभी पत्थर बोला पता है हम यहाँ क्यों पड़े रहते हैं, वह इसलिए कि कोई हमसे टकराये और गिरे ।अब देखना यह है कि टकराकर कितने लोग सम्हलते हैं।जो नहीं सम्हलता वह टकराता रहेगा और गिरता रहेगा । जीवन का भी यही मूल मंत्र है । जो सम्हल गया बेड़ा पार जो नहीं सम्हलता वह गिरता रहेगा चोट खाता रहेगा । हम तो कल भी यहाँ पड़े थे आज भी यहीं पड़े हैं।

हाँ सम्हलने वालों की गिनती अवश्य करते रहते हैं -------!!

✍️ अशोक विश्नोई,मुरादाबाद

                         

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की लघुकथा ------अवसर


रमेश ने साझा कविता संग्रह में प्रकाशित अपनी दो रचनाएँ बहुत गर्व से दिनेश को दिखाईं।कहा " देखो ! देश के प्रतिष्ठित संपादक मंडल ने मेरी दो रचनाओं को मेरे चित्र सहित प्रकाशित किया है । मैं कितना सौभाग्यशाली हूँ।"

       दिनेश ने साझा कविता संग्रह अपने हाथ में लिया। कुछु पृष्ठ पलटे और धीरे से मुस्कुराते हुए कहा "बात पैसों की थी। मेरे पास धन का अभाव था ,अन्यथा संपादक मंडल में भी मेरा नाम छप जाता !"

       रमेश का चेहरा यह सुनकर मुरझा गया, क्योंकि वास्तव में साझा कविता संग्रह में प्रकाशन का आधार पैसा था तथा सचमुच संपादक मंडल में उन लोगों के नाम शामिल किए जाने का प्रस्ताव था ,जो अधिक धनराशि देने के लिए तैयार थे ।

 ✍️ रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश) 

 मोबाइल 99976 15451

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा ----- बदलते भाव

वह गर्दन झुकाए चुपचाप बैठा था कई उसी जैसे किसान आए और अपने अनाज का मोलभाव आडतिए से करके चले गए उनके चेहरों पर बेबसी और आडतिए के चेहरे पर ऎसे भाव थे जैसे कि उनका अनाज सस्ते में खरीद कर एहसान कर रहा हो. 

"अरे बड़े गंदे गेहूं हैं.... इनका तो दो रुपया कम ही लगेगा l" उस आडतिए ने मुट्ठी में गेहूं भरा और मूँह बनाते हुए तंबाकू की पीक मार दी एक तरफ l

"लेकिन बाबूजी देखो न कैसे मोती से गेहूं..... l" उसने अपने गेहूं की तरफ प्रेमभाव से देखते हुए कहा जैसे माता पिता अपनी संतान की तरफ देखती हैं l

"नहीं बेचना क्या? जाओ यहां से समय बर्बाद करने आ गया l" आडतिया डपटते हुए बोलाl

"नहीं बाबूजी बेचना है बेचना है उसकी आँखों में बेटी का विवाह बेटे की स्कूल फीस घर की टूटी छत और उसकी पूरी दुनियाँ घूम गई. 

" और हाँ एक कुंतल पर एक किलो छीज कटेगी... वो तोलने में कम हो जाता है न l"उसने फिर बेशर्मी से कहा l

"लेकिन बाबूजी रहेगा तो आपके पास ही जो कम होगा...!" 

"तू जा यहां से अब.... l" आडतिए ने फिर से झिड़का l

"ठीक है l" कहते हुए उसने अपनी बैलगाड़ी मोड़ दी और उसके पीछे औरों ने भी अब भाव दोनों बदलने वाले थे चेहरों के भी और अनाज के भी l


राशि सिंह , मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश 

(

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की लघुकथा -----दूरदर्शिता


"थोड़ी देर पढ़ लिख लिया कर।सारे दिन खेल कूद मेेें लगा रहता है।पढ़ेगा नहीं तो बड़े होकर घर का काम करना पड़ेगा।"

शकुन्तला ने डांट लगाते हुए अपने छोटे बेटे राहुल से कहा।राहुल ने अपने बड़े भाई विजय,जो कि पढ़ाई पूरी करके तीन साल से नौकरी ढूंढ रहा था,की ओर देखा,फिर मां से बोला "ठीक है,आप मुझे पकोड़े बनाना सिखा दीजिए "

✍️ डाॅ पुनीत कुमार

T -2/505, आकाश रेजिडेंसी

मधुवनी पार्क के पीछे

मुरादाबाद 244001


मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी की लघुकथा ----नए ज़िलाधिकारी

 


आज रोहित जल्दी कलेक्ट्रेट आ गया ,नए ज़िलाधिकारी के आगमन की तैयारी जो  करनी थी ।रोहित कलेक्ट्रेट में  एक सम्मानित पद पर कार्यरत था ,नए ज़िलाधिकारी के 

आगमन की तैयारी वही कर रहा था ।उसने सुना था कि नए ज़िलाअधिकारी सख़्त है इसलिए वह पूरी कोशिश कर रहा था कि कोई कमी न रह जाए।

सब तैयारी हो गयी थी.........

ज़िलाधिकारी की गाड़ी कलेक्ट्रेट पर आ गयी थी ....

रोहित फूलों का बुके लेकर गाड़ी की ओर दौड़ा ।

‘योर मोस्ट वेलकम सर ’ रोहित ने कहा ।

जैसे ही उसने ज़िलाधिकारी को देखा ,उसे उनका चेहरा जाना पहचाना लगा.....

वह स्मृतियों में खो गया .....रमेश ...क्या ये रमेश है....जो सरकारी स्कूल में पढ़ता था जिसकी माँ हमारे यहाँ काम करने आती थी और जो मेरी कॉन्वेंट स्कूल की पुरानी किताब भी पढ़ने के लिए ले जाता था ......नहींं ,नहींं ....ऐसा नही हो सकता.......

अचानक उसके कंधे पर किसी ने हाथ रखा ,वह चौक गया। ज़िलाधिकारी महोदय.........जी... मैं वही रमेश हूँ ,रोहित जी ...सरकारी स्कूल में पढ़ने वाला .....आपकी किताब .........

कैसे है आप ,बहुत सालों बाद मुलाक़ात हुई......

रोहित अभी तक पुरानी स्मृतियों में खोया था.........

✍️ प्रीति चौधरी, गजरौला, अमरोहा

मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल की लघुकथा -----पोता बनाम पिता

 


रामनाथ और दमयंती आज दोनों बहुत खुश थे। आज उनका बेटा-बहू विदेश से आये थे। छह माह के पोते को दोनों ने पहली बार देखा था और दोनों पोते पर अपना लाड़ लुटा रहे थे।

पोते को प्यार से गोद में हिलाते हुए रामनाथ अभी उसे पुचकार ही रहे थे कि पोते ने धार छोड़ दी जो उनके चेहरे और कपड़ों को भिगो गयी। अरे रे रे वाह वाह, मजा आ गया, तालियां पीटते हुए सब हँसने लगे। रामनाथ बोले, अरे कुछ नहीं; ये तो प्रसाद है जो दादी बाबा को मिलता ही है।

तभी अंदर के कमरे से पिताजी की आवाज आयी: बेटा जरा मुझे सहारा दे दो, बाथरूम जाना है।

अभी आया पिताजी । लेकिन जब तक पिताजी को वह बाथरुम तक लेकर जाते तब तक उनका पाजामा गीला हो गया था। यह देखते ही रामनाथ झुंझला पड़े: ये क्या पिताजी, थोड़ी देर भी नहीं रुक सकते थे। फिर से पाजामा गीला कर दिया । ऊपर से पूरे कपड़ों में बदबू अलग से भर गयी। 

पिताजी लाचारी से नजरें झुकाये रहे।

✍️श्रीकृष्ण शुक्ल, MMIG-69, रामगंगा विहार, मुरादाबाद ।

मोबाइल नं• 9456641400

मुरादाबाद के साहित्यकार विवेक आहूजा की कहानी ----अदिति

 


आज दिसम्बर की बीस तारीख सन् 2014 है को मैं और मेरी पत्नी डा सोनिया आहूजा (बी0ए0एम0एस0) ठिठुरते हुये दिल्ली के आनन्द बिहार बस स्टेण्ड पर एसी बस से उतरे। वहां हमने जस्ट डायल कम्पनी के माध्यम से पता किया कि आनन्द बिहार बस स्टैण्ड के निकट मेडिकल कोचिंग इस्टीट्यूट की कौन सी शाखा है। जस्ट डायल कम्पनी से हमें यह पता चला कि प्रीत बिहार में यहां से सबसे निकट मेडिकल कोचिंग इंस्टीट्यूट की शाखा है। हमने बिना समय गवांये फौरन वहां के लिये आटो किया व जल्द ही कोचिग की ब्रांच पहुंच गये।

असल में मैं और मेरी पत्नी  मेरे बीमार चाचा जी की मिजाज पुर्शी के लिये दिल्ली आये थे, साथ ही हमारे जहन में अपनी बेटी अदिती अहूजा के लिये भविष्य में अच्छी कोचिंग, जोकि उसे मेडिकल प्रवेश परीक्षा में सहायक हो सके, का भी पता करने का था। ज्यादातर अपने मित्रगणों से सलाह के पश्चात मैं और मेरी पत्नि इस नतीजे पर पहुंचे कि यह इंस्टीट्यूट मेडिकल कोचिंग के लिये बेहतर विकल्प है।

हम मेडिकल कोचिंग इंस्टीट्यूट की प्रीत विहार की शाखा में पंहुचकर वहां के अधिकारी से मिले तब हमें उन्होंने यह बताया कि मेडिकल प्रवेश परीक्षा की कोचिंग वह दसवीं क्लास के बाद करवाते हैं तथा दसवीं क्लास के दौरान वह एक स्कालरशिप परीक्षा का आयोजन करते हैं, जिसका नाम एन्थे हैं। उन्होंने हमसे सितम्बर माह में सम्पर्क करने को कहा जब अदिती दसवीं में हो तब। यह जानकारी हासिल कर हम लारेंस रोड स्थित अपने चाचा जी के आवास पर उनका हाल जानने पहुंच गये। इस बात को करीब एक वर्ष बीतने को था अदिती दसवीं में आ चुकी थी। हमें मेडिकल कोचिंग इंस्टीट्यूट की एन्थे परीक्षा की बात ध्यान थी। परीक्षा का फार्म कैसे प्राप्त हो, यह बड़ी समस्या थी, तब हमारी बहन आरती डोगरा पत्नि श्री राजेश डोगरा निवासी चण्डीगढ़ ने वहां स्थित कोचिंग इंस्टीट्यूट की शाखा से ऐन्थे का फार्म प्राप्त किया व स्पीड पोस्ट से हमें भेज दिया। अब ऐन्थे का फार्म भर कर हमें जमा करना था इसके लिये हमने कोचिंग इंस्टीट्यूट की मुख्य शाखा में फोन पर जानकारी हासिल की तो पता चला कि फार्म आप किसी भी मेडिकल कोचिंग इंस्टीट्यूट की शाखा में जमा करवा सकते हैं। हमारे निकटतम मेडिकल कोचिंग इंस्टीट्यूट की शाखा मेरठ में थी अतः हमने फार्म मेरठ स्थित अपने मौसेरे भाई श्री राजेश अरोरा जी को स्पीड पोस्ट कर दिया, श्री अरोरा जी ने स्वंय कोचिंग इंस्टीट्यूट के ऑफिस जाकर ऐन्थे का फार्म जमा किया।

दिसम्बर 2015 में ऐन्थे की परीक्षा हुई जिसका परीक्षा केन्द्र मेरठ ही था, मैं और मेरे मौसेरे भाई श्री राजेश जी अदिती को लेकर परीक्षा केन्द्र पहुंचे व 3 घण्टे परीक्षा के दौरान वही बाहर खड़े होकर उसका इंतजार करने लगे। परीक्षा के उपरान्त अदिती ने बताया कि परीक्षा अच्छी हुई है। तत्पश्चात मैं और अदिती बिलारी बापस आ गये व अदिती अपनी दसवीं की बोर्ड परीक्षा की तैयारी में जुट गई।

जनवरी 10 या 15 2016 की बात थी मैं मोबाइल में नेट चला रहा था दिमाग में आया चलो अदिती ने जो एन्थे की परीक्षा दी थी उसे जांच लेते हैं कि परीक्षा फल कब आयेगा। मैंने मेडिकल कोचिंग इंस्टीट्यूट की साइट चैक करी तो पता चला कि एन्थे का परीक्षाफल तो आ चुका है, मैं फौरन भागा-भागा अपने कमरे में आया व अदिती का प्रवेश पत्र निकाल कर उसका रोल नम्बर देखा व फिर दोबारा से मेडिकल कोचिंग इंस्टीट्यूट की बेवसाइट चेक करी तो एन्थे का रिजल्ट मेरे सामने था, मैं पैनी नजरों से अदिती का रोल नम्बर ढूढ रहा था, मैंने पहले 50% , 60% , 70% , 80% स्कालरशिप कॉलमों में अदिती का रोल नं0 देखा परन्तु मुझे उसका  रोल नम्बर कही नहीं मिला। काफी खोजबीन करने पर मुझे ज्ञात हुआ कि रोल नं0 डालकर भी सीधा परीक्षाफल प्राप्त किया जा सकता है। मैंने अदिती का रोल नम्बर इन्स्टीट्यूट की साइट में डाला तो उसका परीक्षाफल देखकर मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई। अदिती को 100% स्कालरशिप मिला था व उसकी ऑल इण्डिया रैक ढेड लाख बच्चों में से 121रैंक  थी। इन्स्टीट्यूट में 100% स्कालरशिप का अर्थ करीब 3.50 लाख रूपये की छूट थी। घर में खुशी का माहौल था जैसे हमने आधा मैदान मार लिया  था। मैने मेडिकल कोचिंग के मुख्य शाखा दिल्ली में फोन कर अदिती का परीक्षाफल कन्फर्म किया तब उन्होंने मुझे बताया कि अदिती को 100% स्कालरशिप मिला है व अदिती को इस्टीट्यूट में एक रूपया भी नहीं देना है । बल्कि वह 11वी व 12वी में  दो वर्षों तक अदिती को मेडिकल प्रवेश परीक्षा की कोचिंग करवायेगा। इसके साथ ही उन्होनें हमें पूरे भारत वर्ष में कोचिंग की किसी भी शाखा में फ्री (निशुल्क) कोचिंग का ऑफर दिया। मैंने उनसे सोचने के लिये कुछ वक्त मांगा कि कोचिंग कहा करवानी है, उन्होंने हमें 15-20 दिनों का वक्त दिया और कहा आप हमें सोच समझकर बता दें8। घर के सभी लोग अदिती के स्कूल से घर लौटने का इंतजार करने लगे ताकि उसे उसकी उपलब्धी से अवगत करा सके। अदिती के स्कूल से आते ही दादा, दादी, मम्मी, भाई पार्थ सबने उसे गले से लगा लिया व 100%  स्कालरशिप व पूरे भारत में कहीं भी मेडिकल कोचिंग की बात बताई। अदिती ने अपने चिर परिचित  अंदाज में कह दिया पापा वह पहले 10 की बोर्ड परीक्षा की तैयारी करेगी, 

