मृत्युंजय का जाप भी,दूर करेगा रोग।
महाप्रतापी मंत्र है,प्रतिदिन करें प्रयोग ।।
रघुनंदन श्रीराम का, स्वागत बारंबार।
उर उमंग उल्लास भर,आया है त्योहार ।।
पावन भारतभूमि का,अभिनंदन अविराम।
सागर चरण पखारता,जिसका आठों याम ।।
मेरा देश अखंड है,बहती मंद समीर।
हिंद ध्वजा नभ चूमती,शान बढ़ावें वीर।
श्याम सलोना नभ हुआ,घटा करे बरसात।
पिया मिलन को मैं चली, करने मन की बात।।
पावस ऋतु मधुमास सम,उर में उठे हिलोर।
चातक कातर हो उठा,घन बरसो घनघोर।।
सावन बरसे झूम कर,करत पपीहा टेर।
नैना तरसे साँवरे,अबहुँ न करियो देर।।
नैना दोनो कर रहे,नैनौ ही में बात।
नैनौ ने ही कर दिया,हिय मेरे आघात।।
बरखा ने चौपट किये,खेत और खलिहान।
गेहूँ -सरसों बिछ गये,रोया खूब किसान।।
आहत मन पंछी हुआ,देख जगत की बात।
नारी का अपमान कर,पूजें कन्या जात ।।
✍️ मीनाक्षी ठाकुर
मिलन विहार
मुरादाबाद 244001
मोबाइल फोन नम्बर 8218467932
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देख घिरी काली घटा, कृषक हुआ हैरान,
तन तो घर में क़ैद है, गेहूं में है जान।
चम चम चाँदी सा हुआ, माँ गंगा का नीर
बीमारी ने दूर की, दूषित जल की पीर।
बल पर इतराते रहे, इटली औ इंग्लैंड
छोटे से वायरस ने, बजा दिया है बैंड।
माह भरे से हो गए, ऊपर घर में खात
दिन बीते तो सांझ है, सांझ ढले तो रात।
घूमा पहिया वक़्त का, मुश्किल में है जान
बाहर पंछी घूमते, क़ैद हुआ इंसान।
✍️ मयंक शर्मा
मुरादाबाद 244001
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समय क्षुधातुर शेर सा,पल दिन साल शिकार।
ठगे हुए हम रह गये,बही उम्र द्रुत धार।।
निराला औ' दिनकर सी,ढूँढ़ कलम मत आज|
अंँगूठे से लिख रहा,ज्ञानी हुआ समाज।।
धरी योजनाएं कई, सरकारों के पास।
निगल करप्शन पर गया,सारा राष्ट्र विकास।।
कवि तो ऑनलाइन में,चुटकी से मिल जाय।
पर कविता किस ठौर है,कौन ढूँढ के लाय।।
भेड़ चाल सब चल रहे,हम देखें हैरान।
चिल्लाते गाते फिरें,काग ले गयो कान।।
दिखलाना जारी रखो,असल काम सब छोड़।
सम्मानित होते रहो,बातों के बम फोड़।।
अब करना है क्या सही,समय तराजू तोल।
होशियार होता नहीं,जोखिम ले जो मोल।।
निशदिन सूखे जा रही,मन धरती की आस
कैसे उर्वर हों भला,भाव कर्म विश्वास।।
सूरज यह देता दगा,नहीं अनोखी बात।
रहे साथ क़ंदील ही,जब भी आई रात।।
चिढ़ के मारे जो जला,उसके मन को भाय।
चुगली ठण्डी छाछ सी,शीतलता ले आय।।
खुशियाँ सस्ती हो रही,चल मनवा बाजार।
अहम,वहम को छोड़ के,बस पलड़े में धार।।
✍️ हेमा तिवारी भट्ट
मुरादाबाद 244001
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यह कोरोनावायरस, कोविड-नाइंटीन
इस जैविक हथियार का, उत्पादक है चीन
जब से आदम हो गया, घर में क्वॉरेंटाइन
मोबाइल विंडो बनी, तांक झांक अॅनलाइन
