टूट गया भ्रम
हम सरताज थे
वक़्त के हाथों
सब मोहताज थे।।
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अमावस्या के घर पर
पूर्णमासी मेहमान थी
सूरज की हथेली पर
तितली मेहरबान थी।।
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खुश्क थे गले
अधर भी मौन
आत्मा में आज
श्रीराम आ गए।।
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पागल थी हवा
जज़्बात सो गये
बताये कोई उसे
हम क्या हो गये।।
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जो हाथों में झूले
वो ही ठिठक गये
मोक्ष धाम में नटवर
कंधे भी बिदक गये।।
✍️ सूर्यकान्त द्विवेदी
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