 परीक्षा के बाद ही मेडिकल कोचिंग का सोचेगी। अब घर में मंथन शुरू हुआ कि अदिती कोचिंग कहा करेगी। सबसे बड़ी मुश्किल यह थी कि अदिती 10th डी०पी०एस०, मुरादाबाद से कर रही थी व हमारा 12वी भी वहीं से कराने का इरादा था। पता यह चला कि कोचिंग का समय सुबह 8 बजे से दोपहर 2.30 बजे तक है, तो अदिती अपनी 11/12वी की पढ़ाई कैसे करेगी। कुछ मित्रो ने सलाह दी कि डमी एडमीशन कराकर कोचिंग करा सकते हैं। किन्तु इसके लिये मन नहीं माना। अपनी दुविधा मैंने इन्स्टीट्यूट की मुख्य शाखा दिल्ली में फोन करके बताई कि हमारा परिवार अदिती को दिल्ली की साउथ एक्स शाखा में कोचिंग कराना चाहता है, किन्तु डी0पी0एस0 मुरादाबाद में भी एडमीशन बरकरार रखकर 11°/12 वी करवाना चाहते हैं, यह कैसे सम्भव होगा। हमारी दुविधा को इंस्टीट्यूट वालो ने समझा व हमें यह सलाह दी कि वह वीकेन्ड  क्लास भी कोचिंग कराते है। उन्होने हमसे कहा कि आप डी0पी0एस0 मुरादाबाद में 11वी प्रवेश करा के सोमवार से शुक्रवार तक अदिती को पढ़ाकर शनिवार व रविवार को वीकेंड क्लासेस साउथ एक्स, दिल्ली शाखा में ज्वाइन करा सकते हैं। साथ ही उन्होनें यह भी कहा यह काम मुश्किल जरूर है लेकिन असम्भव नहीं है। मुझे उनकी वीकेंड क्लास वाली बात पसन्द आई व परिवार, मित्रों, अदिती को यकीन दिलाकर कि यही हमारे लिये सही है ,मैंने  जनवरी 2016 के अन्तिम सप्ताह स्वंय जाकर इन्स्टीट्यूट की साउथ एक्स शाखा में अदिती का रजिस्ट्रेशन करा दिया। उन्होनें हमें मार्च 2016 की अन्तिम सप्ताह से वीकेंड क्लास शुरू होने की बात कहीं व समय से आने का निर्देश दिया।

मार्च 2016 से अन्तिम सप्ताह में अदिती की वीकेंड क्लासेस शुरू हो गई, मैं और अदिती प्रत्येक शुक्रवार शाम 4.30 बजे बिलारी से बस से निकलते 5.15 पर कोहिनूर चौराहा, मुरादाबाद पहुंचकर 5.30 बजे एसी0 बस दिल्ली जाने वाली पकड़ लेते थे, एसी0 बस ठीक रात्री 9 बजे कौशम्बी (दिल्ली) बस स्डेण्ड पहुंच जाती थी, वहां से साउथ एक्स, दिल्ली का आटो पकड़कर आर0के0 लौज पंहुच जाते थे। शनिवार सुबह 8 बजे अदिती कोचिंग क्लास चली जाती थी और मैं सुबह 9.30 बजे तैयार होकर चांदनी चौक, भागीरथ पैलेस सर्जीकल मार्केट चला जाता था। दोपहर 2.30 बजे अदिती की क्लास छूटती थी मैं भी 2.30 बजे तक सर्जिकल मार्केट से लौट आ जाता था। इसके बाद हम फोन पर बंगाली स्वीट को आडर देकर खाना मंगवाकर खाते थे। शाम 4.30 बजे तक आराम कर अदिती अपनी पढ़ाई में लग जाती , मैं भी कुछ किताब पड़ने या लिखने में लग जाता। रात्री 9.30 बजे मैं मैकडोनाल्ड से अदिती के लिये बर्गर आदि लाकर देता व कुछ हल्का फुल्का खुद खाकर 10 बजे तक सो जाता था। अदिती 12 या 1 बजे तक पढ़ती  रहती थी। व रविवार सुबह 8 बजे उठकर कोचिंग क्लास चली जाती। रविवार के दिन में सुबह 11 बजे तक तैयार होकर कमरा खाली कर देता था व सारा सामान आर0के0 लौज के रिस्पशन पर रखकर, सर्जिकल सामान की सप्लाई के लिये निकट के मार्केट जैसे, कोटला, लाजपतनगर, आईएनए आदि चला जाता था। करीब 2.15 बजे दोपहर तक मार्केट से वापस आकर लौज से सारा सामान उठाकर मैं इस्टीट्यूट के बाहर अदिती के आने का इंतजार करता व ठीक दोपहर 2.30 बजे जब उसकी छुट्टी होती तो हम आटो से कौशम्बी बस स्टेण्ड आ जाते, वहां हम 3.30 या 4 बजे शाम वाली एसी बस से मुरादाबाद आ जाते, फिर मुरादाबाद से बिलारी की बस पकड़ कर रात्रि करीब 9 या 10 बजे तक बिलारी पहुंचते थे। ऐसा रूटीन था हमारा शुक्रवार से रविवार के मध्य और ऐसा रूटीन अप्रेल 2016 से सितम्बर 2016 तक लगातार चला। हमारे कई मित्र जब इस रूटीन को सुनते तो ताजुब्ब करते थे और कहते थे कि आपने बहुत मुश्किल राह चुन ली है, मगर मुझे गीता की उस श्लोक का स्मरण था जिसका अर्थ है "कर्म कर फल की चिन्ता मत कर" सितम्बर 2016 तक हम हर सप्ताह दिल्ली आते रहे व अदिती की पढ़ाई भी अच्छी चल रही थी। इस्टीट्यूट में होने वाले टेस्टों में अदिती अच्छा प्रदर्शन कर रही थी यह देखकर मेरी भी हिम्मत बढ़ती रही।

अचानक एक दिन सितम्बर 2016 के अन्तिम सप्ताह की बात है, अदिती घर में एक कमरे में लाइट बंद करके बैठी हुई थी। मैंने लाइट खोली तो देखा अदिती रो रही थी, मैंने अपनी पत्निी डा0 सोनिया आहूजा व माता जी को बुलाया व अदिती से रोने का कारण पूछां, अदिती ने रोते हुये कहा-पापा मैं बहुत थक जाती हूं व 11वी की पढ़ाई भी मैं ढंग से नहीं कर पा रही हूं। अदिती की बात सुनकर घर के सभी लोग स्तम्भ रह गये, लेकिन हमें अदिती की भावनओं को भी समझना था अतः हमने अदिती का पक्ष लेते हुये उसे समझाया कि हम सब उसके साथ वह अपनी पढ़ाई सम्बन्धी निर्णय लेने के लिये स्वतन्त्र हैं।इसके बाद सितम्बर 2016 से हमनें दिल्ली कोचिंग  की शाखा में जाना बन्द कर दिया। इधर अदिती भी अपनी 11वी की पढ़ाई में व्यस्त हो गई, दो तीन सप्ताह इस्टीट्यूट न जाने की बजह से हमें वहा से बार-बार फोन आने लगे कि आप क्यों नहीं आ रहे है। अदिती को एक माह लगातार 11वी  की पढ़ाई मुरादाबाद करने के बाद अपनी भूल का अहसास हुआ व एक दिन वो मेरे व सोनिया के पास आकर बोली पापा मैं कोचिंग पुनः शुरू करना चाहती हूं। हमारी खुशी का ठिकाना न था, क्योंकि अदिती ने स्वंय कोचिंग करने को उसी शक्रवार से कोचिंग शुरू करने को कहा, हमने  उससे पूछा कि पिछले एक माह में जो कोचिंग का नुकसान हुआ है उसे वह किस प्रकार पूरा करेगी। अदिती ने कहा मैं दिल्ली से मुरादाबाद जाने वाली बस में चार घण्टे मोबाइल पर यूट्यूब क्लास ले लेगी व रात को भी देर तक पढ़कर अपने एक माह के नुकसान की भरपाई कर लेगी। हमें अदिती पर पूर्ण विश्वास था और हमने उसकी कोचिंग पुनः चालू करवा दी। उसके बाद चाहे एक दिन के लिये भी क्लास लगी अदिती ने कभी छुट्टी नहीं की।

इस प्रकार हम अक्टूबर 2017 तक प्रत्येक शुक्रवार को दिल्ली आते रहे कभी अदिती की मम्मी व कभी दादी भी समय-समय पर उत्साहवर्धन के लिये उसके साथ दिल्ली आती रही।

अक्टूबर 2017 तक अदिती ने अपनी कोचिंग क्लास मे  कक्षा  11 व 12* का पूरा कोर्स कर लिया उसके बाद मेडिकल कोचिंग इस्टीट्यूट की यह नियम था कि वह 11th का कोर्स दोबारा शुरू कर देते थे। अदिती ने हमसे कहा कि उसने 11 व 12* का कार्स अच्छे से कर लिया है। फिर 11th का कोर्स दोबारा करने के लिये वीकेंड पर आना जरूरी नहीं "मैं अच्छे से घर पर ही तैयारी कर पाउगीं।" हमने इस बार भी अदिती के निर्णय को प्रथमिकता दी व अक्टूबर 2017 से वीकेंड क्लास में आना बंद कर दिया।

अब अदिती ने घर पर ही तैयारी शुरू कर दी व अक्टूबर 2017 से दिसम्बर 2017 तक पूरी 11वी का कोर्स तैयार कर लिया। इसी बीच अदिती ने हमें बताया कि दिल्ली कोचिंग की भागदौड़ में वह 12th बोर्ड की परीक्षा की इंग्लिश की तैयारी नहीं कर पाई है। अदिती ने पहले यूट्यूब से इग्लिश की क्लास ली पर यूट्यूब में उसे काफी समय लग रहा था और बोर्ड परीक्षा काफी नजदीक थी। तब हमने मुरादाबाद एक अंग्रेजी की अध्यापिका जोकि काफी प्रतिष्ठित स्कूल में कार्यरत हैं उनसे मिलकर अपनी समस्या बताई। अदिती से मिलकर वो काफी प्रभावित हुई व उन्होनें अदिती को अंग्रेजी पढ़ाने का वादा किया। लेकिन उन्होने कहा कि वह कभी-कभी ही पढ़ा सकती है, हमने उनकी सभी शर्ते स्वीकर कर अदिती को वहां ट्यूशन शुरू कर दिया। अंग्रेजी की अध्यापिका ने 5 या 6 बार बुलाकर 3-3 घण्टे पढ़ाकर अंग्रेजी का 12 का कोर्स करा दिया परिणाम स्वरूप अदिती के 12 बोर्ड परीक्षा में पूरे स्कूल में अधिकतम नम्बर आये जो 96.4% थे। इसके अतिरिक्त अदिती ने पूरे जिले में चौथा स्थान प्राप्त किया।

अदिती 12वी की परीक्षा हो चुकी थी और वीकेंड क्लास जिसमें हम पिछले दो वर्षों से जा रहे थे उसकी मुख्य परीक्षा नीट 2018 भी होने वाली थी, चूंकि अदिती ने अक्टूबर 2017 से कोचिंग सेन्टर जाना बंद कर दिया था, अतः हमने परीक्षा के बीच करीब एक माह के समय में अदिती क्रेश कोर्स कर ले ताकि उसने जो भी दो वर्षों में तैयारी की है उसका रिविजन हो जाये। इसके लिये अदिती ने क्रेश कोर्स र्हेतु फिर स्कालरशिप की परीक्षा दी जिसमें उसे 80% स्कालरशिप मिली, हमने बाकी की 20% फीस देकर अदिती का क्रेश कोर्स में रजिस्ट्रेशन करा दिया।

चूंकि क्रेश कोर्स प्रतिदिन होना था, अतः हमने यह निर्णय लिया कि 12th की बोर्ड परीक्षा के तुरन्त बाद मैं अदिती के साथ दिल्ली में एक माह रहकर क्रेश कोर्स पूर्ण

करवाऊगां। जब क्रेश कोर्स से पूर्व हम दिल्ली पहुंचे तो हमें इन्स्टीट्यूट की शाखा से पता चला कि इस्टीट्यूट की तरफ से जो हमने दो वर्षों तक वीकेन्ड क्लास की थी उस पूरे कोर्स के 12 टेस्ट नीट 2018 से पहले लिये जायेगें। हम फिर दुविधा में फंस गये कि क्रेश कोर्स करे या 12 टेस्ट दें। हमने अदिती से उसकी राय पूछी तो उसने कहा कि हम जो कोर्स करने दिल्ली आये थे, उसे ही पूरा करेगें व उससे सम्बन्धित 12 पेपर देगें। अगर समय बचा तो क्रेश कोर्स के अन्त में मुख्य टेस्ट दे देगें। हमने एक बार अदिती के निर्णय को प्राथमिकता दी व नीट 2018 से पूर्व 12 टेस्ट दिये।

अंत में नीट 2018 के पेपर का दिन भी आ गया, उस पेपर का केन्द्र हमने दिल्ली ही रखा था ताकि अन्तिम समय में हमें इधर-उधर न भागना पड़े। पेपर से ठीक एक दिन पहले अदिती की मम्मी भी दिल्ली पहुंच गई ताकि अदिती का उत्साह वर्धन हो सके। अदिती का पेपर बंसत बिहार स्थित  हरकिशन पब्लिक स्कूल में हुआ पेपर सुबह 10 से दोपहर 1 बजे तक था, मैं और सोनिया बाहर कड़कती धूप में इंतजार करते रहे, ठीक 1 बजे अदिती का पेपर खत्म हुआ बाहर आकर उसने हमसे कहा कि पेपर ठीक हो गया है। हमने ईश्वर का धन्यवाद दिया व चैन की सांस ली। उसके बाद हम आर0के0 लौज पहुंचे व अपना सारा सामान समेटकर बस द्वारा बिलारी की ओर रवाना हो गये व रात्रि 10 बजे तक बिलारी पहुंच गये।

