माल नहीं हम औने-पौने
लगी-उठाई फड़ के।
पेड़ पुरातन सभ्य समाजी
नस्से देखो जड़ के।।
इन साँसों में बसी न हिंसा
मुनिजन इनमें रहते।
धड़कन और शिराओं में बस
वेद-मंत्र ही बहते।।
पावन शब्द-दूत ही भेजे
जब भी दुश्मन कड़के।
रौंदी नहीं सभ्यता कोई
सदा उद्धरण बोये।
जब-जब भी मानवता सिसकी
परवत हमने ढोये।।
आहत धड़कन कहीं मिली तो
हम भी भीतर फड़के।
जुल्मों से भी आँख मिलाकर
नहीं आँख है मींची।
संस्कृतियों के गले न काटे
मुरझी थिरकन सींची।।
बीन-बान कर सदा पिरोये
मोती बिखरी लड़ के।
कभी व्यवस्था करी न बंधक
कभी न उल्लू साधे।
लोकतंत्र की निर्मलता के
बने नहीं हम बाधे।।
छाया देते सड़ी तपन को
ठहरे वंशज बड़ के।
✍️ डॉ मक्खन मुरादाबादी, झ-28, नवीन नगर
कांठ रोड, मुरादाबाद,पिनकोड: 244001
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ईमेल: makkhan.moradabadi@gmail.com
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