बाट निहारे चंद्रिका, भर नैनन में आस।
आन बुझा दे चंद्रमा,अब अधरन की प्यास।
मैला पूत-कपूत का ,ढोये अपने सीस ।
कलयुग में मां गंग की, गत देखो जगदीस।।
ज्योतिर्मय होकर ज़रा ,जलिए तो श्री मान।
एक दीप ने ही किया, चूर तिमिर अभिमान।।
ऊंचे कद का देखिये , ऐसा भी संजोग।
हद से नीचे गिर गये , रुतबे वाले लोग।।
हैश टैग मी टू हुआ , यों संक्रामक रोग।
दिन दिन पीडित बढ रहे , देख देख अभियोग।।
छूट गया जब पाँव से , इस धरती का छोर।
चल पंछी मासूम अब ,उङ अंबर की ओर।।
पीर, प्रीत, अरु प्रेरणा, परहित को निज जान।
कवि हिरदै की वेदना, कविता करे बखान।।
✍️ मोनिका"मासूम"
मुरादाबाद 244001
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नयी पौध के दौर में, मर्यादा यों ढेर।
राह राम की तक रहे, फिर शबरी के बेर।।
प्यारी मुनिया को मिला, उसी जगत से त्रास।
जिसमें लोगों ने रखा, नौ दिन का उपवास।।
मिल-जुल कर ऐसे हरें, आपस के संताप।
कुछ उलझन कम हम करें, कुछ सुलझाएं आप।।
बढ़ते पंछी को हुआ, जब पंखों का भान।
सम्बन्धों के देखिये, बदल गये प्रतिमान।।
मत कर इतना चाँद तू, खुद पर आज गुमान।
फिर आयेगा जीतने, तुझको हिन्दुस्तान।।
मैं भी योद्धा देश का, भरता हूँ हुंकार।
हाथों में यह लेखनी, है मेरा हथियार।।
मन की आँखें खोल कर, देख सके तो देख।
कोई है जो लिख रहा, कर्मों के अभिलेख।।
तम के बदले हृदय में, भरने को उल्लास।
दीपक में ढल जल उठे, माटी-तेल-कपास।।
चन्दा बिन्दी भाल की, तारे नौलख हार।
रजनी करके आ गयी, फिर झिलमिल सिंगार।।
पंछी दरबे में पड़ा, हुआ बहुत हैरान।
भीतर से ही सुन रहा, आज़ादी का गान।।
✍️ राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद 244001
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लोकडाउन में किया हुआ, बच्चों ने हुड़दंग
करते बड़ी शरारतें, मम्मी पापा तंग
कोरोना ने कर दिया, सब बच्चों को पास
और छुट्टियों से बढ़ा, है मन में उल्लास
बच्चों के भी हाथ में, अब रहता है फोन
हुई पढ़ाई नेट से,अब टोकेगा कौन
मम्मी से बनवा रहे, रोज नये पकवान
पिज़्ज़ा आइसक्रीम की , घर में खुली दुकान
कैरम की बाजी कहीं, जमे ताश के रंग
बच्चे या बूढ़े सभी, बैठ रहे हैं संग
रहो घरों में बन्द सब, है सबसे अनुरोध
बच्चे भी संदेश दे, करा रहे हैं बोध
नहीं किसी भी पार्क में, अब बच्चों की फौज
घर के अंदर वो उड़ा, रहे मौज ही मौज
बालकनी से झाँक कर,नीचे देखें बाल
देख बड़े हैरान हैं, सन्नाटे का जाल
कोरोना में छत हुई, खुला हुआ मैदान
पहले रहती थीं बड़ी, कितनी ये सुनसान
बच्चों की फरमाइशें, नहीं रहीं अब आम
करने पड़ते अब उन्हें, घर के भी कुछ काम
✍️ डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद 244001
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सौदागर यूँ कर रहा, मौतों का व्यापार