अगले दिन अपने दो वर्षों की थकान मिटाकर सुबह सब तैयार बैठे थे, सभी ने परम पिता परमेश्वर से आर्शीवाद लेने का निर्णय किया व अदिती को लेकर हम मन्दिर पौड़ा खेड़ा पहुंचे व शिवलिंग पर जल चढ़ाकर ईश्वर से आर्शीवाद प्राप्त किया। मन्दिर से लौटकर मैंने अदिती को नेट से नीट 2018 की उत्तर कुंजी निकाल कर दी व उससे बिल्कुल सटीक नम्बर गिनने को कहा। अदिती ने तुरन्त ही उत्तर कुंजी से नम्बर गिनने शुरू किये व इस निष्कर्ष पर पहुंची थी उसके 581 से 590 नम्बर बीच नीट 2018 में आ जायेगें। यह सुन हमारा पूरा परिवार संतुष्ट हो गया कि अदिती अब डॉक्टर बनने के करीब है बस नीट 2018 के रिजल्ट आना बाकी है। अब वो दिन भी आ चुका था जब नीट 2018 का रिजल्ट आना था, असल में नीट ने पहले 5 जून 2018 रिजल्ट को कहा था, मैंने अनायास ही 4 जून 2018 को इन्स्टीट्यूट की शाखा दिल्ली में फोन कर लिया व पूछा कि नीट का रिजल्ट कब आयेगा, तब उन्होनें मुझे बताया कि

नीट 2018 का परीणाम आज ही आने वाला है। मैंने तुरन्त अदिती को तैयार होकर परम पिता से आर्शीवाद लेने को कहा, तत्पश्चात मैं व अदिती अपने घर के समीप गुल प्रिंटर्स पर रिजल्ट देखने पहुंचे, वहां पता चला कि रिजल्ट आ चुका है ।अदिती का रोल नम्बर व सेन्टर नं0 उन्हें बताया तब उन्होनें जैसे ही अदिती का रोल नम्बर व सेन्टर नं0 कम्प्यूटर में डाला तो रिजल्ट स्क्रीन पर था अदिती के 581 नम्बर आये थे और उसकी ऑल इण्डिया रैंक 2988 थी अब वह डॉक्टर बन चुकी थी। मेरे व अदिती की आंखो से आंसू निरन्तर बह रहे थे, हमारी दो वर्षों की मेहनत सफल हो चुकी थी।  वहां खड़े सभी लोगों ने हमें ढेरो शुभकामनायें दी, हम नीट 2018 के रिजल्ट का प्रिंट आउट लेकर घर आ गये और ये खुश खबरी पूरे परिवार को बता दी। इसके बाद दोपहर एक 1 बजे से रात्रि 10 बजे तक फोन पर व व्यक्तिगत रूप से पूरे बिलारी के हमारे सभी मित्रों ने बधाई दी। पूरे परिवार में सभी हंस खुशी के पल में आंसू भी बहा रहे थे, ये खुशी के आंसू थे क्योंकि यह सफलता 2 वर्षों के अथक प्रयासों के बाद अर्जित हुई थी।

नीट 2018 के रिजल्ट के बाद काउंसलिंग का दौर शुरू हुआ जो करीब दो माह तक चला जिसमें अदिती को स्टेट काउंसिलिंग के माध्यम से कानपुर मेडिकल कालेज जी0एस0वी0एम0 में दाखिला मिला, चूंकि अदिती की स्टेट रैंक 263 व ऑल इण्डिया रैंक 2988 रही इस कारण अदिती अपनी पंसद का कॉलेज चुनने में भी सफल रही। आज अदिती जी०एस०वी०एम० मेडिकल कालेज, कानपुर में एम0बी0बी0एस की पढ़ाई कर रही है और अपना भविष्य संवारने के लिये प्रयासरत है, मैं उसके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूं। लेकिन जंग अभी जारी हैं........

इस प्रेरणा दायक कहानी लिखने का मेरा मकसद कोई सहानूभति लेना नहीं है, मैं बस इतना चाहता हूं कि इसे पढ़कर यदि एक छात्र भी प्रेरित होकर अपना भविष्य संवार पाये तो मेरा प्रयास सफल होगा।

✍️विवेक आहूजा, बिलारी ,जिला मुरादाबाद 

@9410416986

Vivekahuja288@gmail.com

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की लघुकथा ------जब आवै संतोष धन

 


धक्का- मुक्की, तू तू-मैं मैं करते लोग एक दूसरे के ऊपर चढ़ने को तैयार तथा किसी भी सूरत से टिकिट पाने की आतुरता ने आदमी का विवेक भी शून्य करके रख दिया था।कभी-कभार तो गाली गलौज के साथ अभद्रता का नग्न प्रफ़र्शन करने से भी नहीं चूक रहे थे।

 तभी एक वृद्ध व्यक्ति ने पास जाकर इसका कारण जानने का प्रयास किया तो पता चला कि उस पिक्चर हॉल में 'जय संतोषी माँ' पिक्चर कल ही लगी है और हर कोई उसके पहले शो का पहला टिकिट पाने की जुगाड़ में लगा है।

          उन महानुभाव ने अपना माथा पीटते हुए कहा ये लोग कितने अज्ञानी हैं ये इतना भी नहीं समझना चाहते कि जिस पिक्चर को देखने के लिए इन्होंने इंसानियत की सारी हदें पार करके अपने संतोष को ही तिलांजलि दे दी है। 

  कम से कम फ़िल्म के टाइटिल को ही गौर से पढ़ लेते।

मैंने तो पूर्वजों को यहीकहते सुना है कि ''जब आवै संतोष धन सब धन धूरि समान''     

✍️वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी,  मुरादाबाद/उ,प्र,

 मो-  9719275453

   

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी वर्मा की लघुकथा -----मेहंदी


निशा को बचपन से ही बहुत शौक था मेहंदी लगाने का। करवाचौथ, तीज व रक्षाबंधन की दिन सभी उसके आसपास वाले उसे एक-दो दिन पहले से ही मेहंदी लगवाने के लिए तैयार रहते थे।आखिर निशा मेहंदी ही इतनी सुंदर व लाजबाव लगाती थी। सबसे अंत में निशा  अपने मेहंदी लगाती थी पूरे- पूरे हाथ भर कर। एक हफ्ते तक कोई काम नहीं करना चाहती कि कहीं मेहंदी का रंग फीका ना पड़ जाए। आज उसकी तीसरी करवा चौथ है बस यही सोच रही थी कि कमरे में आवाज आई "निशा मेहंदी लगा लो।"निशा की सासू मां ने कहा "जी मां जी रसोई का थोड़ा काम निपटा लूं और रोहन को सुला दो तभी मेहंदी लगाऊंगी। रात के 11:00 बज चुके थे। निशा मन ही मन सोच रही थी‌ अभी तो खाना भी खाना है रोहन भी नहीं सोया, अभी काम भी पड़ा है पता नहीं कब लगा पाऊंगी मेहंदी घर का काम निपटाने और रोहन को सुलाने में 12:30 बज चुके थे। निशा इतना थक कर चूर हो चुकी थी कि उसमें मेहंदी लगाने की हिम्मत भी ना थी पर शगुन तो करना था।अब शरीर जवाब दे चुका था आँखो को नींद अपने आगोश में ले रही थी। निशा ने पानी से मुँह धोया और मेहंदी का कोन देकर बैठ गई और जरा देर सोचा और फिर सुंदर गोल बड़ी सी बिंदिया बनाकर उसके चारों ओर छोटी-छोटी बिंदिया लगा दी। अब निशा उसे ही निहार रही थी जैसे उस से सुंदर मेहंदी उसने आज तक ना लगाई हो यह मेहंदी थी उसकी पारिवारिक जिम्मेदारियों की, यह  मेहंदी थी उसकी व्यस्तता की, यह मेहंदी थी उसकी ओझल होती हुई आशाओं की, यह मेहंदी थी उसके संपूर्ण ग्रहस्थ जीवन की  पर वह खुश है और निहार रही है उस गोल बिंदिया को अपलक क्योंकि यह निशानी है उसके सुहाग की।

✍️ मीनाक्षी वर्मा, मुरादाबाद,  उत्तर प्रदेश

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार मनोरमा शर्मा की लघुकथा ----- बोझिल परम्पराएं

 


भाभी मुझे पैसे दे दो मुझे जरुरत आन पड़ी है 

मैंने कल दीदी से भी बोला था आप स्कूल गईं हुईं थीं ,मुझे आज पाँच सौ रुपए दे दो ।मैं थोड़ी झुंझलायी कि यह हमेशा ही यही करती है ,महीना पूरा होने नही देती, बीस तारीख को ही तकाज़ा हाजिर रहता है ।रानी मैंने तुमसे कई बार कहा कि महीना पूरा तो होने दिया करो ।

भाभी मेरा महीना तो बीस को ही होता है ,वहबोली ।

पिछले दिनों जब लाॅकडाउन चल रहा था, मैंने तुम्हे तीन महीने बिना काम के ही पैसे दिए थे या नही ,दिए थे और तुम बीस तारीख का ही रोना लिए रहती हो ।दस दिन तुम उसी में एडजेस्ट कर लो और न जाने कितनी बार तुम लम्बी लम्बी छुट्टियाँ कर लेती हो ,तो ???  मैंने कभी तुम्हारे पैसे काटे ??

काम बाली बाई रानी चुपचाप सुन रही थी ,बोली ,ना भाभी मेरे घर सास की बरसी है उसी के सामान के लिए मुझे चाहिए ।मेहमान आयेंगें ,रिश्तेदार आयेंगें और हमारे यहाँ ननदों को कपड़े लत्ते देकर विदा किया जाता है ।पण्डित जी जीमेंगें ।सामान बगैहरा दिया जायेगा ,बहुत खर्चा है ।

मेरा लहजा कुछ ठंडा पड़ चुका था ।मैं बोली , ऐसे हालात में तुम्हे इतना सब क्यों करना है ? तुम्हारा आदमी इतने दिनों से काम धंधे से छूटा पड़ा था ,तीन -तीन बेटियाँ हैं ,कैसे करोगी यह सब ?

भाभी जी लोकलिहाज को करना ही पड़ेगा । हमारे जेठ तो खत्म हो गए तब से जेठानी तो कुछ खर्चा करती नही और देवर करना नही चाहता , वह तो सास की एक कोठरी हड़पने की चाहत में नाराज़ हुआ बैठा है ,तो बचे हम । हम भी न करेंगें तो बताओ बिरादरी बाले क्या कहेंगें । सासु जी की आत्मा भी हमें ही कोसेगी ।करना तो पड़ेगा ही ।खैर मैं ज्यादा और सुनने के मूड में नही थी ।मैंने उसे पैसे दिए और अपने काम में व्यस्त हो गई ।

मैं इस धार्मिक महाभोज के बारे में सोचने लगी कि बताओ ये गरीब मजदूर वर्ग भी अपने ये रस्मोरिवाज़ दिन रात मेहनत करके , पाई पाई जोड़कर या हो सकता है कि अपने काम से एडवांस ले लेते हों तब भी भरसक निभाना चाहता है ।अपनी इन पुरातन परम्पराओं का बोझ मेरे मन पर भी भारी होने लगा हालांकि हम भी यही सब करते ही आ रहें हैं ।

✍️मनोरमा शर्मा, अमरोहा

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार राम किशोर वर्मा की लघुकथा-----मी टू


     "चंदू यह 'मी टू' क्या है?"- -लल्लू ने भोलेपन में मालूम किया ।

     "आजकल टी वी वाले बहुत दिखा रहे हैं ।" -- कहते हुए चंदू ने बताया --"ऐसा कानून जिसमें महिला ने अपने हित के लिए किसी पुरूष से अनैतिक शारीरिक संबंध बना लिये हों और तब अपना मुंँह बंद रखा हो । जिसकी शिकायत पुलिस में कई वर्ष बाद भी की जा सकती हो ।"

   लल्लू ने आश्चर्य से कहा -- "महिला ने तब शिकायत क्यों नहीं की ? जबकि महिलाओं के हित में अनेक कानून हैं। फिर कानून में हर शिकायत की समय सीमा भी तय की हुई है । यह कैसा 'मी टू' ?"

