मंगलवार, 17 मार्च 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ मीना नकवी की गजल

कोई तस्वीर दरपन हो गयी है
ज़माने भर से उलझन हो गयी है

वो पत्थर का ख़ुदा जब से हुआ है
मेरी पूजा बिरहमन हो गयी है

ज़रा सा छू लिया क्या चाँद मैैने
सभी तारों से अनबन हो गयी है

हुयी है फूल से जब से मौहब्बत
हवा सहरा में जोगन हो गयी है

अन्धेरे मुह छुपाये फिर रहे हैं
नई क़न्दील रोशन हो गयी है

बहुत मुश्किल है "मीना" साथ रहना
वफ़ा चाहत से बदज़न हो गयी है

**मीना नकवी




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें