गुरुवार, 22 जुलाई 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ मक्खन मुरादाबादी का गीत ---जुल्मों से भी आँख मिलाकर नहीं आँख है मींची। संस्कृतियों के गले न काटे मुरझी थिरकन सींची।।


माल नहीं हम औने-पौने

लगी-उठाई फड़ के।

पेड़ पुरातन सभ्य समाजी

नस्से देखो जड़ के।।


इन साँसों में बसी न हिंसा

मुनिजन इनमें रहते।

धड़कन और शिराओं में बस

वेद-मंत्र ही बहते।।

पावन शब्द-दूत ही भेजे

जब भी दुश्मन कड़के।


रौंदी नहीं सभ्यता कोई

सदा उद्धरण बोये।

जब-जब भी मानवता सिसकी

परवत हमने ढोये।।

आहत धड़कन कहीं मिली तो

हम भी भीतर फड़के।


जुल्मों से भी आँख मिलाकर

नहीं आँख है मींची।

संस्कृतियों के गले न काटे

मुरझी थिरकन सींची।।

बीन-बान कर सदा पिरोये

मोती बिखरी लड़ के।


कभी व्यवस्था करी न बंधक

कभी न उल्लू साधे।

लोकतंत्र की निर्मलता के

बने नहीं हम बाधे।।

छाया देते सड़ी तपन को

ठहरे वंशज बड़ के।


✍️ डॉ मक्खन मुरादाबादी, झ-28, नवीन नगर

कांठ रोड, मुरादाबाद,पिनकोड: 244001

मोबाइल: 9319086769

ईमेल: makkhan.moradabadi@gmail.com

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