     चंदू हंस दिया -- "यह कानून बड़े लोगों के लिए है ।"

✍️राम किशोर वर्मा, रामपुर

        




मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा -----किराएदार

     


शरद की आयु पैतीस साल हो चुकी है।उसका जन्म इसीघर मे हुआ था।बचपन से वह उसेही अपना घर समझता था।मगर जब मालिक मकान आकर किराए का तकादा करता तब उसे समझ आया कि वह किराए दार है ।वह घर उनका नहीं।मामूली से किराए के घर मे वह लगभग 50साल से  दादा के समय से रह रहे थे।मकान मालिक की मृत्यु के बाद उसके बेटो ने जब मकान खाली करने को कहा तो वह साफ मुकर गया।मुकदमा भी किया।दो वर्ष निकल गये।थककर मकान मालिक के बेटो ने समझौता करना उचित समझा। 5लाख मेंं सौदा पट गया।आज वह घर छोडकर जा रहा था। उसने अपना मकान बनाने का इरादा छोड दिया।उसे समझ में आ गया कि किराएदार बने रहने मे ही फायदा है।

✍️डा.श्वेता पूठिया, मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेन्द्र शर्मा सागर की लघुकथा---- -सरकारी अनाज


"नहीं नहीं आपके गेहूं का ये रेट नहीं मिलेगा, आपके गेहूं में बहुत कबाड़ है। आपको 20 परसेंट काट कर रेट मिलेगा", सरकारी तौल पर अधिकारी ने किसान से ऊँची आवाज में कहा।

"लेकिन हुज़ूर इस बोरी में तो वह गेहूं है जो हर महीने राशन कोटे से हमें मिलता है।

पिछले चार महीने से यही गेहूं मिल रहा है राशन में, और इसे घर में सबने खाने  से मना कर दिया; जबकि हम किसानों का अनाज तो तीन तीन बार छान कर भी 10 से 20 परसेंट काट कर रेट दिया जाता है", किसान ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।

✍️नृपेंद्र शर्मा "सागर", ठाकुरद्वारा, मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ शोभना कौशिक की लघुकथा ---कर्मों का फल

 


आज सुबह ही मैं अपनी छत पर खड़ी बाहर निहार रही थी ,रात ही तो खूब अच्छी बारिश पड़ी थी ,पार्क के चारो तरफ के पेड़ मानो अपनी हरियाली पर इठला रहे थे जैसे कह रहे हो हमने अपना पुराना कलेवर बदल कर नया कलेवर पहन लिया है दो चार बच्चे पार्क में झूला झूल रहे थे । जब से कोरोना का आतंक लोगो मे बैठा है कम ही लोग बाहर निकलते , न पहले की तरह चहल पहल रहती ,न ही कोई किस्सा गोई ।सब मिलते एक दुसरे का हाल जाना और घरों में अंदर हो जाते तभी मेरी नजर मेघा पर पड़ी ये वो  ही मेघा थी ,जो किसी जमाने मे अपने घर  की रानी हुआ करती थी पढ़ी लिखी देखने में भली लेकिन कर्मों का फल नही तो क्या ,आज दर दर की ठोकरे खाने के लिये मजवूर है ।बच्चों ने घर से बाहर ऐसा निकाला ,कि दोबारा मुड़ कर न देखा।पार्क की एक बैंच पर बैठी वो अकेली झित्रिय के उस पार कुछ ढूंढ़ने का प्रयास कर रही थी लेकिन उसकी सुनी सुखी आँखे उसे धोखा दे रही थी ।मैं खड़ी सोच रही थी ,जब कोरोना काल में इतनी ऐहतियात बरतने के दिशा निर्देश दिए जाते है ,बार बार हाथ धोने मास्क पहनने की हिदायतें दी जाती है ।तो भला इसे ये सब बताने के लिए कौन कहेगा, ये इसे भगबान का सहारा नही तो क्या है ,कि बिना किसी साफ सफाई व सतर्कता के भी ये निश्चत हो अपने कर्मो का फल भोग रही है ।सच ही कहा गया है कर्मो का फल आज नही तो कल भोगना अवश्य पड़ता है

✍️शोभना कौशिक, बुद्धि विहार , मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार डॉ राजेन्द्र सिंह विचित्र की लघुकथा ---- गरीब लड़की



       एक लड़की थी जिसका नाम चम्पा था चम्पा के माता-पिता बहुत गरीब थे जिसके कारण वह पढ़ लिख भी ना सकी ।चम्पा ने जब अपने जीवन के बीस बसन्त पूरे किये तब फिर वह अपनी शादी के  सपने सँजोने लगी और सोचने लगी की शायद भविष्य में अपने होने वाले पति के साथ सुख से जी सकूँगी तथा फिर उसके माता-पिता ने उसका विवाह चन्दन नाम के एक व्यक्ति के साथ कर दिया ।चन्दन शराब पीने का बहुत आदि था जिसके कारण आये दिन घर में झगड़ा होता रहता था। धीरे-धीरे समय गुजरता गया और फिर चम्पा के एक लड़का पैदा हुआ फिर आठ महीने बाद चम्पा के एक लड़की तथा दस महीने बाद एक लड़का और हुआ। चम्पा का पति चन्दन तब भी खूब शराब पीता था।एक दिन अचानक चम्पा की तबियत बिगड़ गयी उसे अच्छा इलाज नहीं मिल सका जिसके कारण उसकी बीमारी धीरे-धीरे बढ़ती चली गयी।उसका इलाज कराने के लिये घर में पैसे नहीं थे जिससे उसे अच्छे डॉक्टर को नहीं दिखाया जा सका लेकिन उसका पति रात-दिन शराब पीता रहता था। लम्बी बीमारी के चलते चम्पा की एक दिन मृत्यू हो गयी और वह अपने पीछे अपने सपने,यादें तथा तीन बच्चों को छोड़ गयी।

✍️डॉ.राजेन्द्र सिंह 'विचित्र,' रामपुर ,उत्तर प्रदेश

असिस्टेंट प्रोफेसर, तीर्थकर महावीर विश्वविद्यालय मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार सीमा रानी की लघुकथा ----दोस्ती

        बडा नाज था मनु काे अपनी व स्नेहा की दोस्ती पर | स्नेहा भी मनु की सबसे हितैषी व सच्ची सहेली हाेने का दम्भ भरती थी क्याेंकि वह बहुत मीठा बाेलती थी और देखने में व्यवहार भी सौम्य था | कोई भी व्यक्ति उससे बात कर उसका कायल हो जाता था |स्नेहा लिखती भी अच्छा थी एवं अपना काम दूसराें से कैसे निकाला जाता है यह तो कोई उससे सीखे........... |

          जब भी स्नेहा काे कोई पुरस्कार मिलता तो मनु फूली नहींं समाती, बढ -चढ कर सबसे पहले मुबारकबाद देती और साेशल साइट पर भी खूब प्रचार प्रसार करती |

         मनु भी पढनें में बहुत अच्छी थी |इस बार उसने अपनी   कक्षा टॉप की ताे प्रधानाचार्य जी ने उसे पुरस्कृत किया |सभी मित्रों व सहपाठियाें ने उसे बधाई दी पर मनु की आँखें तो कुछ और खाेज रही थी......... वह रह रह कर सभागार के गेट की तरफ टकटकी लगाकर देख रही थी पर स्नेहा का कहीं कोई पता नही था............... |


✍🏻सीमा रानी , पुष्कर नगर , अमराेहा 

  मोबाइल फोन नम्बर 7536800712

मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर की साहित्यकार रचना शास्त्री की कहानी ----जीवन नैया


"ये नदी कितनी गहरी होगी"नाव में बैठी प्रियतमा ने प्रियतम से पूछा।

"तुम्हारे हृदय से अधिक गहरी नहीं"प्रियतम ने उत्तर दिया। 

प्रियतमा हॅस पड़ी,उस शान्त रात्रि में प्रियतम ने भी उसका साथ दिया दोनों के हॅसी के स्वर मिलकर एक हो गये थे।

हॅसते हॅसते नाव पार जा लगी प्रियतम ने नाव की पतवार सॅभाल कर एक ओर रख दी हाथ पकड़कर प्रियतमा को उतारा 

"कल फिर आओगी" प्रियतम ने पूछा 

"हाँ आऊंगी, नहीं आयी तो खो नहीं जाऊँगी"कहीं दूर क्षितिज की अनन्त गहराईयो मे देखती हुई प्रियतमा ने कहा और चली गई।प्रियतम देखता रहा उसे जाते हुए और फिर वह भी लौट गया पुनः शाम की प्रतीक्षा में 

यही क्रम चलता रहा प्रियतमा आती प्रियतम के संग नौका विहार करती और सवेरा होते ही दोनों लौट जाते अपने अपने मार्ग पर ।

'संध्या का समय था प्रियतम नौका लेकर तैयार खड़ा था विहार के लिए कि प्रियतमा आती दिखाई दी,उसका मन प्रसन्नता से भर गया।

'आओ चले' पास आने पर उसने प्रियतमा से पूछा।

'हाँ चलो' प्रियतमा ने कहा, मुझे जीवन की उस अनन्त यात्रा पर ले चलो जहाँ से मैं फिर लौट न सकूँ। 

"प्रियतम क्या तुम मुझे वहाँ ले चलोगे" प्रियतमा ने उसके कान के पास मुँह लाकर धीरे से पूछा।

"मेरी जीवन-यात्रा तुम्हारे संग पूर्ण हो यह मैं भी चाहता हूँ पर तुम एक ब्राह्मण -कुमारी हो और मैं साधारण माँझी, हमारा संग समाज को कभी स्वीकार्य नहीं होगा"प्रियतम ने निगाहें झुकाकर उत्तर दिया।

प्रियतमा ने उसका हाथ पकड़ लिया नदी की शान्त धारा मे पड़ते तारों की छाया शत-शत दीपो के समान झिलमिला उठी चाँद भी लहरों के साथ खेलने लगा,नाव धीरे-धीरे बीच में पहुँच गयी।

   "प्रियतम आओ जीवन-यात्रा पूर्ण करें"कहते हुए प्रियतमा ने प्रियतम का हाथ पकड़कर नदी में छलाँग लगा प्रियतम कुछ समझ न पाया और दोनों नदी की अनन्त गहराईयो मे विलीन हो गये और उनकी जीवन-नौका आज भी इस समाज रूपी नदी में बहती जा रही है अनन्त की ओर  हौले -हौले -हौले -हौले।

✍️रचना शास्त्री 

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा -----प्रेम की भेंट


अवनि ने सखियों के मुँह सुना था कि विवाह की पहली रात पति प्रेम की भेंट पत्नी को देता है ।नई दुल्हन अवनि अपने सपनों के राजकुमार अपने पति की उस भेंट के सपने गढ़ रही थी कि पति ने कमरे में प्रवेश किया। "सुना था कि तुम शादी नहीं करना चाहती थी । " जहाँ नौकरी करती है वहीं किसी से चक्कर है का?"अमन ने अपनी नव विवाहिता को घूरते हुए कहा, 

यही तो वह भेंट थी जिसकी आकांक्षा में उसने अपने सारे सम्बन्धी पराये कर दिये ।अपनी आंखों निकले खारे जल मुख से पी लिया और मुख से जिन शब्दों को बाहर आना था वे पुनः पानी से गटक लिए ।

✍️डॉ प्रीति हुँकार, मुरादाबाद

मंगलवार, 13 अक्तूबर 2020

वाट्स एप पर संचालित समूह "साहित्यिक मुरादाबाद" में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है। मंगलवार 15 सितंबर 2020 को आयोजित गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों डॉ ममता सिंह , राजीव प्रखर, वीरेंद्र सिंह बृजवासी,डॉ रीता सिंह, राशि सिंह, मनोरमा शर्मा, धर्मेंद्र सिंह राजौरा, प्रीति चौधरी और शिव अवतार रस्तोगी सरस की रचनाएं.....

सूट बूट में बंदर मामा, 

फूले नहीं समाते हैं। 

देख देख कर शीशा फिर वह, 

खुद से ही शर्माते हैं।। 

काला चश्मा रखे नाक पर, 

देखो जी इतराते हैं। 

समझ रहे खुद को तो हीरो, 

खों-खों कर के गाते हैं।

सेण्ट लगाकर खुशबू वाला, 

रोज घूमने जाते हैं। 

बंदरिया की ओर निहारे

मन ही मन मुस्काते हैं।।


फिट रहने वाले ही उनको, 

बच्चों मेरे भाते हैं। 

इसीलिए तो बंदर मामा, 

केला चना चबाते हैं।। 


✍️डाॅ ममता सिंह 

मुरादाबाद

------------------------------------

नन्हीं निटिया करके मेकअप,

बन बैठी है नानी जैसी।


आँखों पर रख मोटा चश्मा,

चली सभी पर रौब जमाने।

और खिलौना-चक्की लेकर,

बैठी-बैठी लगी घुमाने।

बीत गये युग की प्यारी सी,

देखो एक कहानी जैसी।

नन्हीं निटिया करके मेकअप,

बन बैठी है नानी जैसी।


दादी-दादा चाचा-चाची,

सबको अपने पास बिठाती।

अपनी तुतलाती बोली में,

उनको अक्षर-ज्ञान कराती।

उसकी यह छोटी सी कक्षा,

दुनिया एक सुहानी जैसी।

नन्हीं निटिया करके मेकअप,

बन बैठी है नानी जैसी।


✍️ राजीव 'प्रखर', मुरादाबाद

-------------------------------------- 


 जंगल के  राजा को आया

इतना      तेज       बुखार

आंखें लाल  नाक से पानी

छीकें        हुईं       हज़ार

दौड़े - दौड़े   गए  जानवर

औषधिपति     के     द्वार

हाल बताकर कहा  देखने

चलिए      लेकर      कार।


नाम शेर का सुना हाथ  से

छुटे       सब       औज़ार

चेहरा देख सभी ने उनको

समझाया      सौ      बार

बच   जाएंगे   तो  दे  देंगे

दौलत      तुम्हें     अपार

चलिए श्रीमन  देर होरही

पिछड़    रहा     उपचार।


मास्क लगा,पहने दस्ताने

होकर     कार       सवार

डरते-डरते  पहुंचे   भैया

राजा        के      दरबार

पास  बैठके राजा जीका

नापा      तुरत     बुखार

बोले  सुई  लगानी  होगी

इनको    अबकी     बार।


सांस फूलते देख शेर की

करने      लगे      विचार

यह तो कोरोना है इसकी

दवा       नहीं       तैयार

ज़ोर ज़ोरसे  लगे चीखने

भागो      भागो      यार 

जान बचानी है तो रहना

घरके     अंदर       यार।

  

✍️वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

  मुरादाबाद/उ,प्र

मो0-   9719275453

------------------------------------


अ से अनार आ से आम , 

आओ सीखें अच्छे काम ।


इ इमली ई से ईख , 

माँगो कभी न बच्चों भीख ।


उ उल्लू ऊ से ऊन , 

कितना सुंदर  देहरादून ।


ऋ से ऋषि बडे तपस्वी , 

देखो वे हैं बड़े मनस्वी ।


ए से एड़ी ऐ से ऐनक , 

मेले में है कितनी रौनक ।


ओ से ओम औ से औजार , 

आओ सीखें अक्षर चार ।


अं से अंगूर अः खाली , 

आओ बजाएँ मिलकर ताली ।


आओ बजाएँ मिलकर ताली । 

आओ बजाएँ मिलकर ताली ।


क से कमल ख से खत , 

किसी को गाली देना मत ।


ग से गमला घ से घर , 

अपना काम आप ही कर ।


ड़ खाली ड़ खाली , 

झूल पड़ी है डाली डाली ।


आओ बजाएँ मिलकर ताली , 

आओ बजाएँ मिलकर ताली ।


च से चम्मच छ से छतरी , 

लोहे की होती रेल पटरी ।


ज से जग झ से झरना ,

दुख देश के सदा हैं हरना ।


ञ खाली ञ खाली , 

गुड़िया ने पहनी सुंदर बाली ।


आओ बजाएँ मिलकर ताली , 

आओ बजाएँ मिलकर ताली ।


ट से टमाटर ठ से ठेला , 

सुंदर होती प्रातः बेला ।


ड से डलिया ढ से ढक्कन , 

दही बिलोकर निकले मक्खन ।


ण खाली ण खाली , J

रखो न गंदी कोई नाली ।


आओ बजाएँ मिलकर ताली , 

आओ बजाएँ मिलकप ताली  ।


त से तकली थ से थपकी , 

मिट्टी से बनती है मटकी ।


द से दूध ध से धूप , 

राजा को कहते हैं भूप ।


न से नल न से नाली , 

गोल हमारी खाने की थाली ।


आओ बजाएँ मिलकर ताली , 

आओ बजाएँ मिलकर ताली ।


प से पतंग फ से फल , 

बड़ा पवित्र है गंगाजल ।


ब से बाघ भ से भालू , 

मोटा करता सबको आलू ।


म से मछली म से मोर , 

चलो सड़क पर बाँयी ओर ।


य से यज्ञ र से रस्सी ,

पियो लूओं में ठंडी लस्सी ।


ल से लड्डू व से वन , 

स्वच्छ रखो सब तन और मन ।


श से शेर ष से षट्कोण , 

अंको का मिलना होता जोड़ ।


स से सड़क ह से हल , 

अच्छा खाना देता बल ।


क्ष से क्षमा त्र से त्रिशूल , 

कड़वी बातें देती शूल ।


ज्ञ से ज्ञान देता ज्ञानी ,

हमें देश की शान बढ़ानी ।


आओ बजाएँ मिलकर ताली ,

आओ बजाएँ मिलकर ताली ।


✍️डॉ रीता सिंह, मुरादाबाद

------------------------------------


हमें गेजैटस नहीं पैरेंट्स चाहिए

मम्मी पापा का प्यार चाहिए. 


