सोमवार, 23 मार्च 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की कविता -- सैनिटाइज़

अमीरों की बीमारी ने छीन लिया
निवाला गरीबों का..
बुझ गये चूल्हे
रामधन और मुनिया के।
सोच रहे हैं.....
झोंपड़ी के तिनको को
शायद सैनिटाइज़
करने की ज़रूरत तो नहीं ...।
देहातियों को हिकारत से देखने वाले
बड़े लोग...
रखे जा रहे हैं
एकांतवास में..
समाज से पृथक,
क्योंकि... वो ऊँचे लोग हैं।
उन्हें प्रारम्भ से ही अकेला पन भाता
आया है।
अब लौट रहे है
वतन को
विदेश से...,
क्या वतन की याद आयी है
या कुछ और है....?
वातानुकूलित कमरों में रहने वाले
अचानक ही चाहने लगे
तपती जेठ की दुपहरियां
गँवार लोग सहमे हैं
पूछते हैं वैद्य जी से,
"ई अमीरों का खाँसी जुकाम भी
अलग होत  है का?"
खेतों में हल चलाता बुधिया पूछता है..
"ई ढोरों से दूर कैसन रहत बा...?
निशब्दः समाज..!!!
नाइट क्लबों में देर रात तक जागते युगल
अब कहाँ है?
सम्भवतः अनुशासन में रहेंगे कुछ देर के लिये,
जब तक महामृत्यु का तांडव चलेगा...!!
काँपती धरती...
विदीर्ण होते शरीर
आज शायद प्रकृति अपने आवरण से हटा रही है
दूषित तन और मन
सम्भवतः चाहती है करना
स्वयं को सैनिटाइज़....!!!!

***मीनाक्षी ठाकुर
मिलन विहार
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

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