गुरुवार, 22 जुलाई 2021

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'अक्षरा' की ओर से मुरादाबाद का साहित्यकार माहेश्वर तिवारी के जन्मदिन 22 जुलाई 2021 को काव्य गोष्ठी एवं संगीत संध्या का आयोजन

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'अक्षरा' के तत्वावधान में सुप्रसिद्ध साहित्यकार माहेश्वर तिवारी के 82वें जन्मदिन तथा उनकी रचनाधर्मिता के 66 वर्ष पूर्ण होने पर 22 जुलाई 2021 को काव्य गोष्ठी एवं संगीत संध्या का कार्यक्रम "पावस-राग" का आयोजन नवीन नगर स्थित 'हरसिंगार' भवन में किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ सुप्रसिद्ध संगीतज्ञा बालसुंदरी तिवारी एवं उनकी संगीत छात्राओं- लिपिका, कशिश भारद्वाज, संस्कृति, प्रवर्शी और सिमरन द्वारा प्रस्तुत संगीतबद्ध सरस्वती वंदना से हुआ। इसके पश्चात उनके द्वारा सुप्रसिद्ध नवगीतकार माहेश्वर तिवारी के गीतों की संगीतमय प्रस्तुति हुई- 'बादल मेरे साथ चले हैं परछाई जैसे/सारा का सारा घर लगता अंगनाई जैसे'। और 'डबडबाई है नदी की आँख/बादल आ गए हैं/मन हुआ जाता अँधेरा पाख/बादल आ गए हैं।

गोष्ठी में यश भारती से सम्मानित सुप्रसिद्ध नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने पावस गीत पढ़ा-

एक चिड़िया डाल पर

कौन शायद इस तरह हम हैं

धूप के अक्षर समय के भाल पर

 कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ . मक्खन 'मुरादाबादी'  ने गीत प्रस्तुत किया---

 मैं हुआ जिस गीत से

 फिर गीत वह मुझसे हुआ

 ठीक से बांधें चलो अब

  गीत गाड़ी का जुआ।

 मुख्य अतिथि वरिष्ठ ग़ज़लकार डा. कृष्ण कुमार नाज़ ने ग़ज़ल पेश की --

 वादों की फ़ेहरिस्त दिखाई और तक़रीरें छोड़ गए

वो सहरा में दरियाओं की कुछ तस्वीरें छोड़ गए 

रामचरितमानस, रामायण, भगवद्गीता, वेद, पुराण

 अभिनंदन उन पुरखों का, जो ये जागीरें छोड़ गए

     कार्यक्रम का संचालन कर रहे योगेन्द्र वर्मा व्योम ने पावस गीत प्रस्तुत किया- 

     बूँदों ने कुछ गीत लिखे हैं

     चलो गुनगुनायें

     हरी दूब से, मिट्टी से

     अपनापन जता रहीं

     कई-कई जन्मों का अपना

     नाता बता रहीं

     सिखा रहीं कैसे पत्तों से

     बोलें-बतियायें

      कवयित्री विशाखा तिवारी ने रचना प्रस्तुत की-

      आज व्याकुल धरती ने

      पुकारा बादलों को

      मेरी शिराओं की तरह

      बहती नदियाँ जलहीन पड़ी हैं

     वरिष्ठ कवि डॉ.मनोज रस्तोगी ने रचना प्रस्तुत की-

      नहीं गूंजते हैं घरों में 

      अब सावन के गीत

      खत्म हो गई है अब 

      झूलों पर पेंग बढ़ाने की रीत

      नहीं होता अब हास परिहास

      दिखता नहीं कहीं 

      सावन का उल्लास 

 चर्चित दोहाकार राजीव 'प्रखर' ने दोहे प्रस्तुत किए- 

       प्यारी कजरी साथ में, यह रिमझिम बौछार

       दोनों मिलकर कर रहीं, सावन का शृंगार

       जब तरुवर की गोद से, खग ने छेड़ी तान

       सावन चहका ओढ़ कर, बौछारी परिधान

  कवि मनोज 'मनु' ने ग़ज़ल सुनाई- 

  आपकी याद चली आई थी कल शाम के बाद

  और फिर हो गई इक ताज़ा ग़ज़ल शाम के बाद

  तू  है  मसरूफ, कहां दिन में मिले वक्त तुझे

  तू किसी रोज़ मिरे साथ निकल शाम के बाद कवयित्री अन्जना वर्मा ने सुनाया- 

  दुनिया के इस रंगमंच पर

  सभी रोल कर जाते हैं

  होठों पर मुस्कान सजाकर

  दिल के दर्द छिपाते हैं

  ग़ज़लकार राहुल शर्मा ने सुनाया-

   क्यूँ मेरी ज़रूरत पे ही हर बार अचानक

   हर शख्स नज़र आता है लाचार अचानक

   जीवन के तमाशे को तमाशे की तरह देख

   झटके से बदल जाएँगे किरदार अचानक

 कवयित्री हेमा तिवारी भट्ट ने सुनाया-

 चलो मौत की खटिया

 खड़ी करते हैं

 क्यों न ये शुरुआत हम सब

 अपने दिमाग के दालान से करें 

  डा. चन्द्रभान सिंह यादव ने विचार पेश किए- वसंत मौसम की युवा अवस्था है तो पावस बचपना।बच्चे के   हँसने,रोने  और चिल्लाने जैसा है वर्षा, कड़ी धूप और बिजली का चमकना।वर्षा की बूदें वनस्पतियों के साथ मनुष्यों के जीवन के लिए  जरूरी हैं। 

 कवि प्रत्यक्षदेव त्यागी ने सुनाया- 

 क्यों हमेशा तू ही पकाये खाना

 और मैं बस खाऊँ

 कार्यक्रम संयोजक आशा तिवारी एवं समीर तिवारी द्वारा प्रस्तुत आभार-अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम विश्राम पर पहुँचा।















:::::प्रस्तुति::::::::

योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'

संयोजक- संस्था 'अक्षरा', मुरादाबाद

मोबाइल-9412805981







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