पहले बेचे सिसकियाँ, फिर बेचे उपचार
एक इमारत ने कहा, झोंपड़ियों से रात
इस ऊँचाई पर करूँ, किससे मन की बात
आवाज़ों के दौर की, ये कैसी तारीख़
शहर-शहर में गूँजती, सन्नाटों की चीख़
मैंने पूछा ज़िन्दगी, क्या है बता फ़क़ीर
पानी पर तब खींच दी, उसने एक लकीर
संकट में सिखला गया, अवलोकन का दौर
पहले मैं कुछ और था, अब शायद कुछ और
चलते रहो, न दो कभी; अवरोधों पर ध्यान
बहते पानी पर भला, पड़ता कभी निशान
झोंपड़ियों से पूछतीं, इमारतें दिन-रैन
तुममें हम-सा कुछ नहीं, फिर भी इतना चैन
कथनी-करनी में रहे, हरदम अगर दुराव
दिल से दिल की सोच का, रहता नहीं जुड़ाव
जब उरूज पर एक दिन, पहुँचा उसका नाम
बाज़ारों में लग गए, ऊँचे - ऊँचे दाम
छल की बस्ती में खड़ा, सच का एक मकान
शायद उसमें भी कभी, रहते थे इंसान
जब से अपने गाँव का, होने लगा विकास
सन्नाटा ओढ़े पड़ीं, पगडंडियाँ उदास
✍️ अंकित गुप्ता 'अंक'
मुरादाबाद 244001
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करी प्रगति विज्ञान में, मानव ने चहुँ ओर।
यक्ष प्रश्न फिर भी रहा, जीवन का घनघोर।।
कल पुर्जे व यांत्रिकी, और चिकित्सा ज्ञान।
मानव के हित हेतु है, समदर्शी विज्ञान।।
औषधियां भी बहुत हैं, होते शोध हजार।
अनियंत्रित हो कर रहे, फिर भी रोग प्रहार।।
किन्तु समय के साथ भी, देखें हम यदि आज।
अब भी सौ बीमारियां,बाकी बिना इलाज।।
कर्म चिकित्सा से जुड़ा,होता ईष्ट समान।
लालच हेतु न छोड़िये, यह दुर्लभ सम्मान।।
दुरुपयोग विज्ञान को ,बना रहा हथियार।
प्रभु का यद्यपि मनुज को,यह अनुपम उपहार।।
दोतरफा हमला करें, कोरोना की मार।
सेहत पर भी आँच है,और बन्द व्यापार।।
मिलना जुलना बैठना , ना मेला ना फाग,
अपनी डफली पीटना , अपना गाना राग,,
चौपाले तक हो गई, सूनी सूनी देख,
यह भी अब लगने लगीं , इतिहासों के लेख,,
सिक्कों पर पलने लगे, आपस के प्यार,
महज अमावस बन रही दिवाली हर बार,,
✍️ मनोज मनु
मुरादाबाद 244001
मोबाइल फोन नंबर 639 709 3523
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कोरोना के खौफ से, दुनिया है हल्कान।
सहम रही है लेखनी, कविकुल भी हैरान।।
कवि सम्मेलन बंद हैं, बंद मान सम्मान।
आयोजक गमगीन हैं, बंद पड़ी दूकान।
कवि गोष्ठी के नाम पर, होती थी तकरार।
बीबी भी खुश है बहुत, देख हमें लाचार।।
कवि को कविता पाठ बिन, आवे कैसे चैन।।
व्हाट्सएप पर हो रहे, आयोजन दिन रैन।
कवि पत्नी झाँके तुरत, जब भी कवि बतियाय।
किससे चैटिंग कर रहे, जल्दी देउ बताय।।
मेरे बस के हैं नहीं, घर के सारे काम।
झाड़ू पोंछा थामिए, बहुत हुआ आराम।।
घर घर में बनने लगे, नित्य नये पकवान।
हलवाई की देखिए, सूख रही है जान।।
धोबी, मोची, पार्लर, हलवाई हज्जाम।
तालाबंदी में हुआ सबका काम तमाम।
