कीर्तिशेष श्री दुर्गादत्त त्रिपाठी जी की रचनाओं में सामाजिक विषमता का चित्रण है, आध्यात्मिक चिंतन है, राजनीति के दमनकारी व्यवहार और निरीह जनता की लाचारी का चित्रण भी है।
उनकी कविताओं में से विशेष रूप से कुछ रचनाओं की पंक्तियां यहाँ उद्धृत कर रहा हूँ जो उनके भीतर के साहित्यकार को परिभाषित करने में सक्षम हैं।
एक यही तो है स्वतंत्र जन नगरी
कौन मनुज काया को कहता कारा
हमें सर्वहितकारी सक्रियता से
लेना है पल पल का लेखा जोखा
विश्व व्यथा से सतत संग रखने को
रखना रोम रोम का खुला झरोखा
होने और न होने से जीवन के
बड़ा तथ्य निश्चित गंतव्य हमारा।
इसी रचना में आगे कहते हैं:
जन बलिदान मूल्य पर जनमत पाना क्षम्य नहीं
इसमें छिपी हुई हिंसा से जनपद मरता है।
इन पंक्तियों में वह सत्ता पाने के लिये हिंसा का सहारा लेने वाली राजनीति को भी चेतावनी देते दिखाई देते हैं।साथ ही सत्ता की दमनकारी नीतियों के कारण उत्पन्न परिस्थितियों का जीवंत चित्रण इन पंक्तियों में भी परिलक्षित होता है:
कहीं भूखों ने लूटा नाज
आग उगली पिस्तौलों ने
कहीं दंगों में जन निर्दोष
भून डाले पिस्तौलों ने
समाज में सफल और समर्थ वर्ग की अर्थपिपासा, संवेदन शून्यता, परिवारों का विघटन, इन सभी परिस्थितियों को अत्यंत मार्मिक तरीके से उन्होंने व्यक्त किया है। देखें ये पंक्तियां:
जाने कब सबलों की विजय पिपासा
बूंद बूंद जल सागर का पी जाये
शेष स्नेह में संवेदना नहीं है
परिवारों की चौखट चटख रही है
प्रेतों की छवियां समाज पर उभरी
आकृति बदल गयी है चित्र वही है
इसके परिणाम भी उन्होंने इन पंक्तियों में दर्शाए हैं:
लोक प्रगति को अवसादों ने घेरा
विश्व शांति का मुँह अशान्ति ने फेरा।
साथ ही साथ अपनी रचनाओं में उन्होंने समाज को शिक्षा भी दी है:
बोलो दो बोल किन्तु मधुर मधुर बोलो
रस में विष तीसरे वचन का मत घोलो।
और आने वाले समय के लिये आगाह भी किया है :
राज्य के महोत्सव सब राजसी होंगे
और जन अभावों की यातना सहेंगे।
साहित्यकार की रचनाधर्मिता कभी अभावों या दबाव के आगे प्रभावित नहीं होती वह किसी त्रासदी से विवश होकर नहीं लिखता, कुछ यही व्यक्त होता है इन पंक्तियों में:
पामर से पामर जन
झेले इतिहासों ने
भूख से हिला डाले
व्यक्ति विवश त्रासों ने
एक झिल न पाया तो मैं
और अंत में कवि की रचनाधर्मिता का स्वआकलन जो कवि को कभी निराश या हताश नहीं होने देता:
जो कुछ उसने लिखा भले मर जाए
किन्तु न मर पायेगी उत्कट ममता
उपरोक्त विवरण उनके विराट व्यक्तित्व के संबंध में अत्यंत सूक्ष्म परिचय देता है, लेकिन उनके भीतर के साहित्यकार से अच्छे से परिचित करवाता है।
✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल, MMIG 69, रामगंगा विहार, मुरादाबाद 244001, उत्तर प्रदेश, भारत
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