हमें ट्रिप नहीं न टॉयज चाहिए 

माँ के हाथ का खाना चाहिए. 


हमें कार नहीं न थिएटर चाहिए 

पापा मम्मी का साथ चाहिए. 


हमें वीकेंड पर रेस्टोरेंट नहीं 

हर शाम साथ साथ चाहिए. 


हमें कार्टून न डिस्कवरी चाहिए 

अपना बचपन बस बचपन चाहिए. 


✍️राशि सिंह,मुरादाबाद

----------------------------------------


दूध मलाई भर भर खावें 

मेरी ताई धूम मचावें

आलू मटर रसे की सब्जी

आलू परांठे मन से खावें 


मीठी मीठी खीर बनी हो 

पिस्ता किशमिश खूब पड़ी हो 

दो दो दोने खाकर भी मन 

डोंगे में जा टूट पड़ा हो ।


डायविटीज कहाँ से आई 

उफ ये नई मुसीबत लाई 

बैठी ताई मन ललचायें 

मेरी तो आँखें भर आईं 


मन तुम उदास न करना ताई 

जीवन ने यही रीत बनाई 

कुछ खोता कुछ मिलता भाई

किस्मत से क्यों करें लड़ाई ।।


✍️मनोरमा शर्मा 

अमरोहा 

--------------------------------------

कितना भोला है बचपन

ना राग द्वेष ना कोई जलन

क्या धर्म जाति क्या छुआछूत

कोमल हृदय कोमल मन


चंचलता उत्साह उमंग

घर से निकले साथी संग

धमाचौकड़ी करते रहते

खेल कूद कटता हर क्षण


बचपन सबको रहता याद

याद आये जाने के बाद

 जीवन का यह काल अनोखा

बचपन जीवन का दरपन


✍️धर्मेंद्र सिंह राजौरा, बहजोई

----------------------------------------


खोयेंगे रास्ते

न मिलेंगे आसानी से

गिरोगे भी ,थकोगे भी

आलोचना सहोगे भी

आँसुओं के समंदर भी बहेंगे

जब अपनो के दरवाज़े बंद रहेंगे

बस वही से दिखेगी तुम्हें

दूर से आती एक लौ 

जो रास्ते पर तुम्हारे पड़ेगी

एक आस जो तुम्हें फिर से खड़ा करेगी

थका होगा तन

 पर मन को निर्मल करेगी

चोट तेरे दिल पर लगी

खुद मरहम का काम करेंगी

अरे रास्ता तो ख़ुद ब ख़ुद दिखेगा

जब मंज़िल की उसपर रोशनी होगी

तू बस उस रोशनी को देखना

और क़दम अपने मत रोकना

हालात चाहे हो कुछ भी 

बस  भरोसा ख़ुद पर रखना

दोस्त मेरे फिर देखना

कैसे राहें खुलेंगी

हर गुत्थी पल में सुलझेगी

हैरत होगी ख़ुद देख तुझे

जब ये तेरी क़िस्मत चमकेगी

और दिन वो  भी दूर न होगा जब

सूरज की रोशनी भी  तेरी मुट्ठी में होगी।

                       

✍️प्रीति चौधरी, अमरोहा

-------------------------------------------


 

               

                

सोमवार, 12 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की ग़ज़ल ----


 #साहित्यिक_ मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की व्यंग्य कविता -----खास लोगों की दावत


 

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता की ग़ज़ल ---


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार मनोरमा शर्मा की रचना -----बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी का गीत ---- मां बेटी का रिश्ता


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकारओंकार सिंह विवेककी रचना --- सफर आसान होता है अगर मां साथ होती है....


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार मनोरमा शर्मा की कविता ----दीपक की लौ


 

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही का गीत --आओ आज हम सभी शहीदों को नमन करें .....


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल (वर्तमान में मेरठ ) निवासी साहित्यकार सूर्यकांत द्विवेदी की रचनाएँ


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार मुजाहिद चौधरी की ग़ज़ल ---बेचारी बेकार न समझो, बिटिया को लाचार न समझो


 

मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल की रचना ----राम के हाथों पुतले निपट जाएंगे


 

रविवार, 11 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ शोभना कौशिक की कविता ----मौन


 

मुरादाबाद की साहित्यकार इंदु रानी की रचना


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश जी की रचना ---- हे प्रभु सब हों सुखी ,बीमारियों से दूर हों ....


 

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ मक्खन मुरादाबादी का अभिनव गीत -----जीना - मरना राम हवाले अस्पताल में जाकर । पहाड़ सरीखे भुगतानों की सभी ख़ुराकें खाकर ।। जिनमें सांसे अटकी हैं,उन परचों के पास चलें ।


मिले न कल तो घर पर शायद

परसों के पास चलें ।

दिन जिनमें फुलवारी थे , उन

बरसों के पास चलें ।।


बिगड़ू मौसम घात लगाए

उपचार , स्वयं रोगी ।

मिलीभगत में सभी व्यस्त हैं

जोग-साधना , जोगी ।।

हार , समय भी तोड़ गया दम

नरसों के पास चलें ।


जीना - मरना राम हवाले

अस्पताल में जाकर ।

पहाड़ सरीखे भुगतानों की

सभी ख़ुराकें खाकर ।।

जिनमें सांसे अटकी हैं,उन

परचों के पास चलें ।


भगवान धरा के सब,जैसे

खाली पड़े समुन्दर ।

नदियों से अब पेट न भरते

इनके , सुनो पयोधर ।।

छींटें मारें इनके मुंह पर

गरजों के पास चलें ।

✍️ डॉ मक्खन मुरादाबादी

मुरादाबाद 244001

मुरादाबाद के साहित्यकार अरविंद शर्मा आनन्द की गजल ----मोड़ पर थी जो उजड़ी हुई झोपड़ी। उसपे ठंडी हवा ने भी ढाया कहर।।

 

कुछ दिये टिमटिमाते रहे रातभर।

जुगनुओं की तरह से वो आए नज़र।।


रौशनी खो गयी है सियह रात में।

और वीरान है हर नगर, हर डगर।।


मोड़ पर थी जो उजड़ी हुई झोपड़ी।

उसपे ठंडी हवा ने भी ढाया कहर।।


चांदनी भी हुई अब बड़ी बेवफ़ा।

चाँद निकला मगर वो न आयी नज़र।।


जो मुहाफ़िज़ रहे हर क़दम पर मिरे।

मैं हूँ मुश्किल में और वो हैं सब बेख़बर।।


कुछ दिनों को ज़रा क्या मैं ग़ुम सा रहा।

लोग समझे कि 'आनंद' है बेख़बर।।


✍️अरविंद शर्मा "आनंद"

मुरादाबाद, उ०प्र०

 मोबाइल फोन नम्बर- 8218136908

शनिवार, 10 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल निवासी साहित्यकार दीपक गोस्वामी चिराग का गीत -----इस धरा का, इस धरा पर,सब धरा रह जाएगा


मान या मत मान बंदे,सार यह तू पाएगा।

इस धरा का, इस धरा पर,सब धरा रह जाएगा।


यह तेरा, वह मेरा जग में, कैसी मिथ्या माया है?,

सबसे कर तू प्रीत जगत में, कोई नहीं पराया है।

जेब क़फ़न में कहाँ है होती, कोन तुझे समझाएगा?,

इस धरा का, इस धरा पर,सब धरा रह जाएगा.....


लोभ,मोह जिनके हित करता, करम का फल नहीं बाँटेंगे

चित्रगुप्त जब पोथी खोले,अलग राह ही छाँटेंगे।

जो है बोया वही कटेगा, और न कुछ भी पाएगा,

इस धरा का, इस धरा पर,सब धरा रह जाएगा.......

आज जवानी कल है बुढ़ापा, अंतकाल निश्चित आए।

तुझको जाना है हरि-द्वारे, प्राणी तू क्यों बिसराए।

मरा-मरा ही रट ले बंदे,राम-राम हो जाएगा।

✍️दीपक गोस्वामी 'चिराग'

शिव बाबा सदन, कृष्णा कुंज बहजोई (सम्भल) 244410 उ. प्र.

चलभाष-9548812618

ईमेल -deepakchirag.goswami@gmail.com

प्रकाशित कृति - भाव पंछी (काव्य संग्रह)  प्रकाशन  वर्ष  -   2017

बुधवार, 7 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की लघुकथा ----स्वच्छता अभियान


मंत्री जी स्वच्छता अभियान सप्ताह का शुभारम्भ करके लौट रहे थे।अचानक उनको कुछ याद आया, ड्राइवर से बोले "गाड़ी बड़े बाजार की ओर से निकालना।थोड़ी देर बिल्लू उस्ताद से मिलते हुए चलेंगे।" उनके पास बैठे सुरेश जी चौक पड़ेे --"बिल्लू उस्ताद .... अरे आपको मालूम नहीं वो तो बहुत गन्दा आदमी है।हत्या के आरोप में 10 साल जेल में काट कर आया है।अब भी उस पर बलात्कार और अपहरण के केस चल रहे है।"

         "सब मालूम है।लेकिन तुम शायद ये भूल रहे हो कि बहुत जल्दी चुनाव होने वाले है।" मंत्री जी ने हंसते हुए कहा और स्वच्छता अभियान को सफल बनाने की रण नीति पर सुरेश जी से चर्चा करने लगे।

✍️डाॅ पुनीत कुमार

T -2/505, आकाश रेजिडेंसी

मधुवनी पार्क के पीछे

मुरादाबाद 244001

M 9837189600



मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की कहानी --क़ाबिल


 "अरेsssss..सँभलकर चलिए?"मैने अपनी स्कूटी को ब्रेक लगाकर चिल्लाते हुए बुर्कानशीं उस  महिला से कहा जो यकायक मेरी स्कूटी से टकराते हुए बची,उसके हाथ में कुछ किताबें थीं जो बचने की कोशिश में बाज़ार की  सड़क पर बिखर सी गयी थीं।मैं स्कूटी एक ओर खड़ी करके जब तक उसके पास पहुँची,तब तक वो अपनी किताबें सड़क पर से उठा चुकी थी और  अपने चेहरे से नकाब हटाते हुए करते हुए  मुझे गौर से देखने लगी ,तो खुशी से  मेरे हलक से  हल्की सी चीख निकल गयी। 

"रुख़साना!!!!!  ....तुम रुख़साना हो न..!रुखसाना खान??पहचाना मुझे?मैं हूँ मीनल...!मीनल सिंह...!!तुम्हारी क्लासमेट!!"

"अरे !!मीनल ........!! तुझे कैसे भूल सकती हूँ ।या अल्लाह..!! क्या खूब मिलाया है !!रुख़साना खुशी से चहकते हुए बोली.,"और बता यहाँ मुरादाबाद में कैसे?

"यहीं शादी हुई है मेरी....चल....! घर चल....।"

"नहीं मीनल ...आज घर नहीं।फिर कभी।यहाँ कुछ काम है आज।

"क्या काम है...???अच्छा चल...!!

 एक काम करते हैं वहाँ  रेस्टोरेंट में आराम से बैठकर काफी पियेंगे और बाते करेंगे।"मैने रुख़साना का हाथ पकड़ते हुए कहा तो वह भी हँसते हुए एक हाथ में किताबें थामे मेरे साथ रेस्टोरेंट की ओर चल दी।

   रेस्टोरेंट में एक कोने की सीट पर बैठकर मैनै वेटर को सैंडविच और काफी का आर्डर दिया। इस बीच मैने उसे अपने और अपने परिवार की पूरी  जानकारी दे डाली।

"मैं बहुत खुश हूँ यार...तू इतने दिन बाद मिली।कहाँ खो गयी थी? तेरा फोन नं. भी खो गया था ,तेरे घर बिजनौर भी गयीं थी,पर वहाँ ताला लगा हुआ था।अंकल आंटी कहाँ है अब...?तेरे पति क्या करते हैं....?बच्चे कौन सी क्लास में आ गये.?मेरे एक साथ  इतने सारे सवालों के उत्तर में रुख़साना के होठो पर हल्की फीकी मुस्कान तैर गयी।

 मैने गौर से देखा तो उसका खूबसूरत चेहरा अभी भी उतना ही खूबसूरत दिखता था, जितना पंद्रह बरस  पहले दिखता था,बस उसका फ़ूल सा नाज़ुक चेहरा वक़्त के हिसाब से थोड़ा सा सख़्त हो गया था,उम्र के हल्के फुल्के निशान भी दिखने लगे थे,जो लाज़िमी थे।

मेरे सवाल सुनकर उसकी बड़ी बड़ी आँखें नम हो गयीं ।मैने उसके हाथ पर अपना हाथ रखते हुए धीरे से पूछा, 

"क्या हुआ...रुख़साना...??"

