मंगलवार, 27 जुलाई 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की लघुकथा ---टीका


"मुझे नहीं लगवाना ये टीका। बुढ़ापे का शरीर है सुई का दर्द कौन झेलेगा और फिर  _उसके बाद बुखार और दर्द की शिकायत भी मैने सुनी है।" कलावती जिद पर अड़ी थी। उसके बेटे रामलाल ने उसको समझाते हुए कहा "अम्मा तुम नहीं  जानती,ये कोरोना बीमारी बहुत खतरनाक है। इसकी कोई दवा भी नही है। टीका लगवाकर ही इससे काफी हद तक बचा जा सकता है। लेकिन कलावती कुछ सुनने को तैयार नहीं थी।  रामलाल ने आखिरी कोशिश करते हुए कहा _ "अच्छा अम्मा एक बात बताओ।जब हम छोटे थे और घर से कहीं बाहर जाते थे,तो हमारे माथे पर आप काला टीका क्यों लगाती थीं।" "वो तो तुम्हे किसी की नजर ना लगे,इस लिए लगाते थे।"

"बस इसे भी ऐसे ही समझ लो। कोरोना की बुरी नजर से बचना है तो टीका लगवाना जरूरी है।" कलावती के दिमाग में ये बात बैठ गई।वो फुर्ती से उठीं और बोलीं __"ठीक है,तेरी ताई और  चाची को भी साथ ले चलते हैं।"

✍️  डॉ पुनीत कुमार, T 2/505 आकाश रेजीडेंसी मुरादाबाद 244001, M 9837189600

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