धन यश वैभव संपदा, सबके पुरसाहाल।
जीवन को बस चाहिए, केवल रोटी दाल।
आज प्रकृति ने देखिए, किया स्वतः श्रंगार।
छिद्र भरा ओजोन का, महिमा अपरम्पार।।
✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल
MMIG 69, रामगंगा विहार
मुरादाबाद244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल नं• 9456641400
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गर्मी की ये धूप है, धूप बहुत माक़ूल।
शबनम रुख़सत ले रही, पत्ते हुए मलूल।।
इतनी वहशत इश्क़ में, होती है ऐ यार।
कच्ची मिट्टी के घड़े, से हो दरिया पार।।
उसकी आँखों में दिखा, सात झील का आब।
चेहरा पढ़ कर यह लगा, पढ़ ली एक किताब।।
खिड़की में इक चाँद है, रोशन है दीवार।
जो गुज़रे वो ठहर के, देखे दो दो बार।।
उस लहजे की चाशनी, जैसे शहद ज़बान।
चखने उस आवाज़ को, तरस रहे हैं कान।।
थोड़ी फुर्सत जब मिली, देखा मन की ओर।
बाहर था कुछ भी नहीं, अंदर था जो शोर।।
जाने कब किस याद का, करना हो नुक़सान।
जलता रखता हूं सदा, दिल का आतिश दान।।
इश्क़ जलाया रूह में, जिस्म किया क़न्दील।
मंज़िल की ख़्वाहिश नहीं, राह न हो तब्दील।।
मुझको कुछ शिकवा नहीं, हूं मैं तुझ से दूर।
दरिया कितनी दूर हो, सागर मिले ज़रूर।।
दिल का रौशन-दान हैं, ग़ालिब मीर कबीर।
इनकी चौखट पर पड़ा, रहता ज़िया ज़मीर।।
✍️ जिया ज़मीर
मुरादाबाद 244001
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घर के भीतर बंद हम, सभी हुए मजबूर
हम तुम मन से पास हैं, बेशक तन से दूर
काम छिना रोटी छिनी, समय बड़ा ही क्रूर
संकट यह कैसे मिटे, सोच रहा मजदूर
कैसे सँभलें भूख के, बिगड़े सुर-लय-ताल
नई सदी के सामने, सबसे बड़ा सवाल
सपनों के बाज़ार में, ‘हरिया’ खड़ा उदास
भूखा-नंगा तन लिए, कैसे करे विकास
नष्ट सभी सपने हुए, ध्वस्त सभी अरमान
फसलें चौपट देखकर, मरते रोज़ किसान
देख-देखकर हैं दुखी, सारे बूढ़े पेड़
रोज़ तनों से टहनियाँ, करती हैं मुठभेड़
जब-जब भी मन ने किया, पीड़ा का सत्कार
सपनों ने तब-तब दिया, साहस को विस्तार
✍️- योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'
मुरादाबाद 244001
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लिख रहे सुन्दर कथा, रचें दृश्य अभिराम ,
इन रचनाकारों को, बारम्बार प्रणाम।
डटे हुए सैनिक सजग,कलम अपनी ले हाथ,
बने हुए सुरक्षा कवच, देते देश का साथ ।
इनके कर्म से बना,मेरा देश महान ,
विपदा दिनों में खड़ा, गर्व से सीना तान ।
बिखर गए हैं जब सभी, हम तब खड़े हैं साथ,
दूर दूर होकर भी, थामे परस्पर हाथ।
कण कण में भक्ति भरी , शक्ति अपरिमित अपार,
पड़ी नजर जिसकी बुरी,हुआ नजरों के पार।
कोरोना बैठा यहाँ, धूर्त लगाकर घात
विजय करें वरण सभी, देकर करारी मात।
✍️ डॉ मीना कौल