मेरी हमदर्दी भरे स्पर्श से उसकी बड़ी बड़ी आँखों से आँसूओं का सैलाब  बह निकला। इस बीच वेटर अजीब नज़रों  से हमें घूरता हुआ टेबल पर काफी व सैंडविच रखकर जा चुका था।मैने  बड़ी मुश्किल से उसे सँभाला।पाँच मिनट बाद संयत होकर उसने धीरे धीरे बोलना शुरु किया,

"तुझे तो पता ही है मीनल,मेरे अम्मी अब्बू हमेशा से चाहते थे कि मैं ऊँचे दर्जे की तालीम हासिल करूँ।  अपने पूरे खानदान में सबसे ज़्यादा  क़ाबिल बन जाऊँ।पी एच डी के दौरान ही हमारी बिरादरी के तमाम अच्छे घरानों से रिश्ते आने लगे थे,मगर कोई भी लड़का अब्बू को  मेरे जितना का़ब़िल न लगा....।.जो मेरे बराबर पढ़े लिखे थे ,वे शक्लो सूरत से अच्छे न थे,जो अच्छे थे उनका कोई खा़स रुतबा न था।सबमें कुछ न कुछ कमी थी।

"फिर.....?".मैने धीरे से काफी सिप करते हुए पूछा

फिर क्या मीनल....! अच्छे लड़के के इंतज़ार में धीरे धीरे शादी की उम्र बीत चली... और....और ...फिर तलाकशुदा,दोहेजे.. और मुझसे दस पंद्रह साल बड़े लड़कों के  रिश्ते आने लगे जो मुझे मंज़ूर न थे...।इस बीच बरेली विश्वविद्यालय में ही मेरा अपाइंटमेंट प्रोफेसर पद के लिये हो गया था और......।"

"और क्या....?"वह उदास होकर बोली

"अब्बू अम्मी मेरी शादी की ख़्वाहिश को दिल में ही  लिये इस दुनिया से रुख़सत हो गये।"

"मतलब... !तूने अब तक शादी नहीं की...?.मीनल ने हैरत से पूछा।

"नहीं...।" रुख़साना धीरे से बोली

"और अनवर मियां..? मैने सुना है वो भी किसी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं। उनका क्या हुआ..?.तेरे ही मौहल्ले में  रहते थे न!!वो तो तुझे बहुत चाहते थे।तूने  अपने घर नहीं बताया कभी.!!"मैने  बात आगे बढ़ाते हुए कहा।

"बताया था....बहुत मिन्नतें भी की थीं अब्बू की..मगर वो जीते जी गैर बिरादरी में शादी करने को राज़ी न थे..।अनवर मियां ने तमाम पैगाम भेजे,मगर कुछ साल मेरे इतंज़ार के बाद उन्होंने किसी और से शादी कर ली...।"

"ओहहहहह.....!!!!"मैने एक लंबी साँस भरी।

कुछ देर हम दोनो के बीच ख़ामोशी रही।

रुख़साना को जाने की जल्दी थी।मैने टेबल पर बिल जमा कर दिया और धीरे से पूछा,"क्या काम है यहाँ?बताया नहीं तुमने..!!"

"अरे मीनल...!मैं बताना ही भूल गयी इसी महीने की बीस तारीख़ को मेरे एक उपन्यास का विमोचन होने जा रहा है,यहीं मुरादाबाद में...।इसी सिलसिले में यहाँ आना हुआ है।तुझे भी ज़रूर आना है।"वह थोड़ा खुश होकर बोली।

"अरे वाहहहहह!!तू लिखने भी लगी..।

ज़रूर आऊँगी..।क्या नाम है तेरे उपन्यास का? "

यह सुनते ही उसकी बड़ी बड़ी काली आँखों में इस बार पहले से ज़्यादा दर्द उभर आया था।वह बस हौले से बुदबुदायी,

"का़बिल...."

और फीकी मुस्कान बिखेरती हुई , तेजी से रेस्टोरेंट से बाहर निकल गयी।

✍️मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार, मुरादाबाद 


मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी की कहानी -----आत्मविश्वास


दिशा अपनी माँ सुधा को घर का काम करते देखती,सब की छोटी छोटी ज़रूरतों का ध्यान रखना ,इसी में उसकी माँ का पूरा दिन निकल जाता।’’माँ आप शादी से पहले के अपने रूटीन के बारे में बताओ, आप क्या क्या करती थी।’’दिशा ने अपनी माँ से उत्सुकता से पूछा।सुधा ने बताना शुरू किया ‘’मैं घर के बच्चों में सबसे छोटी ,सबकी लाड़ली थी।ग़लत बात तो मुझे बर्दाश्त ही नही थी ।कई बार तो कालेज में मैंने लड़कियों पर फबतियाँ कसने वाले लड़कों की धुनाई भी करी।मेरे व्यक्तित्व को दबंग बनाने में तुम्हारे नाना जी का बहुत बड़ा हाथ था ।वह हमेशा कहते थे कि लड़कियों को सब काम आना चाहिए ,घर में जब नयी साइकिल आयी तो सबसे पहले मुझे ही  चढ़ा दिया उसपर ,बोले चला ............मैंने ख़ूब मना किया कि मुझसे नही चलेगी पर कहने लगे कि ऐसा कोई काम नही जिसे मेरी बहादुर बेटी न कर सकें।कुछ ही दिनो में मैं बहुत अच्छी साइकिल चलाना सीख गयी।फिर तो तेरी नानी घर का सारा सामान मुझसे ही मंगवाती।बिटटो ये ला दे ,वो ला दे ।पूरा दिन मैं साइकिल पर सवार रहती।’’दिशा और  सुधा दोनो बातों में खो गये।दिशा को जब उसके पापा ने कई आवाज़ लगायी तब वो भागी भागी बाहर गयी।’’जी पापा ‘’दिशा ने हाँफते हुए कहा।’आ देख मैं तेरे लिए क्या लाया हूँ’कमल बेटी को घर से बाहर ले आया ।’अरे पापा ,नयी ....स्कूटी...माँ आओ देखो पापा मेरे लिए क्या लाए है।’’दिशा ने सुधा को आवाज़ लगायी।स्कूटी को देखते ही सुधा की आँखे चमक गयी क्योंकि जब वो पड़ोस की रुचि को स्कूटी से सारे काम करते देखती तो उसका भी  मन करता ।छोटे छोटे काम के लिए उसे कमल को कहना  जो पड़ता था।’!चलों ये आपने अच्छा किया ,मैं भी सीख लूँगी।’’सुधा ने उत्तेजित होकर कमल से कहा।’’ये दिशा के लिए है ,अब उसे ट्यूशन जाने के लिए ज़रूरत पड़ेगी।तुम घर का काम ही सही से कर लो वही बहुत है,तुमसे  स्कूटी नही चलेगी ।कही गिर गिरा गयी,हड्डी टूट गयी तो बस ...........तुम्हारे बस का नही है इसे चलाना।सुबह से कुछ नही खाया है ,तुम जल्दी खाना लगाओ।’’कमल ने आलोचनात्मक मुस्कराहट के साथ ये बात कही।सुधा चुपचाप अन्दर खाने की तैयारी में जुट गयी ।’’माँ एक बार मैं सीख लूँ फिर आप को सीखा दूँगी स्कूटी’’ दिशा ने धीरे से कहा।’’नही बेटा तेरे पापा सही कहते है मुझसे नही चलेगी  स्कूटी,कही चोट लग गयी तो बस,तू पापा को ये खाना देकर आ।’’सुधा के कहें इन शब्दों से दिशा सोच में पड़ गयी कि शादी से पहले और अब के माँ के व्यक्तित्व में हुए इस बदलाव का ज़िम्मेदार कौन है ?पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन करते करते उसकी माँ स्वयं को भूल चुकी थी ।अब दिशा अपनी माँ को पहले की ही तरह आत्मविश्वास से भरी हुई बनाने का प्रण ले  चुकी थी।

 ✍️प्रीति चौधरी, गजरौला,अमरोहा

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की कहानी-जॉम्बीज

   


मिश्रा जी ने आज छुट्टी ली हुई थी।उन्हें अपनी बहन के यहाँ सपरिवार सत्यनारायण कथा के लिए जाना था।शाम को इकलौते भान्जे की बर्थडे पार्टी थी,छुट्टी लिए बगैर चलता नहीं।वैसे भी ससुराल पक्ष की रिश्तेदारी अकेले निभाना मिश्राइन को पसंद नहीं था। क्योंकि कुछ उन्नीस बीस हो तो कम से कम ठीकरा मिश्रा जी के सिर पर फोड़ा जा सकता था।

      खैर छुट्टी थी तो इत्मीनान से सुबह की चाय बना कर,अपनी चाय और अखबार लेकर मिश्रा जी बालकनी में कुर्सी डाल कर बैठ गये। छुट्टी वाले दिन चाय बनाने की ड्यूटी अघोषित रूप से मिश्रा जी की होती थी,मिश्राइन उस दिन आराम से उठती थी और बनी हुई चाय का आनंद उठाती थी।वरना बाकि दिन तो बच्चों और पतिदेव का ब्रेकफास्ट, लंचबॉक्स आदि की भगदड़ में चाय या तो गरमागरम जल्दी जल्दी सुड़कनी पड़ती या ठण्डी होने पर पानी की तरह गले में उड़ेलनी पड़ती।

      मिश्रा जी ने चाय की चुस्की ली और अखबार उठाया। फिर ध्यान आया चश्मा तो टी वी वाले कमरे में ही रह गया है।उन्होंने बेटे रोहित को कमरे से चश्मा लाने के लिए आवाज दी।आज बच्चे की भी छुट्टी करा दी गयी थी और छुट्टी वाले दिन रोहित अन्य दिनों की अपेक्षा जल्दी उठ जाता था। शायद सब बच्चे ऐसे ही होते हैं।

      रोहित ने पापा का चश्मा देते हुए पूछा,"पापा मैं टीवी देख लूँ थोड़ी देर" मिश्रा जी ने यह कहते हुए हामी भरी कि टी वी का स्वर धीमा रखे ताकि मम्मी की नींद न खराब हो।पापा का यह कोमल रूप देखकर रोहित ने मुस्करा कर उनका गाल चूम लिया और थैंक्स पापा कहकर कमरे में चला गया। मिश्रा जी भी मुस्कुरा उठे,सुकून भरे भाव से उन्होंने चाय की अगली चुस्की ली और चश्मा पहनकर सामने अखबार खोल लिया।

      पहले ही पृष्ठ पर नक्सली और आतंकवादी हमलों की हेडलाइंस थीं।मिश्रा जी आज अच्छे मूड में थे,सो मन को उद्वेलित करने वाली खबरों को ज्यादा तवज्जो नहीं देना चाहते थे। उन्होंने पन्ना पलटा, "ऑनलाइन नशीले इंजेक्शन बेचने वाले गैंग का पर्दाफाश"

             मिश्रा जी ने पृष्ठ पर नीचे की ओर नजर दौड़ाई ,"पाँच साल की बच्ची के साथ सामूहिक दुष्कर्म" उसके पास ही चिपकी थी हेडिंग,"160रू.के लिए टेलर की हत्या" अगला पेज दिखा रहा था, "वृद्धा के साथ दुष्कर्म की कोशिश","डॉक्टर की लापरवाही से हुई नवजात की मौत","बेटों ने पिता को पीट पीटकर मार डाला" मिश्रा जी ने परेशान होकर फिर पृष्ठ पलटा "भ्रष्टाचार के कारण सरकारी योजनाएँ पात्रों तक नहीं पहुँचती", "बालिका गृह में सेक्स रैकेट संचालित","बेटी को जिंदा दफन किया माँ बाप ने" आदि आदि।हर पृष्ठ ऐसी ही नकारात्मक खबरों से भरा पड़ा था या फिर आज मिश्रा जी की आंँखों को केवल ये ही हेडलाइंस दिखाई पड़ रही थीं। 

       मिश्रा जी ने चश्मा सिर पर चढ़ाया और कप में बचे चाय के आखिरी घूँट को पिया।अब तक उन्हें बेचैनी सी होने लगी थी।वह आंँख मूंदकर कुर्सी पर पीछे की ओर सिर टिकाकर सोचने लगे।

         उन्हें याद आया,कल के अखबार में भी तो ऐसी ही खबरें थीं और कल के ही क्यों,कभी भी किसी भी अखबार में ऐसी खबरें ही तो बहुतायत में होती हैं। मिश्रा जी के दिमाग में उथल-पुथल मची हुई थी।उन्होंने दिमाग फेसबुक और वाट्स एप जैसे सोशल मीडिया की ओर दौड़ाया और पाया कि अखबार छोड़ो, फेसबुक ,वाट्स एप या न्यूज चैनल्स सब में ज्यादातर गिरती मानवता की खबरें ही तो देखने को मिलती हैं।पर अपनी व्यस्तता के बीच हम कब रुक कर विचारते हैं, तभी यह सब आम हो गया है और अब हमें उद्वेलित भी नहीं करता।पर आज मिश्रा जी फुर्सत के इन पलों में भी असहज हो गये थे।वह घबराकर बालकनी में टहलने लगे।

      तभी उन्हें बालकनी में सामने वाले पड़ोसी का बेटा नजर आया।वे उसे ध्यान से देखने लगे तो उन्हें वह व्याभिचारी नजर आने लगा जो कभी भी उनकी बेटी या पत्नी को अपनी हवस का शिकार बना सकता था।हो सकता है वह उनकी अम्मा को भी न छोड़े। मिश्रा जी पसीना-पसीना हो गये।अब वे आँखें मूँद कर फिर से कुर्सी पर बैठ गए।कल ऑफिस में बैंक लोन लेने आये बुजुर्ग का चेहरा उनकी आँखों के सामने आ गया,जिससे उन्होंने कमीशन लिया था,जिसमें मैनेजर की हिस्सेदारी भी थी।उन्हें दिखा कि वह बुजुर्ग रास्ते में मिलने वाले हर दफ्तर में हर कर्मचारी को पैसे बाँटते जा रहे हैं और जितना भी वह राह में आगे बढ़ते ऐसा लगता जैसे उनकी साँस रुक रही है और आखिर में वह निढाल होकर गिर गये हैं।मिश्रा जी घबरा कर उन्हें पकड़ना चाहते हैं,पर वह बुजुर्ग निष्प्राण हो गये हैं। घबराकर मिश्रा जी की आँख खुल जाती हैं और वह गमछे से अपना पसीना पोछते हैं।वह कुर्सी सरकाकर अन्दर कमरे की ओर देखने लगते हैं।उन्हें दिखता है कि उनका बेटा बड़ा हो गया है और उसे नौकरी नहीं मिली है।वह मृतक आश्रित कोटे की नौकरी पाने के लिए अपने पिता की ओर छुरा लेकर बढ़ रहा है।वह बेतहाशा चिल्लाना चाहते हैं,"मुझे मत मारो बेटा! मैं तुम्हारा पापा हूँ।" पर उनका गला सूख गया है और वह कुछ नहीं बोल पा रहे हैं।

      "पापा!पापा! क्या हुआ....?आप मुझे ऐसे क्यों देख रहे हैं?" 

          मिश्रा जी होश में आये और सँभलते हुए बोले,"कुछ नहीं बेटा....कुछ नहीं.....।" रोहित ने बोलना जारी रखा,"पापा,मैं अभी टीवी में एक सीरियल देख रहा था जिसमें जॉम्बीज थे।पता है पापा, जॉम्बीज इंसानों जैसे ही दिखते हैं पर उनमें संवेदनाएँ या भावनाएँ नहीं होती तभी तो वे अपने जैसै इंसानों को ही खा जाते हैं।जॉम्बीज क्या सच में होते हैं,पापा?" मिश्रा जी के मुँह से बेतहासा निकल पड़ा,"हाँ, हाँ,होते हैं,शायद....."

✍️हेमा तिवारी भट्ट, खुशहालपुर, मुरादाबाद (उ.प्र.)

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की दो लघुकथाएं ---"दा रियल हीरो" व "मानसिकता"



(1) लघुकथा ---- 'दा रियल हीरो  '

"अजी सुनती  हो ...यह देखो डाक  बाबू संदेशा  लाये  हैं l " ग्राम  प्रधान  मोरसिंह  ने अपनी धर्मपत्नी  विमला  देवी को हाथ में लगे लिफ़ाफ़े  को दिखाकर  मूढे पर बैठते हुए कहा l 

"अजी अब पढ़कर तो सुनाओ  l " विमला देवी ने   मट्ठे की मटकिया  को हिलाकर  उसमें आई नैनी  को पौरुओं  से निकालकर कूंढ़ी  में रखते हुए कहा l 

"अरे...यह का ...हमारे गाँव को राष्ट्रपति  सम्मान के लिए चुना  गया है l " प्रधान जी ने खुशी से उछलते हुए कहा l आठवीं   कक्षा   तक पढ़े   मोरसिंह को लिखने पढ़ने का बहुत ही शौक है l 

"अच्छा...हे भगवान  यह तो हम सबके लिए बहुत खुशी की बात है l " विमला देवी  ने एक लोटा  ताजी   मट्ठा   प्रधानजी  को थमाते   हुए कहा l 

"हाँ...बहुतई खुशी की बात है ...आज उनकी तपस्या  सफल  हो गयी l "

"किसकी  ?"

"जिन्हौने गाँव को इस काविल   बनाया l "

"किसने   ?"

"लखना  और हरिया  ....असली हकदार  वही हैं ...सवेरे  ही आकर पूरे गाँव की सफाई करते हैं ...औरगाँव वाले भी सहयोग   करते हैं l मोरसिंह ने मूंछों को ताव देते हुए 

कहा l 

"हाँ  यह तो ठीक है ..मगर ..l "

"मगर क्या ?"

"ज्यादा प्रसंशा करने से  बौरा जाएंगे बे ..l "

"अरी विमला ...प्रसंशा से बौराते  नहीं ,वरन यह तो मार्गदर्शक  का काम करती है ....देखना हम उन दोनों को भी ले जाएंगे राष्ट्रपति भवन  l " मोरसिंह की आँखों में प्रेम और अपनेपन  की चमक थी l विमला देवी का गला भी रूंध  गया l 

"हाँ जी ठीक कहते हो ,सभी हकदार हैं इसके क्योंकि "अकेला  चना भाड़  नहीं झौंक  सकता ।"

-------------------------------------------

(2) लघुकथा ----'मानसिकता '

पूरे चार साल बाद वह अपने भाई और चचेरे भाई के साथ गई थी मेला. मेले में सर्कस लगा हुआ था जिसे वह बड़े चाव से देखती थी . तीनों सीढ़ियानुमा बल्लियों पर बैठे सर्कस का आनंद ले रहे थे. कभी भालू के कारनामे तो कभी बंदर के कभी शेर की दहाड़ तो कभी गैंडे का प्रदर्शन. वह बहुत रोमांचित हो रही थी और खुशी से चिल्ला रही थी.जोकर का हजामत वाला दृश्य तो हंसा कर पेट दर्द कर गया. 

"इसकी देखो कितना हंस रही है?" चचेरे भाई ने मूँह बनाते हुए कहा. 

"हाँ... पागल है पहले जैसी ही. दिमाग वही बचपन वाला है वैसे इंजीनियरिंग कर रही है l" भाई ने भी हँसते हुए कहा. 

"अरे अब आई देख न!" चचेरा भाई चिल्लाया. "छोरियां " 

दोनों के चेहरे पर धूर्त मुस्कान आ गई. 

वह लड़कियां छोटे छोटे कपड़े पहनकर रस्सी पर करतब दिखा रहीं थीं कभी छल्ले को अपनी कमर में डालकर घुमा रहीं थीं. 

पेट क्या नहीं कराता? 

"मजा नहीं आया.... सारी उम्रदार हैं?" चचेरे भाई ने मूँह बनाते हुए कहा. 

उसकी हँसी काफूर हो चुकी थी. 

सिर शर्म से झुक गयाऔर वह अपने कपड़े संभालने लगी जैसे उसे निर्वस्त्र कर दिया हो. 

✍️राशि सिंह, मुरादाबाद 244001


मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर की साहित्यकार रागिनी गर्ग की लघुकथा ----अंधविश्वास


प्रिया ने जैसे ही गिन्नी को छुआ परेशान  हो गयी ,वो गिन्नी को उठाकर  अपनी सास के पास ले जाकर बोली:- "माँ जी  गिन्नी को तेज बुखार के साथ -साथ पूरे शरीर पर लाल -लाल दाने निकले हैं। आप इसका ध्यान  रखिए मैं डाॅक्टर को बुलाती हूँ।"  

प्रिया की सास बोली:- "बहुरिया  पगलाये  गयी हो का ?गिन्नी कू माता निकली है, जामें डा. का करेगो?   जल को  लोटा भर के गिनिया के सिरहाने रखो,  आँगन से नीम तोड़ के लाओ बुहारा करो,, माता के नाम को जाप करो ,दो-तीन दिन  में  गिन्नी बिल्कुल सही है जायेगी।

परररररर माँजी .....

""पर वर कुछ न जो मैं कह रही हूँ वही सुन !डा. कू दिखावे से माता गुस्सा है के बच्ची कू अपने संगे ले जायेगी।""

प्रिया बिना मन के सास का बताया काम करती रही , 

दो दिन  बीत गये पर गिन्नी की हालत में कोई  सुधार नहीं  हुआ उलटे परिस्थिति बिगड़ती चली जा रही थी। रविन्द्र टूर से वापस घर आया गिन्नी की हालत देखकर उसने माँ की एक न सुनी और डा. को फोन कर दिया पर वही हुआ जिसका प्रिया और रविन्द्र  को डर था, 

डॉक्टर ने कहा:- "समय पर  इलाज न मिलने की वजह से गिन्नी कभी न जगने वाली गहरी नींद में  सो चुकी है।"

उधर दादी रोते हुए बड़बडा़ये जा रही थी,"हाय मेरी पोती! मना करी डाँक्टर कू मत बुलाओ पर काऊ ने मेरी एक न सुनी, मैया गुस्सा है गयी, बच्ची कू संग लिवा ले गई।।"

✍️रागिनी गर्ग ,रामपुर (यूपी)

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की लघुकथा ---- चयन

 


 तीन लोगों का पुरस्कार के लिए चयन हुआ था ।एक का नाम खेलावन था। चयन समिति में उसके सगे चाचा बैठे थे। सभी रिश्तेदारों और खानदान-वालों का पूरा जोर था कि खिलावन ही पुरस्कृत होना चाहिए। खिलावन ने भी साफ साफ कह दिया था -"चाचा ! आज तुम चयन समिति में हो ,उसके बाद भी अगर मेरा पुरस्कार कटा तो समझ लो हमारी तुम्हारी रिश्तेदारी खत्म !"

              तो खिलावन को तो इस कारण से पुरस्कार मिला । दुखीराम को पुरस्कार मिलने का मुख्य कारण यह है कि वह 3 -  4 साल से चयन समिति के सदस्यों की चमचागिरी करता रहा । चयन समितियाँ बदलती थीं, नए लोग आते थे , दुखीराम निरंतर परिणाम की चिंता किए बिना उन सब की सेवा में लगा रहता था । आखिर एक दिन सेवा के बदले मेवा मिली और चयन समिति के सदस्यों ने यह महसूस किया कि संसार में चयन का आधार समिति के सदस्यों की सेवा ही होना चाहिए । इसलिए दुखीराम का पुरस्कार पक्का हो गया।

               तीसरा सदस्य जुगाड़ूराम था। उसने न जान - पहचान निकाली , न चमचागिरी की । सीधे दलाल को पकड़ा, रुपए दिए और काम करा लिया । 

     अब यह चयन समिति के सदस्यों का काम रह गया कि वह इस बात की रिपोर्ट तैयार करें कि उन्होंने तीन व्यक्तियों का चयन किस आधार पर किया है ? 

 ✍️रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)

 मोबाइल 9997615451_

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की कहानी --


रेलवे लाइन के किनारे अचानक भीड़ जुटी देखकर मन में उठीं अनेकानेक शंकाओं को दूर करने भाई दीनदयाल जी तेज कदमों से वहाँ पहुँचे और भीड़ को चीरते हुए जो दृश्य उन्होंने देखा तो हैरान रह गए।

        उन्होंने देखा एक लड़का जिसकी उम्र लगभग 18 या 20 वर्ष की रही होगी का बायाँ हाथ कोहनी के ऊपर से कटकर अलग हो चुका है।खून है जो रुकने का नाम ही नहीं ले रहा।बच्चा कभी अपनी आंखों को खोलता और तुरन्त ही बेसुध होकर लेट जाता।खून ज्यादा बह जाने के कारण उसका रंग भी पीला पड़ रहा था।

       उन्होंने सोचा कि ऐसे तमाशबीन होकर तो कुछ काम नहीं चल सकता।कुछ तो करना ही होगा,नहीं तो इसकी सांसें भी इसका साथ कब तक दे पाएंगी।

       भाई दीनदयाल जी ने आव देखा न ताव कुछ लोगों की मदद से उसे अपनी गाड़ी तक लाकर बहुत आराम से गाड़ी में पीछे की सीट पर लिटाया और स्वयं गाड़ी चलाते हुए शहर के सर्वमान्य अस्पताल में लाकर दिखाया।उन्होंने डॉक्टरों से कहा कि आप इस बच्चे पर तरस खाएं और इसकी यथा संभव शल्य चिकित्सा करके इसे बचाने की कृपा करें।

     डॉक्टरों ने देखा और बड़ी गंभीर मुद्रा में कहा कि इसका तो ईश्वर ही मालिक है।खून अधिक बह चुका है। शल्य क्रिया भी बहुत जटिल और खर्चीली होगी।

लगभ ढाई तीन लाख अनुमानित खर्चा कौन देगा।इसके अतिरिक्त दवाओं का खर्चा रहा अलग।

         भाई दीनदयाल जी ने सोचा कि हमने सारी उम्र पैसा ही कमाया है तथा उसे अनावश्यक रूप से उड़ाया भी है।अगर इस बच्चे की जान बचाने में कुछ धन खर्च हो भी जाएगा तो निश्चित ही पुण्य कार्य होगा।इसके साथ ही साथ हमारी गलतियों की माफी का सुलभ साधन भी बनेगा।

      उन्होंने डॉक्टरों की हर शर्त को मानते हुए आने वाले पूरे खर्च  की तरफ से आश्वस्त करते हुए इलाज को ही प्राथमिकता  देने पर ज़ोर दिया।

       आनन -फानन में बच्चे को भर्ती कर उसके आवश्यक परीक्षण पूरे करके शल्य क्रिया हेतु ओ,टी(ऑपरेशन थिएटर)में ले गए।करीब बाईस(22) घंटों तक निरंतर चली चिकित्सा के बाद डॉक्टरों ने उसे गहन चिकित्सा कक्ष में बहत्तर(72)घंटों के ऑब्जर्वेशन में रखकर उसपर पूरा ध्यान केंद्रित करते हुए मानवता का परिचय दिया।सभी चिकित्सक एवं सहायक स्टाफ उसके होश में आने की प्रतीक्षा करते हुए खाना -पीना तक भूल गए और अपनी योग्यता की कठिन परीक्षा का परिणाम जा

नने की उत्सुकता को नहीं रोक पाए।

        अचानक बच्चे के कराहने की आवाज़ डॉक्टरों के कानों में पड़ी तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। कुछ समय के इलाज के बाद एक दिन बच्चे ने  जुड़े हुए हाथ की उंगली को बहुत ही हल्के से हिलाकर शल्य क्रिया की तमाम आशंकाओं के निर्मूल होने का संकेत दिया।अब सभी चिकित्सक बच्चे के जीवन और उसके हाथ की सुरक्षा पर  पूरा भरोसा कर चुके थे।

      उन्होंने यह खबर भाई दीन दयाल जी को सुनाते हुए उनकी सभ्यता एवं इंसानियत को धन्यवाद देते हुए उनके चरण स्पर्श किए और कहा कि अब हम केवल द्ववाओं का खर्चा ही लेंगे।अपनी मेहनत,रूम का चार्ज तथा खान पान का कोई चार्ज नहीं लेंगे।           

✍️वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी, मुरादाबाद/उ,प्र

9719275453

         

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी की लघुकथा ----ममता का अहसास


