गुरुवार, 19 मार्च 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ मीना नकवी की गजल --दिन ढले रोज बहा देती हैं काजल यादें....

बन के एहसास पे छा जाती हैं बादल यादें।
और फि़र आँखों को कर देती हैं जल-थल यादें।।

खुशबू माजी़ की मुझे रखती है महकाये हुये।
दिल के गुलशन में यूँ आती हैं मुसलसल यादें।।

रोज़ आँखों से मेरी नींद उडा़ देती थीं।
इसलिये कर दी हैं मैने भी मुक़फ़्फ़ल यादें।।

कितनी तस्वीरें सिमट आती हैं भूली बिसरी।
मुझ को तन्हाई में कर देती हैं पागल यादें।।

सुब्ह ता शाम तसव्वुर में सजा करती हूँ।
दिन ढले रोज़ बहा देती हैं काजल यादें।।

क़तरा क़तरा  लहू जज़्बों में उतर आता है।
जैसे एहसास का बन जाती हैं मक़तल यादें।।

सच बताऊँ तो हैं जीने का सहारा 'मीना'।
जेह् न के गोशों में आबाद मुकम्मल यादें।।
       ***डॉ मीना नक़वी


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