मुरादाबाद 244001
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तोप मिसाइल बम हुए सब के सब बेकार
झेल नहीं पाए सभी कोरोना का वार
कोरोना से मच गया ऐसा इक तूफान
औंधें मुंह जाकर गिरे बड़े बड़े बलवान
कोरोना ने खोल दी बड़े बड़ों की पोल
जो अपनी समृद्धि का पीट रहे थे ढोल
जो पूरे संसार पर रहते रौब जमाय
कोरोना के सामने रहते पूंछ दबाय
मचा रहा संसार में यह भारी उत्पात
मिलकर ही दे पाएंगे कोरोना को मात
जहां कहीं अन्याय का होता निर्मम खेल
नित्य सूखती जाएगी वहां प्रगति की बेल
बस अपनी सुख कामना करते हैं जो लोग
तन - मन से पीड़ित रहें लगे हजारों रोग
राजनीति जो कर रहे नैतिक मूल्य विहीन
पद को दूषित कर रहे हैं जिस पर आसीन
इस पर, उस पर छोड़ते व्यंगो की बौछार
मन के दुर्बल लोग जब पाते कोई हार
जब उसकी सामर्थ्य पर उठने लगे सवाल
लोगों को उलझा दिया करके खड़े बवाल
✍️ शिशुपाल "मधुकर"
C-101,हनुमान नगर ,लाइनपार
मुरादाबाद 244001
Mob - 9412237422
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सूनी गालियाँ हो गईं सूने मंदिर घाट
जाने कब तक मिटेगा कोरोना आघात।
दुनियाँ में बढ़ने लगा पाप कर्म अन्याय
एक झलक में ईश ने समझा दिया उपाय।
ताला बंदी में हुई सारी दुनियाँ कैद
बड़े बड़ों की हो गई मनमानी नापैद।
कोई कितना शाह हो चाहे कितना रंक
नहीं छोड़ता किसी को कोरोना का डंक।
नहीं बना टीका अभी नहीं दबा उपलब्ध
बीमारी की मार से है दुनियाँ स्तब्ध।
जिसने अपनी सी करी किया न उचित इलाज
सोना, चांदी, रोकड़ा निकले धोखेबाज।
व्याधि महामारी हुई किया विकट विस्तार
लाखों जीवन खो गए लाखो हैं बीमार।
देखो इसकी क्रूरता समझो इसकी मार
दो गज की दूरी रखो मास्क लगाओ यार।
शांत चित्त होकर रहो घर के अंदर बंद
तभी कटेगा व्याधि से जन-मानस का फंद।
सदा नहीं रहती यहाँ व्याधि,साँस औ फांस
इसी सत्य के साथ ही कूदो नौ नौ बांस।
✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद 244001
मोबाइल फोन नंबर 9719275453
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आपस में पैदा हुए, इतने वाद-विवाद
हम-तुम दोनों प्रेम के, भूल गए संवाद
कुछ अपनी, कुछ आपकी, कुछ दुनिया की बात
कहते-सुनते कट गए, जीवन के दिन-रात
तुममें था जैसे निहित, जीवन का सब सार
तुम क्या बिछुड़े, हो गया जीना ही दुश्वार
सपने हाथों में लिए, आए तीर कमान
प्रातः देखा तो मिलीं, आँखें लहूलुहान
धुँधला-धुँधला दिख रहा, यत्र-तत्र-सर्वत्र
भीगी आँखें किस तरह, पढ़ें तुम्हारा पत्र
चहल-पहल है इस तरह, जैसे हो त्योहार
सजा हुआ है दूर तक, यादों का संसार
हारे मन से किस तरह, जीतूँ मैं संसार
यार कभी चलती नहीं, नाव बिना पतवार
साथ चला था आपके, मन में लिए उमंग
बिछड़ा तो ऐसे हुआ, जैसे कटी पतंग