माँ अपनी गोद में नवजात शिशु को लिटाकर, उसे आँचल में छुपाकर स्तन पान कराते हुए अत्यंत आनंदित हो रही थीं कि तभी अपने आगंन में खूँटे से बँधी गाय पर उसकी नज़र गयी जो दूध देते हुए चुपचाप खड़ी अपने बछड़े को देख रही थी और बछड़ा दूध पीने के लिए उसके पास आने का भरसक प्रयास कर रहा था।वह उठी और उसने बछड़े की रस्सी खोल दी..........
                                            
✍️प्रीति चौधरी, गजरौला,अमरोहा



मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा----स्वार्थ की हद

 


एक दिन पहले ही ननकू ने बहू को आवाज लगा कर कहा " अरी बहू, लो!यह जेवरों का डिब्बा अपने पास रख लो, मेरा क्या है? जब तक दीपक में तेल है तभी तक जल रहा हूँ। आज उजाला है, पता नहीं कब अंधेरा हो जाये।जीवन का क्या भरोसा।" 

    सुबह- सुबह ससुर ने बहू को आवाज दी," बहू!अरी बहू, दस बज गए हैं, और चाय अभी तक नहीं बनी।क्या बात है? "

     लेकिन बहू बिना कुछ कहे तीन-चार चक्कर ससुर के सामने से लगाकर चली गईं।उत्तर कुछ नहीं दिया।वृद्ध ससुर ने एक लम्बी सांस ली----उसे समझते देर नहीं लगी।उसने दीवार को ओर देखा जहाँ घड़ी टिक-टिक करती आगे बढ़ रही थी।

 ✍️अशोक विश्नोई, मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की लघुकथा ... नन्हा मुखिया

 


.... छोटी रेखा कब से टकटकी लगाए सड़क पर देख रही थी ।... आज भैया को पगार मिलने वाली थी 3 दिन से घर में चूल्हा नहीं जला... मां छुटकू के साथ बुखार में तप रही थी ... टिंकू भी बार-बार भूख से रोए जा रहा था ।.... सड़क दुर्घटना में गोपाल की मौत हो गई थी तब से नन्हे ही जो कि 8 साल का था  घर का  मुखिया था .....आज उसे पगार मिलने वाली थी... और घर जाने की छुट्टी भी । घर में पैसे आते ही महीने भर का राशन आ जाता था ।

         सहसा सेठ दीनदयाल की फैक्ट्री का बड़ा सा दरवाजा जैसे ही खुला 7 से 11 साल तक के बच्चों की टोली शोर करती हुई बाहर निकली... कहना नहीं होगा सभी बंधुआ बाल मजदूर थे ! जो पगार मिलने व महीने बाद घर जाने की खुशी में पंछियों की तरह चह चहाते हुए अपने अपने घरों के लिए उस क़ैद खाने से बाहर निकले थे........ परंतु यह क्या अचानक पुलिस अफसरों के साथ बलराज प्रधान आगे बढ़ा और सभी बच्चों को पुलिस ने गिरफ्त में ले लिया..

         "मैंने बहुत बार समझाया सेठ दीनदयाल को बाल मज़दूरीअब अपराध है परन्तु उसकी समझ में कब आता है अब भुगतो !" बलराज प्रधान ने अपनी जीत पर खुश होते हुए गर्व से कहा !

     ..... सेठ जी तो मोटी रकम देकर जेल जाने से बच गये ...परन्तु....

      .......गोपाल के घर आज भी चूल्हा नहीं जला !!

उधर बच्चों से छीने गए रुपए प्रधान और पुलिस ने आपस में बांट लिये ......

       ..... अचानक झोपड़ी से रेखा और दो छोटे बच्चों की चीखें हवा में गूंजने लगी मां दुधमुंहे बच्चे को सूखी छाती से लगाये ही सिधार गयी थी !

      ..... प्रधान की बैठक में शराब के दौर अब भी जारी थे.......!!

अशोक विद्रोही, 412 प्रकाश नगर ,मुरादाबाद।   मोबाइल फोन नम्बर  82 188 25 541

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर की लघुकथा -- माला


"मेरी प्यारी, सुंदर सी माला....", कृष्णा, मरियम, जुम्मन और हरमीत द्वारा इकट्ठे किए गये मनकों से सुंदर सी माला बनाती हुई बूढ़ी ननिया प्रसन्नता से बुदबुदाई।

✍️ राजीव 'प्रखर',  मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेन्द्र शर्मा सागर की लघुकथा---- लापरवाही

 


"कितने गड्ढे हो गए हैं सड़क में, सरकार भी ना जाने किस गम्भीर हादसे के इंतज़ार में आँखे मूँदे बैठी रहती है", सड़क के छोटे से गड्ढे से एक बड़ा पत्थर उखाड़ कर जैक के नीचे लगाकर, पंक्चर हुए टायर को घूरते हुए अब्दुल बड़बड़ाया और जैक का लीवर हिलाने लगा।

✍️नृपेंद्र शर्मा "सागर", ठाकुरद्वारा, मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की लघुकथा -प्रभारी


"सर जी देखिए।अखबार में कल की प्रतियोगिता की खबर निकली है।"

"अच्छा....जरा दिखाना तो अखबार।मैं तो पूरे महीने इस प्रतियोगिता की प्रक्रिया में अध्यापकों और बच्चों के साथ इतना व्यस्त रहा कि परिणाम आने के बाद अखबार में विज्ञप्ति देने का ध्यान ही नहीं रहा।खैर हमारी और बच्चों की मेहनत रंग लाई और परिणाम में हमारे जिले के बच्चे विजेता रहे।जरूर कोर्डिनेटर सर ने विज्ञप्ति दी होगी।"

"नहीं सर जी, उन्होंने भी नहीं दी है शायद....क्योंकि वे विज्ञप्ति देते तो प्रतियोगिता प्रभारी में आपका और कोर्डिनेटर में उनका भी नाम या फोटो जरूर होता।"

"मतलब.....?"

"मतलब, ये देखिए...।विजेता बच्चों के साथ गणपत सिंह जी का फोटो और हेडिंग में 'राज्य में जनपद का नाम:वरिष्ठ प्रतियोगिता प्रभारी गणपत सिंह जी का प्रयास' लिखा हुआ है।"

अखबार का वह पन्ना देखकर सतीश सर की आँखे खुली की खुली रह गयी।एक महीने से वह कोर्डिनेटर जी के सहयोग से साथी अध्यापकों और बच्चों को प्रोत्साहित कर इस प्रतियोगिता के लिए तैयार कर रहे थे।यों तो गणपत सिंह की भी यह जिम्मेदारी थी पर वह हमेशा की तरह जिम्मेदारी औरों पर डालकर बेफिक्र था।और अब...

"मैंने आपको कई बार कहा है सर जी,पर आप सुनते नहीं।हमेशा मन लगाकर काम के पीछे पड़े रहते हो,कभी नाम का भी जुगाड़ रखा करो।"

सतीश अखबार की हेडिंग 'वरिष्ठ प्रतियोगिता प्रभारी गणपत सिंह' पर नजरें गड़ाए हुए धीरे से बोले

"प्रतियोगिता प्रभारी तो मैं था !"

आँखों के इशारे से उन्हें समझाते हुए जुनैद ने रहस्यमयी आवाज में कहा,

"पर विभाग का मीडिया प्रभारी तो गणपत सिंह है न सर जी..."

🖊️हेमा तिवारी भट्ट , मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर की साहित्यकार रचना शास्त्री की लघुकथा ------ ---- तमसो मा ज्योतिर्गमय

 


दिन‌ ढल रहा था सूरज को चिंता होने लगी अब कुछ देर में ही उसे अस्त हो जाना है, उसके बाद कौन होगा जो #तमसो_मा_ज्योतिर्गमय का भार वहन करेगा।कौन जो होगा उसके प्रबल शत्रु अंधकार का उसके पुनः लौट आने तक सामना करेगा।

सूरज को चिंतित देखकर चांँद ने कहा आप चिंता न करें जरा सी रोशनी मुझे दे जाइए मैं आपके स्थान पर रहकर अपनी तारक सेना के साथ अंधकार का सामना करुँगा।

सूरज निश्चिंत भाव से चंद्रमा को अपना प्रकाश सौंप अस्त हो गया।चंद्रमा उसके स्थान पर सैन्य सहित आ डटा।

सूरज को गया देख अंधेरे की प्रसन्नता का पारावार न रहा ,उसने जोर की अंगड़ाई ली और चारों ओर से गहरे काले बादलों ने चंद्रमा को सैन्य सहित घेर लिया, बादलों को आता देख चाँद ने पराभव निश्चित जान मंदिर में जलते दिये को पुकारा दिये ने कहा वह अंदर अंदर चुपके से जलकर अपना दायित्व निभायेगा।अब तक चाँद सैन्य सहित बादलों ‌में समा चुका था। समस्त मार्गों पर अपनी विजय पताका लहराते अंधकार ने मंदिर में ‌जलते उस नन्हें दिये को देखा तो भयानक अट्टाहस किया जिससे तेज आँधी आई और दिये की लौ फड़फड़ाकर बुझ गई।अंधकार प्रसन्न‌ था, उसने अपने सहयोगियों ‌को उत्सव मनाने का आदेश दिया चारों ओर गरज के साथ पानी बरसने लगा,तेज हवाएं चलने लगीं, चारों ओर अपना साम्राज्य पा अंधकार अत्यंत प्रसन्न‌ हुआ।

      रात ढलने लगी प्राची में भोर का आगमन हुआ,भोर ने देखा पानी पर तैरते दो पत्तों‌के बीच एक नन्हा जुगनू मरणासन्न पड़ा है पर उसके पंख अब भी चमक रहे हैं,भोर ने उसका माथा चूम लिया और कहा मेरे बच्चे! तुम्हारी ये हालत कैसे हुई?

क्षीण मुस्कुराहट के साथ जुगनू ने कहा माँ‌ मैं नन्हा होने के कारण अंधकार को पराभूत न कर सका पर मैंने उसे जीतने भी न दिया,कहकर उसने माँ की गोद में पलकें मूँद लीं।भोर रो उठी, उसके अश्रुकण ओसकणों‌ के रूप में यत्र तत्र झिलमिलाने लगे।

सूरज ने ‌भोर की उदासी का कारण जानना चाहा तो उसने जुगनू का मृत शरीर सम्मुख रख दिया,सूर्यदेव‌ सब समझ गये। उन्होंने अपने सुनहरे उत्तरीय से भोर के आँसू पोंछे, तभी मंदिर में घंटाध्वनि हुई, पुजारी ने देवता की आराधना में ऋचापाठ करते हुए गाया--

#तमसो_मा_ज्योतिर्गमय....।

✍️रचना शास्त्री

मुरादाबाद के साहित्यकार विवेक आहूजा की कहानी ------सबक

 


अपने परिवार के बारे में बड़ी-बड़ी बातें बखान करने में रविंद्र का कोई सानी नहीं था ।  मेडिकल कॉलेज के हॉस्टल में रविंदर आए दिन अपने परिवार के बड़प्पन के किस्से सुनाया करता था , कि उसके पास सैकड़ों बीघा जमीन है दसियो नौकर हैं ,गाड़ियां हैं ,आदि आदि ..... एक दिन एक मैले कुचेले कपड़ों में सुबह सुबह एक  व्यक्ति मेडिकल कॉलेज के गेट पर पहुंचा और गार्ड से पूछा "भाई डॉक्टर रविंद्र का कमरा कौन सा है,  मैं उसका पिता हूं" गार्ड ने उन्हें गेट पर ही इंतजार करने को कहा और रविंद्र को बुलाने के लिए उसके कमरे पर चला गया , क्योंकि रविंद्र का कमरा गेट के ठीक सामने था उसने गार्ड से कहा आप उन्हें मेरे कमरे में ही भेज दें । रविंद्र के यार दोस्त भी उस समय कमरे में मौजूद थे, उन्होंने   रविंद्र से पूछा डॉक्टर साहब आपसे कौन मिलने आया है   । रविंद्र ने थोड़ा हिचकते हुए अपने मित्रों से कहा पिताजी ने किसी नौकर को भेजा है , मेरी फीस जमा कराने के लिए । 

वृद्ध व्यक्ति के कमरे में प्रवेश करते ही रविंद्र के यार दोस्त कमरे से चले गए । वृद्ध ने रविंद्र से कहा बेटा मेरे चाय नाश्ते का इंतजाम करो , जब तक मैं तैयार होता हूं ,फिर तुम्हारे कॉलेज जाकर फीस जमा कर देंगे । रविंद्र अपने पिताजी के लिए चाय नाश्ते का इंतजाम करने चला गया   । रविंद्र के सभी यार दोस्त कमरे की खिड़की से झांक रहे थे तो रविंद्र के पिताजी ने उन्हें कमरे में बुला लिया । रविंद्र के पिताजी ने उनसे पूछा क्या बात हो रही है , तो उन्होंने बताया की रविंद्र ने उनसे कहा है कि उसके पिताजी ने किसी नौकर को भेजा है,  उसकी फीस जमा करवाने के लिए ।  यह सुन रविंद्र के पिताजी का चेहरा गुस्से से लाल हो गया ,  लेकिन उन्होंने रविंद्र के मित्रों के सामने कुछ भी जाहिर नहीं किया । कुछ देर में रविंद्र भी चाय नाश्ता लेकर कमरे में आ गया यार दोस्तों को वहां पर देख वह घबरा गया कि कहीं उन्होंने उसके पिताजी से कुछ कहा तो नहीं है । रविंदर को देख जब उसके मित्र कमरे से जाने लगे तो उसके पिताजी ने मित्रों को रोक दिया और कहा "आपके दोस्त ,डॉ रविंद्र कुमार जी ने जो मेरा परिचय दिया है वह अधूरा है मैं उसे पूरा करना चाहता हूं" वह आगे बोले ..."मेरी हैसियत इनके घर में एक नौकर की ही है , पर मैं इनका नौकर नहीं हूँ,  मैं तो इनकी माँ का नौकर हूं" 

यह सुन रविंदर अपने दोस्तों के समक्ष शर्म से पानी पानी हो गया । इसके पश्चात रविंद्र के पिताजी ने तैयार होकर कॉलेज में रविंद्र की फीस जमा करवाई ,व दोपहर वाली गाड़ी से गांव वापस चले गए ।

✍️विवेक आहूजा 

बिलारी , जिला मुरादाबाद 

@9410416986

Vivekahuja288@gmail.com