गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की कहानी ------- गरीब


"अरे भई जल्दी करो..!कितनी देर और लगेगी खाना पैक होने में,?"सुभाष बाबू ने झुंझलाहट भरे स्वर में  राजू से पूछा।"हो गया साहब! पाँच पैकेट और बस...।" राजू ने उत्तर दिया।
आज पूरे सौ पैकेट गरीबों तक पहुँचाने थे।
सुभाष बाबू सामुदायिक रसोई का संचालन  कर रहे थे।सरकार ने लाक डाउन मे गरीबों तक बना बनाया  खाना पहुँचाने की व्यवस्था के तहत  शहर मे कई जगह  रसोई चलवाई  थी। शहर की इस पाश कालोनी में रहने वाले सुभाष बाबू को सामुदायिक रसोई के संचालन की ज़िम्मेदारी दी गयी थी।
       अचानक उनकी जेब में रखा मोबाइल बज उठा। स्क्रीन पर अपने मित्र रवि का नम्बर देखकर मुस्कुराते हुऐ सुभाष बाबू ने काल  रिसीव  की ,"हैल्लो...रवि.!.कैसा है यार?और बता.....कैसे  याद किया। "
"अजी मुबारकां जी, मुबारकां...,"उधर से आवाज़ आयी।
"किस बात की बधाई दे रहा है यार? हे.हे.हे हे हे....!!,सुभाष बाबू ने दाँत फाड़ते हुऐ कहा ।
"अरे भई रसोई चला रहा है ,शहर भर की,ये क्या कम बात है।कल तो फोटो भी छपी थी तेरी अखबार में, खाना बाँटते हुऐ।"रवि ने कहा।
"सो तो है....मगर बड़ा सरदर्दी वाला काम है यार....सुबह से काल पर काल आ रही हैं....पता नहीं कितने भुक्खड़ हैं शहर में!!"
" सरदर्दी कैसी ?....सुना है तुझे भी काफी फायदा हो रहा है इस सबमें...किराना स्टोर वाले गुप्ता जी बता रहे थे....।"रवि ने तंज कसते हुऐ कहा।

"अरे कहाँ यार फायदा वायदा!...ये मोहल्ले वाले  तो जलते हैं मुझसे..।"सुभाष बाबू ने खीसे निपोरीं",चल छोड़ ...तू बता क्या हाल हैं...भाभी जी कैसी हैं ?"

"सब ठीक हैं . ..तू बता...आज क्या क्या  बन रहा है खाने में...?"रवि ने पूछा।

"आज तो आलू की सब्जी और पूरी है।साथ में हरी मिर्च और अचार भी है ।"

"अच्छा...बस एक ही सब्ज़ी है क्या....?चल यार..एक  काम कर ....!आज श्रीमतीजी की तबियत कुछ खराब है,कामवाली भी नहीं आ पा रही है,तू ज़रा पाँच पैकेट खाने के भिजवा दे ...आज ज़रा तेरी रसोई का भी खाकर देखें कैसा है...?"उधर से रवि ने कहा।
"बिल्कुल.... अभी ले....अभी भिजवाता हूँ,..और भाभी जी से कहियो...जब तक तबियत खराब है...यहीं से खाना जायेगा,परेशान ना हों..।चल ठीक है फिर......बाद में बात करता हूँ...ओके..
बाय..।"
रवि  सुभाष बाबू के लंगोटिया यार व पड़ोसी था और अब दूसरी कालोनी में नयी कोठी बनायी थी,परिवार सहित वहीं  शिफ्ट हो गया था।

फोन जेब में रखकर सुभाष बाबू   मुँह खोलकर होठों के किनारे को  तर्जनी उँगली से खुजलाते हुऐ ,फिर से राजू की तरफ बढ़े ही थे कि फोन फिर से घनघना उठा था।"अब कौन मर गया....!!"
बड़बड़ाते हुऐ सुभाष   बाबू ने फोन रिसीव किया तो उधर से एक रिरियाती हुई महिला की आवाज़ आयी,"साब.. कल सुबह से हम सब  भूखे हैं.. वो...खाना ....खाना चाहिए ...?"
उसकी बात पूरी होने से पहले ही सुभाष बाबू ने  मानो महिला को पहचानते हुऐ, उपेक्षा से कहा,"देखो भई !और भी गरीब हैं यहाँ ....!!!तुम्हारे यहाँ  परसों तो  भिजवाया  ही था...!दूसरे गरीबों का भी  नम्बर आने दो..!"
" मगर साब..!साब!  ..मेरी बात तो ....."
उस गरीब औरत की बात पूरी होने से पहले ही सुभाष बाबू ने फोन काट दिया था।
"राजू !!"
"जी साहब"
"ज़रा ये एड्रेस नोट कर...सबसे पहले यही पर खाने की डिलीवरी करना।अर्जेंट है..।"कहकर सुभाष बाबू रवि का नम्बर राजू को  नोट कराने लगे थे ।

 ✍️ मीनाक्षी ठाकुर
 मिलन विहार
मुरादाबाद 244001
मोबाइल फोन नं. 8218467932

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