तिरी ख़िदमात में बैठे हुए हैं
कि सब औकात में बैठे हुए हैं
छुपाना चाहते हैं अपने आँसू
सो हम बरसात में बैठे हुये हैं
बहुत दुश्वार है घर से निकलना
उदू सब घात में बैठे हुए हैं
हमारे नाम में जितने हैं अक्षर
तिरी हर बात में बैठे हुए हैं
परिन्दों घोसलों में रहना अपने
शिकारी घात में बैठे हुए हैं
हमारे पीछे चलते थे कभी जो
अब उनके साथ में बैठे हुए हैं
तलाश-ए-आफ़ताब-ए-इश्क़ में सब
अँधेरी रात में बैठे हुए हैं।
✍️ उज्ज्वल वशिष्ठ
मो सय्यद बाड़ा,
बदायूँ
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9536209173
बहुत ही खूबसूरती के साथ,चित्र उकेरा है। बहुत सुंदर उज्ज्वल जी। शुभकामनाएं और हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अतुल जी ।
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