बैठी हैं घेरे हुए, यादें मन का घाव
जैसे हो चौपाल में, जलता हुआ अलाव
मुस्कानों के बीच मैं, बैठा रहा उदास
आँसू की जागीर थी केवल मेरे पास
✍️ डॉ कृष्णकुमार 'नाज़'
मुरादाबाद244001
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दिए कभी तो वक़्त ने,दिल को ज़ख़्म तमाम।
और कभी इसने किया,मरहम का भी काम।।
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐ज़िद सागर से मेल की , इसने ली है ठान।
खोकर मानेगी नदी , अपनी सब पहचान।।
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
दौड़ धूप तो उम्र भर , लगी रहेगी यार।
बैठो भी तुम चैन से,दो पल कभी कभार।।
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
आप शौक़ से दीजिए , कोई सख़्त बयान।
पर भाषा के मान का,रखिए थोड़ा ध्यान।।
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
काश! हमारा भी यहाँ, होता कोई ख़ास।
जो कह देता प्यार से , मत हो सखे उदास।।
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
मिले तनिक ताज़ा हवा,और नीम की छाँव।
लौट चलें आओ सखे , फिर से अपने गाँव।।
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
फिर जाएँ सब काम पर , खुलें हाट-बाज़ार।
दुनिया पहले की तरह , हो जाये गुलज़ार।।
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
दुःख भरे अति शीघ्र ही , दिन जायेंगे बीत।
सब गायेंगे देखना , फिर ख़ुशियों के गीत।।
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
'कोरोना' ने विश्व का , बदला ऐसा सीन।
अमरीका भी माँगता , हम से 'क्लोरोक्वीन'।।
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐 'कोरोना' के साथ यह , जंग नहीं आसान।
फिर भी जीतेगा मगर , अपना हिंदुस्तान।।
✍️ ओंकार सिंह विवेक
रामपुर
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जो भी कठिन विपत्ति में ,होता नहीं अधीर!
वही व्यक्ति संसार में, कहलाता है वीर !!
डरकर अपनी शक्ति को, नहीं कीजिए नष्ट!
साहस- युक्त प्रयास से, मिट जाते हैं कष्ट !!
सबके सुख की कामना, करते हैं जो लोग!
वे चिंता से मुक्त हो, रहते सदा निरोग !!
टिक पाती है कब सदा, दुख की काली रात !
अँधियारे को चीरकर , आता सुखद प्रभात. !!
मानव तू यह सोचकर, अपने मन को डॉट !
एक पेड़ को काट कर, रहा स्वयं को छॉट !!
धूल अटे संबंध को, करो पोंछकर साफ़ !
कहा-सुनी हो जाए तो , करो प्यार से माफ़!!
ज्ञान बने उतना प्रखर, जितना हो संवाद!
हर मिसाल से दोस्तों , ज्ञान सदा अपवाद!!
बहुत खोजने पर मिला, जीवन का निष्कर्ष !
जहॉ नहीं विश्राम है , जीवन है संघर्ष !!
धीरज, क्षमा,उदारता ,और राखिये नेह !
अमन-चैन,सुख-शांति से, भरा रहेगा गेह!!
जिसकी गर्मी से जगत, रहता है गतिमान!
सब देवों का देवता, है सूरज भगवान !!
