गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की लघुकथा---- पापा का बेटा रजनी


... भाई साहब बेटी को जल्दी  विदा कीजिए भीलवाड़ा .. बहुत दूर है.दूल्हे के पापा बेनीवालजी ने कहा
.. रजनी दुल्हन के जोड़े में बहुत ही सुंदर लग रही थी सभी की आंखें नम थीं... मदन पाल के जीवन में तो भूचाल ही आ गया था ...सब कुछ सहन करना बड़ा दुरूह हो रहा था.... कलेजे का टुकड़ा जैसे अलग हो रहा हो..... सभी संबंधी रो रहे थे आखिर रोते भी क्यों न ये लड़की थी ही ऐसी,, आगे बढ़कर लड़कों की जगह काम करती थी और मदन पाल की तीनों बेटियों में सबसे समझदार थी इसकी शादी की चिंता सभी को बहुत ज्यादा थी********
     रजनी के पुलिस में सलेक्शन के बाद सबको बस एक ही चिंता थी कि इसकी शादी कैसे होगी ...
ट्रेनिंग खत्म होने ही वाली थी कि एक दिन ऋतुराज जी (एस ओ साहब) ने कहा रजनी शाम को उनकी बेटी को देखने वाले आ रहे हैं तुम घर पर आ जाना रिश्तेदारों का स्वागत सत्कार  जो करना था ।
  देखना _भालना हो गया लड़के वालों की खूब खातिरदारी हुई रजनी ने खूब अच्छे से इंटरटेन किया खूब हंसी मजाक के बाद शाम को लड़के वालों से जवाब मांगा गया कि लड़की पसंद है
‌   परंतु यह क्या निर्मल ने साफ जवाब दे दिया मुझे संगीता नहीं रजनी पसंद है । सब हक्के बक्के रह गये ऋतुराज जी पछता रहे  थे मैंने इस लड़की को क्यों बुलाकर आफत मोल ली । निर्मल बहुत ही हैंडसम लड़का था जो  कि एयरफोर्स में उच्च पद पर  आसीन था ।
     रजनी ने कहा मेरी शादी के लिए आप लोगों को मेरे पिता से काशीपुर जाकर बात करनी होगी और राजस्थान से बारात उत्तराखंड में लानी होगी आज उसी बेटी की विदा थी जो अब दरोगा बन चुकी थी घर के सभी कामों में वह लड़कों से भी अच्छे निर्णय लेती थी पिता को कुछ सुझाई नहीं दे रहा था कि अब क्या होगा.... क्यों कि रजनी उनकी बेटी नहीं बेटा थी ..
            ✍️ अशोक विद्रोही
             412, प्रकाश नगर
             मुरादाबाद 244001
            मोबाइल फोन नम्बर 8218825541

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