✍️ ओंकार सिंह 'ओंकार'
1-बी-241 बुद्धि विहार ,मझोला
मुरादाबाद 244001
मो. नं. 9997505734
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कोरोना दिखला रहा, सबको ऐसा रंग ,
बदल गए हैं देखलो, सबके अपने ढंग ।
कड़ी चुनौती सामने, हो जाओ तैयार ,
डट कर करो मुकाबला, होगा बेड़ा पार ।
मिलने वाले दूर से, पूछ रहे हैं हाल ,
कोरोना से देखिए, बदली सब की चाल ।
लॉकडाउन में अब नहीं, कटते हैं दिन रैन ,
सब धंधे चौपट हुए, छीना सबका चैन।
पैर जमीं पर है नहीं, बनते हैं गुटबाज ,
मिटा रहे वे स्वयं, एक दूजे की खाज ।
✍️ अशोक विश्नोई
मुरादाबाद 244001
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रहे सर्वदा मुदित मन,
संशय रहे न कोय।।
सन्तों ऐसे मनुज का,
सिद्ध मनोरथ होय।।
सगुण उपासक सुजन गण,
समझाते हर बार।।
जल भू दूषित मत करो,
रोपो विटप हजार।।
"कोरोना", भगवान ने
भेजा अपना दूत।।
सुख से जीना चाहते,
बदलो निज करतूत ।।
स्वास्थ्य सुयश अक्षय रहे ,
क्षय हों कलुषित भाव।।
धन वैभव अरु धर्म का,
रहे न कभी अभाव।।
कोरोना से मत डरो ,
डर है यम का द्वार।।
अनुशासन पालन करो,
हारेगा हर बार।।
मोदी के मुख से निकल,
अक्षर बनते मन्त्र।।
स्वागत होता सर्वदा,
यत्र तत्र सर्वत्र।।
राम नाम में मन रमें,
कहीं न इत उत जाए।।
जो मन भावे सो मिले,
सांची देउ बताये।।
कर्मों के फल त्याग का,
यदि मानस बन जाये।।
अठारह अध्याय का,
सार तत्व मिल जाए।।
घोर अमावस की निशा,
हुई बहुत हैरान।।
मिटा दिया तम का अहं,
कर दीपक बलिदान।।
✍️ डॉ प्रेमवती उपाध्याय
मुरादाबाद 244001
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जाना पहचाना मिला रस्ते में अनजान।
मन में इक विश्वास था वो लेगा पहचान।।
प्रेम-सुधा है शून्य से अब तक अंगीकार।
बस सपनों मे ही मिला उस से मुझ को मान।।
मिले आप अपनत्व से, ये मन हुआ अधीर।
भावों के अतिरेक का आया इक तूफा़न।।
जन्म जन्म के मूर्ख हम, आशा से बे-आस।
हम ने गैंरो को दिया अपनों का सम्मान।।
कैसी घोर विडम्बना, कैसा ये उपहास।
मुझ को मुर्दा कर गया जिस को समझा जान।।
केवल 'मैं' के फे़र में,देता वह उपदेश।
समझा हम ने देर से ज्ञानी का अज्ञान।।
अनमिट अर्थों में लिखे भावों के प्रारूप।
अमर रखेगा विश्व में शब्दों का सोपान।।
नज़्म, गीतिका, गीत अरु कुण्डलिया सब ठीक।
लिखकर यह दोहा ग़ज़ल 'मीना' है हैरान।।
✍️ डा. मीना नक़वी
मुरादाबाद 244001
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आॅनलाइन कवि गोष्ठी,
देखा उसमें डूब ।
आना जाना धन बचा ,
वाह! बहुत ही खूब।।१।।
सबक आज से लीजिए,
देना सबको सीख ।
लेकर भिक्षुक रहेगा,
आॅनलाइन अब भीख।।२।।
हम जैसों की छोड़िए,
महाशक्तियां तात ।
खा बैठीं , बेहाल हैं ,
कोरोना से मात ।।३।।
प्यासे!लाॅकडाउन में ,
क्यों रहता मनमार।
पीने लायक हो चली,
नदियों की जलधार।।४।।
हुए आपदा काल में,
ऐसी फूंको आस।
कोरोना बनकर रहे,
जन जीवन का दास।।५।।
अब तो आना चाहिए,
जीवन में बदलाव ।
कोरोना की ओट में ,
नये दिखे कुछ ख़्वाब।।६।।
भेदभाव किस काम के,
कैसी है तकरार।
बंटे-बंटे जो अब लड़े,
तो जायेंगे हार।।७।।
जाति-धर्म मजहब नहीं,
कोरोना सब्जेक्ट।
मनुज जात को लीलना,
उसका है आॅब्जेक्ट।।८।।
अपना सबकुछ भूलकर,
जग की हालत देख।
कोरोना के भाल मिल,
लिखें हार-अभिलेख।।९।।
अन्तिम दोहा देखिए,
आप सभी के नाम।
तिल-तिल जलकर देश के,
दुःख में आयें काम।।१०।
✍️डॉ.मक्खन मुरादाबादी
मुरादाबाद 244001
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संकट के सम्मुख अगर, बना रहे उत्साह।
कठिनाई के बीच भी, मिल जाती है राह।।
सम्बन्धों में जब चुभे, शंकाओं के शूल।
व्यक्ति और परिवार सब, होते नष्ट समूल।।
मात्र सहज विश्वास है, अपनेपन का अर्थ।
इसके बिना न हो सका, कोई कभी समर्थ।।
अपने हित जो तोड़ता, अनुशासन का छन्द।
उसे न मिल पाता कभी, जीवन में आनन्द।।
रहें उपेक्षित नारियां, जिस समाज में मित्र।
लोक जान लेता सहज, उसका पतित चरित्र।।
जिसने मन पर सह लिये, अपमानों के शूल।
समय बिछाता राह में, उसकी सुख के फूल।।
सत्संगति से लोक में, मिले सहज आनन्द।
सद्विचार परलोक में, देता परमानन्द।।
मर्यादा के गेह जब, कुमति लगाती आग।
जलते विद्युतपात सम, स्नेह, शील, अनुराग।।
कोरोना के काल में, अनायास ही लोग।
सभी तपस्वी हो गए, छूटे छप्पन भोग।।
दोहन जब अतिरिक्त हो, लिप्सा सीमा हीन।
एक घात में ही प्रकृति, करती जन को दीन।।
✍️ डॉ० अजय 'अनुपम'
मुरादाबाद 244001
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बच्चों को सिखलाइए, बूढ़ों का सम्मान।
हो जाएगी आपकी, हर मुश्किल आसान।।
ग़ालिब, तुलसी, मीर के, शब्दों की ताज़ीम।
करते मेरे दौर में, बेकल, निदा वसीम।।
हिंदी रानी देश की, उर्दू जिसका ताज।
खुसरो जी की शायरी, इन दोनों की लाज।।
तनहाई में रात की, भरता है 'मंसूर'।
सन्नाटो की माँग में, यादों का सिंदूर।।
ख़ुदा और भगवान में, नहीं ज़रा भी फ़र्क़।
जो माने वो पार है, ना माने तो ग़र्क़।।
जब थे पैसे जेब में, रिश्तों की थी फ़ौज।
बहा सभी को ले गयी, निर्धनता की मौज।।
मन में कुंठा पालकर, घूमे चारों धाम।
आये जब घर लौटकर, माया मिली न राम।।
दस्तक दी भगवान ने, खुले न मन के द्वार।
ऐसे लोगों का भला, कौन करे उद्धार।।
पुरखों की पहचान था, पुश्तैनी संदूक।
बेटा जिसको बेचकर, ले आया बंदूक।।
अपनी पलकों ले लिया, जब निर्धन का नीर।
मेरे आशिक़ हो गये, सारे संत-फ़क़ीर।।
✍️ मंसूर उस्मानी
मुरादाबाद 244001
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सबको ही सहना पड़े, क्या राजा क्या रंक
जब जब बढ़कर फैलता, जंगल का आतंक
नई व्यवस्था में नये, उभरे कुछ मतभेद
कम लगने लग गए हैं, अब छलनी के छेद
कुछ मौसम प्रतिकूल था, कुछ था तेज बहाव मछुआरों ने खींच ली, तट पर अपनी नाव
मंदिर से मस्जिद कहे, तू भी इस पर सोच
तुझको लगती चोट तो, आती इधर खरोच
मंदिर मस्जिद से जुड़ी, है जब से पहचान
मजहब ऊँचे हो गए, छोटा हिन्दुस्तान
धीरे धीरे फैलता, जंगल का कानून
सत्ता सब सुख पा रही, जनता रोटी-नून
✍️ माहेश्वर तिवारी
मुरादाबाद 244001
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::::::::::::प्रस्तुति::::::::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसुंदर आयोजन के लिये सभी को हार्दिक बधाई। कार्यक्रम का विस्तृत समाचार ब्लॉग पर शेयर करने के लिये डॉ० मनोज रस्तोगी जी का विशेष आभार।
जवाब देंहटाएं